1
" फेरों का मुहूर्त "
रात के बारह बजने वाले थे। करीबी रिश्तेदारों तथा वर-वधू परिवारों के लोगों को छोड़कर विवाह समारोह में आमंत्रित लगभग सभी लोग खा-पीकर तथा बधाई-शुभकामनाएँ देने का फ़र्ज़ निभाकर जा चुके थे, किन्तु वर-पक्ष के युवावर्ग के बारातियों ने दुल्हा-दुल्हन को अभी भी स्टेज से उठने नहीं दिया था और डी.जे. की धुनों पर धमाल मचाया हुआ था।
दुल्हन के पिता को फेरों के लेट होने की चिंता सता रही थी, लेकिन दुल्हे के दोस्तों को रोकने का दुस्साहस नहीं कर पा रहे थे। उन्होंने अपने समधी से इस विषय में बात की, किन्तु वे भी अपने को असहाय-सा महसूस कर रहे थे।
अन्तत: उन्होंने फेरों के लिये बुलाये शास्त्री जी से पूछा - 'शास्त्री जी, नाचने-गाने वाले तो बस ही नहीं कर रहे। कहीं फेरों का मुहूर्त तो नहीं निकल जायेगा?'
'सर, जब हमने इस विवाह की तिथि निर्धारित की थी तो सारा समय शुभ देखकर ही की थी। ऐसे शुभ अवसर जीवन में बार-बार तो आते नहीं। लड़कों को अपने मन की कर लेने दो। जब उनका मन भर जाये और खुद वे थक जायें, अपने फेरे करवा देंगे। घंटा देर से ही, फेरे तो हो ही जायेंगे। आप निश्चिंत होकर आनन्द लो।'
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2
मैजिस्ट्रेट बनाम थानेदार
कोर्ट-रूम। अन्दर अदालती कार्यवाही चल रही है। बाहर वे लोग प्रतीक्षारत हैं, जिनके केसों की आज सुनवाई है। माईक पर रामदीन का नाम सुनते ही भागवंती अपने बेटे के साथ अन्दर जाने के लिये उठती है कि उनका वकील उन्हीं की तरफ़ आता दिखाई देता है। वकील रामदीन को कटघरे में खड़े होने को कहता है। भागवंती वकील के साथ खड़ी हो जाती है। आज रामदीन के केस में फ़ैसला सुनाया जाना है।
रीडर फाइल मैजिस्ट्रेट के सामने रखता है। फाइल पर सरसरी नज़र डालकर मैजिस्ट्रेट अपना फ़ैसला सुनाता है - ‘रिकॉर्ड पर उपलब्ध तथ्यों के आधार पर तथा सरकारी व बचाव पक्ष की दलीलों को मद्देनज़र रखते हुए इस केस में आरोपी के विरुद्ध गुनाह सिद्ध नहीं होता। इसलिये यह अदालत आरोपी रामदीन को बाइज़्ज़त बरी करती है।’
भागवंती रामदीन के पास जाकर उसके सिर पर हाथ फेरती है। उसे ऐसा करते देखकर मैजिस्ट्रेट साहब कहते हैं - ‘माता, आज तो तुम ख़ुश होगी, तुम्हारा बेटा बरी हो गया है!’
‘हाँ साब, भगवान आपको थानेदार बनावे।’
उसकी बात सुनकर सभी अचम्भित। अदालत होने की वजह से किसी के हँसने का तो सवाल ही नहीं उठता था।
‘माता, थानेदार बड़ा होता है क्या?’
‘हाँ साब जी। पाँच साल पहले मेरे दोनों बेटों को पड़ोसी ने झूठे केस में पकड़वा दिया था। घर में मेरी देखभाल करने के लिये बेटों के अलावा कोई आदमी नहीं था। मैंने थानेदार की मान-मनौवत की तो उस भले आदमी ने मेरी हालत पर तरस खाकर एक बेटे को छोड़ दिया। दूसरे बेटे को छोड़ने में आपको पाँच साल लग गये।’
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3
सोशल डिस्टेंसिंग
टी.वी. पर राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री का उद्बोधन सुनने के बाद जयवन्ती बेन ने खाना बनाया। पति मनसुखभाई को आवाज़ लगायी, जो अभी भी टी.वी. के सामने डटा हुआ था। उसने उत्तर दिया - ‘तुम खाना टेबल पर लगाओ, मैं दो मिनट में आया।’
टेबल पर खाना लगाने के बाद जयवन्ती बेन ने पुनः आवाज़ लगायी - ‘अब टी.वी. बंद करो, खाना ठंडा हो रहा है।’
मनसुखभाई को पता था कि अब भी न उठा तो जयवन्ती बेन आकर कान उमेठ कर उठा ले जायेगी, अत: उसने टी.वी. बंद किया और चुपचाप आकर खाना खाने लगा।
खाना खाते हुए जयवन्ती बेन बोली - ‘अच्छी मुसीबत आयी है! अब इक्कीस दिन के लिये सब कुछ बंद।’
‘अरे, घबराने की आवश्यकता नहीं। यह जो किया जा रहा है, हम सब के भले के लिये ही किया जा रहा है। थोड़ी-बहुत असुविधा होगी, तो सह लेंगे। महामारी की चपेट में आने से तो बचेंगे।’
खाने के बाद जयवन्ती बेन ने रसोई समेटी और स्टोर में से फोल्डिंग बेड लेकर बेडरूम में आ गयी। उसे फ़ोल्डिंग बेड खोलते हुए देखकर मनसुखभाई बोल उठा - ‘यह क्या कर रही हो? यह बेड किसलिये?’
‘सोशल डिस्टेंसिंग।’
‘तात्पर्य?’
‘अभी आपने सुना नहीं! प्रधानमंत्री जी कह रहे थे, इन इक्कीस दिनों में दो गज की दूरी रखनी है। छ: बाई छ: के बेड पर तो दो गज की दूरी सम्भव नहीं। अत: मैं इस फ़ील्डिंग पर सोया करूँगी।’
‘यानी इतने दिन हमसे कोई सम्बन्ध नहीं!’
‘आप से सम्बन्ध क्यों नहीं? सम्बन्ध तो रहेगा, किन्तु शारीरिक दूरी बनाये रखकर।’
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4
फ़रिश्ता
छत पर अपनी चारपाई पर लेटा सात-आठ वर्ष का चंदन तारों को निहारता हुआ दादी के आने की प्रतीक्षा कर रहा था। दादी से कहानी सुनते-सुनते ही उसे नींद आती थी। कुछ मिनटों बाद दादी आयी और बोली - ‘बेटा चंदन, तू अभी सोया नहीं?’
‘क्या करूँ दादी, जब तक आप कहानी नहीं सुनाती, मुझे नींद नहीं आती।’
‘राजा बेटा, आज बहुत लेट हो गयी आने में। आज बिना कहानी सुने ही सो जा। रात बहुत हो गयी है।’
‘नहीं दादी। आप कहानी नहीं सुनाओगी तो मुझे नींद भी नहीं आयेगी।’
पोते की ज़िद के आगे दादी हार गयी और बोली - ‘अच्छा, आज तुझे कहानी नहीं, आपबीती सुनाती हूँ।’
‘दादी, यह आपबीती क्या होती है?’
‘बेटे, आपबीती वो होती है जो हमारे साथ घटी हुई सच्ची घटना होती है।’
‘तो दादी, आप अपने साथ घटी कौन-सी और कब की घटना सुनाओगी?’
‘आज से तीस साल पहले जब पाकिस्तान अलग देश बना तो हमें वहाँ से यहाँ आना पड़ा।’
‘पहले आप पाकिस्तान में रहते थे?’
‘जब हम वहाँ रहते थे, तब पाकिस्तान नहीं था बल्कि सारा ही हिन्दुस्तान था। 1947 में जब पाकिस्तान अलग देश बना तो वहाँ रहने वाले हिन्दुओं और सिक्खों को अपने मकान-दुकान-ज़मीन छोड़ कर इधर के हिन्दुस्तान में आना पड़ा।’
‘यह सब क्यों हुआ?’
‘बेटे, अंग्रेजों ने हिन्दुस्तान छोड़ते समय देश को दो हिस्सों में बाँट दिया था। पाकिस्तान वाले हिस्से में मुसलमानों की अधिक आबादी थी। दूसरे, इधर से बहुत मुसलमान पाकिस्तान में गये तो उन्होंने मारकाट करके वहाँ रह रहे हिन्दुओं और सिक्खों का सब कुछ लूट लिया और उन्हें या तो मार दिया या ख़ाली हाथ वहाँ से निकाल दिया।’
‘दादी, सारे मुसलमानों ने ऐसा किया?’
‘नहीं बेटे। बहुत से मुसलमानों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए भी अपने पड़ोसियों की हर तरह से मदद की।’
‘दादी, इसमें आपबीती क्या हुई?’
‘बेटे, तेरे दादा जी ने कुछ दिन तो इंतज़ार किया कि कुछ दिनों में दंगे शान्त हो जायेंगे, किन्तु जब दंगे बढ़ते ही गये तो तेरे दादा जी ने वहाँ से निकलने की सोची। अपने पड़ोसी शराफ़त अली को तेरे दादा जी ने जब बताया कि हम जा रहे हैं और उसको घर की चाबियाँ सौंपते हुए कहा कि यदि हम वापस न आ पाये तो वही हमारे मकान को सँभाले तो उसकी आँखों में आँसू आ गये। बेटे, उनके साथ अपने परिवार का कई पीढ़ियों से सम्बन्ध था।’
‘तो क्या अपना सब कुछ शराफ़त अली को दे दिया था?’
‘नहीं बेटे। उसने खुद तेरे दादा जी को कहा कि भरा जी, आप पैसा-टका और गहने आदि छुपा कर ले जाने का प्रबन्ध कर लो और मैं बॉर्डर तक साथ जाकर छोड़ कर आऊँगा।’
‘फिर तो अपना अधिक नुक़सान नहीं हुआ।’
‘ऐसा नहीं बेटे। जब हम बॉर्डर की तरफ़ आ रहे थे तो कुछ गुंडों ने हमें घेर लिया। शराफ़त अली ने बहुत मिन्नतें कीं, किन्तु उन्होंने हमारे सन्दूक और अटैचियों की तलाशी ली और सारी नक़दी छीन ली। गहने मैंने अपने शरीर के साथ इस तरह से छुपाकर बाँध रखे थे कि किसी को शक होना मुश्किल था। गुंडों में से एक ने तेरे दादा जी पर छुरे से वार करने की कोशिश की, किन्तु शराफ़त अली ने बीच में उनका वार विफल कर दिया और खुद एक ईंट उठाकर उनकी तरफ़ उछाल दी जो एक गुंडे के सिर में लगी। बाक़ी गुंडे उसे वहीं छोड़कर भाग गये, क्योंकि उन्होंने मिलिटरी की जीप आती देख ली थी।’
‘दादी जी, शराफ़त अली तो फ़रिश्ता था। मैं तो समझता था कि सारे मुसलमान अत्याचारी थे।’
‘नहीं बेटे, ऐसा नहीं होता। कुछ लोगों की ग़लतियों के लिये सारी क़ौम को दोषी नहीं मान सकते।’
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5
परिणाम
‘सुनीति, तुम्हें याद है वह दिन जब मुम्बई से ध्रुव की रिपोर्ट आयी थी?’
‘बहुत अच्छी तरह याद है। रजिस्टर्ड लैटर खोलकर रिपोर्ट पढ़ते ही आपकी आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गयी थी। बिना कुछ पूछे, तुम्हारी हालत देखकर ही मैं भी सिहर उठी थी। फिर न जाने कितनी देर तक हम एक-दूसरे को झूठी सांत्वना देते रहे थे। व्यवधान तब उपस्थित हुआ था, जब ध्रुव ने आकर पूछा था - पापा, रिपोर्ट क्या कहती है? और आप हिम्मत नहीं जुटा पाये थे कुछ भी कहने की। आपने केवल रिपोर्ट ध्रुव के हाथ में पकड़ा दी थी। उसने मैग्निफाइंग ग्लास से रिपोर्ट पढ़ी थी और कहा था - पापा-मम्मी, आप लोग निराश बिल्कुल न हों। डॉक्टर के अनुसार, इन आँखों से मैं थोड़ा-बहुत अधिक-से-अधिक छ: महीने और देख पाऊँगा। पापा, मैं आपकी सहायता से इन छ: महीनों में कॉम्पिटिशन की तैयारी करूँगा। फिर देखना, आपकी सब चिंताओं का निवारण हो जायेगा।’
‘हाँ सुनीति, सब याद है। लेकिन उस समय मैंने कहा था - बेटे, तू कॉम्पिटिशन का इतना टफ कोर्स इतने कम समय में कैसे पूरा कर पायेगा? तब उसने कहा था - पापा, आज तक मैंने जो भी सोचा है, आप लोगों के आशीर्वाद से हमेशा उसे पाने में सफल रहा हूँ, तो अब भी मेरी आँखों की रोशनी बाधक नहीं बनेगी। ध्रुव का सामान्य वर्ग के चयनित उम्मीदवारों में पाँचवाँ स्थान बहुत बड़ी उपलब्धि है, और सिद्ध करता है कि इंसान यदि दृढ़ निश्चय कर परिश्रम करे तो शारीरिक कमियाँ उसके लक्ष्य-पथ में रुकावट नहीं बन सकतीं।’
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