चन्द्र-प्रभा--भाग(७) Saroj Verma द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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चन्द्र-प्रभा--भाग(७)

भालचन्द्र अपने दरबारियों के साथ रणनीति बनाने में जुट गया, सब अपनी अपनी सलाह दे रहे थे और अभी तक कोई ऐसी योजना नहीं बन पाई थी जो पूर्णतः सफल हो सकें,भालचन्द्र का एक एक क्षण वर्ष के समान बीत रहा था।।
और अगले दिन वैद्यनाथ और सुभागी नीलगिरी राज्य पहुंच गए,उन्हें सेनापति ने पहले ही सारी बातों से अवगत करा दिया था,भालचन्द्र के मुँख पर चिंता की रेखाएं देखकर वैद्यनाथ जी बोले____
इतना बड़ा छल किया,अम्बिका और अम्बालिका ने और सबसे बड़ी बात अम्बिका पर महाराज को कभी संदेह भी नहीं हुआ,कैसीं घृणित मंशा से उसने आपके पिता से विवाह किया।।
जी बाबा! देखिए ना,पिता महाराज और रानी माँ की कैसी दशा कर दी हैं अम्बालिका, कैसें सब ठीक होगा, कोई भी योजना नहीं सूझ रही हैं कि क्या किया जाए,भालचन्द्र दुखी होकर बोले।।
परन्तु,राजकुमार कुछ तो करना होगा, ऐसे हाथ पर हाथ धरे तो नहीं बैठा जा सकता, वैद्यनाथ बोले।।
हाँ,पता नहीं मेरी सूर्यप्रभा की कैसी दशा होगी,अम्बालिका ने ना जाने उसके साथ कैसा व्यवहार किया होगा और वो तो रानी जलकुम्भी की धरोहर है जो उन्होंने मुझे बहुत विश्वास के साथ सौंपी थी और मैं उसकी रक्षा नहीं कर पाई,सुभागी रोते हुए बोली।।
आप चिंता ना करें, माँ! मैं अवश्य ही राजकुमारी सूर्यप्रभा को सुरक्षित वापस ले आऊँगा, किन्तु कोई योजना ही नहीं बन पा रही हैं, राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
मुझे एक युक्ति सूझी है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि ये अवश्य ही पूर्ण होगी, वैद्यनाथ जी बोले।।
तो बाबा! शीघ्रता से कह डालिए, प्रतीक्षा किस बात की,राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
ऐसा कीजिए, राजकुमार आप अकेले ही उस श्रापित शीशमहल की ओर प्रस्थान करें, इससे अम्बालिका को कोई संदेह भी नहीं होगा, मै आपको वहाँ का मानचित्र बनाकर देता हूँ, आप सरलता से वहाँ पहुँच सकते हैं और आपके सेनापति और सेना के साथ मैं आपसे कुछ ही दूरी पर रहूँगा,इससे कार्य सफलतापूर्वक हो सकेगा, वैद्यनाथ बोले।।
हाँ,बाबा! आपकी योजना पर विचार किया जा सकता है और मुझे लगता है यही योजना ही अपनानी पड़ेगी, भालचन्द्र बोले।।
तो चलिए, अपने विश्वसनीय पात्रों के साथ इस योजना पर बात करते हैं, सबकी सहमति होने पर रणनीति तैयार करते हैं, वैद्यनाथ बोले।।
जी बाबा! हम अब एक क्षण भी नष्ट नहीं कर सकते,हमें इस कार्य में शीघ्रता दिखानी होगी किन्तु पिता महाराज और माता कैसे अपने पूर्व रूप में आएंगें, इस बात से चिन्तित हूँ, भालचन्द्र बोला।।
आप अधिक चिंतित ना हो राजकुमार! अम्बालिका के नष्ट होने पर उसका सारा जादू भी नष्ट हो जाएगा, वैद्यनाथ बोले।।
कदाचित् ऐसा है तो बहुत ही अच्छा है किन्तु अम्बालिका को नष्ट करने का उपाय तो हम में से किसी को ज्ञात नहीं है, कैसे हम उसे नष्ट कर पाएंगे, भालचन्द्र बोला।।
और योजना अनुसार ही राजकुमार रात्रि को अकेले ही निकल पड़े शीशमहल की ओर,उन्होंने रात्रि भर यात्रा की ,वे शीघ्रता से उस महल पहुँचना चाहते थे,रास्तें घनें वन,पहाड़ और ना जाने क्या क्या पार करते हुए वो एक सुनसान पुल पर पहुँचे,नीचे गहरी खाई और अगल बगल केवल पहाड़ ही पहाड़, उस पुल को पार करके उन्हें उस पार जाना था,वहाँ कोई भी सहायता करने वाला नहीं था क्योंकि वैद्यनाथ जी तो सैनिकों के साथ बहुत पीछे होगें और वो उनकी प्रतीक्षा के लिए नहीं बैठ सकता था,उसने अकेले ही उस लकड़ियों के बने पुल को पार करने का प्रयास किया, वो धीरे धीरे अपने घोड़े के साथ आगें बढ़ने लगा,अंधेरा अभी छटा नहीं था,प्रातः होने में अभी समय था।।

और राजकुमार बस बढ़ता चला जा रहा था,उसकी इच्छाशक्ति बहुत ही प्रबल थी,उसे भय तो लग रहा था लेकिन सूर्यप्रभा का प्रेम उसके लिए एक ढ़ाल का कार्य कर रहा था,उसने हार ना मानने का निर्णय लिया था और उसे अपने माता पिता की भी चिन्ता कम ना थी।।
तभी एकाएक सामने से पुल की एक ओर की रस्सी टूटने लगी,घोड़े का संतुलन बिगड़ने लगा और राजकुमार पुल के मध्य तक पहुँच चुके थें,अब तो राजकुमार की अवस्था अधर में लटकी हुई प्रतीत हो रहीं थीं, तभी एकाएक एक नवयुवक ने उस टूटी हुई रस्सी को पकड़ लिया और बोला___
चले आओ मित्र! कुछ नहीं होगा, मैं आपकी सहायता करता हूँ!!
और भालचन्द्र ने धीरे धीरे उस पुल को पार लिया और पहाड़ी पर पहुँचते ही उस नवयुवक को धन्यवाद देते हो हुए बोला।।
धन्यवाद मित्र! आज तुम मेरे लिए ईश्वर का रूप बनकर आज हो।।
ऐसा ना कहें मित्र! ये तो मेरा कर्तव्य था,वो नवयुवक बोला।।
क्या नाम है आपका और आप यहाँ कैसे,?इस पहाड़ी क्षेत्र में,सबसे अलग रहकर,किस कार्य को पूर्ण कर रहें हैं, भालचन्द्र ने उस नवयुवक से पूछा।
मेरा नाम सहस्त्रबाहु हैं और ये बहुत लम्बी कहानी है मित्र! उस नवयुवक ने कहा।।
मैं भालचन्द्र, नीलगिरी राज्य का राजकुमार,तो सुनाइए, वैसे भी अभी प्रातः होने मे समय है,भालचन्द्र बोला।।
बहुत प्रसन्नता हुई राजकुमार आपसे मिलकर,सहस्त्रबाहु बोला।।
तो अत्यधिक प्रतीक्षा ना करवाएं और अपनी कथा आरम्भ करें,भालचन्द्र बोला।।
तो सुनिए राजकुमार और सहस्त्रबाहु ने कहानी कहना प्रारम्भ किया___
बहुत समय पहले की बात हैं, मैं अत्यधिक छोटा था,मेरे पिता पुलस्थ राज्य के राजा अपारशक्ति के यहाँ सेनापति थे,मेरे पिता बहुत ही कर्मठ और ईमानदार सेनापति थे,एक रात्रि पुलस्थ राज्य के श्रापित शीशमहल में ना जाने क्या हुआ, उस रात्रि के पश्चात् मेरे पिता घर वापस नहीं आए और ना वहाँ की रानी का कुछ पता चला और ना वहाँ के राजा का,सब कहते हैं कि उनकी एक राजकुमारी भी थी उसको भी उस रात्रि के पश्चात् किसी ने नहीं देखा,मैंने कई बार श्रापित शीशमहल मे भीतर घुसने का प्रयास किया किन्तु सफल ना ह़ो सका।।
अच्छा तो आप सेनापति मानसिंह के पुत्र हैं, भालचन्द्र ने पूछा।।
आप मेरे पिता को कैसे जानते हैं, राजकुमार! सहस्त्रबाहु ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।।
मैं भी आपकी ही भांति किसी को ढू़ढ़ने का प्रयास कर रहा हूँ, भालचन्द्र बोला।।
परन्तु, किसे राजकुमार! सहस्त्रबाहु ने पूछा।।
पुलस्थ राज्य की राजकुमारी सूर्यप्रभा को,भालचन्द्र बोला।।
ये क्या कह रहें राजकुमार! कृपया विस्तार से कहें कि आप क्या कहना चाहते हैं,सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ मित्र! उस रात्रि शीशमहल के प्रांगण में आपके पिता को जादूगरनी ने पत्थर में परिवर्तित कर दिया था और राजकुमारी सूर्यप्रभा को महाराज अपारशक्ति के दो सेवक महल से सुरक्षित ले,उसके पश्चात् महल में क्या हुआ होगा, मुझे भी नहीं पता,राजकुमारी सूर्यप्रभा जो सुरक्षित बच गई थी तो मेरी उससें सगाई वाली रात्रि जादूगरनी अम्बालिका सूर्यप्रभा को मैना के रूप मे पिंजरे में बंद कर अपने साथ दोबारा शीशमहल ले गई,उसी को ढ़ू़ढ़ने आया हूँ, राजकुमार भालचन्द्र बोले।।
ओह! परन्तु, आपको ये कैसे ज्ञात हुआ कि मेरे पिता मानसिंह को पत्थर मे परिवर्तित कर दिया गया है, आपको किसने ये सारी कथा सुनाई, सहस्त्रबाहु ने भालचन्द्र से पूछा।।
राजा अपारशक्ति के जो सेवक राजकुमारी को सुरक्षित लेकर भागें थे उन्होंने, भालचन्द्र बोला।।
इसका तात्पर्य हैं कि वे उस रात्रि उस घटना के समय शीशमहल में उपस्थित थे,सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ,राजा को काठ के पुतले मे परिवर्तित कर दिया गया था परन्तु रानी का क्या हुआ,इस विषय में कोई भी जानकारी नहीं है, भालचन्द्र बोला।।
तो चलिए अब हम दोनों साथ में ही राजकुमारी और मेरे पिता को खोजते हैं, सहस्त्रबाहु बोला।।
तो शीशमहल के मार्ग से आप परिचित होगें, भालचन्द्र ने सहस्त्रबाहु से पूछा।।
हाँ,परन्तु, भीतर कैसे जाएंगें और अभी तो मार्ग बहुत लम्बा है, तय करते करते रात्रि हो जाएगी, इसलिए अभी कोई सुरक्षित स्थान देखकर तनिक विश्राम कर लेते हैं क्योंकि रात्रि भर से आप निरन्तर चल रहेंं हैं थक भी तो गए होगें,सहस्त्रबाहु बोला।।
ठीक कह रहे हो मित्र!विश्राम करने की इच्छा तो हो रही हैं, परन्तु कहीं बिलम्ब ना हो जाए,भालचन्द्र बोले।।
परन्तु राजकुमार आपका विश्राम करना भी तो आवश्यक है एवं अभी हमारे पास कोई ऐसी योजना ही नहीं हैं, उस स्थान के विषय सिवाय मार्ग के कुछ नहीं ज्ञात,सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ! ये तो हैं मित्र! परन्तु, आपकी दृष्टि मे ऐसा कोई हैं जो हमारी सहायता कर सकें,भालचन्द्र ने पूछा।।
मुझे कुछ ज्ञात होता मित्र! तो मैं यूँ नही भटकता रहता,जबसे मेरी माँ ने पिता के विषय में बताया हैं तब से उस शीशमहल के भीतर जाने के लिए ना जाने कितने प्रयास किये किन्तु सफल ना हो सका,सहस्त्रबाहु बोला।।
एवं दोनों ने एक सुरक्षित स्थान खोजा,जहाँ कुछ फलों के वृक्ष और एक झरना था,उन्होंने घोड़े को चरने के लिए छोड़ दिया और झरने पर स्नान करने के उपरांत कुछ फल तोडकर खाएं और विश्राम करने के लिए एक वृक्ष के तले लेटकर बातें करने लगें।।
कुछ समय पश्चात् एक बाण आकर सहस्त्रबाहु के ठीक सिर के ऊपर वृक्ष पर जा लगा,दोनों शीघ्रता से उठे एवं चहुँ ओर दृष्टि दौडा़ई,परन्तु कोई भी दिखाई ना दिया, दोबारा एक बाण आया और भालचन्द्र के पैरों के बगल से निकल गया, अब तो दोनों चिन्तित हो उठे,उन्हें लगा कि कदाचित् शत्रु को ज्ञात हो चुका है कि राजकुमार इस स्थान पर है।।
अब राजकुमार भालचन्द्र ने शीघ्रता से अपनी तलवार निकाली एवं शत्रु को खोजने लगें, परन्तु कोई भी ना दिखा।।
तभी सामने से वायु के वेग से एक खंजर आया और राजकुमार की बाँह में आ लगा,अब तो पक्का हो गया था कि शत्रुओं को ज्ञात हो चुका है, तभी सामने से कोई आता हुआ दिखा,जिसने अपने मुँख को ढ़ँक रखा था,परन्तु चाल और ढ़ाल से वो कोई युवती प्रतीत हो रही थी।।
वो युवती शीघ्रता से अपनी तलवार निकालते हुए बोली___
दोनों अपने हाथ ऊपर करो!!
और दोनों ने ऐसा ही किया, तब उस युवती ने दोनों से पूछा__
कहाँ से आओ हो तुम दोनों, कहीं तुम्हें उस जादूगरनी अम्बालिका ने तो नहीं भेजा।।
नहीं हम तो स्वयं उससे मिलना चाहते हैं, वो हमारी शत्रु हैं, सहस्त्रबाहु बोला।।
ये क्या कह रहे हो? वो युवती बोली।।
हांँ, देवी! हम सत्य कह रहें हैं, मैं नीलगिरी राज्य का राजकुमार भालचन्द्र और ये सहस्त्रबाहु हैं, हम भी अपनो को ही खोज रहेंं हैं, तब भालचन्द्र ने विस्तार से सारी बात उस युवती को बताई।।
परन्तु मैं! तुम दोनों पर कैसे विश्वास कर लूँ, वो युवती बोली।।
अभी मेरी सेना आने वाली हैं,तब तो आप विश्वास करेंगीं ना,भालचन्द्र बोला।।
और तब तक भालचन्द्र का गुप्तचर उसे खोजते हुए वहाँ आ पहुँचा, तब उस युवती ने सरलता से उन दोनों की बात पर भरोसा कर लिया और बोली मेरा नाम सोनमयी है, मैं इस वन मे मेरे बाबा के साथ रहती हूँ, वो मेरे सगे बाबा नहीं हैं, उन्होंने मुझे पालपोसकर बड़ा किया है, निकट ही मेरी झोपड़ी है और सोनमयी ने अपने मुँख को ढ़के हुए वस्त्र को हटा दिया।।
सहस्त्रबाहु ने जैसे ही सोनमयी का मुँख देखा तो वो देखता ही रह गया।।

क्रमशः___

सरोज वर्मा....