शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - अंतिम भाग Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - अंतिम भाग

खुदकुशी


“वक्त बर्बाद मत करो। इसे ठिकाने लगाओ और बाहर जाकर शूटिंग कंपलीट करो।” आने वाले ने तेज आवाज में कहा।

“कैप्टन किशन!” उसकी आवाज सुनकर इंस्पेक्टर सोहराब बुदबुदाया।

“लेकिन यह पिस्तौल तो फिल्मी है।” शैलेष जी अलंकार ने विदूषकों की तरह हंसते हुए कहा।

“बेवकूफ... बाहर जाओ और इसकी लाश उठाने के लिए आदमी भेजो।” कैप्टन किशन ने चिंघाड़ते हुए कहा।

कैप्टन किशन चंद कदम चलते हुए अंदर आ गया। अब वह सोहराब और सलीम को साफ नजर आ रहा था।

“सॉरी बेबी! मैं तुम्हारी हीरोइन बनने की आखिरी इच्छा पूरी नहीं कर सका।” उसने अपनी कोट की जेब से एक छोटी सी पिस्टल निकाल कर श्रेया की तरफ तानते हुए कहा।

“कैप्टन किशन! अपनी पिस्टल नीचे फेंक दो। तुम मेरे निशाने पर हो। पुलिस ने तुम्हें चारों तरफ से घेर भी रखा है। भाग नहीं सकोगे।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बुलंद आवाज में कहा। उसने अपनी माउजर निकाल कर रोशनदान की सरिया पर टिका दी।

सोहराब के चेतावनी देने के बावजूद उसने श्रेया पर फायर कर दिया। गोली लगने के बाद श्रेया कुर्सी समेत जमीन पर गिर पड़ी।

कैप्टन किशन के फायर के बाद एक और फायर हुआ। यह गोली सोहराब ने चलाई थी। गोली कैप्टन किशन के दाहिने पैर में लगी थी। वह जमीन पर गिर पड़ा।

“इंस्पेक्टर सोहराब... कैप्टन किशन शान से जिया है और शान से ही मरेगा।” यह कहने के साथ ही उसने अपनी पिस्टल कनपटी से सटाकर फायर कर दिया। उसके मुंह से आवाज तक नहीं निकली थी और वह वहीं धराशाई हो गया।

सोहराब ने कोतवाली पुलिस को फोन करके तुरंत फोर्स भेजने के लिए कहा। इसके साथ ही वह और सार्जेंट सलीम रेशम की डोरी से तेजी से नीचे उतरे। वह सबकी नजरें बचाते हुए उस हाल में पहुंच गए जहां श्रेया और कैप्टन किशन पड़े हुए थे। यह वही कोठी थी, जिसमें सोहराब और सलीम पहले भी आ चुके थे। यह हाल कैप्टन किशन का बेडरूम था। इसमें सलीम एक रात भी गुजार चुका था।

इंस्पेक्टर सोहराब तेजी से श्रेया के पास पहुंचा था। गोली उसके बांए हाथ के शाने में लगी थी, हालांकि कैप्टन किशन ने निशाना दिल का ही लगाया था। वह बेहोश थी। सोहराब ने रूमाल निकाल कर उसके हाथ पर मजबूती से बांध दिया, ताकि खून का बहाव रोका जा सके। उसके बाद वह कैप्टन किशन के पास पहुंचा। वह मर चुका था। गोली ने उसका चेहरा बुरी तरह से बिगाड़ दिया था। सोहराब ने जेब से रूमाल निकाल कर उसके चेहरे को ढक दिया। इंस्पेक्टर सोहराब का चेहरा सपाट नजर आ रहा था। उस पर कोई भाव नहीं थे।

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। सलीम और सोहराब दरवाजे की आड़ में हो गए और फिर झटके से दरवाजे को खोल दिया। शैलेष जी अलंकार चार आदमियों के साथ तेजी से अंदर दाखिल हुआ। उसने कैप्टन किशन की लाश देखी तो एकदम से ठिठक कर खड़ा हो गया। तभी सोहराब सामने आ गया। उसके हाथ में अब भी माउजर थी। सलीम ने दरवाजा बंद कर दिया।

“अपने हाथ ऊपर करो और सामने दीवार से सट कर खड़े हो जाओ। खबरदार कोई गलती की तो बिना चेतावनी के गोली मार दूंगा।” इंस्पेक्टर सोहराब ने गंभीर आवाज में कहा।

उसकी बात का तुरंत असर हुआ और पांचों सामने की दीवार से सटकर खड़े हो गए। उनकी पीठ सोहराब की तरफ थी।

तभी इंस्पेक्टर सोहराब के फोन की घंटी बजी। दूसरी तरफ से कोतवाली इंस्पेक्टर का फोन था। वह पुलिस फोर्स लेकर आ गया था।

“इन पर नजर रखो मैं आता हूं।” सोहराब ने सलीम से कहा और हाल से बाहर निकल गया।

कोतवाली इंचार्ज ने समझदारी दिखाई थी। वह कोठी के लॉन में दाखिल नहीं हुआ था। अभी वह सड़क पर ही था। सोहराब तेजी से बाहर की तरफ चला गया। शूटिंग अभी भी जारी थी।

बाहर निकल कर उसने इंस्पेक्टर को कुछ समझाया। इसके बाद उसे लेकर वापस हाल में लौट आया। उसके साथ कुछ पुलिस कांस्टेबल भी आए थे। दो कांस्टेबल ने श्रेया को उठा लिया और उसे लेकर तेजी से अस्पताल की तरफ रवाना हो गए। कोतवाली इंस्पेक्टर ने शैलेष के हाथों में हथकड़ी लगा दी।

पुलिस फोर्स ने शूटिंग रुकवा दी और सभी को एक बड़े से हाल में जमा कर लिया गया। इनमें शेयाली की डुप्लीकेट भी शामिल थी।

“शैलेष, उसके चारों साथी के साथ ही शेयाली की डुप्लीकेट को कल सुबह तक राजधानी भेज दीजिएगा। यह सभी गिरफ्तारी में रहेंगे। बाकी लोगों के बयान दर्ज करने के साथ ही पता और फोन नंबर नोट कर छोड़ दीजिएगा। किसी को बेवजह परेशान मत कीजिएगा।” सोहराब ने हाल से बाहर निकलते हुए कोतवाली इंचार्ज से कहा।

“ओके सर।” कोतवाली इंस्पेक्टर ने कहा।

इसके बाद सोहराब और सलीम पैदल ही अपनी कार की तरफ चल दिए। इस बार उन्होंने सड़क का रास्ता चुना था। सोहराब ने सलीम से घोस्ट को ड्राइव करने के लिए कहा और खुद बगल वाली सीट पर बैठ गया। उसने सिगार केस से एक सिगार निकाल ली और उसका कोना तोड़ने लगा। वह काफी गंभीर मुद्रा में था। ऐसा लग रहा था जैसे अभी अपने किसी बहुत करीबी को दफ्ना कर आ रहा हो।

रास्ते में सार्जेंट सलीम ने पूरी बात समझने के लिए उसे कई बार कुरेदा, लेकिन सोहराब ने टाल दिया। जब सलीम ने ज्यादा जिद की तो उसने कहा, “अभी कई जरूरी काम निपटाने हैं। जब रिपोर्ट तैयार करूंगा तो पढ़ लेना।”

उसकी इस बात पर सार्जेंट सलीम ने विधवा औरतों की तरह रुआंसा सा मुंह बना लिया और खामोशी से कार ड्राइव करने लगा। इसके बाद रास्ते भर उसने कोई बात नहीं की। उसकी इस अदा से सोहराब को काफी फायदा हुआ। दरअसल वह चाहता भी यही था कि सलीम खामोश रहे ताकि वह इत्मीनान से पूरे केस पर अपना जेहन दौड़ा सके।

जब वह शहर पहुंचे तो सुबह होने में बस कुछ ही देर बाकी थी। सार्जेंट सलीम ने कार लॉन में रोकी और सीट से नीचे उतर आया। सोहराब भी सीट से उतर गया और ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गया।

“अब कहां जा रहे हैं?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“कैप्टन किशन के घर और ऑफिस की तलाशी लेनी है।” सोहराब ने कहा और कार आगे बढ़ा दी।

सार्जेंट सलीम सीधे अपने बेडरूम में पहुंचा और जूता उतारे बिना ही बिस्तर पर गिर पड़ा। कुछ देर में ही वह गहरी नींद सो रहा था।

एक अभिनेत्री का दुखद अंत


सलीम को अगर सोहराब न जगाता तो वह जाने कब तक सोता रहता। दोपहर के दो बज रहे थे।

“बर्खुर्दार ब्रेक फास्ट का वक्त तो गया। डायनिंग हाल में तुरंत आ जाओ लंच करते हैं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने बहुत प्यार से कहा।

“इतने प्यार से बात करेंगे तो बदहजमी हो जाएगी।” सलीम ने बिस्तर से उठते हुए कहा।

जवाब में सोहराब ने उसकी गर्दन पकड़कर वाशरूम में ढकेल दिया। इसके बाद वह बाहर निकल आया। वह डायनिंग रूम में आकर अखबार देखने लगा। अखबार में रात की घटना का कोई जिक्र नहीं था। इसकी वजह यह थी कि घटना आधी रात के बाद हुई थी। दूसरे सोहराब ने कोतवाली इंचार्ज से सुबह से पहले मीडिया से घटना का जिक्र करने से मना भी किया था। दरअसल वह बिना किसी को पता चले अपनी बाकी की कार्रवाई पूरी कर लेना चाहता था।

सार्जेंट सलीम के आते ही दोनों लंच करने लगे। मुंह में पहला लुकमा डालते ही सलीम ने कहा, “अब तो बता दीजिए कि यह मामला क्या है?”

“पहले खाना खा लेते हैं फिर बात करते हैं।” सोहराब ने कहा।

सलीम को काफी बेचैनी हो रही थी पूरा मामला जानने के लिए। उसने खाने पर तेजी से हाथ साफ किया था। खाना खत्म करने के बाद इंस्पेक्टर सोहराब ने सिगार जला ली और हल्के-हल्के कश लेने लगा।

तौलिए से हाथ साफ करने के बाद सलीम ने कहा, “अगर हुजूर का मूड बन गया हो तो बयान शुरू करें।”

“ओके बर्खुर्दार!” इंस्पेक्टर सोहराब ने सिगार का कश लिया और गंभीर मुद्रा में बैठ गया, जैसे कड़ियां मिला रहा हो। कुछ देर बाद उसने कहा, “जो भी फैक्ट, सबूत और जानकारी मिली है, उस पूरे वाकिए को तुम्हें दास्तान के रूप में ही सुनाता हूं, ताकि तुम्हारी समझ में आसानी से आ सके और तुम्हारी दिलसस्पी भी बनी रहे।”

“मैं बेकरार हो रहा हूं। आप शुरू तो कीजिए।” सलीम ने बेचैनी से कहा।

“यह दास्तान शुरू होती है वनराज नाम के एक शख्स से। यह शेयाली के पिता थे। वनराज, जवानी के दिनों में ही जोगी बन गए थे। उन्होंने शोलागढ़ की पहाड़ियों, उसकी गुफाओं और जंगलों में अपनी जवानी का एक बड़ा हिस्सा गुजार दिया था। उन्हें जड़ी-बूटियों का भी काफी ज्ञान था। वनराज ने गौर किया कि मानसिक रोगों का सटीक इलाज नहीं है। ज्यादातर मामलों में बिजली के हल्के झटके और नींद की दवाइयां ही दी जाती हैं। वह इसका परफेक्ट इलाज जड़ी-बूटियों से करना चाहते थे। वह जड़ी-बूटियों की तलाश में पहाड़ की वादियों और जंगलों में भटका करते। इसी दौरान उनकी मुलाकात गड़ेरिये की एक बेटी से हुई। वह अपनी भेड़ें चराने जंगल के किनारे के चरागाह में आती थी। वनराज की उम्र उस वक्त चालीस साल से कम नहीं थी, जबकि गड़ेरिये की उस बेटी की उम्र 19-20 साल थी। दोनों में आधी उम्र का फासला था, लेकिन इसके बावजूद जल्द ही दोनों के बीच प्रेम के अंकुर फूट गए और वनराज ने उससे शादी कर ली। वह उसके गांव में ही रहने लगे।”

झाना कॉफी ले आया था। सलीम ने कॉफी बना कर एक कप सोहराब को दिया और दूसरा अपने लिए बनाने लगा। कॉफी बनाने के बाद उसने पूछा, “फिर आगे क्या हुआ?”

सोहराब ने कॉफी का एक सिप लेने के बाद आगे की दास्तान सुनानी शुरू की, “वनराज, पत्नी के साथ उसी के गांव में रहने लगे। जड़ी-बूटियों पर उनका शोध अब भी जारी था। अब वह गांव वालों का इलाज भी कर रहे थे। उनकी जिंदगी खुशी से गुजर रही थी, लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। शेयाली की पैदाइश के तीन साल बाद ही उसकी मां चल बसीं। वनराज अकेला रह गया। अब उसका ज्यादा वक्त जंगल और पहाड़ों की वादियों में गुजरने लगा। वह शेयाली को भी साथ ले कर जाते। इस बीच उन्होंने गांव के ही एक नौजवान को अपना सहयोगी बना लिया। वह उनका खाना भी पका दिया करता था और उनके शोध के समय शेयाली को भी संभालता था। जड़ी-बूटियां तलाशने में वह वनराज की मदद भी करता था। मासूम शेयाली उसे चाचा कहती थी।”

“शेयाली पास के स्कूल में पढ़ने जाने लगी, लेकिन अब भी उसका वक्त बाबा के साथ ही जंगल और वादियों में गुरजता था। वक्त गुजरता गया। शेयाली जवान और वनराज बूढ़े हो चले थे। शेयाली कुदरत के बीच पली-बढ़ी थी, इसलिए उसमें नेचुरल ब्यूटी और जबरदस्त चार्म था। इस बीच शेयाली को फिल्मों का चस्का लग गया और वह टीवी पर घंटों फिल्में देखती। उसके बाबा का सहयोगी उससे कहता कि वह खुद भी फिल्म की हीरोइन बन सकती है। सहयोगी ने धीरे-धीरे उसके मन में फिल्म अभिनेत्री बनने का जज्बा इस कदर भर दिया कि शेयाली सपनों में खोई रहने लगी। वनराज का सहयोगी यह सब कुछ साजिशन कर रहा था। उसने शेयाली से एक दिन कहा कि वह उसे फिल्म की हीरोइन बना सकता है, लेकिन उसके लिए ढेरों पैसों की जरूरत पड़ेगी। जब शेयाली पूछती, इतने पैसे कहां से आएंगे तो वह कहता, ढेरों पैसे आ सकते हैं अगर वह उसे बाबा की इलाज के फार्मूले वाली नोटबुक लाकर दे दे। वनराज अपनी नोटबुक हमेशा साथ रखते थे। शेयाली के बाबा दिन भर शोध और मरीजों में खोए रहते। बिन मां की बच्ची शेयाली के कच्चे मन का उस सहयोगी ने पूरा फायदा उठाया और एक दिन रात में वनराज की डायरी और शेयाली को लेकर वह गांव से रफूचक्कर हो गया।” सोहराब इतनी बात बताने के बाद रुक गया। फिर उसने सलीम से पूछा, “जानते हो वह सहयोगी कौन था?”

“कैप्टन किशन?” सलीम ने प्रश्नात्मक लहजे में पूछा।

“सही समझे। वह सहयोगी कैप्टन किशन था।” इंस्पेक्टर सोहराब ने जवाब दिया।

“लेकिन वह अपने नाम के आगे कैप्टन क्यों लगाता था। क्या वह कभी फौज में था?” सलीम ने पूछा।

“वह फौज में तो कभी नहीं रहा, लेकिन वह कैप्टन अपने नाम के आगे क्यों लगाता था, यह बात तो किशन ही बता सकता था।” सोहराब ने गंभीर लहजे में कहा, “हो सकता है ऐसा उसने अपनी पहचान बदलने के लिए किया हो!”

“लेकिन यह सब कुछ आपको कैसे मालूम हुआ?” सार्जेंट सलीम ने कुछ सोचते हुए पूछा।

“काफी साल पहले एक लोकल अखबार में वनराज का एक प्रोफाइल छपा था। उसमें उसके इस शोध का भी जिक्र था। इत्तेफाकन में वह खबर मेरी नजरों से गुजरी थी। उसे मैंने लाइब्रेरी से ढूंढ निकाला। इसके अलावा शेयाली के कमरे की तलाशी में मेरे हाथ उसकी निजी डायरी लग गई। डायरी को उसने बहुत छुपा कर रखा था। वह बिला नागा उसमें लिखती थी। डायरी में उसने विक्रम के खान के बारे में भी काफी कुछ लिखा था। इसके अलावा वनराज की वह नोटबुक भी मुझे कैप्टन किशन की तिजोरी से मिल गई। बाकी सवाल मैंने अपनी तहकीकात से हल किए। चलो अब आगे सुनो कि कैसे सब कुछ तबाह होता गया।”

“शेयाली के घर छोड़ कर चले जाने से वनराज को गहरा सदमा लगा और उन्होंने खुदकुशी कर ली। किसी तरीके से कैप्टन किशन को यह जानकारी मिल गई थी। अब वह आजाद और बेखौफ था। उसने नोटबुक का गहराई से अध्ययन किया तो उसमें एक फार्मूला उसके काम का मिल गया। दिमाग के इलाज के लिए वनराज तीन बूटियों के रस को मिला कर उन्हें एक खास तापमान पर उबाल कर उसे सुखा लेते थे। तलछट में बचा चूर्ण की मक्खी भर खुराक इलाज में काम आती थी। वनराज ने नोट में लिखा था कि इसकी खुराक ज्यादा होने पर मरीज को नशा होने लगता है। कैप्टन किशन का खुराफाती दिमाग यह फार्मूला ले उड़ा। वह बूटी काफी सहजता से मिल जाती थी और इफरात थी। उसने नशे की गोलियां बनाकर देश भर में सप्लाई चालू कर दी। इससे उसने करोड़ों रुपये कमाए। दुनिया को दिखाने के लिए वह जौहरी का काम करता था, ताकि किसी को शक न हो।”

सोहराब ने बुझ चुकी सिगार दोबारा जलाई और उसके कुछ कश लेने के बाद आगे का किस्सा बताना शुरू किया, “पैसों की बाढ़ आई तो शेयाली ने मॉडलिंग शुरू कर दी। वह आलीशान पार्टियों का भी हिस्सा बनने लगी। ऐसी ही एक पार्टी में उसकी मुलाकात विक्रम के खान से हुई। विक्रम के खान को शेयाली में अपने लिए एक मॉडल नजर आई। उसने न्यूड मॉडलिंग के लिए शेयाली को पहली ही मुलाकात में ऑफर किया। वह न्यूड मॉडलिंग के लिए शेयाली को 50 लाख रुपये तक देने को तैयार था। उसके इस ऑफर को शेयाली ने किसी भी कीमत पर मानने से इनकार कर दिया।”

“विक्रम को बचपन में पिता का और शेयाली को मां का प्यार नहीं मिला था। दोनों को बिल्लियों से बेहद लगाव था।” सोहराब ने एक विराम लेने के लिए सार्जेंट सलीम से पूछा, “तुम्हें मालूम है कि इंट्रोवर्ड लोगों को अकसर बिल्लियों से खासा लगाव होता है।”

“मैं जानवरों का डॉक्टर नहीं हूं।” सलीम ने मुस्कुराते हुए कहा।

सोहराब ने उसकी बात को नजरअंदाज करते हुए कहा, “तो मैं बता रहा था कि विक्रम को पिता का और शेयाली को मां का प्यार बचपन में नहीं मिला था। दोनों को बिल्लियों से लगाव था। ऐसी ही कुछ कॉमन वजहों ने दोनों को करीब ला दिया। इस बीच कैप्टन किशन ने शेयाली की सालगिरह पर उसके लिए फिल्म ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का एलान कर दिया और शुभ मुहुर्त पर उसे एक बंगला भी गिफ्ट में दिया। शेयाली वहां रहने चली गई और विक्रम भी कुछ दिनों बाद होटल छोड़ कर उसके साथ लीव इन में रहने लगा।”

“विक्रम का क्या रोल था इस पूरे मामले में?” सलीम ने पूछा।

“बहुत अजीब केस है। इसमें हर किरदार की अलग कहानी है। वह अलग से बताऊंगा।”

“मैं बता चुका हूं कि कैप्टन किशन को भी जड़ी-बूटियों की समझ थी। इस बीच उसने वनराज के फार्मूले में कुछ छेड़छाड़ करके एक नया पाउडर बना लिया। उसे खाने के बाद इनसान का दिमाग भ्रमित हो जाता था। उसे सामने के खतरे का एहसास नहीं रहता था। इस पाउडर को उसने अपने एक आदमी से रेस्टोरेंट में आने वाले लोगों के खाने में मिलवाया। इसके बाद उसका असर देखा। उसने यह फार्मूला भी परफेक्टली बना डाला। रेस्टोरेंट में वेटर बनकर यह अपराध करने वाला वह बदमाश मेरे हत्थे चढ़ तो गया था, लेकिन वह यह नहीं बता सका कि इसके पीछे कौन है। जब राजधानी में एक जैसी कई घटनाएं हुईं तो खुफिया विभाग को इसकी तहकीकात करनी पड़ी।”

सोहराब ने अपने लिए दूसरी कॉफी बनाई और फिर आगे बताना शुरू किया, “इस बीच विक्रम के सुझाव पर शेयाली ने एक खास ऐप डिजाइन करवाया। यह ऐप सिर्फ वीमेंस के लिए था। इसमें लड़कियां और महिलाएं अपने शार्ट वीडियो अपलोड कर सकती थीं। उधर, फिल्म भी तकरीबन पूरी हो चुकी थी। कैप्टन किशन के मन में पैसों की भूख बढ़ती जा रही थी। इस बीच उसने एक खतरनाक फैसला ले लिया। वह फैसला था, शेयाली को रास्ते से हटा देने का। इसके लिए उसने ऐप की लांचिंग पार्टी वाला दिन चुना। उसका प्लान था कि ऐप की लांचिंग के दिन अगर शेयाली की मौत होती है तो देखते-देखते ही ऐप करोड़ों की डाउनलोडिंग पा लेगा। इसके अलावा वह शेयाली की मौत का फायदा फिल्म को हिट कराने में लेना चाहता था। इसके जरिए वह करोड़ों रुपये कमाना चाहता था। उसने किसी तरह वह चूर्ण शेयाली को भी खिला दिया। चूर्ण के असर से भ्रमित होकर वह गहरे पानी में डूब गई।"

कुछ देर की खामोशी के बाद इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, "कैप्टन किशन अपने प्लान में कामयाब हो गया था, लेकिन उससे एक बड़ी गलती हो गई। वरना वह कभी न पकड़ा जाता।”

“कैसी गलती?” सलीम ने पूछा।

“जब मुझे यह पता चला कि इस ऐप का प्लान विक्रम का था और खास लांचिंग के दिन शेयाली की रहस्यमयी मौत हो गई तो मेरे शक की सुई विक्रम की तरफ ही गई थी। मैं उसे ही अपराधी मान रहा था। वैसे भी कैप्टन किशन ने शेयाली के लिए बंग्ला गिफ्ट करने से लेकर फिल्म की लांचिंग तक इतना कुछ कर रखा था कि उस पर शक का कोई सवाल ही नहीं था।”

सोहराब ने काफी के कुछ सिप लिए और आगे बताना शुरू किया, “बाकी हुई घटनाओं की तरह ही शेयाली भी भ्रम का शिकार होकर गहरे पानी में डूब गई थी। इस वजह से मैं इसे हादसा या खुदकुशी मानने को तैयार नहीं था। कैप्टन किशन ने सोचा था कि पुलिस इस मामले में कुछ दिन तफ्तीश करेगी और इसे महज हादसा मानते हुए केस को क्लोज कर देगी, मगर ऐसा हुआ नहीं। जब उसे यह पता चला कि केस खुफिया विभाग के पास आ गया है तो उसने एक नई चाल चली। यह चाल ही उसके लिए काल का गाल बन गई। उसने तुम्हारा और श्रेया का जब अपहरण कराया तो मैंने नदी किनारे मौकाए वारदात पर जाकर यह समझ लिया था कि तुम दोनों को कत्ल नहीं किया गया है, बल्कि अगवा किया गया है। हमेशा अगवा के पीछे एक मकसद होता है। मैं उस मकसद को समझने में लग गया। एक दिन की पूरी मेहनत के बाद ही तुम्हें जंगल में तलाश लिया गया था। इसके बाद मैंने कैप्टन किशन के दो फर्जी जंगलियों का अपहरण कराकर अपनी टीम के दो आदमी वहां फिट कर दिए। वह बाकायदा हर चार घंटे पर रिपोर्ट देने लगे। जल्द ही मुझे पता चल गया कि वहां शेयाली जिंदा हालत में है। मैंने फिल्म ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ के कैमरामैन को विश्वास में लेकर शेयाली की फिल्म के कुछ फुटेज हासिल किए और मेरे दोनों आदमियों ने मुझे जंगल से नकली शेयाली के फुटेज उपलब्ध करा दिए। उनकी लैबोरटरी जांच से साबित हो गया कि दोनों अलग-अलग शख्सियत हैं। कैप्टन किशन ने चाल तो शानदार चली थी, लेकिन यहीं से मेरा दिमाग उसकी तरफ घूम गया। उसने सोचा था कि तुम जंगल से लौटकर बताओगे कि शेयाली जिंदा है और फिर पुलिस उसकी तलाश में लग जाएगी। इस तरह से केस खुफिया विभाग बंद कर देगा।”

इतनी बात बताने के बाद सोहराब कुछ देर के लिए खामोश हो गया। जैसे कुछ याद कर रहा हो। कुछ वक्फे के बाद उसने बात आगे बढ़ाई, “जब तुम्हारे लौट आने के बाद भी हमने यह ओपेन नहीं किया कि शेयाली जंगल में जिंदा है और सार्जेंट सलीम की उससे मुलाकात हुई है तो वह काफी निराश हुआ। तुम्हारी जंगल से वापसी के बाद उस पर नजर रखी जाने लगी थी, लेकिन वह बड़ा शातिर था। उसका हर कदम बड़ा नपा-तुला होता था।”

“लेकिन उसने श्रेया की जान लेने की कोशिश क्यों की?”

“मेरा अनुमान है कि श्रेया ने किसी मौके पर शेयाली की निजी डायरी पढ़ ली थी। वह कैप्टन किशन को ब्लैकमेल कर रही थी कि वह उसे लेकर भी एक फिल्म बनाए, नहीं तो वह उसका राज फाश कर देगा। कैप्टन किशन ने शायद उसे यह कहकर शांत कर दिया था कि ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ फिल्म पूरी करने के बाद उसे बतौर लीड रोल लांच करेगा। बहरहाल, जब हमने यह नहीं माना कि शेयाली जिंदा है तो कैप्टन किशन को लगा कि शायद बॉडी डबल वाली बात श्रेया ने तुम्हें बताई है, इसलिए वह उससे आग बगूला हो गया और उसने कई बार श्रेया की जान लेने की कोशिश की।”

कुछ देर की खामोशी के बाद सोहराब ने कहा, “अहम बात यह भी है कि शेयाली की डुप्लीकेट को यह बताया गया था कि एक नए हीरो को लांच करना है और तुम्हें जंगल में रह कर उसकी झिझक दूर करनी है। इसके लिए जंगल में उसे बाकायदा सीन समझाया जाता था। उससे यह भी कहा गया था हीरो यानी कि तुम्हें इसका पता नहीं चलना चाहिए। उस बेचारी को आखिर तक नहीं मालूम चला कि वह एक अपराध की भागीदार बनाई जा रही है।”

“कैप्टन किशन ने इतनी एहतियात बरती थी कि कहीं शेयाली की जायदाद हथियाने के लिए कत्ल का शक उस पर न आने पाए इसीलिए उसने बंग्ला और उसकी बाकी दौलत लड़कियों के अनाथ आश्रम को दान कर दी थी। तमाम एहतियात और एक फुलप्रूफ प्लान बनाने के बावजूद कैप्टन किशन कानून की नजरों से बच नहीं सका। एक बात याद रखने की है कि अपराधी कितना भी होशियार क्यों न हो, लेकिन वह बच नहीं सकता।”

“एक आखिरी सवाल... विक्रम खान ने खुदकुशी क्यों कर ली थी।”

“इसके पीछे भी कैप्टन किशन था।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“मतलब!”

“हाशना के दादा बख्तावर खान ने पेरिस में वहां की एक मशहूर मॉडल से शादी की थी। बख्तावर खान का कुछ दिनों बाद उस मॉडल से तलाक हो गया। पेरिस से अपने मुल्क लौटते वक्त वह यादगार के तौर पर उस मॉडल की एक न्यूड पेंटिंग साथ लाए थे। बख्तावर खान की वापसी के बाद उस मॉडल को एक बेटा पैदा हुआ। मॉडल ने बेटे का नाम विक्रम के खान रखा। ‘खान’ सर नेम उसने बख्तावर खान से लिया था। मां की मौत के बाद विक्रम अपने बाप की तलाश में पेरिस से यहां आ पहुंचा। इत्तेफाकन एक दिन हाशना ने अपने दादा के बक्से में एक न्यूड पेंटिंग देखी। उसने वह पेंटिंग विक्रम को दिखाई। विक्रम खान ने वह पेंटिंग अपने पास ही रख ली, जिसकी वजह से उसकी हाशना से झगड़ा भी हुआ था।”

“ओह तो यह मामला था उस पेंटिंग का!” सलीम ने कहा।

“उस मॉडल की कुल छह पेंटिंग पेरिस के एक मशहूर पेंटर ने बनाईं थीं। उस पेंटर ने मॉडल की सातवीं पेंटिंग न्यूड बनाई थी, जिसे बख्तावर अपने साथ ले आया था। इस सातवीं न्यूड पेंटिंग की तलाश पूरे यूरोप को थी। इसकी कीमत 50 करोड़ तक आंकी जाने लगी। कैप्टन किशन को किसी तरह से पता चला कि वह पेंटिंग विक्रम खान के पास मौजूद है। शायद इस बात का जिक्र कभी शेयाली ने ही किया हो। वह पेंटिंग विक्रम खान की मां की थी और कोई भी बेटा अपनी मां की नग्न पेंटिंग की नुमाइश पसंद नहीं करेगा। यही वजह थी कि विक्रम ने उस पेंटिंग को सबसे छुपा कर रखा था। कैप्टन किशन किसी भी कीमत पर वह पेंटिंग हासिल करने को बेकरार था। उसने वह पेंटिग विक्रम के तहखाने से हासिल कर ली, क्योंकि उस तहखाने का राज शेयाली, विक्रम के अलावा कैप्टन किशन को ही मालूम था। शेयाली को खोने के बाद गहरे तक टूट चुके विक्रम के हाथों से जब उसकी मां की न्यूड पेंटिंग भी निकल गई तो वह पूरी तरह से बिखर गया और उसने मौत को गले लगा लिया।”

“क्या विक्रम कभी अपने पिता बख्तावार खान से मिल सका?” सार्जेंट सलीम ने पूछा।

“मेरे ख्याल से नहीं, क्योंकि इस बात का जिक्र न तो हाशना ने किया न बख्तावर खान ने।” सोहराब ने कुछ सोचते हुए कहा, “मेरे ख्याल से हाशना से अपनी मां की पेंटिंग पाने के कुछ दिनों बाद ही शेयाली का कत्ल हो गया और विक्रम इन्हीं सब में उलझ कर रह गया।”

“वह पेंटिंग किसके पास है?” सलीम ने पूछा।

“वह पेंटिंग मैंने बहुत तलाश की, लेकिन कहीं नहीं मिली। मेरे ख्याल से कैप्टन किशन ने पेंटिंग हासिल करने के बाद तुरंत ही उसे सरहद पार भेज दिया। उसने इस बार भी पुलिस को उलझाने के लिए नकली पेंटिंग विक्रम खान के स्टूडियो में प्लांट करवाई थी।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा।

“एक इनसान ने पैसों की अंधी भूख में कई जिंदगियां तबाह कर दीं।” सार्जेंट सलीम ने गहरी सांस लेते हुए कहा और कमरे से बाहर चला गया।

समाप्त

*** * ***


साथियों आपको यह उपन्यास कैसा लगा। हमें रिव्यू में जरूर बताइएगा।

जल्द ही पढ़िए कुमार रहमान का नया जासूसी उपन्यास ‘मौत का खेल’