लेख
स्वास्थ्य मानव की एक महत्त्व पूर्ण आवश्यकता है
डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना
जीवन की अन्य मूल आवश्यकताएं रोटी, कपडा,मकान ,शिक्षा ,रोजगार,सम्मान ,सुरक्षा आदि हैं ।
मानव जीवन व पशु जीवन में मुख्य अंतर यही है कि पशु मात्र वर्तमान में ही जीवित रहते हैं व प्रकृति पर पूर्ण निर्भर रहते हैं।वे मात्र भोजन निद्रा भय मैथुन तक ही सीमित रहते हैं,जबकि मानव अपने अतीत से सबक लेकर ,वर्तमान को सुखद बनाता है,व भविष्य में प्रगति के प्रति प्रयत्न शील रहता है। वह प्रकृति पर निर्भर तो है पर प्रकृति को निरंतर अपने अनुकूल परिवर्तित करने के लिये संघर्ष करता है ,यही मानव सभ्यता की कहानी है ।स्वास्थ्य की अवधारणा भी निरंतर परिवर्तित होती रहती है ।
स्वास्थ्य को हम सब साधारणतया डॉक्टरों –वैद्यों की चिंता का विषय समझते हैं। वास्तव में यह सारे मानव समाज के लिये ही अत्यंत महत्त्व पूर्ण है। लोक कहावतों में इसे रेखांकित किया है स्वस्थ वह है –‘जिन घर वैद्य न जाएं ‘विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू. एच. ओ. World Health Organisation )के अनुसार -
स्वास्थ्य शारीरिक मानसिक व सामाजिक पूर्ण आनंद की अवस्था है । मात्र रोगों की अनुपस्थिति ही नहीं।
उपरोक्त परिभाषा मे महत्त्व पूर्ण है ‘पूर्ण आनन्द की अवस्था ‘
जीवन का मूल मंत्र है संतुलन व नियमितता ।
आइए इन्हें थोडे विस्तार से देखें
शारीरिक स्वास्थ्य --
अच्छा रूप रंग ,साफ त्वचा ,चमकती आंखें ,स्निग्ध बाल ,मधुर सांस ,दृढ मांस पेशियां ,न चर्बी चढा ,न मोटा ,न ही दुबला पतला , खूब भूख ,गहरी नींद ,शरीर के अंग पूर्ण क्षमता सामंजस्य से कार्य रत, बालकों/बालिकाओं ,युवकों/युवतियों में आयु के अनुसार शारीरिक विकास व वृद्धि।
मानसिक स्वास्थ्य ---
आंतरिक द्धन्द्ध से मुक्ति ,अकारण घमंड व आत्म ग्लानि से मुक्त ,परिस्थितियों से समन्वय में सक्षम, आलोचना सहन कर सके व दूसरों की भावनाओं की भी समझ।,व्यवहार में उत्तेजना ,भय ,क्रोध,ईर्ष्या ,निराशा से प्रभावित होकर चालित न हो वरन् समस्याओं को सही परिप्रेक्ष्य व तथ्यों की रोशनी में सुलझाने का प्रयास करे । एक वाक्य में कहें तो श्रीमद् भगवद् गीता के अनुसार ‘स्थिति प्रज्ञ हो’।
सामाजिक स्वास्थ्य ----व्यक्ति के स्वास्थ्य की समझ उसके सामाजिक ,सांस्कृतिक व आर्थिक संदर्भों से अलग करके नहीं सुलझाई जा सकती क्योंकि व्यक्ति परिवार व समाज का सदस्य है।
इस प्रकार प्रकार उपरोक्त स्वास्थ्य प्राप्ति के प्रावधान भी वैज्ञानिकों ने सुझाए हैं । इनमें से कुछ इस प्रकार हैं -----
1---स्वास्थ्य उन्न्यन ----( Health Promotion)
2---विशेष सुरक्षा (Specific Protection )
3----रोगों की प्रारंभिक अवस्थ में ही पहिचान व इलाज (Early Diagnosis and treatment)
4---रोग बढ जाने पर अपंगता की रोकथाम(DisabilityLimitation)
5--- अपंग हो जाने पर पुर्नवास (Rehabilitation)
इन सब पर थोडी गहराई से विचार करें ------
1-----स्वास्थ्य उन्नयन---- इसमें किसी विशेष रोग की बात नहीं है वरन् व्यक्ति व समाज के सारे ही सदस्यों की शारीरिक शक्ति व स्वास्थ्य में प्रगति व उसकी जीवन पद्धति में गुणात्मक परिवर्तन लाना है। साथ ही वातावरण में श्रेष्ठतर पर्यावरणीय सामाजिक सुधार लाना है ।
कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार हैं -----
शुद्ध पेय जल एवं अन्य दैनिक आवश्यकता हेतु पर्याप्त जल की मात्रा
मल विसर्जन के स्वच्छ स्थान
गन्दे पानी का निष्क्रमण
संतुलित ,पौष्टिक,पर्याप्त व साफ भोजन बनाने व खाने के दोनो स्थान स्वच्छ हों
मक्खी, मच्छर से बचाव
साफ हवादार मकान
शारीरिक स्वच्छता की सुविधाएं,जानकारी ,आदतें
शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, यौन शिक्षा
विवाह की काउंसलिंग
नशा मुक्ति
2—विशेष सुरक्षा(Specific Protection)
इसमें समाज की विभिन्न् बीमारियों से विशेष सुरक्षा की बात है जैसे ---
टीकाकरण--- जैसे पोलियो महामारी के प्रति टीका करण अभियान ,त्रिमुखी टीका –जो काली खांसी, टिटेनस,व गल घेटू नामक बीमारियों की रोक थाम के लिये लगाए जाते हैं।खसरा बीमारी के टीके ,वर्तमान में कोरोना नामक महामारी की रोक थाम के टीके ।
विशेष तत्वों का भोजन में प्रावधान ---जैसे गल ग्रह की रोकथाम में आयोडीन युक्त नमक,खून में लौह तत्व की कमी नामक एनीमिया रोग में व उसकी रोकथाम के लिये विशेष कर गर्भवती महिलाओं में आयरन की गोलियों का वितरण ।
मशीनों से दुर्घटना से बचाव के लिये कारखानों में विशेष प्रावधान
वाहन दुर्घटना से बचाव हेतु सख्त टेफिक व्यवस्था
नशा मुक्ति आंदोलन
3 बीमारी की जल्दी पहिचान व इलाज(Early Diagnosis and Treatment)___
ऐसे बहुत से रोग हैं जिनका यदि शुरूआत में ही पता लगा लिया जाए तो इलाज ज्यादा कारगर होगा बजाय इसके कि उनका असर बढ जाए जैसे क्षय रोग,कुष्ठ रोग,रोहे आदि ।अंग विशेष या शरीर में अपंगता या गंभीर नुकसान पहुंचा पाये इसके पहले ही रोग की डॉक्टरी जांच से पहिचान कर न सिर्फ रोगी की पीडा ,क्षति व जान बचाई जा सकती है वरन् उस रोग से अन्य व्यक्ति भी प्रभावित होने से बच जाएंगे ।
4 अपंगता की रोकथाम ---(Disability Limitation)__
जैसे पोलियो उन्मूलन अभियान से अपंगता में कमी आई
आंखों के मोतिया बिंद के शल्यक्रिया ऑपरेशन से अंधत्व में कमी ।
स्कूल में बालक /बालिकाओं की आंखों की जांच से उन्हें चश्मा प्रदान करने से दृष्टि बाधा से मुक्ति, चश्में बांट कर उनकी परेशानी दूर करना
अपंगों को कृत्रिम हाथ पैर प्रदान करना ।
मनो वैज्ञानिक चिकित्सा से उनकी निराशा दूर करना ।
5 पुर्नवास (Rehabilitation)_
कार्यक्षमता में कमी को सहायक साधनों से दूर करना
नजर के चश्मे
बैशाखी
नकली हाथ, पैर
तीन पहिये की साईकिलें
विशेष व्यवसाय प्रशिक्षण
सामाजिक व आर्थिक पुर्नवास के लिये रोजगार प्रदान करना ।
मनोवैज्ञानिक चिकित्सा आत्मविश्वास जगाना ।
;क्या कारण है कि स्वास्थ्य सबकी पहंच में नहीं
;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;;
स्वास्थ्य के अवरोध के मुख्य कारण हैं
गरीबी तद्जनित बेरोजगारी ,अर्धबेरोजगारी ,कुपोषण,अशिक्षा अप्रिशिक्षण,अस्वच्छ वातावरण ,अंधविश्वास ,भाग्यवादी होना ,अर्कमण्यता या परनिर्भर व्यक्तित्व ,रोगों का आक्रमण ,निराशा नशे की प्रवृत्ति, अपराध में उतरना, आर्थिक संकट।
गरीबी ---
यह एक ऐसी स्थिति है जो लोगों को संतुलित भोजन आवश्यक कपडे शिक्षा पारिवारिक जीवन से वंचित कर देती है। गरीबी से सीधे सीधे कोई नहीं मरता पर गरीबी उसे संतुलित भोजन , शौच के उचित स्थान ,गंदे पानी के निकास की व्यवस्था ,हवादार मकान ,साफ कपडे ,स्वास्थ्य शिक्षा, व आवश्यक चिकित्सा से वंचित कर उसे कुपोषित व कीटाणु जनित रोगों का वाहक बना कर उसे मृत्यु द्धार तक पहुंचा देते हैं । गरीबी यहीं तक नहीं रूकती, वह व्यक्ति में मानसिक तनाव ,निराशा ,नशे के गहरे अंध कूप में धकेल देती है व समाज में हिंसा व अपराधों को बढावा देती है ।मानव जाति का भविष्य बच्चों पर निर्भर है और बच्चे निर्णय लेने में अक्षम व गूंगे होंते हैं । प्रतिवर्ष अविकसित देशों में लगभग 12 -15 लाख बच्चे अपनी पांचवी वर्ष गांठ नहीं मना पाते ,जो बच भी जाते हैं वे कुपोषित व रोगी होते हैं । प्रत्येक परिवार के लिये बच्चे अत्यंत प्रिय होते हैं ,परंतु सभी को पर्याप्त संतुलित भोजन ,जरूरत व मौसम के अनुसार कपडे ,समय पर आवश्यक चिकित्सा सुविधा,घर व स्कूल में प्यार भरा माहौल मिले यह जरूरी नहीं है। भारत में पोषण विशेषज्ञ डा.गोपालन के अनुसार 1957 से 1978 तक बालक/बालिकाओं की उंचार्इ और वजन में कोई सुधार नहीं दिखाई दिया।आपके अनुसार कुपोषण मात्र शारीरिक वृद्धि पर ही बुरा असर नहीं डालता वरन् उसके मानसिक विकास को ऐसी क्षति पंहुचाता है कि बाद में पोषण का स्तर ठीक हो जाने पर भी पूरी नहीं की जा सकती ।
अशिक्षा----
अधिकतर गरीबी के कारण बहुत से लोग शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाते ,हमारे देश में सम्पूर्ण आडम्बर और प्रचार के बावजूद शिक्षा सर्व सुलभ नहीं है। यदि आप एक समृद्ध और खाते पीते माता पिता हैं,तो आप अपने बच्चे को स्कूल भेजना चाहेंगे । कम से कम पन्द्रह साल की आयु तक वह स्कूल जाएगा व आप पर निर्भर रहेगा ,एवं शिक्षा में आपको धन खर्च करना पडेगा । परन्तु वह यदि एक गरीब आदमी का बेटा है ,तो वह मां बाप के लिये आर्थिक वरदान होता है ।पांच सात वर्ष के बच्चे होटल में काम करते मिलते हैं । गांव में बकरियां चराते मिलते हैं। कंधे पर गुब्बारे बेचते मिलते हैं ,वे स्कूल नहीं जाते । सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है,स्कूल भी नियमित नहीं खुलते व शिक्षक मात्र खाना पूरी करते हैं ।अभागा शिशु यदि लडकी है तो स्थिति और भी दुर्भाग्य पूर्ण है। निम्न मध्यम वर्ग तक में उन्हें मात्र काम चलाउ शिक्षा दी जाती है,वैज्ञानिक व तकनीकी शिक्षा के लिये लडकों को ही प्राथमिकता दी जाती है ।
दूसरे शिक्षा से हमारे यहां अर्थ मात्र व्यक्ति को सही नौकरी पाने में सक्षम बनाना होता है ।
शिक्षा का व्यक्तित्व निर्माण में,व्यक्ति स्वयं व अपने वातावरण को पहिचाने परिस्थितियों के विश्लेषण में सक्षम हो,ऐसी वैज्ञानिक शिक्षा की ओर सरकार व समाज का रूझान नहीं है। अवैज्ञानिक व अंधविश्वास युक्त शिक्षा हमारे समाज में तनाव ही बढाती है ।साम्प्रदायिक दंगों का नेतृत्व देश में तथाकथित शिक्षित लोग ही कर रहे हैं ।
अंधविश्वास ----
ऐसे विश्वास जिनका कोई तर्कसंगत आधार न हो अंधविश्वास कहलाते हैं ,जैसे बहुत सी बीमारियों का कारण भूत प्रेत आदि मानना ,झाड फूंक करवाना ,कुछ लोग प्राचीन परम्पराओं की दुहाई देकर किसी लाभ प्रद बात को भी नहीं मानते ।जैसे –खसरा के बारे में जानकारी होते हुए भी रोगी शिशु को घर से बाहर निकालने में भय के कारण डाक्टर से परामर्श लेने में संकोच जिससे कई बार बच्चे की हालत गम्भीर हो जाती है । गम्भीर रोगों की चिकित्सा के बजाय दिनाई डलवाने में विश्वास जिससे कई बार रोगी की हालत बिगड जाती है।
नवजात (फौरन पैदा हुआ बच्चा ) को प्रसव के बाद मां का दूध पिलाने के बजाय बकरी का दूध, गुड, शहद देना रोकने व समझाने पर भी न मानना ।
शिशु की सांस जोर से चलने पर (इसे स्थानीय भाषा में पलरियां चलना कहते हैं )बच्चों को गर्म लोहे से दागा जाता है (डबना रखना )
अंधविश्वास की उत्पत्ति अज्ञान व अटकल से होती है ,पर जब ये समाज को जकड लेते हैं, तो व्यक्ति इनसे भयभीत रहता है। जब सभी लोग कह रहे हैं, तो सच ही होगा के आधार पर स्वीकार कर लेते हैं, पर उससे जो कष्ट या हानि होती है, उसे लोक निंदा व देवताओं की नाराजी के भय के कारण व्यक्त नहीं करते ।
फिर हमारे देश के बहुत से गरीब मां बाप को जो गरीब व अशिक्षित भी होते हैं व परिस्थतियों के दास होते हैं उन्हें बीमारी के कारण कुपोषण व अस्वच्छता इत्यादि की वैज्ञानिक जानकारी भी नहीं होती। उनकी पंहुच मात्र ओझा तक होती है या झोला छाप अप्रशिक्षित डाक्टर तक जो उनसे मधुर व्यवहार तो करते हैं पर उनकी निगाह उनकी जेब पर होती है ।प्रशिक्षित उंची डिग्री धारी डाक्टर उनकी पहुंच से दूर कस्बों या बडे शहरों में रहते हैं फिर उनकी फीस भी उंची होती है ।
स्वास्थ्य पाने का आखिर कोई उपाय है?
अस्वास्थ्य का सबसे प्रमुख व गम्भीर कारण है गरीबी
दूसरा तद्जनित कारण हैअशिक्षा ,अंधविश्वास
गरीबी दूर करने का सबसे सरल उपाय है व्यक्ति को रोजगार दिलाना ।यदि व्यक्ति को रोजगार प्राप्त होऔर उसे वर्ष के अधिकतर समय रोजगार मिले । उसकी आवश्यकता की वस्तुओं के मूल्य और उसकी मजदूरी में तर्कसंगतता हो वस्तुओं की उपलब्धता हो तो व्यक्ति का समाजिक आर्थिक स्तर बढाया जा सकता है । इन समस्याओं का समाधान वैज्ञानिकों के अनुसार तीन शब्दों में हो सकता है ।Redistribution Of Resourses वस्तुओं का पुर्नवितरण ,तात्पर्य है , साधनों का उचित मूल्य पर लोगों को उपलब्ध कराना और लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना ताकि वस्तुओं तक उनकी पहुंच हो ।यदि साधन सीमित हों तो उनका न्यायिक वितरण गरीबी की स्थिति में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला सकता है।
आजकल पश्चिम में विकास बिना रोजगार में बढोतरी के हो रहा है। विकास की यह अवधारणा भारत जैसे देश में अपनाए जाने पर अपने विनाशकारी लक्षण अभी से दर्शा रही है ।हमें गांधी की ओर लौटना होगा ,विशाल जनशक्ति द्धारा उत्पादन न कि पश्चिमकी अवधारणा विशाल स्वयंचालित मशीनों द्धारा उत्पादन ।गांधी के विचार को कार्य में परिणित करके चीन ने अपने यहां चमत्कार कर दिया।गरीबी हटाने के लिये एक और जरूरी उपाय है भूमि सुधार ।खेती के मशीनीकरण से भूमिहीन खेत मजदूर बेकार हो गये हैं ।और कारखानों द्धारा उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण से परम्परागत ग्रामीण करीगरों /दस्तकारों के उत्पादन आर्थिकरूप से लाभकारी नहीं रह गए हैं ।इससे ग्रामीण जनसंख्या नगरों की ओर पलायन करती है जहां गन्दी बस्तियों की संख्या में वृद्धि होती है ।नगरों में भी रोजगार न होने से अपराधों में वृद्धि होती है । गांवों के परम्परागत औजारों साधनों को आधुनिक वैज्ञानिक तकनीक से जोड कर उन्हे लाभकारी बनाया जा सकता है ग्रामीण नौजवानों को उसका प्रशिक्षण दिया जा सकता है उन्हें बैक से पूंजी उपलब्ध कराई जाए व प्रारंभ में बाजार उपलब्ध कराया जाए तो परिवर्तन लाया जा सकता है । स्वास्थ्य समस्याओ का एक महत्त्व पूर्ण कारण कुपोषण है कुछ मूल भूत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए तो बेहतर परिवर्तन संभव है ।
शुद्ध पेयजल ----
नगरों से दूर ऐसे गांवों में जहां पेय जल के स्रोत न हों लोग नदी या अन्य अशुद्ध स्रोत से पानी लेते हैं ।सबको शुद्ध पेय जल उपलब्ध कराने की आजकल सबसे प्रचलित प्रमुख साधन हेन्ड पम्प है । पर लगे हुए हेन्ड पम्पों के खराब होने पर सुधारने का या तो स्वयं ग्रामवासियों को प्रशिक्षण दिया जाए या तकनीकी कर्मचारियों की टीम हो जो उन्हें निरंतर चालू रख सके ।रखरखाव की व्यवस्था न होने पर लोग हेन्ड पम्प खराब होने पर पिछले अशुद्ध जल स्रोत का इस्तेमाल करने लगेंगे और बीमार पडेंगे । अन्य दैनिक कार्यों रसोई,कपडे व बर्तन धेाने,नहाना ,पशुओं को पीने व नहाने को पानी ,सफाई व अन्य कार्यों को पानी की उपलब्धता पर्याप्त हो ।
गंदे पानी के निकास की घर के बाहर उचित व्यवस्था हो पानी घर के बाहर गड्ढे मे इकट्ठा न होता रहे या गली में फैलता न रहे ।जिसमें मच्छर मक्खी इकट्ठे होते हैं पनपते हैं गंदगी सडती है बच्चे व जानवर खेलते हैं जो रोगों के फैलाने का कारण बनता है ।अत: सोख्ता गड्ढा या नालियों की व्यवस्था हो केवल नालियों का निर्माण मात्र पर्याप्त नहीं है उनकी नियमित सफाई की व्यवस्था हो ।
शौच के लिए व्यवस्था ----इस इक्कीसवीं सदी में भी हमारे बहुत सारे ग्रामीण,कस्बे की बस्ती व नगरों में रेल लाईन के किनारे खुले में मल त्याग करते देखे जा सकते हैं । खुले में मल विसर्जन से मल पर मक्खी बैठती है वही उड कर बाद में भोजन पर बैठती है जो रोगों का कारण बनता है । बच्चे जब खेलते हैं तो सूखे मल की मिली हुई धूल उन के शरीर पर लगती है जो रोगों का कारण बनती है । अत:यदि हो सके तो घर घर में फ्लश लेटिन का निर्माण कराया जाए यहीं भारत में वर्तमान में शासन की मंशा भी है सामूहिक सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण हो फ्लश सुविधा हो उनकी नियमित सफाई रखरखाव हो ।खुले में शौच प्रतिबंधित हो।
प्रसव व गर्भवती महिलाओं की देखभाल के लिये प्रशिक्षित दाईयों व प्रशिक्षित महिलाओं की व्यवस्था हो वर्तमान में शासन द्धारा आशा पद सृजित कर उन्हें प्रशिक्षण दिया है उन्हें सशक्त बनाया जाए जहां तक संभव हो प्रसव अस्पताल में ही किये जाएं जहां प्रशिक्षित डाक्टर व नर्सों की व्यवस्था हो ।
संक्रामक रोगों से रक्षा के लिये टीकाकरण की नियमित प्रभावी निशुल्क या कम कीमत की व्यवस्था जो लोगों की पहुंच में हो गांव गांव टीकाकरण केन्द्र हों जिनका प्रचार हो लोगों को मालूम हो ।
क्यूबा के राष्टपति फिडेल कास्टो से जब देश में डाक्टरों की व्यवस्था के बारे में प्रश्न किया गयातो उन्होने कहा –‘ हां हम चिकित्सक की व्यवस्था हर जहाज ,हर कारखाने ,हर मोहल्ले हर गांव में करेंगे ,तब उनका मतलब जन स्वास्थ्य रक्षक जैसे ही किन्हीं प्रशिक्षित व्यक्तियों से था।
स्वास्थ्य शिक्षा -----सारी ग्रामीण जनता के बीच नियमित रूप से स्वास्थ्य जागरूकता अभियान चलाना , ताकि वे अपनी स्वास्थ्य समस्याओं को उनके कारणों सहित समझ सकें व उनके समाधान हेतु प्रयास रत हों ,स्थानीय राजनैतिक नेतृत्व ,सामाजिक कार्य कर्ताओं,व जागरूक ग्रामीणें को सहभागी बनाना ,इसके लिये उन्हें जानकारी प्रदान करना जैसे बाल विवाह क्यों नहीं , महिला को 18 वर्ष से कम उम्र में पहला गर्भ से हानि ,जल्दी जल्दी गर्भ से मां के स्वास्थ्य पर प्रभाव ,परिवार कल्याण क्यों और साधन ,कुपोषण कितानी गम्भीर समस्या ,संक्रामक रोग , गुप्त रोग , क्षय रोग , कुष्ठ रोग आदि की जानकारी देना , शंकाओं और भय का निवारण करना सुविधाएं उपलब्ध कराना, कहां उपलब्ध होगीं इसकी जानकारी देना ।
स्वास्थ्य संबंधी रूढियों ,अंधविश्वासों के बारे में चर्चा करना उनकी हानियो से अवगत कराना ,विकल्पों के बारे में जागरूक करना ,पर लोक विश्वासों के बारे में अपमान जनक चर्चा से बचना ,उनका मजाक न उडाना उन्हें हीन बोघ व निराशा से सावधानी पूर्वक बचाना ।जैसे स्तनपान के बारे में भ्रांतियों का निवारण,उसके नवजात को लाभ के बारे में बताना ।गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माता भोजन में हरी सब्जियों की अनिवार्यता के बारे में बात करना व समाज की महिलाओं का संकोच दूर करना ।यह एक धैर्य पूर्ण कार्य है स्वयं स्वास्थ्य कार्यकर्ता महिलाएं उदाहरण प्रस्तुत करें तो बेहतर होगा ।
उपरोक्त बातें मात्र कल्पना ही नहीं हैं । ब्रिटेन के प्रांत इगंलैण्ड एवं वेल्स में गलघेांटू ,कुकर खांसी ,व खसरा माता से पीडित रोगियों व रोगों से मृत्यु में कमी लगभग100 वर्ष पहिले से मात्र स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धि व जनता की आर्थिक सामाजिक उन्नति से कम होना प्रारंभ हो गई थी जब कि इन बीमारियों के इलाज की एन्टीबायोटिक दवाएं व टीके लगभग 50 वर्ष पहले ही खोजे जा सके ।
स्वास्थ्य के लिये आवश्यक है
पोषण –पर्याप्त मात्रा मे संतुलित भेाजन जिसमें सारे पौष्टिक तत्व हों जो सफाई से बनाया जाए व खाया जाए
स्वच्छ पीने का पानी अन्य कार्यों के लिये पर्याप्त पानी
गंदे पानी को निकालने की व्यवस्था ताकि आसपास इकट्ठा न हो
शौच की स्वच्छ व्यवस्था
शरीरिक स्वच्छता
जीवन स्तर में सुधार
इन बातों के लिये अस्पतालों व डाक्टरो की कोई जरूरत नहीं
ये बातें यदि लोगों को उचित रोजगार की व्यवस्था हो तो व खाने पीने की चीजें जुटा लेंगे ।
हां शासन ,ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं का सहयोग जरूरी है ताकि पूरे गांव व नगर की व्यवस्था हो सके । और लोगों तक जानकारी पहंचाना जरूरी है ।
इसके लिये देश के शासकों में राजनैतिक इच्छा शक्ति जरूरी है
सामाजिक कार्यकर्ता व संस्थाएं अपना कर्यक्षेत्र मात्र शहरों तक सीमित न रखकर व मात्र भडकाउ सम्मान समारोहों व कुछ स्वास्थ्य शिविरो के आयोजन को ही इति श्री न समझ कर यदि कुछ बुनियादी कार्य करें तो देश की तस्वीर बदल सकती है
व्यक्तिगत स्वास्थ्य की देखभाल व नियमित टीकाकरणव दवाएं इनमें भी मात्र स्वास्थ्य विभाग वचिकित्सकों केद्धारा अभियान सफल नहीं होगा जब तकजन सहयोग न हो
जीवन पद्धति में परिवर्तन
इसमें हमें नशा मुक्ति के लिये प्रयास ,युवकों में शारीरिक कसरत व श्रम के प्रति लगाव बढाना द्व स्वास्थ्य शिक्षा व सामाजिक जागरूकता के द्धारा संभव है ।
सामाजिक व राजनैतिक परिवर्तन के लिये सभी का सहयोग अनिवार्य है। और जरूरी है सामाजिक आर्थिक समानता के लिये निरंतर संघर्ष एक लम्बी लडाई।
00000