चूँ चूँ का मुरब्बा - 2 S Sinha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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चूँ चूँ का मुरब्बा - 2

भाग 2


पिछले भाग में आपने पढ़ा कि रूबी ने स्वयं आगे बढ़ कर रोमित से दोस्ती की और उसे समाचार पत्र में अपनी रचनाएँ भेजने के लिए प्रोत्साहित किया . अब आगे पढ़िए रोमित कैसे रूबी के बताये रास्ते पर आगे बढ़ा .....

कहानी - चूँ चूँ का मुरब्बा

“ मेरे पापा के अच्छे कॉन्टेक्ट्स हैं , आपका काम हो जायेगा . “


“ जब तक अति आवश्यक न हो मैं किसी का एहसान नहीं लेना चाहता हूँ . “


“ आप मेरे घर का पता जानते हैं न , मान लें कोई आपसे मेरे घर का पता पूछे तो क्या मेरा पता बता कर आप उस पर एहसान करेंगे . नहीं न ? मैं तो सिर्फ एक रास्ता बता रही हूँ और मुझे आपकी योग्यता पर भरोसा है . आपको अपनी मंजिल जरूर मिलेगी . “


रोमित अपनी कुछ रचनाएं ले कर न्यूज़ पेपर के दफ्तर में गया . संपादक ने एक बार सरसरी नजरों से देख कर कहा “ क्या ये चूँ चूँ का मुरब्बा ले कर आये हो . हमें ऐसी रचनाएं नहीं चाहिए . “


रोमित अपनी फाइल लेकर चलने को हुआ तभी संपादक का फोन बज उठा . एक मिनट ही हुआ था कि वह बोला “ ठीक है , तुम अपनी रचना छोड़ कर जाओ , इसे ध्यान से पढ़ कर तुम्हें फोन पर बताता हूँ . “


“ जी , मैं आ कर खुद मिल लूँगा . मेरे पास फोन नहीं है . “ बोल कर रोमित चला गया


तीन चार दिन बाद संपादक ने रूबी के पापा दुग्गल साहब को फ़ोन कर कहा “ आपने जिस लड़के के लिए फोन किया था उसकी एक कविता और एक लेख आगामी रविवार विशेषांक में छपने जा रही है . इसी उम्र में लड़का अच्छा लिख लेता है . “


दुग्गल साहब ने यह बात रूबी को बताई और रूबी ने रोमित को . रविवार को समाचार पत्र में अपनी प्रकाशित रचना देख कर रोमित बहुत खुश हुआ . रूबी ने भी रोमित से मिलकर उसे बधाई दी तब वह बोला “ मुझे तो तुम्हें धन्यवाद देना चाहिए , यह तुम्हारी कोशिश का नतीजा है . “


“ सुनिए , अगले महीने समाचार पत्र वाले ने हाई स्कूल विद्यर्थियों के लिए राज्य स्तर पर एक निबंध और कविता प्रतियोगिता का आयोजन किया है . आप उस में जरूर भाग लेंगे . “


“ कोशिश करूंगा . पर मैं जानता हूँ मेरी कवितायें छोटी होती हैं और वे पुरस्कार योग्य नहीं होंगी . “


मुझे ज्यादा ज्ञान तो नहीं है , पर जहाँ तक मैंने आपकी कुछ कविताओं को समझा है वे छोटी हैं मगर अर्थपूर्ण होती हैं . आपने बिहारी के बारे में पढ़ा होगा - सतसइया के दोहरे ज्यों नावक के तीर , देखन में छोटे लगैं घाव करैं गंभीर . “


“ आज मुझे बोर करने पर उतर आयी हो क्या ? “


“ नहीं , यह प्रतियोगिता सिर्फ स्कूल के विद्यर्थियों के लिए है और मुझे विश्वास है आप जरूर अच्छा करेंगे . “


अब रूबी और रोमित दोनों कुछ नजदीक आ गए थे और एक दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते थे . अभी प्रेम के बीज फूटने ही वाले थे कि एक दिन रूबी रोमित को अपने घर ले गयी . वह रूबी के ड्राइंग रूम में बैठा था . उसने अपनी पुरानी घिस चुकी चप्पल को बाहर दरवाजे पर खोल रखा था . तभी दुग्गल साहब कहीं बाहर से आये और बाहर पड़े चप्पल को अपने जूते से एक किनारे हटाते हुए कहा “ इस चप्पल को यहाँ किसने रख छोड़ा है . “


रूम में प्रवेश करते ही उनकी नजर रोमित पर पड़ी . रूबी ने पापा से रोमित का परिचय कराते हुए कहा “ यही रोमित हैं , आप इन्हें पहली बार देख रहे हैं . “


रोमित ने उन्हें नमस्ते कहा और वे बिना जवाब दिए अंदर चले गए . रूबी और रोमित घुलमिल कर बातें कर थे , बीच बीच में जोर से हँस रहे थे . दुग्गल साहब ने बेटी को आवाज दिया “ बेटे , रोमित को कुछ ठंडा वंडा पिलाओ . आकर ले जाओ . “


रूबी अंदर गयी तो रोमित के कानों में उसके पापा की धीमी आवाज आयी “ बेटे इंसान होने के नाते हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए , मैं मानता हूँ . पर समाज के कुछ दस्तूर भी होते हैं . हम मारवाड़ी हैं और वह बिहारी , पता है न . हम रिश्ते अपने समाज में ही करते हैं . और सबसे बड़ी बात यह है कि दोस्ती और शादी हमेशा बराबर से करनी चाहिए वरना निभाना मुश्किल होता है . “


दुग्गल साहब के कहने का मतलब रोमित समझ चुका था . उसके मन में रूबी के प्रति प्यार का जो बीज पनपने जा रहा था वह मर गया . थोड़ी देर बाद रूबी कोल्ड ड्रिंक ले कर आयी . रोमित ने जल्दी से उसे पिया और कहा “ थैंक्स रूबी , अब मैं चलता हूँ . माँ इंतजार करती होगी . “


उस दिन के बाद से रोमित ने रूबी की कार में बैठना बंद कर दिया चाहे वह कितना भी जोर देती . वह बोलता “ पैदल चलना सेहत के लिए अच्छा होता है न . “


रूबी भी उसके नकारने का कारण जानती थी . सिवाय कार में साथ बैठने के बाकी बात व्यवहार दोनों के बीच सामान्य रहा . एक महीना बीत गया . उस दिन निबंध प्रतियोगिता का परिणाम निकलने वाला था . समाचार पत्र के दफ्तर में एक सादा समारोह रखा गया था . रोमित भी वहां गया था . दुग्गल साहब मुख्य अतिथि थे और उन्हीं के हाथों पुरस्कार वितरण होना था .

पुरस्कार की घोषणा हुई , इसे संयोग कहें या रोमित का भाग्य या उसकी योग्यता , कविता और निबंध दोनों श्रेणियों में रोमित को प्रथम स्थान मिले . दुग्गल साहब ने उसे पुरस्कार दिया . रोमित को एक मोबाइल फोन और एक साइकिल पुरस्कार में मिले . रूबी ने उसके पास आकर उस से हाथ मिला कर बधाई दी और कहा “ मैंने आपसे कहा था न - आपकी रचनाएं भले देखन में छोटी लगैं , घाव करैं गंभीर . “


“ थैंक्स , यह पुरस्कार भी तुम्हारे सहयोग का परिणाम है . “


“ नो , मैंने सिर्फ रास्ता दिखाया था , मंजिल आपने खुद तय की है . “


अब रोमित अपनी साइकिल से स्कूल और संपादक के यहाँ आने जाने लगा था . इसके एक महीने बाद ही रोमित की बोर्ड परीक्षा थी . उसकी तैयारी के लिए बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों को स्कूल से छुट्टी मिली थी . रोमित का स्कूल जाना बंद हो गया था . रूबी से उसकी मुलाकात तो नहीं होती पर फोन से बात हो जाती थी . रूबी उसे फोन कर बार बार डिस्टर्ब नहीं करना चाहती थी . वह बीच में कभी रोमित के घर जाती और उससे समाचार पत्र के विशेषांक के लिए उसकी रचनाएँ पेपर के दफ्तर दे आती थी ताकि रोमित का समय इन सब बातों में व्यर्थ न जाए .


अगले दिन से बोर्ड की परीक्षा शुरू होने वाली थी , रूबी ने फोन कर उसे शुभकामनाएं दी . बोर्ड परीक्षा के बीच में ही उसकी माँ की तबीयत ख़राब हुई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा . वह परीक्षा ड्रॉप करने की सोच रहा था . रूबी को जब पता चला तो उसने रोमित को बहुत समझाया कि वह ऐसा न करे .


वह बोला “ फिर मैं क्या करूँ ? दिन और रात अस्पताल में रहना पड़ेगा तो परीक्षा कैसे दे सकता हूँ . “


“ दिन में कुछ देर के लिए मैं देख लिया करुँगी बाकी समय नर्स और डॉक्टर ख्याल रखेंगे . रात में अपनी कामवाली की बेटी को सोने के लिए वहां भेज दूंगी , वह माँ का ख्याल रखेगी . डॉक्टर ने कहा है कि आठ दस दिनों के अंदर माँ को अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी . एग्जाम ड्रॉप करने की जरूरत नहीं पड़ेगी . “

क्रमशः