चूँ चूँ का मुरब्बा - 4 - अंतिम भाग S Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चूँ चूँ का मुरब्बा - 4 - अंतिम भाग

अभी तक आपने पढ़ा कि रूबी की शादी अमीर परिवार में हुई . रोमित की भी शादी हुई . उसे कोई नौकरी नहीं मिल रही थी तो उसने पेट्रोल पंप पर नौकरी ज्वाइन की . आगे पढ़िए कैसे रूबी के प्रोत्साहन और समर्थन से रोमित ने अपना मुकाम हासिल किया ….


अंतिम भाग 4

कहानी - चूँ चूँ का मुरब्बा

इसी बीच रूबी के पिता दुग्गल साहब का निधन हो गया . सच ही कहा गया है कि विपत्ति कभी अकेले नहीं आती है . अभी रूबी पिता की मौत के सदमे से उबर भी नहीं सकी थी कि एक एक्सीडेंट में उसके पति का भी देहांत गया . रोमित ने फोन कर उसे अपनी हार्दिक संवेदना प्रकट की और साहस रखने को कहा . पैतृक संपत्ति पर अपना हक़ न मांग बैठे , इस डर से रूबी के दोनों जेठों ने उसे अपने मायके जाने को कहा . रूबी भी अब ससुराल में नहीं रहना चाहती थी . वह मायके आ गयी और उसने अपने पिता के प्रेस का काम संभाल लिया .

रोमित के घर पर उसकी काफी रचनाओं का बंडल पड़ा रहता था . एक अलग बंडल रफ़ और अस्वीकृत रचनाओं का होता था जिसे बीच बीच में कबाड़ी को बेच दिया जाता . रोमित की पत्नी ने पति के कर्ज और घर के खर्च से तंग आ कर एक दिन गुस्से में उससे कहा “ आपकी रद्दी खरीद खरीद कर कबाड़ी ने काफी पैसे बना लिए होंगे और आप बस लिखते रहे पर कागज , कलम और डाक के खर्च भी नहीं निकाल सके . इन सब को बेच डालिये . “


“ कोई छापे या ना छापे . मुझे लिखने से शांति मिलती है . “ रोमित ने कहा


“ आखिर वह कौन है जिसके बहकावे में आ कर आप अनाप शनाप लिखे जा रहे हैं . “


“ मैं किसी के बहकावे में आकर नहीं लिख रहा हूँ और अपनी मर्जी से आगे भी लिखता रहूँगा . मैं अपने सुख के लिए लिखता हूँ . “


एक दिन उसकी पत्नी ने रफ रचनाओं के साथ उसकी प्रकाशन योग्य अच्छी रचनाओं को भी कबाड़ी को बेच दिया . रोमित यह देख कर अपना सर पीट कर रह गया . संयोगवश वही कबाड़ी रूबी के प्रेस में भी रद्दी लेने गया था . रूबी के यहाँ भी काफी रद्दी जमा हो गए थे जिन्हें वह निकालना चाहती थी . कबाड़ी ने जब अपने ठेले से रोमित वाले बंडल नीचे उतारे तो रूबी की नजर उन पर पड़ी . उसने कबाड़ी से उन्हें खरीद लिए .


रूबी और रोमित फोन से सम्पर्क में रहते थे . रूबी ने रोमित को इसके बारे में कुछ नहीं बताया न ही रोमित ने उससे इस बारे में कोई चर्चा की . फुर्सत के समय वह उन रचनाओं को ध्यान से पढ़ती . कभी अपनी पसंद से उनमें कुछ मामूली बदलाव कर बाजार की मांग के अनुरूप कर देती थी .


कुछ महीनों के अंदर ही रूबी ने रोमित की कुछ कहानियों और कविताओं के अलग अलग संग्रह बनाये और अपने ही प्रेस में छपवाए . फिर उन्हें प्रसिद्ध लेखकों और कवियों के पास विमोचन और समीक्षा के लिए भेजा . लेखक का विवरण तो उसने दिया था पर नाम जानबूझ कर अंजान रखा था . अपने प्रेस और पिता के कॉन्टेक्ट्स के बल पर वह यह सब कर रही थी . फिर उसने एक होटल में इन पुस्तकों के लोकार्पण के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया . उस समारोह में प्रांत के गणमान्य व्यक्तियों , पुस्तक विक्रेताओं , संपादकों , पुस्तकालय अध्यक्ष आदि को आमंत्रित किया . रोमित को उसने विशेष रूप से सपत्नीक आमंत्रित किया था .


उस दिन शाम को समारोह था . सभी आमंत्रित हस्तियां तो नहीं पहुँच सकीं थीं , पर ज्यादातर लोग आये थे . जो नहीं आ सके उनमें कुछ ने अपने संदेश भेजे थे . रोमित भी अपनी पत्नी के साथ आया था . समारोह शुरू हुआ , रूबी ने प्रमुख आमंत्रित व्यक्तियों का स्वागत कर उन्हें मंच पर बैठाया .

फिर रूबी ने समारोह में उपस्थित सभी व्यक्तियों का अभिनंदन करते हुए कहा “ आज की शाम मैं अपने शहर के एक सज्जन के पुस्तकों का लोकार्पण करने जा रही हूँ . ख़ुशी की बात यह है कि वे जितने अच्छे लेखक हैं , उतने अच्छे कवि भी हैं यानि टू इन वन . उनके कहानी संग्रह का नाम है “ चूँ चूँ का मुरब्बा “ और कविता संग्रह का नाम है “ गीतमाला “ .


“ चूँ चूँ का मुरब्बा “ का नाम सुन कर रोमित चौंक उठा और सोचने लगा कि शायद रूबी ने मेरी ही कहानियां चुरा ली है . फिर उसका मन कहता कि नहीं वह ऐसा कभी नहीं कर सकती है .


मुख्य अतिथि ने रूबी से कहा “ आपने अभी तक उस सज्जन का नाम नहीं बताया है . यदि वे यहाँ उपस्थित हैं तो कृपया उन्हें मंच पर बुलाएं . हम सभी उनका अभिनन्दन करना चाहेंगे . “


तभी रूबी ने घोषणा किया “ हमारे आज के कार्यक्रम के नायक हैं श्रीमान रोमित सिन्हा . रोमित नाम सुन कर रोमित और उसकी पत्नी दोनों आश्चर्यचकित रह गये . दुबारा रूबी ने कहा “ रोमितजी इस सभागार में उपस्थित हैं और मैं उनसे मंच पर आने का निवेदन करती हूँ .


रोमित उठ कर खड़ा हुआ और धीरे धीरे चल कर मंच पर आया . पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा . अंत में चाय नाश्ते के साथ समारोह का समापन हुआ . सभी अतिथि को विदा करने के बाद रूबी रोमित के पास आयी तो उसने पूछा “ इतना सब किया , पर तुमने मुझे अंधकार में रखा . “


रूबी सिर्फ मुस्कुरा रही थी . तब रोमित ने फिर कहा “ मेरी रचनाएँ तुम तक कैसे पहुंचीं ? “


“ जिसे कबाड़ समझ आपलोगों ने इन्हें कबाड़ी को बेचा था , मैंने उसी से उन्हें खरीद लिया . समय की मांग के अनुसार उनमें बिना आपकी अनुमति के मैंने कुछ बदलाव किये , जिसके लिए मैं माफ़ी मांगती हूँ . “


रोमित की पत्नी ग्लानि के मारे शर्मिंदा थी , उसकी आँखों में आंसू भर आये थे . वह बोली “ मुझे क्षमा करें . घोर निराशा के चलते मैंने इनकी रचनाओं को रद्दी समझ कर बेच दिया था . “


रूबी बोली “ आजकल हर चीज बिकाऊ है , बस मार्केटिंग आनी चाहिए . रोमित की कवितायेँ गूढ़ और अर्थपूर्ण होती हैं . ऐसी रचनाएं स्कूल और कॉलेज की किताबों के लिए ठीक हैं . पत्रिकाऐं ख़ास कर मनोरंजन के लिए होती हैं . इनमें कुछ तड़का लगाना होता है . इन दो पुस्तकों के प्रकाशन के बाद रोमित अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो सकेंगे . उम्मीद है वह आगे भी लिखते रहेंगे और मैं उन्हें प्रकाशित कर गर्व महसूस करूंगी . पर बहना , आपको धैर्य रखना चाहिए था और पति का साथ हर स्थिति में देना चाहिए .

रूबी रोमित और उसकी पत्नी को अपनी कार से ले कर उसके घर गयी . रोमित की माँ को प्रणाम किया . कुछ देर बैठने के बाद वह लौट गयी . अगली सुबह समाचार पत्रों के फर्स्ट पेज पर फोटो के साथ रोमित की उपलब्धि के बारे में छपा था . रोमित इन सब बातों से बेखबर पेट्रोल पंप पर अपनी ड्यूटी पर तैनात था और रोज की तरह सभी ग्राहकों का अभिनंदन कर उनकी कार में पेट्रोल डाल रहा था . कुछ ने उसे पहचान कर कहा “ आप रोमित जी हैं न ? “ वह मुस्कुरा कर सर हिला कर हाँ कह देता .


एक कार वाले के ऐसा पूछने पर उसने कहा “ यस सर , मैं रोमित ही हूँ , आपका वही पुराना सेवक . “


ठीक इस कार के पीछे रूबी की कार थी . यह देख कर वह मुस्कुरा रही थी . रोमित की नजर उस पर पड़ी तो वह भी हँस पड़ा .जब रूबी ने अपनी कार पंप के सामने खड़ी की , रोमित ने हँसते हुए पूछा “ कितनी तेल दूँ मैम ? “


“ फुल टैंक . “ तेल ले कर रूबी हँसते हुए बोली “ अभी तक आपकी ट्रीट बाकी है , भूलेंगे नहीं न . “ उसने हाथ हिला कर बाय किया . रूबी ने दाहिने पैर से एक्सीलेटर दबाया और वह तेज गति से कार से निकल गयी . कुछ देर तक वह अपने रेयर व्यू मिरर में रोमित को देखती रही . रोमित भी काफी देर तक उसे देखता रहा जब तक कि वह आँखों से ओझल न हुई .


समाप्त


नोट - कहानी पूर्णतः काल्पनिक है .