विश्वासघात--(अन्तिम भाग) Saroj Verma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--(अन्तिम भाग)

इधर इन्सपेक्टर अरूण और प्रदीप कुछ देर में नटराज के फार्महाउस जा पहुँचे,उन्होंने मोटरसाइकिल दूर ही खड़ी कर दी ताकि मोटरसाइकिल की आवाज़ से किसी को श़क ना हो जाए और दोनों पैदल ही फार्महाउस के पास आ गए,तभी अरूण बोला____
प्रदीप! हमें सामने के दरवाजे नहीं जाना चाहिए,नहीं तो उन लोगों को श़क हो जाएगा और हमें ये भी तो पता नहीं है कि कितने आदमी हैं वहाँ?
आप सही कह रहें हैं अरुण भइया! हम लोग खिड़की से चलते हैं,मैं इस तरफ वाली खिड़की से भीतर घुसता हूँ और आप फार्महाउस के पीछे वाली खिड़की से घुसिए,प्रदीप बोला।।
हाँ,प्रदीप! यही ठीक रहेगा ,चलो तुम जाओ और मैं भी पीछे की खिड़की से आता हूँ भीतर मिलेंगें,अरूण बोला।।
ठीक है भइया,प्रदीप बोला।।
और दोनों फार्महाउस के भीतर घुस पड़े शक्तिसिंह और संदीप को बचाने के लिए___
प्रदीप जैसे ही खिड़की से घुसा तो उसने देखा कि हाँल में ही दोनों को कुर्सियों में बाँधकर रखा है और दोनों के मुँह पर पट्टी बँधी है,पास में दो गुण्डे हाथ में बंदूक लेकर कुर्सियों में बैठे बैठे ऊँघ रहे थे।।
प्रदीप छुपते छुपाते दीवार की ओट में छिप गया और तभी संदीप की नज़र भी प्रदीप पर पड़ी,प्रदीप ने दूर से इशारा करते हुए कहा कि घबराइए नहीं मैं और अरूण भइया आपलोगों को बचाने के लिए आ गए हैं,तभी पीछे की खिड़की की तरफ से अरूण आता हुआ दिखाई दिया,प्रदीप ने संदीप से इशारें से कहा कि पीछे देखिए अरूण भइया भी आ चुके हैं,अब शक्तिसिंह जी ने राहत की साँस ली।।
अरूण ने प्रदीप को इशारा करते हुए कहा कि तुम पहले इनलोगों के पास पहुँचकर इन लोंगो की रस्सियाँ खोलने की कोशिश करो,मैं पीछे हूँ अगर कुछ खतरा होता है तो मैं इन दोनों गुण्डो से निपट लूँगा।।
प्रदीप ने भी इशारा करते हुए कहा कि ठीक है और वो दबे पाँव उन दोनों के पास पहुँचकर दोनों की रस्सियाँ खोलने लगा जैसे ही शक्तिसिंह जी के हाथों की रस्सियाँ बस खुली थीं कि दोनों गुण्डे आहट सुनकर जाग गए उठे और प्रदीप को वहाँ देखकर उस पर टूट पड़े,ये सब देखकर अरूण ने भी दोनों गुण्डो पर अपने मुक्केबाजी शुरू कर दी.....
चारों ओर बस यही शोर गूँज रहा था....ढ़िशूम....ढ़िशूम...
इधर शक्तिसिंह जी के हाथ खुल चुके थे तो उन्होंने जल्दी से अपने पैरों की रस्सी खोली और संदीप की भी झट से हाथों और पैरों की रस्सियाँ खोल दीं अब संदीप भी गुण्डो से दो दो हाथ करने लगा,कुछ ही देर में दोनों गुण्डो की मार खा खाकर चटनी बन गई।।
संदीप और अरूण ने दोनों गुण्डो को रस्सी से बाँधा और उनके मुँह पर पट्टी बाँधकर सब फार्महाउस के बाहर आ गए, बाहर आकर अरूण ने संदीप से कहा___
मैं शक्ति अंकल को अपनी मोटरसाइकिल में लेकर इनके घर जाता हूँ,तुम दोनों भाई भी इस ट्रक में बैठकर चले आओ।।
संदीप बोला ___
लेकिन हम दोनों में से तो किसी को ना तो मोटर चलानी आती और ना ही ट्रक।।
अब ये तो समस्या हो गई,इतनी रात को तुम दोनों को यहाँ अकेले भी नहीं छोड़ सकता,अरूण बोला।।
तभी शक्तिसिंह जी बोले___
अरूण तुम मोटरसाइकिल पर प्रदीप को ले जाओ,तुम्हें और भी काम करने हैं,मुझे ट्रक चलाना आता है,मैं और संदीप तुम लोंगो के पीछे पीछे पहुँच जाएंगें।।
ठीक है अंकल! तो ऐसा ही करते हैं,आओ प्रदीप मोटरसाइकिल मे बैठो,अरूण बोला।।
और सब अपने अपने वाहन से शहर की ओर निकल पड़े।।

सब सही सलामत घर पहुँचे,लीला ने ये देखा कि सब सकुशल घर आ गए तो बहुत ही खुश हुई___
अच्छा तो अब मैं चलता हूँ,अब बाहर जाकर देखूँ कि उनकी अगली चाल क्या होने वाली है? अरूण बोला।।
हाँ,अरूण बेटा चले जाना,एक प्याली चाय पीकर जाओं,इतने बड़े खतरे से बाहर जो आएं हो,बस कुसुम चाय बनाकर ला ही रही है,लीला बोली।।
आप कहतीं हैं तो चाय पीकर जाता हूँ लेकिन खत़रा अभी टला नहीं है,अरूण बोला।।
शायद तुम सही कह रहे हो अरूण!शक्तिसिंह जी बोले।।
और तभी टेलीफोन की घण्टी बजी ,सब सकपका गए कि इतनी रात गए किसका फोन हो सकता है?शक्तिसिंह जी ने डरते डरते टेलीफोन उठाया और उस तरफ से नटराज की आवाज़ आई____
अच्छा तो जमींदार साहब! फार्महाउस से छूटकर आ गए आप! मैनें जानबूझकर कम आदमियों को पहरे पर रखा था कि तुम वहाँ से आसानी से छूटकर आ सकों,नटराज बोला।।
जब तुम्हें सब पता चल ही गया है तो अपना इरादा भी बता दो,शक्तिसिंह जी बोलें।।
पहले मुझे ये बताओं कि तुम लोगों ने मेरे साथ ये नाटक क्यों किया? नटराज ने पूछा।।
तुम्हें सही रास्तें पर लाने के लिए,शक्तिसिंह जी बोलें।।
तो फिर ये तुमलोगों का सपना अब सपना ही रहेगा,कभी पूरा नहीं होने वाला और तुम लोंग ये समझ रहे हो कि इन्सपेक्टर अरुण के साथ मिलकर तुम लोंग मेरे साथ ये खेल, खेल रहे थे तो तुम लोंग बहुत बड़ी गलतफह़मी में जी रहे हों,मुझे पता चल गया है कि वो जूली नहीं मंजरी है और इन्सपेक्टर के साथ मिलकर वो मुझे धोखा दे रही थी,नटराज बोला।।
तुम जूली के साथ कुछ भी गलत नहीं करोगे,शक्तिसिंह जी बोलें।।
ऐसा कैसे हो सकता है जमींदार साहब ! धोखेबाज को तो सजा मिलनी ही चाहिए,वो भी नटराज के साथ इतनी बड़ी गद्दारी...हा...हा...हा...हा...माँफी वो भी जूली को,बिल्कुल भी नहीं,नटराज बोला।।
तो तुम अब क्या करने वालें हो,इरादा क्या है तुम्हारा?शक्तिसिंह जी ने पूछा।।
इरादा तो बहुत ही नेक़ है जमींंदार साहब! अपने गद्दारो और राजदारों को एक एक करके मौत के घाट उतारना और उस लिस्ट में आप भी शामिल हैं.....हा...हा...,नटराज हँसते हुए बोला।।
तुम हमलोगों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते,शक्तिसिंह जी बोले।।
अब वो तो वक्त ही बताएगा कि कौन कितने पानी मे हैं?नटराज बोला।।
नटराज! ये तेरी गलतफहमी है,अब वक्त आ गया है कि तुझे तेरे कर्मों की मुनासिब सज़ा मिलनी चाहिए,शक्तिसिंह जी बोले।।
अब कितना भी कोस लो,जो मुझे करना था वो तो मैनें कर ही लिया,जूली को क्लब की गैराज़ में बाँधकर आ रहा हूँ और उसकी कलाई की नब्स काट दी है,धीरे धीरे खून रिसता रहेगा और वो सुबह तक मर ही जाएगी,नटराज बोला।।
तू बहुत कुत्ता है नटराज! मैं अभी जूली को बचाने जाता हूँ,शक्तिसिंह जी बोले।।
नहीं बचा सकते जमींंदार साहब! क्योंकि तुम्हारे प्यारे भतीजे विजयेन्द्र को भी हमने गाँव से उठवा कर लिया है,तुम जूली को बचाने जाओगे तो विजयेन्द्र को कौन बचाएगा? नटराज बोला।।
तू बहुत ही कमीना है नटराज! अगर मेरे बच्चे को कुछ हुआ ?तो मैं तेरी बोटी बोटी नोंच लूँगा,शक्तिसिंह जी बोलें।।
वो तो तू तब कर पाएगा ना! जब तेरी बोटियाँ बचेंगीं शक्तिसिंह! नटराज बोला।।
तू चाहता क्या है? मुझे ये बता॥ शक्तिसिंह जी बोले।।
बस,कुछ नहीं दोनों भाइयों को मेरे हवालें कर दो,उनसे कहो कि अपने माँ बाप और बहन को बचाने काली पहाड़ी पर बने मेरे अड्डे पर आ जाएं,वहीं तेरा भतीजा भी है और खबरदार जो पुलिस को कुछ भी बताया तो,नटराज बोला।।
ठीक है तो हम कुछ देर में वहाँ पहुँचते है,तू किसी को कुछ मत करना,शक्तिसिंह ने कहा।।
इसकी तो कोई गारण्टी नहीं है,मै तुमलोगों का इंतज़ार करूँगा और यह कहकर नटराज ने फोन काट दिया।।
अब शक्तिसिंह ने सारी बात सबको बताई___
ये सुनकर अरूण बोला___
अंकल आप लोंग काली पहाड़ी पहुँचो,मैं मंजरी को बचाता हूँ,मंजरी को बचाकर मैं पुलिस के साथ काली पहाड़ी पहुँचता हूँ!!
हाँ,यही ठीक रहेगा,संदीप बोला।।
शक्तिसिंह ने दूसरी मोटर निकाली क्योकिं जो मोटर वो क्लब लेकर गए थे वो तो वहीं रह गई थी,तीनों मोटर में पहुँचे और चल पड़े काली पहाड़ी की ओर,रात का अँधेरा सुनसान पहाड़ी रास्ता____
उधर लीला ने सारी ख़बर फिर से साधना को देदी___
इधर अरूण पुलिस को लेकर के क्लब पहुँचा और देखा कि मंजरी एक कोने में बँधी हुई पड़ी है,उसने मंजरी को फ़ौरन खोला,देखा तो अभी उसकी कलाई से ज्यादा खून नहीं रिसा था,अरूण डाक्टर को भी साथ लेकर गया था,डाक्टर ने फ़ौरन ही मंजरी की मरहम पट्टी कर दी और कुछ इंजेक्शन भी लगा दिए ,अब मंजरी बेहतर महसूस कर रही थी।।
अरूण ने मंजरी से सारी कहानी सुनाते हुए कहा तो___
अब तुम घर जाओ और मैं पुलिस के साथ उन सबको बचाने के लिए काली पहाड़ी जाता हूँ।।
मैं भी तुम्हारे संग चलूँगी,मंजरी बोली।।
लेकिन अभी तुम ठीक नहीं हो और फिर वहाँ बहुत खत़रा है,अरूण बोला।।
कुछ भी हो,जब हम साथ साथ काम करते हैं तो खतरा भी साथ साथ उठाएंगे,मंजरी बोली।।
और अरूण को मंजरी की बात माननी पड़ी और उसने मंजरी से कहा___
ठीक है,जैसी तुम्हारी मरजी,तो चलो संग,
और अरूण पुलिस और मंजरी के संग काली पहाड़ी की ओर चल पड़ा___

और उधर काली पहाड़ी के अड्डे पर____
नटराज अभी तक संदीप के माँ बाप से नहीं मिला था,वो पहली बार उनसे मिलने पहुँचा और जैसे ही उसने दयाशंकर क़ो देखा तो सदमें में पड़ गया,उसे पुराना सब याद ख गया कि कैसे उसने विश्वासघात का कलंक दयाशंकर पर लगाया था,खून करके,पैसे लेकर कैसे फरार हो गया था?उसने दयाशंकर को पहचानते हुए कहा____
अच्छा तो अब मुझे सारा माजरा समझ आया कि क्यों तेरे बेटे मुझसे बदला लेना चाहते थे?
तेरे जुर्मों का अब हिसाब होगा नटराज! दयाशंकर चीखते हुए बोला।।
वो तो मेरे ऊपर है कि कौन कैसे चुकाएगा?क्योंकि हिसाब का तो मैं बहुत पक्का हूँ,नटराज बोला।।
वो ऊपर बैठा सब देखता है,उसके घर में देर है लेकिन अन्धेर नहीं,दयाशंकर बोला।।
लेकिन शायद तेरे बेटोँ ने आने में देर कर दी,तेरी बेटी को भी तो हमने उठवाया है और वो दूसरी जगह बँधी है,अभी राका उसके पास उसका हाल चाल पूछने गया है,वैसे राका औरतों का हाल चाल बहुत अच्छी तरह पूछता है,तुम समझ रहे हो ना कि मैं क्या कहना चाहता हूँ,नटराज बोला।।
तभी बगल में बँधा विजयेन्द्र चीख कर बोला____
कुत्ते...कमीनें मैं तेरा ख़ून पी जाऊँगा अगर बेला को कोई भी आँच आई तो।।
सबर रखो बेटा! तेरा चाचा शक्तिसिंह भी यहाँ आने वाला है,नटराज बोला।।
तू आज नहीं बचेगा नटराज! तुझे अपने जुर्म कुबूल करने ही होगें,दयाशंकर बोला।।
इस भूल में मत रह दयाशंकर!अभी इसी काली पहाड़ी में सबकी लाशें नज़र आऐगीं, किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा,मैं कभी भी पकड़ा नहीं जाऊँगा,नटराज बोला।।
भूल तो तू कर रहा है,नटराज! दयाशंकर बोला।।

और इधर जैसे ही साधना को सब पता चला तो उसने मधु को जगाकर कहा___
उठ मधु !मोटर निकाल! हम भी काली पहाड़ी जाएंगे,आज मैं अपनी आँखों से तेरे पिता को अपराध करते हुए देखना चाहती हूँ,साथ में लीला बहन और कुसुम को भी उनके घर से लेना है और ये सब भी काली पहाड़ी की ओर निकल पड़े।।

संदीप,प्रदीप और शक्तिसिंह जी छुपते छुपाते काली पहाड़ी पहुँच गए,मोटर को थोड़ा दूर खड़ा करके,वे दबे पाँव अड्डे के पास पहुँच गए___
उधर एक गुफा में एक पीले रंग की छोटे से बल्ब की हल्की रोशनी हो रही थी और बेला एक खम्भे से बँधी थी,तभी वहाँ बेलबाँटम और आगे से खुली शर्ट में से झाँक रहे बालों वाले सीने को खुजाते हुए राका वहाँ पहुँचा___
राका को देखते ही बेला डर गई।।
डर क्यों रही है? मेरी रानी!! मै तो तेरी खातिरदारी करने आया हूँ,समझ तो तू गई ही होगी,राका बोला।।
भगवान के लिए मुझे छोड़ दो,बेला बोली।।
तुझे भगवान के लिए छोड़ दूँगा तो मेरा क्या होगा? हा....हा....भयानक सी हँसी हँसते हुए,राका बोला।।
और बेला उसके सामने रोने लगी ,गिड़गिड़ाने लगी लेकिन राका बेला के नज़दीक आता जा रहा था,तभी पीछे से किसी ने राका के सिर पर बड़े से पत्थर का वार किया और राका एक पल में ढ़ेर हो गया,संदीप को देखकर बेला रोते हुए उसके गले से लग गई,तब तक प्रदीप और शक्तिसिंह भी आ गए और बेला से इशारों में कहा कि चिल्लाती रहो,बचाओ....बचाओ...ताकि किसी को शक़ ना हो और बेला ने यही किया।।
और उस तरफ बेला के चिल्लाने की आवाज़ सुनकर नटराज खुश हो रहा था लेकिन विजय ,दयाशंकर और मंगला की जान निकली जा रही थी।।
तभी संदीप अकेले ही नटराज के पीछे पहुँचा लेकिन उसके गुण्डो ने संदीप को धर दबोचा।।
अच्छा बेटा! उस्ताद से उस्तादी! अभी तुम्हें ये सीखने में बहुत साल लगेंगें,नटराज से पंगा लेना इतना भी आसान नहीं हैं,नटराज बोला।।
तभी शक्तिसिंह और प्रदीप भी गुण्डो से भिड़ पड़े और संदीप ने अपने आपको गुण्डो से छुड़ा लिया और मारपीट शुरु कर दी,बेला ने पीछे से आकर पहले विजयेन्द्र की रस्सियाँ खोली फिर दयाशंकर,मंगला को भी उसने छुड़ा लिया,अब वहाँ का जो नज़ारा था वो देखने लायक था,काली पहाड़ी कुश्ती का अखाड़ा बन गई थी,जिससे जो बन पड़ा रहा था उसी को हथियार बनाकर गुण्डो को पीट रहा था,तभी पुलिस की जीप का शायरन सुनाई दिया,अब तो नटराज को लगा कि वो पकड़ा जाएगा और पुलिस के वहाँ पहुँचने से पहले उसने विजयेन्द्र के सिर पर पिस्तौल रखते हुए कहा___
अगर जरा भी हिलने की कोशिश की तो यही ढ़ेर कर दूँगा,अपने लोंगों से कहो कि रूक जाएं।।
तभी विजयेन्द्र ने चिल्लाकर सबसे रूकने को कहा,विजयेन्द्र की जान पर ख़तरा देखकर सब रूक गए,तब तक,मंजरी और अरूण भी हथकड़ी लेकर हवलदारों के साथ पहुँच गया।।
तभी नटराज ने अरूण से कहा___
खबरदार! इन्सपेक्टर अरूण! अगर कोई भी कारस्तानी करने की कोशिश की तो मैं शक्तिसिंह के भतीजे का भेजा उड़ा दूँगा।।
नहीं बाबूजी! आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगें,अरूण बोला।।
बाबूजी! तुम कौन होते हो मुझे बाबूजी कहने वाले? नटराज ने अरूण से पूछा।।
मैं आपका बिछड़ा हुआ बेटा! कन्हैया हूँ बाबूजी! जिसे आप बचपन में छोड़कर चले गए थे और यकीन ना होता हो तो ये देखिए लोकेट,जिसमें आपकी और माँ की तस्वीर थी,अरुण ने लोकेट खोलकर दिखाते हुए कहा___
नहीं तुम मुझे ऐसे बेवकूफ नहीं बना सकते,मैं इसे लेकर जा रहा हूँ और नटराज ने विजयेन्द्र से चलने के लिए कहा___
तब तक साधना,लीला ,मधु और कुसुम भी पहुंच गए थे,साधना ने ये तमाशा देखा तो बोली___
अब तो सब छोड़ दीजिए।।
मुझे पता है साधना कि तुम भी इन सबके साथ मिली थी,अब मैं किसी की भी नहीं सुनूँगा,नटराज बोला।।
और वो जैसे ही विजयेन्द्र की कनपटी पर पिस्तौल लगाकर आगें बढ़ा तो संदीप ने नटराज को पीछे से जोर का धक्का दिया और वो जमीन पर गिर पड़ा,अब तो नटराज का गुस्से से खून खौल उठा और उसने जमीन से गिरी पिस्तौल उठाकर संदीप पर चला दी लेकिन ये क्या सामने मंजरी आ गई____
संदीप ने मंजरी के पास जाकर उसके सिर को गोद मे उठाते हुए कहा___
मंजरी! तुमने ये क्या किया? क्यों मेरे लिए अपनी जान देने पर आमादा हो गई।।
मंजरी अटक अटक बोली,क्योकिं उसकी साँसें अब उखड़ रही थीं___
संदीप ! मैं तुमसे प्यार करती हूँ और मुझे पता है कि मैं तुम्हें कभी नहीं पा सकती इसलिए इसमे मेरा स्वार्थ था,मैने तो केवल अपने प्यार को बचाया है,तुम हमेशा कुसुम के साथ खुश रहो,बस यही इच्छा है मेरी और इतना कहते ही मंजरी ने आँखें मूँद लीं ये देखकर संदीप जोर से चीखा___
मंजरी....तुम ऐसे नहीं जा सकती,तभी कुसुम ने संदीप के कन्धे पर हाथ रखकर उसे दिलासा दिया___
और उधर नटराज ने दूसरी बार शक्तिसिंह के ऊपर पिस्तौल चलाते हुए कहा__
तू ही इस नाटक का कर्ता धर्ता है,तू भी ले।।
और वो गोली अरूण ने शक्तिसिंह को बचाते हुए अपने सीने पर लेली____
अब नटराज के हाथ काँपे,क्योंकि आज वर्षों बाद मिले बेटे को उसने गोली मार दी थी____
अब साधना से ना रहा गया और वो नटराज से बोली___
अब तो अपने पापों का प्रायश्चित कर लो,आज तुमने अपने बेटे को भी नहीं बक्ख्शा,जो आज इतने सालों बाद मिला था,तुम इंसान नहीं वहशी दरिंदें हो जिसकी इन्सानियत मर चुकी है।।
इतना सुनते ही नटराज,अरूण के पास बेटा.... चिल्लाते हुए आया___
बेटा...बेटा ...मुझे माफ़ कर दो।।
और ये सब देखकर संदीप ,मंजरी के मृत शरीर को छोड़कर अरूण के पास जा पहुँचा और बोला___
ये क्या किया तुमने?अरूण....!
अगर शक्ति अंकल को कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाता और फिर जब मेरी मंजरी चली गई तो मेरे जीने का भी कोई फायदा नहीं,शायद मेरे मरने के बाद मेरे बाबूजी को कुछ अकल आ जाएं,मैं भी अपनी मंजरी के पास जा रहा हूँ और इतना कहते ही अरूण के दिल की धड़कन बंद हो गई और उसका शरीर ठंडा पड़ गया।।
अब नटराज के पास सिवाय प्रायश्चित के कोई चारा नहीं था,उसने अपने सारे जुर्मों को कुब़ूल करके खुद को कानून के हवाले कर दिया,उसे उम्रकैद की सजा हुई।।
और दयाशंकर के ऊपर सालों से लगा विश्वासघात का कलंक अब मिट चुका था, वो अपने परिवार को लेकर अपने पुराने गाँव पहुँचा,जहाँ से उसने अपनी जिन्दगी का सफ़र शुरू किया था,उसका घर अब जर्जर हो चुका था,दीवारें गिर चुकी थीं,गाँव के पुराने लोगों ने उसे उसके परिवार के साथ देखा तो आश्चर्य हो उठे और तभी दयाशंकर की बेगुनाही का सूबूत देने पुलिस उसके साथ पहुँची थी,पुलिस ने गाँववालों को बताया कि दयाशंकर निर्दोष है,गाँव वालें ये जानकर बहुत खुश हुए ,दयाशंकर , मंगला और लीला से सबने माँफी माँगी,दयाशंकर ने सबको माँफ कर दिया और ये फैसला किया कि अब वो अपने परिवार के साथ इसी गाँव में ही रहेंगें।।
और उधर लीला,विजयेन्द्र,शक्तिसिंह भी अपने गाँव की हवेली में पहुँचे,उन्होंने में भी अब अपनी हवेली में रहने का ही फैसला किया।।
दयाशंकर ने विजयेन्द्र की शादी बेला के साथ कर दी, वो दोनों वापस उसी गाँव में चले गए अपनी अपनी नौकरी पर और कुसुम की शादी संदीप के साथ हो गई,मधु और प्रदीप तो अभी काँलेज में पढ़ रहे हैं,समय आने पर उनका भी ब्याह हो जाएगा।।

समाप्त____
सरोज वर्मा___
🙏🙏😊😊
पाठकों का बहुत बहुत धन्यवाद।।