स्वतन्त्र सक्सेना के विचार - 3 बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा पुस्तक समीक्षाएं में हिंदी पीडीएफ

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स्वतन्त्र सक्सेना के विचार - 3

समीक्षा उपन्‍यास

एक और दमयन्ती

लेखक श्री राम गोपाल भावुक

समीक्षक स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

श्री राम गोपाल जी भावुक का यह आठवां प्रकाशन है।मातृ भारती प्रकाशन से उन का ‘एक और दमयंती’ उपन्‍यास धरावाहिक रूप से प्रकाशित हो चुका है ।उनके इसके पूर्व सात उपन्‍यास प्रकाशित हो चुके हैं ।मध्‍य प्रदेश के ग्‍वालियर जिले के डबरा नगर के निवासी श्री भावुक जी के उपन्‍यासों में आंचलिक पृष्‍ठभूमि रहती है। वे ग्रामीण पीडाओं को स्‍वर देते हैं । आंचलिक रंग व स्‍थानीय पंच महली बोली उनकी कथाओं में बोलती सी लगती है ।उनका वर्तमान उपन्‍यास ‘एक और दमयन्ती ‘ जैसा कि नाम से ही लगता है ,एक नायिका प्रधान उपन्‍यास है ।यह उनकी दूसरी नायिका प्रधान कृति है।उनके पिछले उपन्‍यास ‘रत्‍नावलि’ की नायिका भी गृहत्‍यागी तुलसीदास के कारण परित्‍यक्‍ता है,जो निरंतर तुलसीदास से मिलने हेतु प्रयास रत है ,केवल मृत्‍यु के समय तुलसी दास उसे दर्शन देते हैं । एक और दमयन्ती उपन्‍यास में भी नायिका दमयंती को उसका किशोर पति पिता के आदेश पालन में दहेज राशि पर्याप्‍त न प्राप्‍त होने पर बारात के साथ लौट जाता है ।यह वर्तमान में समाज में फैली दहेज प्रथा की भयावहता का प्रदर्शन है ।लेखक की सामाजिक प्रतिबद्धता को दर्शाता है ।समाज के प्रति लेखक की चिन्‍ता को व्‍यक्‍त करने वाले कई दृश्‍य उपन्‍यास में हैं जैसे यह वाक्‍य ‘विदेशी पर्यटकों की सुविधा के लिये ये होटल बनवा दिया है ,जिससे देश की प्रतिष्‍ठा पर आंच न आने पाये।देश की प्रतिष्‍ठा इससे बचेगी ?,नहीं यह तो सारे देश को बदलने से बचेगी ‘(पृष्‍ठ -3)

इसी तरह वे गांव में फैली बेरोजगारी व अभावों के वर्णन को अपनी लेखनी से इन शब्‍दों में उकेरते हैं ।‘बद किस्‍मती है जो आदमी को कहां से कहां तक पहुंचा देती है ।बदकिस्‍मती ही कहो जिसने गांव से इतने बडे होटल में पहुंचा दिया ।‘उपरोक्‍त पंक्तियां गांव की बेबसी मार्मिक रूप से व्‍यक्‍त करतीं हैं,जिसे बदलने की इच्‍छा अब कोई सरकार व्‍यक्‍त नहीं करती ।वे देशज मुहावरों का प्रयोग करते हैं ‘नायिका का गुंडों से खाल नुचवाना’

।लेखक प्रेम के मामले में मध्‍य युगीन पवित्रता वादी आदर्शवाद से प्रेरित है ।‘प्‍यार की साधना मन ही मन पलती रहे जहां यह भावना हुई वासना की लहरों में फंस जाती है ।‘

लेखक ने इस रचना का सृजन 1968 में किया था यह उनकी पहली रचना है ,जो वर्षों उनकी अलमारी में रखी रही व अन्‍य रचनाएं प्रकाशित हो गईं ।अत:इस रचना में उनकी किशोर सुलभ कथाभिव्‍यक्ति झलकती है। वे तब सालवर्इ ग्राम में रहने कारण तब के साहित्‍य जगत से इतने समरस भी न थे । यह रचना उनके हाथों में थमीं रचना तूलिका के तब के चित्रण को प्रदर्शित करती है। अत: कथा में कुछ फिल्‍मी प्रभाव है आख्‍यान कहने की शैली में कथा कही गई है। कथा का नायक भगवती अपनी पत्‍नी को उसके परिवर्तित नाम के कारण पहिचान नहीं पाता । नायक नयिका सामान्‍य मध्‍यमवर्गी होते हुए भी हवाई जहाज से यात्रा करते हैं। भोपाल के एक कॉलोनी में स्थित क्‍वार्टर में नायिका खलनायक महेन्‍द्र नाथ की गोली मारकर हत्‍या कर देती है व लाश को गड्ढे में गाड देती है और किसी को पता नहीं चलता ।नायिका का पिता एक जागरूक राजनैतिक कार्यकर्ता है।जो सारे उपन्‍यास के कथा प्रवाह में नायिका के क्रूर शोषण में अनुपस्थित व मौन है पर अंत में एकदम प्रकट हो जाता है,यह घटना क्रम उपन्‍यास को रहस्‍य रोमांच से भर कर सुखांत बना देता है ।

लेखक असंगत व अप्रासंगिक रूप से साम्‍यवाद पर टिप्‍पणी करता है‘ साम्‍यवादी लोग नास्तिक होते हैं,होते होंगे,भारत में भी साम्‍यवाद आ सकता है,लेकिन आस्‍थाओं के सहारे पनया साम्‍यवाद यहां टिक पायेगा ?’

साम्‍यवाद संघर्ष से प्रेरित है ,मात्र आस्‍थाओं से नहीं ,अत: टिप्‍पणीं असंगत निस्‍सार लगती है ।लेखक की साम्‍यवाद के प्रति भय , आशंका व घृणा प्रदर्शित करती है ।

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