चन्द्र-प्रभा--भाग(१७) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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चन्द्र-प्रभा--भाग(१७)

अम्बालिका के जाते ही नागदेवता झाड़ियों से बाहर निकले और रानी जलकुम्भी से पूछा___
क्या अम्बालिका ने नागरानी को स्वर्णमहल में रखा है?
जी, नागदेवता!वो तो अभी यही कहकर गई है कि नागरानी स्वर्णमहल में बंदी हैं,जलकुम्भी बोली।।
परन्तु अब मैं कैसे ज्ञात करूं कि स्वर्णमहल कहां है? नागदेवता बोले।।
नागदेवता! आप चिंतित ना हों,स्वर्णमहल के विषय में मैं आपको सब बताती हूं,मैं ने इतनों वर्षो स्वर्णमहल में वास किया है,रानी जलकुम्भी बोली।।
ये तो बहुत ही अच्छा संयोग हुआ महारानी जलकुम्भी और आपके महाराज अपारशक्ति मेरे बहुत बड़े भक्त थे,एक बार उन्होंने मेरी सहायता भी की थी, मैं भी चाहता हूं कि मैं भी उनकी सहायता करूं एवं उनको और उनके परिवार को अम्बालिका के बंधनो से मुक्त करा सकूं,इसके लिए मैं कोई भी संकट उठा सकता हूं, नागदेवता बोले।।
आपको ये प्रमाणित करने की आवश्यकता नहीं है, नागदेवता! ये आप सिद्ध कर चुके हैं कि हमारे लिए आप कुछ भी कर सकते हैं, हमारी सहायता की तभी तो नागरानी,अम्बालिका की बंधक हैं,अभी ना जाने और क्या क्या देखना रह गया हैं,जलकुम्भी बोली।।
ना महारानी ऐसे धैर्य नहीं खोएं,अब कुछ भी अनर्थ ना होगा,राजा और सूर्यप्रभा अपने पूर्व रूप में पुनः आ सकेंगे, नागदेवता बोले।।
धैर्यवान हूँ नागदेवता! तभी तो जीवित हूँ, नहीं तो इतने वर्षों से अपने स्वामी और पुत्री से दूर हूँ, धैर्य ना रखती तो आज आपके समक्ष ना होती,रानी जलकुम्भी बोली।।
मैं आपके ब्यथित मन की पीड़ा समझ सकता हूँ रानी जलकुम्भी, क्योंकि मेरी रानी को तो मुझसे दूर हुए केवल एक ही दिन हुआ है और मेरा मन इतना व्याकुल हो उठा है, आपने तो इतने वर्षों से महाराज और पुत्री का मुँख भी नहीं देखा,नागदेवता बोले।।
परन्तु नागदेवता, अब आपने क्या उपाय निकाला है, नागरानी को बचाने का,जलकुम्भी ने पूछा।।
मुझे तो कुछ सूझ नहीं रहा,अब आप ही कुछ उपाय बताएं,रानी! नागदेवता बोले।।
इस समस्या का एक ही समाधान है, आपको स्वर्णमहल जाना होगा,चूँकि आप अपनी इच्छा से कोई भी रूप धर सकते है तो आप सरलता से स्वर्णमहल के भीतर प्रवेश कर सकते हैं, वहाँ आप नागरानी को खोजकर उन्हें छुड़ाकर ला सकते हैं और यदि आप सफल हुए तो अम्बालिका के लिए ये सबसे बड़ी हार होगी,परन्तु आपको ये कार्य बहुत सावधानीपूर्वक करना होगा,रानी जलकुम्भी बोली।।
जी,क्या आप मेरी इस कार्य में सहायता कर सकतीं हैं,नागदेवता ने पूछा।।
जी ,अवश्य नागदेवता, कहिए आप मुझसे क्या सहायता चाहते हैं, जलकुम्भी ने पूछा।।
सर्वप्रथम आप,मुझे स्वर्णमहल का मानचित्र समझा दीजिए और सम्भवानाएं भी बता दीजिए कि ऐसा कौन सा स्थान हो सकता है जहाँ अम्बालिका नागरानी को रख सकती है, नागदेवता ने पूछा।।
जी,एक रहस्य मैं आपको बताती हूँ कि किसी गिद्ध का श्राप था शीशमहल पर,उन्हीं गिद्ध के कहने पर महाराज ने स्वर्णमहल बनवाया था और उस गिद्ध का अंतिम संस्कार करके महाराज ने उसकी अस्थियों के कलश को स्वर्णमहल के प्राँगण में वृक्ष के तले धरती मे छुपा दिया था,यदि हम उस गिद्ध की अस्थियों को उस प्राणी पर डालेगें जिसमें अम्बालिका ने अपने प्राणों को छुपा रखा है तभी अम्बालिका मृत्युलोक को प्राप्त होगी अन्यथा नहीं, परन्तु मुझे उस प्राणी के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं क्योंकि अम्बालिका ने स्वर्णमहल में कई भाँति के प्राणियों की मूर्तियाँ बनवा रखीं हैं,अब उनमे से किस जीव की मूर्ति में अम्बालिका के प्राण हैं,ये मुझे नहीं ज्ञात और ये मैने एकदा दोनों बहनों के मध्य हो रहें वार्तालाप से सुना था,रानी जलकुम्भी बोली।।
ये तो आपने मुझे बहुत बड़ा रहस्य बताया, नागदेवता बोले।।
अब आपको मैं स्वर्णमहल का मानचित्र समझा देती हूँ, तब आप सरलता से ज्ञात कर सकते हैं कि क्या कहाँ पर है? रानी जलकुम्भी बोली।।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद रानी,नागदेवता ने कहा।।
धन्यवाद कैसा नागदेवता? हम सभी संकट में हैं और सब ही एकदूसरे की सहायता करके इस संकट से बच सकते हैं, वर्षो हो गए महाराज को काठ के पुतले में परिवर्तित हुए,ना जाने वो क्षण कब आएगा, जब सब सामान्य होगा,मैं प्रतीक्षा की घड़ियाँ गिन गिन कर हार गई परन्तु कुछ भी सामान्य ना हुआ,रानी जलकुम्भी बोलीं।।
ऐसे उदासीन ना हो रानी! साहस बनाएं रखें, आप को देखकर हम जैसों को भी बल मिलता है, नागदेवता बोले।।
जी,बस अब धैर्य और साहस ही रह गया है, जलकुम्भी बोली।।
रानी तो क्या ये उचित समय है स्वर्णमहल के लिए प्रस्थान करने का,अभी रात्रि भी है, नागदेवता ने पूछा।।
जी,नागदेवता! आप शीघ्र ही प्रस्थान करें,जलकुम्भी बोली।।
तभी वाटिका में किसी ने प्रवेश किया और नागदेवता पुनः सर्प रूप में परिवर्तित होकर छुप गए, जलकुम्भी ने देखा तो वो अम्बिका थी____
रानी! अम्बालिका ने तो बता ही दिया होगा कि उसने नागरानी का अपहरण कर लिया है, अम्बिका बोली।।
कुछ नहीं,उसकी मति भ्रष्ट हो गई है इसलिए वो ऐसे तुच्छ कार्य कर रही है,जब किसी के विनाश का समय आता है तो इसी प्रकार उसका मस्तिष्क कार्य करना बंद कर देता है, जलकुम्भी बोली।।
तेरा ऐसा दुस्साहस, जो तू हमारी बंधक होकर ऐसे वचन बोल रही हैं, अम्बिका बोली।।
तुमसे और भय,वो भी भला क्यों? जलकुम्भी बोली।।
रानी तुझे अब भी अत्यधिक गर्व हैं और विश्वास भी है कि एक दिन सब सामान्य होगा,तेरा राजा पुनः मानव रूप धरेगा और तेरी पुत्री भी.....हा....हा...हा...हा....क्यों मीठे मीठे स्वप्न संजो रही है, जो कभी पूर्ण होने वाले नहीं हैं, अम्बिका बोली।।
मेरा तो स्वभाव रहा है सदैव से, अपूर्ण को पूर्ण करने का,असम्भव को सम्भव करने का,जलकुम्भी बोली।।
तो बैठी रह झूठे स्वप्नों की आश में,अभी अम्बालिका स्वर्णमहल की ओर ही गई,देखती हूँ वो नागरानी के साथ कैसा व्यवहार करने वाली है, उस रात्रि मुझे बहुत सताया था ना नागदेवता ने ,ये पुरस्कार उसी कार्य के लिए है, अम्बिका बोली।।
तुम दोनों बहनों को तनिक भी लाज नहीं आती,ऐसे घृणित कार्य करने के लिए,जलकुम्भी ने पूछा।।
आती है, परन्तु क्या करें,यदि हम दोनों धरम के कार्य करने लगें तो संसार का क्या होगा, अम्बिका बोली।।
तुम दोनों संसार पर बोझ हो,जलकुम्भी बोली।।
मैं तो बस,अपनी जीत के विषय में सूचित करने आई थी,लगता है तुम्हें मेरा जीतना भाया नहीं, अच्छा अब मैं जाती हूँ, तुम मेरा मुँख देख देख कर क्रोधित होगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा और अम्बिका इतना कहकर चली गई।।
तभी नागदेवता शीघ्रता से झाड़ियों से बाहर निकलकर आए और मानव रूप धरकर बोले___
रानी!अब मुझे जाना होगा, नहीं तो वहाँ कोई अनर्थ ना हो जाए क्योंकि अम्बालिका स्वर्णमहल गई है।।
जी,नागदेवता! आप बिल्कुल भी बिलम्ब ना करें, रानी जलकुम्भी बोली।।
जी रानी ! अब मैं चलता हूँ, नागदेवता बोले।।
नागदेवता! तनिक सावधानीपूर्वक, अपना ध्यान रखिएगा, ईश्वर आपको सफलता दे,जलकुम्भी बोली।।
जी धन्यवाद,ध्यान रखूँगा कि कोई भूल ना हो और नागदेवता चल पड़े स्वर्णमहल की ओर___

उधर भालचन्द्र चिंतित सा एक टीले पर बैठा था,सभी चिंतित थे,किसी को निंद्रा नहीं आ रही थीं, उन्हें लग रहा था कि नागदेवता कब शुभ समाचार लेकर लौटें।।
तभी सोनमयी राजकुमार भालचन्द्र को चिंतित अवस्था में देखकर उनसके निकट आ कर बोली____
राजकुमार! आप चिंतित ना हों,नागदेवता शुभ समाचार लेकर ही लौटेगें और उनके संग नागमाता भी अवश्य होगीं।।
आपके वचन सत्य हो जाएं बहन सोनमयी!नागदेवता और नागमाता सुरक्षित यहाँ वापस आ जाएं,भालचन्द्र बोला।।
ऐसा ही होगा राजकुमार! आप ब्यर्थ ही चिंता कर रहे हैं, सोनमयी बोली।।
चिंतित ना हूँ तो क्या करूँ बहन! मेरे कारण ही तो ऐसा हो रहा है, राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
ना राजकुमार! इन सबके लिए आप स्वयं को दोषी ना माने,दोषी तो वो दोनों बहनें, जिन्होंने सबके जीवन को संकट में डाल रखा है, सोनमयी बोली।।
तो क्या करूँ बहन! कुछ सूझता ही नहीं, भालचन्द्र बोला।।
कुछ नहीं आप थोड़ा संयम और धैर्य रखें,सब अच्छा ही होगा,सोनमयी बोली।।
सही कहती हो बहन! सिवाय धैर्य और संयम के और कोई मार्ग है भी नहीं,भालचन्द्र बोला।।
और अब आप जाकर थोड़ा विश्राम कर लें तो आपको अच्छा लगेगा, ऐसा ना हो कि आपका स्वास्थ्य बिगड़ जाए,सोनमयी बोली।।
अच्छा बहन! जो तुम कहों और इतना कहकर भालचन्द्र विश्राम करने चला गया।।
भालचन्द्र को विश्राम के लिए कहकर सोनमयी सहस्त्रबाहु के निकट पहुँच कर बोली____
चलिए उठिए सहस्त्र! आपकी औषधि का समय हो गया।।
सहस्त्र ने अपनी आँखे खोलीं और बोला___
देवी,आप! आजकल बहुत दया दिखाई जा रही है, नहीं तो आप तो सदैव शेरनी की भाँति झपट्टा मारने को तत्पर रहतीं थीं, सहस्त्रबाहु बोला।।
अब आप मुझे विवश मत कीजिए कि मैं आपको झपट्टा मारूँ,ये सब मेरी मानवता के कारण है, आपके स्थान पर को मूक वन्यजीव भी होता तो तब भी मैं ऐसा ही करती,सोनमयी बोली।।
तो इसका तात्पर्य है कि ये प्रेम-व्रेम नहीं है, ये मानवता है, सहस्त्रबाहु बोला।।
श्रीमान! कृपया करके ये औषधि खा लें और ये कुछ फल रखें हैं उन्हें भी खा लीजिए और मेरे प्राण छोड़ दीजिए, सोनमयी बोली।।
मैने तो आपको नहीं बुलाया था,आप स्वयं आईं हैं मेरे निकट,सहस्त्रबाहु बोला।।
ये मेरा कर्तव्य था,वहीं निभाने आईं थी,आप शीघ्र स्वस्थ हो जाए तो मेरे प्राण छूटे,सोनमयी बोली।।
इतनी सरलता से तो मैं आपका पीछा नहीं छोड़ने वाला देवी! सहस्त्रबाहु बोला।।
तो क्या लेंगे मेरा पीछा छोड़ने के लिए,सोनमयी ने पूछा।।
कुछ लेना नहीं चाहूँगा आपसे,बस देना चाहता हूँ, सहस्त्रबाहु बोला।।
वो क्या? सोनमयी ने पूछा।।
जी,आप मेरा हृदय लें लेंगी तो मैं आपका पीछा छोड़ दूँगा, सहस्त्रबाहु बोला।।
ये रही आपकी औषधि इसे खा लीजिए, मुझे आपसे निर्रथक वार्तालाप करने में कोई रूचि नहीं है और इतना कहकर सोनमयी चली गई____
सहस्त्रबाहु ने हँसते हुए औषधि ली और विश्राम करने के लिए लेट गया।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा.. ःः