प्रेम की भावना (भाग-5) Jyoti Prajapati द्वारा महिला विशेष में हिंदी पीडीएफ

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प्रेम की भावना (भाग-5)

उस दिन भावना ने पहली बार मुझसे कुछ मांगा था । इंकार करने का तो सवाल ही नही था । मेरी जान अगर जान भी मांग लेती तो दे देता। मैंने भावना की आंखों से बह रहे आंसूओ को अपने दोनो हाथों से पोंछते हुए उससे पूछा, "बोलो, क्या चाहिए..? अगर मेरे वश में हुआ तो जरूर दे दूंगा।" भावना बोली, "आप दूसरी शादी कर लीजिए प्रेम जी..!"
भावना ये मांगने वाली है इसकी तो उम्मीद मुझे कभी सपने में भी ना थी। इससे तो अच्छा भावना मेरी जान ही मांग लेती। अगर मुझे इसकी थोड़ी भी भनक लगी होती तो शायद मैं कुछ मांगने के लिए हाँ ही नही कहता भावना से ।
मैं अब तक भावना की बात सुनकर स्तब्ध सा खड़ा था ।भावना की आवाज़ कानो तक पहुंच जरूर रही थी लेकिन समझ नही पा रहा था मैं। उसने जब मुझे झंझोड़कर पूछा तब तंद्रा टूटी ।
" बोलिये ना प्रेम जी..! करेंगे ना दूसरी शादी । मैंने आजतक कुछ नही मांगा आपसे । आज पहली बार मांग रही हूँ शायद आखिरी बार भी ! वादा करती हूँ प्रेम जी आज के बाद कभी कुछ नही माँगूँगी। बस ये बात मान जाइये !!"
"दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा । कुछ भी बोल रही हो !! ऐसे कैसे दूसरी शादी कर लूं मैं..? और क्यों करूँ दूसरी शादी ..? है कोई कारण तुम्हारे पास..?"
"कारण तो बहुत मिल जाएंगे प्रेम जी अगर ढूंढे तो ! पहला कारण तो ये कि मुझमे जो कमी है उसकी वजह से आप आजीवन खुशियों से वंचित क्यों रहे.? मम्मी जी कितनी उत्साहित रहती थी जब भी घर मे बच्चों की चर्चा होती । हमेशा एक उम्मीद सी नज़र आती मुझे उनकी आंखों में । अपने पोते-पोती को देखने की, उन्हें दुलार करने की । मम्मी जी ने कितनी बार मुझे बताए उनके अरमान कि जब उनका पोता या पोती आएगी तो अपने हाथों से उनके लिए स्वेटर बनाएंगी, उनके लिए झबले सिलेंगी, रोज़ उनकी मालिश करेंगी, नहलायेंगी और भी कितने ही ख्वाब सजाय हुए थे उन्होंने । सब टूट गए एक ही झटके में !! और ये ख्वाब अब कभी नही जुड़ेंगे प्रेम जी, कभी भी नही !! कहीं से कोई उम्मीद की किरण भी नज़र नही आएगी अब तो ।
सिर्फ एक ही रास्ता है प्रेम जी, आपकी दूसरी शादी !! मान जाये ना !!"
मैंने भावना से बहस करना उचित नही समझा ! जानता था उसके दिमाग मे ये फालतू की बातें घूम रही हैं । उससे कुछ भी कहना, या उसे समझाना व्यर्थ ही है। भावना बोले ही जा रही थी और मैं उसकी बातों को अनसुना कर बाहर निकल गया।
कुछ समय तक भावना दूसरी शादी के लिए मुझे हाँ करवाने पर तुली रही । जब मैंने उससे साफ इंकार कर दिया तो फिर से बात करना बंद कर दिया ।अब तक तो भावना ही मेरे पीछे पड़ी थी, लेकिन अब तो मम्मी भी साथ हो गयी उसके । परेशान हो गया था में। तंग आ गया था दोनो की ज़िद से। चिड़चिड़ापन आने लगा मुझे।
एक दिन जब बात ज्यादा ही बढ़ गयी तो मैं चिल्ला दिया भावना और मम्मी पर। मैंने उनसे कहा, "ठीक है अगर तुम सब चाहते हो कि मैं दूसरी शादी कर लूँ तो तैयार हूँ मैं । लेकिन भावना, दूसरी शादी करने से पहले तुम्हे मुझे तलाक़ देना होगा ! बोलो...मंज़ूर है..!!"
भावना मेरी बात सुनकर जड़ हो गयी । अनगिनत भाव आ जा रहे थे उसके चेहरे पर । शायद उम्मीद नही थी उसे मुझसे, की मैं ऐसा कुछ कहूँगा। भावना को देख मैं समझ गया कि मेरा तीर निशाने पर लग गया ! भावना कभी मुझसे दूर जाने के बारे में सोचेगी भी नही । तलाक़ तो बहुत दूर की बात है।
भावना बिना कुछ बोले चली गयी । मुझे पता था भावना मेरी इस बात का जवाब नही देने वाली कभी भी । यही तो मैं चाहता था । आज के बाद भावना कभी मुझसे दूसरी शादी करने को नही कहेगी । और हुआ भी वही ।
भावना ने मुझसे दूसरी शादी की बात करना बंद कर दिया ।

कुछ दिनों तक सब कुछ सामान्य रहा । भावना भी मुझसे बात करती और मैं भी उसकी बातों का हाँ, हूँ मैं ही जवाब देता । आखिर मेरे भाव खाने का समय जो था।
एक दिन भावना ने मुझसे कहा,"मैं कुछ दिनों के लिए अपने मायके जाना चाहती हूं । चली जाऊँ क्या..?"
वैसे तो मैं भावना से मना करने की सोच रहा था । लेकिन उसने जिस मासूमियत के साथ कहा मना नही कर पाया । वैसे भी उसके ऑपरेशन के बाद से भावना कहीं गयी भी नही थी। दिन भर घर की चारदीवारी मे ही कैद रहती। मुझे लगा थोड़ा चेंज मिल जाएगा उसे तो जाने दिया ।

मैंने सोचा मैं खुद उसे छोड़ आऊंगा कुछ दिन रह भी लूंगा उसके साथ । हम दोनों को ही बदलाव की, एक दूसरे के साथ कि जरूरत थी। लेकिन मेरे साले साहब ने मेरी इस उम्मीद पर पानी फेर दिया । अगले दिन ही आ धमका वो भावना को लेने ।
भावना ने जैसे ही रवि को देखा भाग कर उससे लिपट गयी । बड़ा भाई था उसका लेकिन लगते दोनो जुड़वां। भावना कुछ देर तो उससे गले लगी रही लेकिन थोड़ी देर में ही वो सुबकने लगी । उसका सुबकना जल्द ही तेज़ रुलाई में बदल गयी । हम सब हैरान रह गए भावना का रोना सुनकर ।
भावना रो तो ऐसे रही थी जैसे हम सबने बहुत मारा हो, उसको खूब प्रताड़ित किया हो ।
मैंने एक बात नोटिस की, रवि की आँखों से भी आंसू बह रहे थे । जितनी देर भावना उसके सीने से लगी रही तब तक रवि ने एक शब्द भी मुंह से नही निकाला । ना ही उसने भावना को चुप कराया ना ही कुछ कहा । बस चुपचाप भावना को चुपचाप एक छोटी बच्ची की तरह अपने सीने से लगाये उसके आंसू पोंछता रहा, उसके सिर को सहलाता रहा ।
भावना को हिचकियाँ आने लगी तो मैंने उसे लेजाकर पानी दिया पर भावना ने पिया ही नही । फिर रवि ने मेरे हाथों से ग्लास लेकर भावना को पानी पिलाया। शायद भाई-बहन का रिश्ता इसलिए ही खास होता है। रवि को देखते ही भावना की आंखों में आंसू आ गए । इतने महीनों का सारा गुबार निकल गया था रवि के आने से।
कसम से बस यहीं आकर मेरा महत्व कम हो जाता है भावना के जीवन मे, रवि के आगे।

भावना अपने मायके जा चुकी थी । उसके जाते ही पूरे घर मे सन्नाटा पसर गया । मेरे कमरे में तो ऐसी मनहूसियत छा गयी कि मैं वहां रुक ही नही पाया । चार-पांच दिन बाद मैंने भावना से पूछा लेने आने के लिए। लेकिन उसने मना कर दिया । धीरे-धीरे दस दिन बीते, फिर पंद्रह, बीस अब तो इससे ज्यादा भावना के बिना रहना मेरे लिए सम्भव नही था।
अगले दिन मैंने स्पष्ट शब्दों में भावना से कह दिया, "मैं आ रहा हूँ कल तुम्हे लेने । तैयार रहना ।"
लेकिन भावना ने कहा, "आप मत आइए, मैं खुद ही आ जाऊंगी सुबह जल्दी ।" मैंने भावना की बात मान ली ।
अगले दिन दस बजे तक भावना वापस आ गयी ।
मैंने भावना को न जाने कितनी देर तक अपने सीने से लगाए रखा। शादी के बाद से इतने दिनों तक हम दोनों कभी एक दूसरे से इतनी दूर रहे जो नही थे।

भावना ने हमेशा मेरी इच्छाओं का, जरूरतों का ध्यान रखा ! थोड़े दिनों बाद फिर वही तमाशा शुरू हो गया घर मे !!सब के सब पीछे पड़ गए मेरी दूसरी शादी के लिए।
कब तक सुनता मैं सबकी बातें। एक बार तो मन किया मैं ही ज़हर खा लूँ, पर इतना आसान कहाँ। आखिरकार मुझे सबके सामने अपने घुटने टेकने ही पड़े !!,
लेकिन मैं जानता था दूसरी शादी इतनी आसान कहाँ..? पहली पत्नी से तलाक लिए बिना हिन्दू धर्म मे दूसरी शादी वर्जित जो है। लेकिन मेरी भावना, पता नही उसे कहाँ से पता चल गया कि हमारा कानून, पहली पत्नी की स्वीकृति होने पर दूसरी शादी की अनुमति प्रदान करता है। बस ये समस्या का निदान तो कर चुके थे सब लोग।
अब थी दूसरी समस्या, लड़की की..! अरे भई अब दूसरी शादी करने के लिए तैयार कौन होती?? वो भी पहली पत्नी के होते हुए..?
लेकिन फिर से मेरी भावना जीत गयी। उसने तो पहले से ही लड़की ढूंढ के रखी थी। हम सब लोग चौंक गए लड़की का नाम सुनकर।
वो लड़की कोई ओर नही भावना की बड़ी बहन थी- सुधा!"
जिससे पहले मेरी शादी होने वाली थी लेकिन नही हुई पर अब दूसरी शादी होगी।
कसम से माथा पीट लिया मैंने अपना। मन तो दीवार से सिर पीटने का हो रहा था पर अब क्या कर सकते हैं.?
पर मैंने उन लोगों के सामने तीसरी समस्या रख दी थी। समस्या यही थी कि सुधा क्यों मुझसे शादी करेगी..? छोटी बहन के पति से..?? अरे वो तो खुद एक सरकारी कर्मचारी है। उसे तो कोई भी अच्छा लड़का मिल जाएगा तो वो मुझसे शादी क्यों करने लगी??"

पर फिर से मेरी भावना ने मेरी सारी समास्याओं की तरह इस समस्या का निदान भी कर दिया था । दरअसल वो तो मायके ही इसलिए गयी थी कि अपनी बहन को मायके वालों को मना सके।
मुझसे सुधा की शादी टूटने के बाद उसका कहीं सम्बंध जम ही नही पा रहा था। अनेक रिश्ते देखे, कहीं मेरे ससुराल वालों को पसंद नही आया, तो कुछ सुधा देवी को, तो कोई को सुधा पसंद नही आई।
बस इसी चक्कर मे उम्र ढलने लगी और सुधा, तनावग्रस्त हो गयी। डिप्रेशन में जाने लगी थी वो। मेरी भावना मैडम ने जाकर के उन्हें अपनी समस्याएं बताई और उनकी समस्या का निवारण भी बता आयी उन्हें।

इतनी बड़ी समाज सेवी निकली भावना तो मैंने हाथ जोड़ लिए उसके। इच्छा तो पैर पड़ने की हुई थी, पर भारतीय नारी..अगर पति पैर छू ले तो पाप लग जाता है उन्हें और भगवान जाने क्या-क्या ??

मैंने फिर अपना दिमाग लगाया। सोचा सीधा, सुधा से ही मना कर दूंगा..!! लेकिन भावना ने तो सुधा को मुझसे शादी के लिए हां करवा ली थी।

फिर आगे क्या कहूँ हो गयी शादी।

लेकिन मैं सुधा को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नही कर पा रहा था..! दो महीने, चार महीने छः महीने और सालभर होने पर भी जब मैं सुधा से दूर ही रहा तो मम्मी और भावना दोनो ही परेशान हो गयी। मम्मी और भावना दोनो ही इस बात से चिंतित थी की मैं सुधा को अपनाऊंगा भी या नही। दोनो ही जानती थी कि मैं जब तक भावना से दूर नही होऊंगा तब तक सुधा के साथ अपने रिश्ते को आगे नही बढ़ाऊँगा !!
एक रात मम्मी ने मेरे और सुधा के खाने में एक ऐसी दवाई मिला दी जिसे खाने के बाद हम दोनो अपने रिश्ते को पूरा कर सकें !!
खाना खाने के बाद मुझे और सुधा को नशा सा होने लगा ! भावना मुझे सहारा देकर रूम ले कर गयी। दवा का असर होने लगा था। थोड़ी देर बाद सुधा भी रूम में पहुँच गयी !! दवाई के नशे में मुझे कुछ समझ नही आ रहा था उस समय मुझे सुधा में भावना की छवि नज़र आई !
उस दवाई के असर की वजह से ना चाहते हुए भी उस रात मैंने सुधा को अपनी पत्नी का अधिकार दे ही दिया था।

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