विश्वासघात--भाग(१०) Saroj Verma द्वारा क्लासिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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विश्वासघात--भाग(१०)


साधना ने अपनी बेटी मधु से कहा कि पढ़ाई में ध्यान लगाएंगी तो काम आएगा,ये क्या किसी से जरा सी बहस हो गई तो तू उससे बदला लेने पर आमादा है, अच्छे घर की लड़कियों के ऐसे लक्षण नहीं होते,जैसे की तेरे हैं, तेरे बाप ने तुझे बहुत छूट दे रखी है इसलिए तेरे दिमाग़ साँतवें आसमान पर हैं,जिन्दगी ऐसे नहीं चलती जैसे कि तू चलाना चाहती है, फिर से कहती हूँ, सुधर जा !छोड़ दे ये लक्षण,नहीं तो कल को कुछ बुरा हुआ तो ये मत कहना कि माँ ने आगाह नहीं किया था और इतना कहकर साधना चली गई।।
मधु की माँ साधना ने इतना समझाया मधु को लेकिन मधु तो कुछ भी समझने को तैयार ना थी,उसे बस प्रदीप से जैसे तैसे करके बदला लेना था और उससे बदला लेने का उसने उपाय भी सोच लिया,उसने इस काम के लिए अपनी सहेलियों को भी मना लिया।।

और इधर संदीप और प्रदीप के कमरे पर___
भइया! घर से विजय भइया की चिट्ठी आई है,उन्होंने कुछ किताबें मँगाई हैं और माँ ने भी चिट्ठी में कहलवा भेजा है कि राशन और घी ले जाओ,बहुत दिनों से तुम दोनों गाँव भी नहीं आए हो,प्रदीप ने संदीप से कहा।।
तो ठीक है! कल ही गाँव चलते हैं, संदीप बोला।।
लेकिन भइया! मैं कैसे जा सकता हूँ, इम्तिहान नजदीक हैं, प्रदीप बोला।।
अच्छा तो ठीक है, मैं अकेले ही हो आता हूँ, कल सुबह विजय भइया की किताबें खरीदकर दोपहर तक निकल जाऊँगा,गाँव के लिए,संदीप बोला।।
यही ठीक रहेगा,भइया! प्रदीप बोला।।
और दोनों भाइयों के बीच ऐसे ही बातें होतीं रहीं.......

उधर शक्तिसिंह जी के बँगले पर उनके फार्महाउस से धनीराम आया .....
अरे,आओ....आओ...धनीराम!कहों कैसें आना हुआ?शक्तिसिंह जी ने धनीराम से पूछा।।
मालिक! मैं आपसे बहुत नाराज़ हूँ, सारे खेंतों को मेरे भरोसे छोड़ रखा है, कभी देखने भी नहीं आते कि वहाँ क्या हो रहा है, जिसको देखों वही मुझे उन खेतों का मालिक समझने लगा है,हूजूर! कभी तो अपने पग फार्महाउस में धर लिया कीजिए,महेश्वरी बिटिया भी ना जाने कबसे नहीं आई,धनीराम ने शक्तिसिंह जी शिकायत करते हुए कहा।।
हा....हा...हा..हा... शक्तिसिंह हँसते हुए बोले____
इतना गुस्सा धनीराम! ये तो अच्छी बात है ना कि तुम्हें ही हर कोई खेंतों का मालिक समझता है, शक्तिसिंह जी बोलें।।
अरे,मालिक! काहें पाप मा डारत हो हमका!आपका नमक खाके कैसे आपसे बेईमानी कर सकत हैं भला!धनीराम बोला।।
अब इतने सालों से तुम ही खेत सम्भाल रहें हो और मुझे पता है कि तुम कभी बेईमानी नहीं कर सकते,इसलिए तुम्हारे रहते चिंता नहीं रहती और भाई जल्द ही फार्महाउस देखने आता हूँ, शक्तिसिंह जी बोले।।
हाँ,और बिटिया को जरूर लेकर आइएगा, हमार मेहरारू शन्नो पूछत रही बिटिया के बारें मा,अब हम दोनों ठहरे बेऔलाद, दूसरे बच्चों को देखकर ही जी जुड़ा लेते हैं, धनीराम बोला।।
अरे,बिटिया तो डाक्टरनी बनके चन्दनपुर गाँव चली गई है, उसका आना तो मुश्किल है, लेकिन हाँ दूसरी बिटिया जरूर मिल गई है जिसका नाम कुसुम है, उसे लेकर आएंगे, शक्तिसिंह जी बोले।।
इ का कहत हो मालिक! हम कुछु समझें नाहीं, धनीराम बोला।।
और शक्तिसिंह ने दयाशंकर और कुसुम की सारी कहानी कह सुनाई,फिर कुसुम को आवाज देकर बुलाया और कुसम से बोले कि धनीराम काका को खाना खिलाओं।।
और कुसुम ने धनीराम काका को खाना खिलाया फिर धनीराम ने इसके बाद शक्तिसिंह से जाने की इजाज़त माँगी,शक्तिसिंह बोले कि वो अगले हफ्ते तक कुसुम और दया के साथ फार्महाउस आने की कोशिश करेंगें और धनीराम खुशी खुशी फार्महाउस चला गया।।

और इधर चन्दनपुर गाँव में____
स्कूल से छुट्टी होते ही विजयेन्द्र दवाखाने जा पहुँचा और महेश्वरी से बोला___
डाँक्टरनी साहिबा! आज कोई बहाना नहीं चलेगा,आज शाम को तैयार रहिएगा,
वो तो ठीक है मास्टरसाहब! लेकिन जाना कहाँ है? महेश्वरी ने पूछा।।
और कहाँ? मेरे घर! रात को माँ ने खानें पर बुलाया है, विजयेन्द्र बोला।।
लेकिन, आज ही क्यों, कुछ ख़ास है क्या? महेश्वरी ने पूछा।।
जी,माँ ने आज मेरी मुँहबोली मामी और उनके बेटे को बुलाया है खाने पर,उनका बेटा शहर से मेरी पाठशाला के बच्चों के लिए कुछ किताबें लाने वाला था,वही देने आएगा तो माँ बोली कि माँ बेटे को खाने पर बुला लो तो मैने माँ से कहा कि डाक्टरनी साहिबा को भी बुला लेते हैं ,माँ बोली ये तो और भी अच्छा रहेगा, विजयेन्द्र बोला।।
अच्छा तो ये बात है, ठीक है मैं शाम को तैयार रहूँगी, आप मुझे लिवा ले जाइएगा,महेश्वरी बोली।।
ठीक है तो मैं फिर शाम को आता हूँ और विजयेन्द्र इतना कहकर चला गया।।
शाम हुई और महेश्वरी तैयार होकर विजयेन्द्र के घर पहुँची, लीला ने महेश्वरी को देखा तो देखती रह गई, कहना तो चाह रही थी लेकिन कहते कहते रूक गई क्योंकि उसने सोचा कि ये तो इतने बड़े घर की बेटी है, ये बेला कैसे हो सकती है और फिर इसका नाम तो महेश्वरी है।।
महेश्वरी ने लीला को नमस्ते की और लीला ने आशीर्वाद दिया कि जीती रहो,हमेशा खुश रहो।।
कुछ ही देर में मंगला और संदीप भी विजयेन्द्र के घर पहुँच गए और संदीप ने जैसे ही महेश्वरी को देखा तो चौंककर बोला____
अरे,दीदी! आप यहाँ कैसे?
और तुम यहाँ कैसे,महेश्वरी ने पूछा।।
ये मेरी माँ हैं और यही मेरा गाँव है, गाँव घूमने आया था,संदीप ने जवाब दिया।।
और मैं तुम्हारे ही गाँव की डाक्टर हूँ, हैं ना अज़ब इत्तेफा़क,महेश्वरी बोली।।
हाँ,दीदी! सच में मैने तो कभी सोचा ही नहीं था कि आप मुझे यहाँ मिल जाएंगीं,संदीप बोला।।
हाँ,सच! मैने भी कभी नहीं सोचा था,कुछ रिश्ते ऐसे ही होते हैं, महेश्वरी बोली।।
लो जी! भाई बहन ने हमें तो भुला ही दिया,लगता है भूल गए कि हम भी यहाँ मौजूद हैं, विजयेन्द्र बोला।।
और ये सुनकर सब एक साथ हँस पड़े,घर में रौनक सी हो गई।।
और इधर मंगला भी वही सोच रही थी जो लीला ने सोचा था लेकिन दोनों की जुबान पर बात नहीं आ रही थी।।
कुछ देर बाद खाना शुरु हुआ___
घर के आम के अचार को देखकर तो महेश्वरी खुद को रोक ना पाई और चटखारे ले लेकर अचार का मज़ा लेने लगी,उसकी ऐसी हरकत देखकर संदीप बोला___
दीदी! अभी तक आपका लड़कपन गया नहीं।।
हाँ,बिल्कुल! मैं भी वही कहने वाला था लेकिन इसलिए नहीं कहा कि कहीं डाक्टरनी साहिबा खफ़ा ना हो जाएं, विजयेन्द्र बोला।।
मैं तो ऐसी ही हूँ, जिसको बुरा लगता हो तो वो भी अचार खाले,महेश्वरी बोली।।
और फिर सब हँसने लगे,सबको हँसता हुआ देखकर लीला बोली,आज घर ,घर जैसा लग रहा है, भगवान करें, ऐसे ही हमेशा इस घर में सबकी हँसी गूँजती रहें।।
खाना खाने के बाद ,सब कुछ देर तक बातें करते रहे,लेकिन महेश्वरी ने ना लीला को पहचाना और ना ही मंगला को,इतनों सालों में शायद वो सबकी शकल भूल गई थी।।
तभी संदीप बोला____
आइए ना दीदी! आँगन में बैठते हैं,कैसी चाँदनी रात है और तारें भी टिमटिमा रहें हैं, संदीप बोला।।
हाँ,सही कहते हो,अच्छा चलो ! महेश्वरी बोली।।
इतना कहते ही विजयेन्द्र अन्दर कोठरी से चारपाई निकाल लाया ,आँगन में डाल दी और सब बातें करने लगें,कुछ देर बाद संदीप बोला,अच्छा दीदी! मैं और माँ अब चलते हैं, बाद में मिलता हूँ आपसे,इतना कहकर संदीप और मंगला चले गए, इधर लीला रसोई समेटने में लग गई।।
आँगन में चारपाई पर अब महेश्वरी और विजयेन्द्र ही रह गए, आसमान को देखते देखते विजयेन्द्र बोल पड़ा____
उसे भी चाँदनी रात बहुत पसंद थी,मैं और वों ऐसे ही घंटों चाँद को निहारा करते थे,काश वो भी इस चाँद को आज भी निहार रही हो और चाँद उसे मेरा संदेशा पहुँचा रहा कि तुम अकेली चाँद को नहीं निहार रही हो,वो भी चाँद को निहार रहा है कहीं पर।।
अच्छा! कौन थी वो,लगता है आपके दिल के बहुत क़रीब थी वो,महेश्वरी ने कहा।।
हाँ,और इतनों सालों बाद भी मैं उसे भूल नहीं पाया,विजयेन्द्र बोला।।
अब वो कहाँ है? महेश्वरी ने पूछा।।
पता नहीं, अच्छा! छोड़िए, ये सब बातें,मैं भीतर से टार्च लेकर आता हूँ और आपको दवाखाने छोड़ आता हूँ, विजयेन्द्र बोला।।
तब तक लीला भी अपने रसोई के काम निपटाकर बाहर आँगन में आ गई और महेश्वरी से बोली___
बहुत अच्छा लगा बेटी! जो तुम हमारे घर आई,ऐसे ही आती रहना।।
मुझे भी बहुत अच्छा लगा,अच्छा!अब चलती हूँ ,महेश्वरी बोली।।
और दोनों खामोश़ से दवाखाने की ओर चल पड़े,शोर अगर सुनाई दे रहा था तो वो सड़क के कुत्तों का और झींगुरों का,अजीब सा सन्नाटा पसरा था दोनों ओर ,जैसे किसी अतीत ने आकर दोनों के मुँह बंद कर दिए हों और कुछ ही देर में दोनों दवाखाने पहुँच गए।।

और काँलेज मे संदीप को किसी ने पीछे से आवाज लगाई___
मिस्टर प्रदीप! जरा सुनिए तो...
प्रदीप ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास ना हुआ क्योंकि उसे आवाज़ देने वाली मधु थी।।
जी कहिए,मोहतरमा!आज किस बात को लेकर जंग लड़ना चाहतीं हैं, प्रदीप ने पूछा।।
आप तो मुझे खामख्वाह में शर्मिंदा कर रहें हैं, मधु बोली।।
अरे,भला किसकी जुर्रत है जो आपको शर्मिंदा कर सकें,प्रदीप बोला।।
मैं तो अपनी उस दिन की गुस्ताखी के लिए आपसे माफ़ी माँगना चाहती थीं, ख्वामख्वाह उस दिन मेरी वज़ह से इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा हो गया,मैं आपसे उसी वक्त़ माँफी माँग लेती तो बात इतनी बढ़ती ही नहीं, मधु बोली।।
चलिए !कोई बात नहीं,मोहतरमा! देर आएं ,दुरूस्त आएं,प्रदीप बोला।।
तो इसका मतलब़ है कि आपने मुझे माफ़ कर दिया,मधु बोली।।
हाँ,सारी गलती आपकी भी नहीं थीं, मैनें भी तो आपकी मोटर पंचर की,प्रदीप बोला।।
अच्छा तो अब मैं चलती हूँ और इतना कहकर मधु चली गई लेकिन वो अब रोज ही प्रदीप को टोकती और उससे कुछ देर जुरूर बातें करती,दो तीन दिनों की मुलाकात में ही उसने प्रदीप से काफी़ दोस्ती बढ़ा ली और यही वो चाहती थी,अच्छेपन का नाटक करके वो प्रदीप से बदला लेने के लिए दोस्ती करना चाहती थीं और काफ़ी हद़ तक वो अपने मन्सूबों में कामयाब भी हो गई।।

और उधर शक्तिसिंह जी ने फार्महाउस जाने का कार्यक्रम बनाया और अपनी इम्पाला में कुसुम और दया के संग फार्महाउस की ओर निकल पड़े,उन्होंने सोचा कि सुबह नाश्ता करके सब निकल जाएंगें, दिनभर खेंतों का मुआयना करेंगें और रात भर रूककर दूसरें दिन सुबह सुबह वापस आ जाएंगे।।
कुसुम भी बहुत खुश थी,उसने कभी खेंत नहीं देखें थे,हमेशा शहर की गन्दी गलियों और सँकरी सी कोठरी में पली बढ़ी थी,उसके लिए तो जैसे खेत में जाना सपने जैसा था।
एकाध घंटे के सफ़र के बाद वो सब शहर के बाहर स्थित फार्महाउस में पहुँच गए, धनीराम ने देखा तो बहुत खुश हुआ और शन्नो को आवाज़ लगाता हुआ बोला___
अरी भाग्यवान! सब जने आ गए है, चाय का इंतज़ाम करो और हाँ ठहरो,अभी हम ताजा दूध दोह देते हैं, ताजे दूध की ही चाय बनाना और जरा आलू की पकौड़ियाँ भी तल लेना ,चाय के साथ अच्छी लगेंगीं।।
हाँ,जी! अभी लाते हैं, घूँघट की आड़ में से शन्नो बोली।।
सबको चारपाई पर बैठाकर धनीराम दूध दोहने चला गया....
फार्महाउस में दो तीन बड़े बड़े कमरें हैं, सबकुछ शानदार तरीकें का बना हुआ है लेकिन धनीराम सिर्फ़ उसकी साफ़ सफ़ाई और देखरेख ही करता है, वो सर्वेन्टक्वार्टर में शन्नो के साथ रहता है और वहीं पर उसने अपनी कच्ची रसोई बना रखी है, जहाँ शन्नो खाना पकाती है,वो शक्तिसिंह को देवता समान मानता है क्योंकि जब धनीराम का साथ सबने छोड़ दिया था तो शक्तिसिंह ने उसे उसके बुरे वक्त में सहारा दिया था।।
कुछ ही देर में शन्नो शुद्ध दूध की चूल्हे पर बनी अदरक वाली चाय कुल्हड़ो में लेकर आ पहुँची, साथ में गरमागरम आलू की पकौड़ियाँ भी थी सिलबट्टे में पिसी तीखी हरी धनिए की चटनी के साथ, खाकर सबको बहुत आनन्द आया।
कुछ देर में शन्नो ने दोपहर का खाना तैयार किया,जिसमें उसकी मदद कुसुम ने भी करवाई,खाने में मूँग की दाल ,लौकी की सब्जी,प्याज का सलाद,हरी चटनी और चूल्हें में सिकी घी मे सराबोर रोटियाँ थी,सबने बहुत मन से खाना खाया, कुसुम को बहुत मज़ा आ रहा था,वहाँ की हरियाली ने उसका मन मोह लिया था।।
शक्तिसिंह खाना खाकर कुछ देर नीम के पेड़ की छाँव में बिछी चारपाई पर आराम करके सबके संग खेंतों का मुआयना करने चल पड़े,थकहार कर शाम तक लौटे,सबने पहले हैंडपंप पर हाथ मुँह धोएँ और शाम की चाय तैयार थी चावल के पापड़ो के साथ,चाय पीकर फार्महाउस के बगीचें से कुसुम ने कुछ फल तोड़े,जैसे कि नींबू,अनार और भी बहुत कुछ, बोली ये सब शहर ले जाएंगी,रात हुई सबने रात का खाना खाया और आराम करने चले गए।।

और उधर काँलेज में मधु ने प्रदीप से गहरी दोस्ती कर ली तो प्रदीप को उस पर भरोसा हो गया और वो प्रदीप से बोली कि आज उसका जन्मदिन है और उसे आना ही पड़ेगा, नहीं तो वो बुरा मान जाएंगी और जन्मदिन की पार्टी उसके डैडी के फार्महाउस में है जो कि शहर के बाहर है, तुम चिंता मत करो मेरी सहेली वीना को तुम शाम सात बजे,सुनहरी चौक पर मिलना वो अपनी मोटर में तुमको फार्महाउस पहुँचा देगी और प्रदीप ने उसकी बात मान ली,लेकिन उसे नहीं पता था कि वो कौन सी मुसीबत में फँसने वाला है और संदीप भी अभी तक गाँव से नहीं लौटा था,इसलिए प्रदीप से कोई पूछने वाला भी नहीं था कि कहाँ जा रहे हो? कब तक लौटेगें?

क्रमशः___
सरोज वर्मा____