चुनिंदा लघुकथाएँ - भाग 2 - 3 Lajpat Rai Garg द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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चुनिंदा लघुकथाएँ - भाग 2 - 3

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" काम भला, परिणाम...? "

 

रमणीक अपनी कार से पटियाला जाने के लिये घर से निकला। हाईवे पर थोड़ी दूर ही गया था कि सामने कई गाड़ियाँ रुकी हुई दिखायी दीं। सोचने लगा, कहीं कोई एक्सीडेंट न हो गया हो! कुछ ही क्षणों में सड़क के बीचों-बीच खड़े तीन-चार युवक हाथ हिला-हिला कर कार को रोकने का आग्रह करते दिखायी दिये। इतने में रमणीक की नज़र सड़क के किनारे लगे शामियाने पर जा पड़ी, जिसके नीचे तीन-चार टेबलों पर हलवे का प्रसाद और चाय का सामान रखा हुआ था। बहुत-से उत्साही नौजवान प्लास्टिक के दौनों में हलवा और थर्मोकोल के गिलासों में चाय लेकर सड़क पर आने-जाने वाले वाहनों को रोक कर यात्रियों को आग्रहपूर्वक हलवा और चाय दे रहे थे।

न चाहते हुए भी रमणीक को कार रोकनी पड़ी। फुर्ती से दो लड़के कार की ओर लपके। कार का शीशा नीचे करवाया और चाय का गिलास और हलवे का दौना रमणीक की ओर बढ़ा दिया। रमणीक ने दौना बगल वाली सीट पर रखा और गिलास पकड़ते हुए पूछा - 'बेटे, यह सेवा किस खुशी में हो रही है?'

'बाबू जी, बाबे नानक दे पंज सौ पंजावें प्रकाश पर्व दी खुशी च सेवा कर रहे आं।'

लड़के तो इतना कहकर दूसरी गाड़ियों की ओर चले गये। रमणीक ने देखा, सड़क पर जगह-जगह दौने और गिलास बिखरे हुए थे। वह सोचने लगा, क्या कोई इस कचरे को भी सँभालेगा ! उसने अपने खाली दौने और गिलास को क्रश करके गियरबॉक्स के पास रखा और आगे बढ़ लिया।

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असमंजस

 

आर्मी की मेडिकल कोर में पदस्थ मेजर डॉ. तेजवंत कौर को कोर-कमांडर ने साइकल-मैराथन के आयोजन का उत्तरदायित्व सौंपा। उसे इस इवेंट के लिये किसी प्रायोजक की आवश्यकता थी। उसे याद आयी अपनी सहेली रीमा के पति निखिल की, जो कि कंज्यूमर प्रोडक्ट बनाने वाली एक प्रसिद्ध कम्पनी के मार्केटिंग डिविज़न में जनरल मैनेजर है। एक बार रीमा और निखिल उसे मिलने के लिये उसकी यूनिट में भी आये थे। उसने रीमा से निखिल का मोबाइल नम्बर लेकर बात की और अपनी प्रपोज़ल के बारे में उसे बताया। निखिल ने आवश्यक प्रोडक्ट उपलब्ध कराने की तुरन्त हामी भर ली।

इवेंट से एक दिन पूर्व निखिल ने अपने सेल्स ऑफ़िसर मिस्टर रेड्डी को सारा सामान देकर  मेजर डॉ. तेजवंत कौर के पास भेजा। सामान लेने के बाद मेजर तेजवंत ने मिस्टर रेड्डी का तो धन्यवाद किया ही, साथ ही कहा - ‘Mr. Reddy, say thanks to Jiju (मिस्टर रेड्डी, जीजू को धन्यवाद कहना)।’

मिस्टर रेड्डी को तेलुगु और इंगलिश ही आती थी। वह समझ नहीं पाया कि मेजर ने किसे धन्यवाद कहने के लिये कहा है। उसने कहा - ‘Pardon Ma’am, I couldn’t follow. (क्षमा करें मैम, मैं समझा नहीं।’

तेजवंत ने दुहरा दिया - ‘Say thanks to Jiju.’

समझा वह अब भी नहीं, लेकिन पुनः पूछना ठीक नहीं समझा। वह दुविधा में पड़ गया, क्योंकि उसे अपने बॉस निखिल का सरनेम तो पता था, किन्तु उसने किसी को भी बॉस को ‘जीजू’ से सम्बोधित करते कभी नहीं सुना था। उसने सोचा, शायद बॉस का निकनेम ‘जीजू’ हो!

इसी असमंजस की स्थिति में जब ऑफिस पहुँच कर कार्य पूर्ण करने की सूचना देने के लिये वह निखिल के पास गया तो उसने अपनी दुविधा का समाधान करने के लिये पूछ ही लिया - ‘Sir, is ‘jiju’ your nickname? (सर, क्या ‘जीजू’ आपका निकनेम है?)’

निखिल को उसकी नासमझी पर मन में हँसी आयी। उसने उसे इंगलिश में समझाया कि हिन्दी और पंजाबी में ब्रदर-इन-ला को प्रेम से ‘जीजू’ बुलाते हैं।

मिस्टर रेड्डी को अपनी नासमझी पर शर्मिंदगी महसूस हुई।

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कौन जानता है ....?

 

गाँव में रह रहे रुलिया राम के बच्चे अपने-अपने व्यवसाय व नौकरी के चलते शहरों में घर-गृहस्थी बसा चुके थे। गाँव में पुश्तैनी ज़मीन अभी भी थी, जिसकी देखभाल रुलिया राम और उसका सीरी करते थे। इस ज़मीन के साथ लगती ज़मीन एक ज़मींदार जगत सिंह की थी। काफ़ी अर्से से ज़मींदार की नज़र रुलिया राम की ज़मीन पर थी। उसे लगता था, देर-सवेर रुलिया राम को भी किसी एक बच्चे के पास रहने के लिये जाना पड़ेगा। कोई और रुलिया राम की ज़मीन ख़रीदे, बेहतर होगा कि यह ज़मीन उसे मिल जाय। इसी मनोरथ को ध्यान में रखते हुए उसने कई बार रुलिया राम के आगे ज़मीन बेचने का प्रस्ताव रखा था।

एक बार रुलिया राम का बड़ा बेटा मनमोहन गाँव में आया हुआ था। जगत सिंह ने सोचा, मनमोहन शहर में रहता है, उससे ज़मीन की बात की जाय तो ज़मीन मिल सकती है, क्योंकि उसे गाँव से कोई मोह नहीं होगा। यही सोचकर वह रुलिया राम के घर पहुँचा। ‘राम-राम’ के बाद उसने पूछा - ‘मोहन बेटे, तू तो बहुत दिनों बाद दिखायी दिया है। लगता है, हमें भूल ही गया है!’

‘नहीं चाचा जी, ऐसी तो कोई बात नहीं। बस समय ही नहीं मिलता। और घर में सब कुशल है?’

‘हाँ बेटे, ऊपर वाले की मेहर है। ..... मोहन, तुम लोग तो बाहर रहते हो, भाई साहब की सेहत भी कोई अच्छी नहीं रहती, क्यों न तुम अपनी ज़मीन मुझे दे दो? मैं तुम्हें दो लाख एकड़ के पैसे देने को तैयार हूँ।’

रुलिया राम ने मनमोहन को पहले ही बता रखा था कि जगत सिंह की नज़रें हमारी ज़मीन पर टिकी हैं, किन्तु हमें ज़मीन बेचनी नहीं। सो, मनमोहन ने कहा - ‘चाचा जी, आप अपनी ज़मीन हमें ढाई लाख एकड़ के हिसाब से दे दो, मैं लेने को तैयार हूँ।’

जगत सिंह को इस तरह के उत्तर की बिल्कुल भी आशंका नहीं थी। रुलिया राम ने चाहे उसकी ज़मीन बेचने की बात पर कभी गौर नहीं किया था, लेकिन उलटकर जवाब भी नहीं दिया था। सो, उसने ग़ुस्से में कहा - ‘मैं ज़मीन तुम्हें क्यों देने लगा? मुझे तो यहीं रहना है और तुम लोगों को तो आज नहीं तो कल, गाँव छोड़ना ही है।’

मनमोहन ने संयत रहते हुए दृढ़ता से जवाब दिया - ‘चाचा जी, कौन जानता है कि किसको गाँव पहले छोड़ना पड़ जाय।’

मनमोहन के जवाब में छिपे व्यंग्य को भाँपकर जगत सिंह बिना ‘राम-राम’ कहे उठकर चला गया।

छ: महीने भी नहीं हुए उपरोक्त घटना को कि आज सुबह मनमोहन के पास रुलिया राम का फ़ोन आया। रुलिया राम ने भरे गले से बताया कि कल रात जगत सिंह स्वर्ग सिधार गया।

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असमंजस

 

आर्मी की मेडिकल कोर में पदस्थ मेजर डॉ. तेजवंत कौर को कोर-कमांडर ने साइकल-मैराथन के आयोजन का उत्तरदायित्व सौंपा। उसे इस इवेंट के लिये किसी प्रायोजक की आवश्यकता थी। उसे याद आयी अपनी सहेली रीमा के पति निखिल की, जो कि कंज्यूमर प्रोडक्ट बनाने वाली एक प्रसिद्ध कम्पनी के मार्केटिंग डिविज़न में जनरल मैनेजर हैं। एक बार रीमा और निखिल उसे मिलने के लिये उसकी यूनिट में भी आये थे। उसने रीमा से निखिल का मोबाइल नम्बर लेकर बात की और अपनी प्रपोज़ल के बारे में उसे बताया। निखिल ने आवश्यक प्रोडक्ट उपलब्ध कराने की तुरन्त हामी भर ली।

इवेंट से एक दिन पूर्व निखिल ने अपने सेल्स ऑफ़िसर मिस्टर रेड्डी को सारा सामान देकर  मेजर डॉ. तेजवंत कौर के पास भेजा। सामान लेने के बाद मेजर तेजवंत ने मिस्टर रेड्डी का तो धन्यवाद किया ही, साथ ही कहा - ‘Mr. Reddy, say thanks to Jiju (मिस्टर रेड्डी, जीजू को धन्यवाद कहना)।’

मिस्टर रेड्डी को तेलुगु और इंगलिश ही आती थी। वह समझ नहीं पाया कि मेजर ने किसे धन्यवाद कहने के लिये कहा है। उसने कहा - ‘Pardon Ma’am, I couldn’t follow. (क्षमा करें मैम, मैं समझा नहीं।’

तेजवंत ने दुहरा दिया - ‘Say thanks to Jiju.’

समझा वह अब भी नहीं, लेकिन पुनः पूछना ठीक नहीं समझा। वह दुविधा में पड़ गया, क्योंकि उसे अपने बॉस निखिल का सरनेम तो पता था, किन्तु उसने किसी को भी बॉस को ‘जीजू’ से सम्बोधित करते कभी नहीं सुना था। उसने सोचा, शायद बॉस का निकनेम ‘जीजू’ हो!

इसी असमंजस की स्थिति में जब ऑफिस पहुँच कर कार्य पूर्ण करने की सूचना देने के लिये वह निखिल के पास गया तो उसने अपनी दुविधा का समाधान करने के लिये पूछ ही लिया - ‘Sir, is ‘jiju’ your nickname? (सर, क्या ‘जीजू’ आपका निकनेम है?)’

निखिल को उसकी नासमझी पर मन में हँसी आयी। उसने उसे इंगलिश में समझाया कि हिन्दी और पंजाबी में ब्रदर-इन-ला को प्रेम से ‘जीजू’ बुलाते हैं।

मिस्टर रेड्डी को अपनी नासमझी पर शर्मिंदगी महसूस हुई।

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"माध्यम"

सितम्बर में ट्रांसफर होकर आये मधुप ने अपने साथ लगे निरीक्षक को अपनी बेटी का स्कूल में दाखिला करवाने के लिये भेजा। कई वर्षों से यहाँ पदस्थ होने के कारण निरीक्षक प्रफुल्ल कुमार की शहर में अच्छी जान-पहचान थी। स्कूल की प्रिंसिपल ने बच्ची के पिछले स्कूल की रिपोर्ट देखने के बाद प्रफुल्ल कुमार को कहा - 'इंस्पेक्टर साहब, बच्ची का रिकॉर्ड तो ठीक लगता है, फिर भी हमारे स्कूल के नियमानुसार हमें इसका दस मिनट का टेस्ट लेना होगा।'

प्रफुल्ल कुमार के कुछ कहने से पूर्व ही बच्ची मालती बोली - 'मैम, मैं किसी भी तरह के टेस्ट के लिये तैयार हूँ।'

उसका आत्मविश्वास से भरा उत्तर सुनकर प्रिंसिपल मैम बोली - 'शाबाश बेटे।' और साथ ही उसने सेवक को बुलाने के लिये बेल बजाई। सेवक के आने पर छठी कक्षा की अध्यापिका को बुलाने का आदेश दिया।

मिसेज सरीन के आने पर उसे आवश्यक निर्देश देकर मालती को उसके साथ जाने को कहा। लगभग पन्द्रह मिनटों के बाद मिसेज सरीन ने आकर अपनी रिपोर्ट प्रिंसिपल के आगे रख दी। रिपोर्ट पर सरसरी निगाह डाल कर प्रिंसिपल मैम ने प्रफुल्ल कुमार को सम्बोधित करते हुए कहा - 'इंस्पेक्टर साहब, बच्ची तो बहुत होशियार है। इसे एडमिट करके हमें खुशी होगी।' फिर मालती को देखते हुए उससे कहा - 'बेटे, तुम इतनी इंटेलिजेंट हो और तुम्हारे पापा भी इतनी बड़ी पोस्ट पर हैं, फिर भी तुमने हिन्दी मीडियम क्यों चुना है, तुम तो इंग्लिश मीडियम भी आसानी से ले सकती थी?'

मालती - 'मैम, मेरे हिन्दी मीडियम लेने का कारण है। मेरे पापा की ट्रांसफर कभी भी हो जाती है, साल के बीच में भी। हिन्दी मीडियम होने से मैं बिना किसी दिक्कत के नये स्कूल के कोर्स तथा किताबों को आसानी से बिना ट्यूशन के पढ़ लेती हूं। मेरे पापा ट्यूशन पसन्द नहीं करते और हिन्दी अधिक पसन्द करते हैं।'

प्रिंसिपल - 'शाबाश। अपनी मातृभाषा के प्रति तुम्हारे पापा के प्रेम के बारे सुनकर बहुत अच्छा लगा। मुझे विश्वास है, तुम बहुत तरक्की करोगी।'

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