मोतीमहल--भाग(३) Saroj Verma द्वारा डरावनी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मोतीमहल--भाग(३)

बहुत सालों पहले एक जमींदार हुआ करते थे जिनका नाम गजेन्द्रप्रताप सिंह था,कई गाँवों की जमींदारी उनके हाथ में थीं,वो बहुत ही अय्याश किस्म के इंसान थें,उनकी पत्नी बहुत ही नेकदिल और भक्तिभाव रखने वाली महिला थीं,वो अपने पति और बच्चों से बहुत प्यार करतीं थीं,खूब बड़ी जमींदारी थी तो रूपए पैसे की कोई कमी ना थी,खूब अनाप शनाप पैसा था गजेन्द्र प्रताप सिंह के पास,कुछ तो उसने गाँव के लोगों से दुगना लगान वसूल करके कमाया था।।
गजेन्द्र प्रताप की पत्नी सावित्री बहुत मना करती उसे लेकिन उसे तो दूसरों को कष्ट पहुँचाकर बहुत मजा आता था,लेकिन सावित्री अपने कर्तव्यों में कोई कमीं ना आने देती,जैसा उसका नाम था,वैसा ही उसका आचरण था,वो गंगा की तरह पवित्र और अनुसुइया के जैसी सती थी,कहे तो उसकी ही वजह से अब तक गजेन्द्र प्रताप के ऊपर कोई संकट नहीं आ सका था।।
सावित्री जितनी चरित्रवान और उदार हृदय वाली थी,गजेन्द्र उतना ही चरित्रहीन और गिरा हुआ व्यक्ति था,उसकी जमींदारी में जितने गाँव आते थे,उन गाँवों उसने अपनी अय्याशी के लिए एक एक लड़की रख रखी थी।।
एक बार गजेन्द्र प्रताप अपने किसी दोस्त के पास शहर गया,उसका वो दोस्त भी बहुत अय्याश आदमी था,वो उसे वहाँ ले गया जहाँ रातों को महफिलें सजा करतीं थीं,वो जगह थी अमीरन बाई का कोठा, अय्याश नवाब और अय्याश जमींदार जहाँ रातों को जाना अपनी शान समझा करते थे,वही पर जाकर ही उनके तन की हवस और शराब की प्यास बुझती थी।।
दोनों दोस्त अमीरन बाई की महफिल का लुफ्त उठाने पहुँचे,एक बहुत ही दिलकश़ और जोह़राजबीं नाचने वाली का नाच देखकर गजेन्द्र प्रताप तो बस अपने होश़ ही खो बैठे और उसे पाने का ख्वाब उनकी आँखों में पलने लगा,वो उसकी एक झलक देखकर ही बस आहें भरने लगते उसकी खूबसूरती और नाच़ के वे इस कद़र कायल हो चुके थे कि उन्होंने उसे बस अपना बनाने का सोच लिया।।
उन्होंने इस मसले पर अपने दोस्त से बात की लेकिन दोस्त बोला___
आमा !यार! मरवाओगे क्या? अमीरन बाई रातोरात हम दोनों का अपने गुंडों से कत्ल करवाकर लाशों को ना जाने कौन से नाले में फिकवा देंगी,इसलिए भूल जाओ उस कमलनयनी को अगर अपनी जान की खैरियत चाहते हो तो।।
ना यार! अब तो ठान लिया है,इस पार या उस पार,अब तो कमलनयनी हमारी बनकर रहेंगी,अब हम तो उसे हासिल करके ही रहेंगे,गजेन्द्र प्रताप सिंह बोला।।
जैसी तेरी मर्जी भाई लेकिन मुझे इस लफड़े में मत घसीटना,मैं तेरा साथ नहीं देने वाला और फिर सावित्री भाभी और बच्चों के बारें में कुछ सोच ,ऐसी सती जैसी पत्नी मिली है और तेरी फितरत का तो कोई पार ही नहीं है,दोस्त ने कहा।।
यार पत्नियाँ तो घर और बच्चे सम्भालने के लिए होंतीं हैं,लेकिन अय्याशी करने के लिए ऐसी ही अप्सराओं की जुरूरत होती है,गजेन्द्र प्रताप सिंह बोला।।
कैसी बातें कर रहा है यार? कुछ तो सोच ,दोस्त ने कहा।।
सोच लिया भाई,सब सोच लिया,अब तो कमलनयनी मेरी या तो किसी और की नहीं,गजेन्द्र प्रताप सिंह बोला।
ठीक है तो ला फिर बहुत सी दौलत और अमीरनबाई से खरीद ले कमलनयनी को और याद रख वो आसानी से तुझे कमलनयनी को नहीं बेचेगी क्योंकि उसके सहारे ही उसका धन्धा चलता है,वो बिजली की तरह महफिल में नाचती है तभी नोंटों की बारिश होती है,दोस्त ने कहा।।
ठीक है ज्यादा से ज्यादा दो गाँव बेच दूँगा,बस इतनी ही कीमत तो होगी कमलनयनी की,मैं उसे पाने के लिए ये भी करूँगा,गजेन्द्र प्रताप सिंह बोला।।
अच्छा,ठीक है! तूने कमलनयनी को अगर खरीद भी लिया और उसने तुझे हाथ भी ना लगाने दिया तो फिर क्या करेगा,तेरा रूपया भी बरबाद और इज्जत भी,दोस्त बोला।
मैं उसके पैरों तले गिरकर अपने प्यार की भीख माँग लूँगा,गजेन्द्र प्रताप बोला।।।
और वो फिर भी ना मानी तो,दोस्त ने कहा।।
मै इन्तजार करूँगा,कभी तो उसका दिल पिघलेगा,गजेन्द्र प्रताप सिंह बोला।।
मान गए भाई! ये तो इंतेहा है गई मौहब्बत की ,अब देखते हैं कि तू कामयाब होता है या नहीं,दोस्त ने कहा।।
और गजेन्द्र प्रताप दूसरी रात जा पहुँचा अमीरनबाई के कोठे पर और उसने अपने दिल की बात अमीरन को बताई,अमीरन ने पहले तो इनक़ार किया लेकिन बोली,पाँच गाँवों का बेच दोगें तब काम बनेगा,जमींदार साहब,ये मेरे कोठे का कोहिनूर है,इसी से ये कोठा चमक रहा है,इतने सस्ते में तो ना बेच पाऊँगीं।।
ठीक है अमीरन बाई! तुम भी क्या याद रखोगी,चलो हमें ये भी मंजूर हैं,अपनी जानेबहार के लिए हम कुछ भी कर सकते हैं,गजेन्द्र प्रताप बोला।।
जब ये बात कमलनयनी को मालूम हुई तो उसे भी ये सोचकर अच्छा लगा कि चलो इस नरक से पीछा छूटा,अब घटिया ग्राहकों की शकल ना देखनी पड़ेगी,कोई उसे अपनाकर ,उससे ब्याह करके उसे इज्जत की जिन्दगी देगा,अब भी खुली हवा में खुलकर साँस ले सकेंगी,वैसे भी उसका यहाँ इस कोठे में दम घुट रहा था,अब समाज में जाकर इज्जत की जिन्दगी जिएगी,कोई तो ऐसा चाहने वाला मिला।।
गजेन्द्र ने कमलनयनी को खरीद लिया और अपने घर में नहीं रखा,उसने उसे दूसरे गाँव में बनी उसके दादा परदादाओं की बनवाई हुई हवेली में रख दिया,उस हवेली का नाम था मोतीमहल,जिसकी देखरेख एक माली किया करता था और वो मोतीमहल के पीछे बने बगीचें में अपने परिवार के साथ रहता था,उसके परिवार में उसकी सोलह साल की बेटी फाल्गुनी और बहुत छोटा बेटा रामू रहते थे,रामू की उम्र उस समय यही कोई आठ नौ साल रही होगी।।
कमलनयनी उस हवेली में रहने लगी और उसकी देखभाल के लिए गजेन्द्र ने माली की बेटी फाल्गुनी को लगा दिया गया,कुछ दिनों में ही फाल्गुनी और कमलनयनी अच्छी सहेलियाँ बन गई,फाल्गुनी के छोटे भाई रामू की शरारतों से दोनों का मन लगा रहता,फाल्गुनी ही कमलनयनी का सारा काम करती,उसके लिए खाना बनाती ,उसे सँजाती सँवारती और बदले मे कमलनयनी उसे पढ़ना लिखना सिखाती,उसे गाने और नाच की त़ालीम देती लेकिन फाल्गुनी का नाचना गाना माली को बिल्कुल भी ना भाया।।
माली की नज़रों में कमलनयनी अच्छी लड़की नहीं थी,इसलिए वो फाल्गुनी से हमेंशा मना करता कि वो उसके पास कम ही जाया करें,लेकिन माली की रोजी रोटी का सवाल था इसलिए वो चाहकर भी पूरी तरह से फाल्गुनी को कमलनयनी के पास जाने को मना भी नहीं कर सकता था क्योंकि बगीचें के फल फूल बेचकर ही माली अपनी जीवननैया चलाता था और फूलों की मालाएं बनाने का काम फाल्गुनी किया करती थी।।
और अब तक कमलनयनी ने गजेन्द्र प्रताप को स्वीकार नहीं किया था,गजेन्द्र प्रताप दस पन्द्रह दिन में मोतीमहल के चक्कर लगाने आ जाता,एक रात रूकता खाता पीता और चला जाता लेकिन उसके आने पर कमलनयनी अपने कमरें से बाहर ना निकलती,उसे ऐसा साथी नहीं चाहिए था,उसे तो इज्जत देने वाला जीवन साथी चाहिए था,जो कि समाज में ये कह सकें कि ये मेरी पत्नी है और गजेन्द्र ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि उसके तो पहले से पत्नी और दो बच्चे थे,फिर वो ठहरा अधेड़ उम्र का और अभी कमलनयनी की उम्र कम से कम बीस साल थी।।
गजेन्द्र सिंह की पत्नी सावित्री ने अपने भतीजे रणजीत सिंह को कुछ काम दिलवाने के लिए कहा क्योंकि वो अपने गाँव में दिनभर दूसरे लड़को के साथ आवारागर्दी करता था,उसे आवारागर्दी तो नहीं कह सकते बस,अमीर लोगों को बेवकूफ बनाकर गरीबों को पैसा देता था,असहाय लोगों की मदद करता था,कोई अगर किसी गरीब पर अत्याचार करता था या उसे सताता था तो वो उसका पुरजोर विरोध करता था और इन्हीं सबको लोगों ने आवारागर्दी का नाम दे दिया,उसका पढ़ाई लिखाई में भी कोई मन नही लगता था,इसलिए सावित्री के बड़े भाई ने सावित्री से कहा कि हम तो समझा समझाकर हार गए है रणजीत को अगर तू इसे अपने पास रखकर कोई काम काज दिलवा दे तो शायद ये सुधर जाए।।
सावित्री ने रणजीत को अपने पास बुलवा लिया और गजेन्द्र से कुछ काम दिलवाने को कहा ,तभी गजेन्द्र को मोतीमहल के बगीचें के पास पड़े खेंत की याद आई उसने कहा कि खेतों में लगा रहेगा तो खुराफात कम करेगा और रहने के लिए मोतीमहल हैं ही,वही किसी कमरे में रह लेगा,साथ में बगीचें की भी देखभाल होती रहेगी।।
सावित्री को गजेन्द्र का सुझाव पसंद आया और वो उसे वहाँ भेंजने के लिए राजी हो गई,रणजीत सिंह खेती करने के लिए तैयार हो गया लेकिन उसने मोतीमहल मे रहने से मना कर दिया बोला जब किसान ही बनना है तो एक झोपड़ी ना तैयार कर पाऊँगा क्या?
सावित्री बोली,जैसी तेरी मर्जी,तू बस उस जमीन से सोना उगाकर दिखा दे तो ,भइया से मैं भी कह सकूँगी कि मेरा भतीजा नकारा नहीं है।।
जी,बुआ! आपको कोई निराशा ना होगी मेरी ओर से,रणजीत सिंह बोला।
मुझे तुमसे यही आशा थी बेटा!, सावित्री बोली।।
और रणजीत सिंह गाँव के लिए निकल पड़ा,गाँव पहुँचकर उसने माली को अपना परिचय दिया।।
माली ने कहा,बहुत अच्छी बात है जो आप यहाँ आए।।
आप मत कहो,बाबा! मै तो तुम्हारे बेटे के समान हूँ,रणजीत ही बुलाया करो,रणजीत बोला।।
ना बेटा! छोटे मालिक ही ठीक है,माली ने कहा।।
ठीक है बाबा! तो छोटे मालिक को खड़ा ही रखोगें,एक लोटा जल तो पिला दो,रणजीत ने कहा।।
अरे,मै तो भूल ही गया,माली ने कहा और इतना कहकर उसने एक चारपाई बिछाई और फाल्गुनी को आवाज़ दी____
फाल्गुनी बिटिया! जरा छोटे मालिक के लिए पानी तो ला।।
फाल्गुनी झोपडी़ के भीतर से पानी लेकर आई,जैसे ही रणजीत ने फाल्गुनी को देखा तो देखता ही रह गया,एक ही नज़र में वो उसकी आँखों में बस गई।।
तभी माली बोला,छोटे सरकार आप आराम कीजिए और रात का खाना आज हमारे यहाँ खाइएगा जो भी रूखा सूखा होगा तो आप भी उसका आनंद उठाइए,मैं अपना काम निपटाकर आता हूँ और माली इतना कहकर चला गया।।
रात को रणजीत ने माली के यहाँ ही खाना खाया और दूसरे दिन ही कुछ जरूरत का सामान लाकर अपनी झोपड़ी भी डाल ली,अब वो दिनभर खेंतों में काम करता और रात को जो भी कच्चा पक्का बनाते बनता उसे खाकर सो जाता,कभी कभी उसे फाल्गुनी भी कुछ बनाकर दे जाती।।
इस तरह से उसके और फाल्गुनी के बीच नजदीकियाँ बढ़ रहीं थीं,अब वो रोज रात को मोतीमहल के कुएँ के पास वाले टीले पर मिलने लगे और अपनी बहन के पीछे पीछे कभी फाल्गुनी का भाई रामू भी आ पहुँचता,दोनों का प्रेम दिनबदिन गहरा होता चला जा रहा था,दोनों साथ जीने और मरने की कसमें खाने लगें थें,अब दोनों को एकदूसरे के बिन बिल्कुल भी रहना गवारा नहीं था।।
इधर गजेन्द्र प्रताप सिंह कमलनयनी को समझाकर समझाकर हार चुका था लेकिन वो किसी भी हाल में गजेन्द्र को बिना ब्याह के स्वीकार करने को तैयार ना थी,उसकी आत्मा को ये कभी भी मंजूर ना था कि बिना फेरों के गजेन्द्र उसके शरीर को हाथ लगाए,उसने गजेन्द्र से कहा कि आपकी ये मंशा कभी पूरी ना होगी,मुझे लगा कि आपने मुझे अमीरनबाई से इसलिए खरीदा है कि आप मेरी माँग में सिन्दूर भर कर मुझे इज्जत की जिन्दगी देंगें लेकिन मुझे ये कभी भी मंजूर ना होगा।।
और आप मुझे पैसों का लालच मत दीजिए,अमीरन बाई के यहाँ मैने बहुत पैसें देखें हैं और अगर पैसें ही चाहिए होते तो मैं आपके साथ कभी भी यहाँ ना आती।।
गजेन्द्र ने जैसे ही कमलनयनी के ये वाक्य सुने तो उल्टे पैर ही लौट गया।।

क्रमशः___
SV...✍️