प्रेम की भावना (भाग-6) Jyoti Prajapati द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम की भावना (भाग-6)

अगले दिन सुबह आंख खुली तो कुछ बेहोंशी सी छा रही थी। मैंने बेड के बगल में देखा, मुझे लगा भावना है। लेकिन जब ध्यान से देखा तो होंश ही उड़ गए। भावना नही सुधा थी।
मैं रूम के बाहर भागा। बाहर आकर देखा भावना किचन में थी और मम्मी मंदिर में ..!
मैं किचन में भावना की तरफ भागा।उसकी पीठ थी मेरी तरफ। मैंने वैसे ही जाकर उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। भावना जस की तस खड़ी रही। उसने कोई भी प्रतिक्रिया नही दी।
मैंने उसे अपनी ओर घुमाया। और पूछा,"क्यों किया तुमने ऐसा..??" लेकिन भावना ने जवाब नही दिया। वो वैसे ही नज़रें नीची किये खड़ी रही। मैंने फिर उससे कहा,"क्यों भावना जवाब नही दिया !! क्या हुआ तुम्हे..? अब प्यार नही रहा क्या मुझसे..???" अबकी बार भावना ने मुझे गले लगाया और कहने लगी,"मेरे जीवन का पहला और अंतिम प्रेम आप ही है !!ना आपसे पहले मैंने किसी के बारे में सोचा और न ही कभी आपके अलावा ! इतनी बड़ी बात कैसे कह दी आपने..??"

भावना के आंसू हमेशा ही मेरे सीने में तीर की तरह चुभे हैं। और आज मेरे द्वारा कहे शब्दों ने उसे रुला दिया। सही कहते हैं, सोच समझ कर बोलना चाहिए हमेशा। शब्दो के घाव बड़े गहरे लगते हैं। मेरे शब्दों से भावना यकीनन आहत हुई थी, किंतु उसने जो किया उससे मैं भी बराबरी से आहत हुआ था।

मन भारी हो रखा था बहुत ज्यादा ही। जैसे तैसे ऑफिस पहुंचा। आज वहां भी काम कुछ ज्यादा थी था ! शाम को घर जाने की कोई इच्छा नही थी पर जाना तो था ही !पर मैं इधर उधर होते हुए देर रात घर पहुंचा। पता था भावना मेरी रलह देख रही होगी और मम्मी भी परेशान होंगी!
लेकिन जब घर पहुंचा तो नज़ारा ही ओर था..!, भावना और मम्मी सो चुकी थी। बाहर हॉल में सुधा बैठी हुई थी। मुझे देखते ही मेरे पास आकर बोली,"कहां थे आप..?? इतना समय लगा दिया घर आने में..? चिंता हो रही थी आपकी..!!"

मन तो किया सुना दू सुधा को कि,"मत किया करो मेरा इंतज़ार ! तुम होती कौन हो..?"लेकिन तभी मेरी नज़र रूम की खिड़की से झांकती हुई भावना पर गयी। मैंने अनजान बनकर भावना को सुनाते हुए सुधा से कहा,"मेरी चिंता मत किया करो ! वो दोस्त के साथ चला गया था..! तुमने खाना खाया..?" सुधा बोली,"नही, आपकी ही रलह देख रही थी। आपने भी तो नही खाया होगा ना..!!"
मन तो नही था कुछ भी खाने का पर पता नही मुझे क्या सूझा, भावना को देखते हुए मैं सुधा से कहने लगा,"हां भूख तो बहुत लगी है ! तुम खाना गर्म करो ! आज दोनो साथ मे ही खाएंगे..!!"
सुधा मेरी इस बात से बड़ी खुश हुई। लेकिन भावना को क्या लगा होगा ये नही समझ पाया। सुधा हम दोनों के लिए खाना गर्म कर के लायी ! मैंने जैसे तैसे दो रोटियां खाई और जल्दी रूम में आ गया..!! भावना बेड पर बैठी हुई थी।
मुझे देखते ही पूछने लगी,"कहां थे अब तक..? कम से कम फ़ोन कर के बता तो देते ना, कितना परेशान थी मैं..??"

भावना की बीती रात वाली हरकत से मन खट्टा हो चुका था। एक नाराज़गी भर गई थी दिल मे। जो आज निकलने वाली थी। मैं उसपर टोंट कसते हुए कहने लगा,"तुम्हे अब मेरी चिंता करने छोड़ देना चाहिए भावना !! सुधा को ले आयी हो अब तुम मेरे लिए, मेरी चिंता करने के लिए। अबसे ये काम उसपर छोड़ दो। तुम आराम करो..!!!"
भावना की शक्ल देखने लायक हो गयी थी। पर मुझसे नही देखी गयी।
"क्यों किया भावना तुमने ऐसा??" बस यही एक सवाल गूंज रहा था मेरे मन मस्तिष्क में। मम्मी का तो समझ आया मुझे कि वे अपने बेटे का परिवार पूरा देखना चाहती थी, उनका वंश बढ़े ये चाहती थी। पर भावना, उसने ऐसा क्यों किया..? कौन सी पत्नी अपने पति को किसी ओर को सौंपती है..? मेरी खुशी के लिए ऐसा किया तो भी मुझे कौन सी खुशी मिल गयी इन सबसे.? भावना अगर मेरा बच्चा चाहती थी तो हम बच्चा गोद ले सकते थे, दूसरी शादी का क्या औचित्य था फिर..??"

खैर, मैंने सोचा लिया था अब ! भावना को उसकी गलतियों का अहसास कराने का !! मैं उसे जलाने के लिए, उससे जितना हो सके दूर और सुधा के करीब रहने लगा। भावना पर पूरा असर दिखने लगा इन सबका ! वो मुझसे बात करना चाहती तो मैं इग्नोर कर देता ! रात को देर से घर आता, कभी कभी सुधा के रूम में ही सो जाता !

भावना मन ही मन कुढ़ती तो बहुत पर मुझे जताती नही। मैं चाहता था कि भावना एक बार कह दे, की "आपके मैं बिना नही रह सकती। आपका मुझे यूँ इग्नोर करना, मुझसे दूर दूर रहना नही अच्छा लगता मुझे !" पर महारानी ने ऐसा कुछ नही कहा।
कसम से गुस्सा तो बहुत आता मुझे पर मैं करता भी क्या.?

एक दिन सुधा ऊपर रूम से नीचे आ रही थी। सीढ़ियों पर उसे चक्कर आ गए और उसका पैर फिसल गया। भगवान की कृपा थी उसे लगी नही। पर कुछ दिक्कत तो हो ही गयी थी उसे !

हम उसे डॉक्टर के पास लेकर पहुंचे। मम्मी और मैं ही थे साथ मे। भावना घर पर ही रुक गयी। डॉक्टर ने उसका पूरा चेकअप किया। रिपोर्ट्स में पता चला, सुधा माँ बनने वाली है। मम्मी तो खुशी से फूली नही समा रही थी। लेकिन मैं खुश होऊँ या दुखी समझ ही नही आ रहा था।
डॉक्टर ने बताया,"एक तो ये प्रेग्नेंट हैं और शायद आप लोग जानते नही थे। उसपर इनके साथ ये घटना होने से बीपी बढ़ गया है इनका। प्रयास कीजियेगा कि इन्हें ज्यादा तनाव ना हो। ज्यादा चढ़ाई उतराई ना करे। पेट पर ज़ोर पड़े ऐसे काम न करें। लेकिन, छोटे मोटे काम खुद से ही करती रहें। ताकि शरीर स्वस्थ रहे। वरना ऑपरेशन की नौबत आ सकती है।"

डॉक्टर द्वारा दी गयी दवाओं और सुझावों के साथ हम लोग घर पहुंच गए। मम्मी ने पहले ही भावना को पूरी खबर दे दी थी।
जैसे ही हम लोग घर पहुंचे, सुधा ऊपर के रूम में जाने लगी। भावना ने मना कर दिया पर उसे। वो उसे हमारे रूम में लेकर गयी। मुझे लगा शायद अभी आराम करने के लिए ले जा रही होगी। लेकिन रूम में जाकर देखा तो पूरे रूम की काया पलट ही हो गयी थी।
भावना का सारा सामान गायब था और भावना की जगह पूरे रूम में सुधा का सामान रखा हुआ था। मुझे तो अपनी आंखों पर विश्वास करना ही मुश्किल हो रहा था! आखिर क्यों किया भावना ने ऐसा.!!
मैं एक मौके की तलाश में था, अगर भावना मुझे अकेले में मिले तो पूछुं उससे ! लेकिन वो मुझे बड़े अच्छे से जानती थी इस लिए रूम के बाहर आ ही नही रही थी।

आखिर में जब कोई रास्ता नही बचा तो मुझे उससे कहना ही पड़ा,"भावना, तुमसे जरूरी बात करनी है। ऊपर रूम में आओ.!!ओर कोई बहाना मत करना समझी..! मैं वैट कर रहा हूँ तुम्हारा ! जल्दी आओ..!!"

लगभग आधे घंटे बाद भावना रूम में आई। वो भी तब जब मैंने दो तीन बार उसे आवाज़ लगाई। भावना समझ चुकी थी कि उसकी इस रूम बदलने वाली हरकत से मेरा पारा चढ़ चुका है। वो डरते हुए रूम में आई। आकर सीधे बेड के कोने पर बैठ, साड़ी के पल्लू के कोने को उंगली पर लपेटने लगी।

मैं उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। भावना शून्य में ताके जा रही थी। मैं उससे बोला,"भावना मेरी तरफ देखो..!" लेकिन उसने अपना चेहरा मेरी ओर नही किया। थक हारकर मैं ही उसके बगल में जा बैठा।
मेरे बैठते ही मेरी प्यारी भावना चेहरा घुमा कर बैठ गयी। मैंने उसका हाथ पकड़ा, उसने झटक दिया। अबकी बार मैंने उसका चेहरा कसकर अपने हाथों में लिया और अपनी ओर घुमाया।
उसकी आंखें सुर्ख लाल देख मैं परेशान हो उठा ! भावना मेरे गले लग रो पड़ी। मैं उससे बोला,"क्या हुआ भावना ?? तुम यही तो चाहती थी ना..!तो अब रो क्यों रही हो..?"

भावना कहने लगी,"पता नही क्यों, मैं खुश होना चाहती हूँ पर नही हो पा रही हूँ। ऐसा क्यों है नही समझ आ रहा !"

मैं भावना के मन की पीर समझ रहा था। लेकिन तब मेरे पास भी कहने को कुछ नही था !! क्या कहता मैं भी उससे..? इसलिए ही तो रोक रहा था उसे, लेकिन वो मानी ही नही। दूसरी शादी करवा के ही दम लिया। शादी के बाद भी मैं अपने रिश्ते को आगे नही बढा रहा था लेकिन तब भी भावना ने पीछा नही छोड़ा..!!

अब जब वो सब हो रहा है जो भावना चाहती थी तो ये दुख क्यों..??? जबसे प्रेग्नेंसी की न्यूज़ सुनी है सुधा और मम्मी दोनो के ही चेहरे पर अलग ही चमक नज़र आ रही है एक अलग ही खुशी झलक रही है। और दूसरी ओर मेरी जान, मेरी भावना, आज उसके चेहरे पर जो दर्द मुझे नज़र वो दर्द उस दर्द से भी बढ़कर था, जब हमे भावना की बीमारी का पता चला और उसके माँ ना बन पाने का कारण पता चला !

सुधा की प्रेग्नेंसी की वजह से बार बार उसे डॉक्टर के पास लेकर जाना, ऑफिस में भी वर्कलोड होना उसपर घर की जिम्मेदारियां....! इन सबके चक्कर मे मेरा ज्यादातर समय सुधा को मिलने लगा और भावना को मैं चाह कर भी समय नही दे पा रहा था। और शायद देना भी नही चाहता था। क्योंकि भावना कि ही ज़िद थी मेरी दूसरी शादी और बच्चा।

इन सबमे मैं इतना उलझा के भावना के लिए समय कम पड़ गया और दूरियां बढ़ती ही गयी। छोटी-छोटी बातों पर मैं भावना पर बिगड़ने लगा था ! कभी कभी तो बिना कारण भी मैं उसपर गुस्सा कर देता !

एक ओर घर का तो दूसरी ओर ऑफिस का इतना तनाव हो चुका था कि मैं भावना पर ही अपना सारा गुबार भावना पर निकालता ..!! भावना बिना किसी विरोध के चुपचाप सब सुनती। कई बार उसकी ये चुप्पी अखर जाती मुझे ! मैं चाहता था कि वो भी मुझपर गुस्सा हो, अपनी नाराजगी जाहिर करे। लेकिन वो तो बिल्कुल ही चुप हो गयी।

नतीजा ये हुआ कि हम दोनों के बीच झगड़े बढ़ते ही गए !! और नतीजा ये हुआ कि भावना एक दिन गुस्से में घर छोड़कर चली गयी। उस दिन मेरी भावना मुझेभी छोड़कर चली गयी !!

भावना के जाने के बाद मैंने उसे कई बार कॉल किये पर उसने बात तक नही की। मैसेज किये लिए रिप्लाई नही आया। खुद भी गया लेने लेकिन वो मुझसे मिली तक नही ..!! भावना की इस हरकत से मम्मी उससे नाराज़ हो गयी। उन्होंने साफ कह दिया कि आज के बाद न मैं उसे कॉल करूँगा और ना ही लेने जाऊंगा !!

सिर्फ मम्मी ही नही सुधा भी हैरान थी भावना की इस हरकत पर ! घर मे सभी लोग अचंभित थे सिवाय अंगद के..!
अंगद को हमेशा मैं ही गलत नज़र आया ! उसने उस दिन मुझसे कहा,"अब क्यों परेशान हो रहे हो भाई..? आप भाभी को परेशान ही तो करना चाहते थे..! आपके पास भाभी से बात करने का समय नही था, उन्हें देखने तक कि फुरसत नही थी तो क्यों उन्हें देखने के लिए, उनसे बात करने के लिए तड़प रहे हैं अब..!!"

एक तरफ मेरा भाई, दूसरी तरफ भावना का.! कसम से मन तो कर रहा था दोनो को ही काले पानी की सज़ा दिलवा दूं..!समझते क्या हैं ये दोनों ही अपने आप को ! दोनो को ही भावना की चिंता पड़ी है। कभी मेरे बारे में तो सोचते ही नही है ! हद है मतलब..!
मैं जानता था, मैं कुछ भी कहूँगा, इसे मैं ही गलत लगूंगा !! इससे बहस करना मतलब दीवार से सिर फोड़ना !!

मैं दो तीन बार लेने पहुंचा भावना को लेकिन वो मिली तक नही मुझसे ! आखिर मेरा भी ईगो हर्ट हो गया !फिर मैंने भी उससे बात करना बंद कर दिया।




उस दिन जब भावना का पत्र आया,कितनी खुशी हुई थी मुझे.! शब्दो मे बयाँ करना नामुमकिन है!!

हर दूसरे दिन भावना का पत्र आता। लेकिन दो तीन दिन से उसका पत्र नही मिला मुझे ..!चिंता होने लगी मुझे, "क्या हुआ भावना नाराज़ हो गयी क्या..?"

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