मैं तो ओढ चुनरिया - 12 Sneh Goswami द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • आखेट महल - 19

    उन्नीस   यह सूचना मिलते ही सारे शहर में हर्ष की लहर दौड़...

  • अपराध ही अपराध - भाग 22

    अध्याय 22   “क्या बोल रहे हैं?” “जिसक...

  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

श्रेणी
शेयर करे

मैं तो ओढ चुनरिया - 12

मैं तो ओढ चुनरिया

अध्याय 12

माँ ने हर खुली खिङकी और हर आधे खुले आधे भिङे दरवाजे को श्रद्धा और प्यार से देखा और दोनों हाथ जोङ दिये । कुछ बूढी औरतें अपने घरों से बाहर आकर माँ से मिली । घूँधट निकाल कर दामाद को आशीष दी । मुझे गोद में लेने को हाथ बढाया पर मैं माँ से चिपक गयी थी ।
माँ ने सामान रिक्शा पर ही लदा रहने दिया और अन्दर अम्माजी के पास चली गयी । थोङी ही देर बाद अम्माजी नीचे उतरी और माँ का हाथ पकङे माथे तक घूँघट निकाले बाहर दरवाजे पर आईं । पिताजी अभी मुझे गोद में लिए रिक्शा पर ही बैठे थे । अम्माजी ने आँचल का छोर खोल रिक्शावाले को अठन्नी थमाई और सामान उतारकर बैठक में रखने की हिदायत दे कर भीतर चली गयी । पिताजी ने सामान बैठक में उतरवा दिया । अम्माजी ने अब आवाज लगाई – चंदा ओ चंदा , बादल ओ बादल देखो, बाहर तुम्हारे जीजा आए हैं । जाओ हाथ मुँह धुलवाओ भई । आनन फानन में दोनों लङके हाजिर हो गये । कुएँ से पानी खींच कर रवि का हाथ मुँह धुलवाने लगे तो रवि संकोच से भर गया । रहने दीजिए भइया , मैं नहा ही लेता हूँ और वह उसी बाल्टी से वहीं कुएं की जगत पर बैठ नहा लिया । नहाकर नये कपङे पहनकर जबतक वह तैयार होता , बङी बहुजी ने पूरी छानकर चौके में ही आसन लगा दिये थे । रवि और चंदा ने गरम गरम पूरी आलू की तरकारी के साथ खाई । तबतक धर्मशीला ने मुझे नहलाकर गुलाबी रंग की फ्राक में सजा दिया था । वह भी नहाकर आई तो हम सबने भी गरमागरम पूरियों का आनंद लिया ।
इस बीच माँ ने अम्माजी को बताया कि वहाँ नौकरी छूट जाने की वजह से गुजारा मुश्किल हो रहा था इसलिए यहाँ रहने चले आये हैं । आप हमें बाहरवाली बैठक किराये पर दे दो तो निश्चिंत होकर कोई काम ढूंढे । अम्माजी ने तुरंत चाबी माँ के हवाले कर दी । किराया दो रुपए महीना और भंगन के पच्चीस पैसे अलग से । माँ संतुष्ट हो गयी । यही कमरा और एक रसोई नानी के पास चार रुपए में था । अब घर की बेटी आई है , बुरे दिन झेल रही है तो उसके साथ थोङी रियायत तो बनती थी न ।
माँ के साथ भाभी भी लगी और थोङी ही देर में कमरे और आसपास के आँगन में गाय का गोबर लाकर लीप दिया गया । जो भी थोङा बहुत सामान लेकर आए थे , उसको सैटकरके माँ और पिताजी उधर नानी के घर चले । तब तक दोपहर के ग्यारह बज रहे थे । पैदल ही चलते हुए ये दोनों जब घर पहुँचे तो मामा डाकघर जा चुके थे । नानी अभी मंदिर से नहीं लौटी थी । मंझले मामा और छोटे मामा कुल्फियों की रेहङी लेकर गलियों में निकल गये थे । नानी बेबे अपने हंदे लेने जा चुकी थी । घर में अकेली मामी थी जो सुबह के बरतनों का ढेर लगा कर राख से रगङ रही थी या उसकी छ महीने की बेटी नीलम पुरानी चादर के खाट में बाँध कर बनाये गये झूले में आराम से सो रही थी ।
हमें आया देख मामी ने तुरंत हाथ धोए और दूध में पानी और चीनी मिलाकर शरबत बनाया और पीतल के कङे वाले बङे गिलासों में डालकर लंबा सा घूँघट निकाल कर मुझे आवाज लगायी कि मैं ले जाऊँ । पर मैं तो इतनी छोटी थी कि गिलास मेरे हाथ में पूरा ही नहीं आता था । खैर माँ ने गिलास मामी से ले लिए और पीने के लिए पिताजी को पकङाये । मैं तो नीलम के झूले के साथ ही लटक गयी । इतना छोटा बच्चा मैंने पहले देखा ही नहीं था । माँ ने अपने थैले से नीलम के लिए फ्राकें और छोटी छोटी चूङियाँ ,रिबन निकाले और मामी को पकङा दिये । मामी ने नीलम को झूले से निकालकर बुआ की गोद में दे दिया । माँ ने जब उस नन्ही सी बच्ची को उठाया तो मैं ईर्ष्या से भर उठी । मैंने रोना शुरु कर दिया । माँ ने बच्ची को मेरी ओर बढाया – देखो कैसे देख रही है तुम्हें । तेरी छोटी बहन हैं । तेरे साथ खेलने आई है ।
मैंने उसके छोटे छोटे हाथ पैर देखे – ये तो इतनी सी है । ये मेरे साथ कैसे खेलेगी । ऊपर से इतनी दुबली सी , कमजोर । माँ ने उसे अपने साथ सटा रखा है । मामी पहले से मोटी हो गयी है । गोरी चिट्टी तो पहले ही थी । अब वह ज्यादा खूबसूरत लग रही है ।
मामी खाने का जुगाङ सोच रही है कि माँ उसे सुबह का भारी नाश्ता करने की सूचना दे रही है । मामी ने काले चने भिगो दिये हैं । तबतक छोटे मामा पानी पीने घर आये हैं । हम सबको आया देखकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं है । बहन और जीजा के पैर छूकर उन्होने मुझे उठा लिया है । पेटी से दो कुल्फी निकालकर मुझे थमा दी है । मैं मजे लेकर कुल्फी खा रही हूँ । कुल्फी मामा की कमीज पर गिर गयी तो माँ ने टोका – क्या कर रही है लङकी । मामा की कमीज गंदी हो रही है । मामा ठहाका लगाकर हँस रहे हैं । करने दे न , बाद में तू धो देना बहन ।
और मामा मुझे उठाकर बाहर निकल गये हैं । माँ और मामी पुकार रही है –" वे किशन ! वे धूप बहुत तेज है " । पर मामा अनसुनी करके चला जा रहा है । थोङी ही देर बाद मंझले मामा को भी साथ लेकर हम लौट आये हैं । दोनों मामा बहुत खुश हैं और मैं उनसे भी ज्यादा खुश । बहुत दिनों बाद इतना प्यार करने वाले मामा मिले हैं तो खुश होना तो बनता है न ।
दोपहर ढलते ढलते नानी लौट आई है और नानी बेबे भी । नानी बेबे ने अपनी टोकरी मामी के थमा दी है । उस टोकरी में कुछ रोटी हैं , कुछ कटोरों में सब्जी हैं । आधा खरबूजा , दो आम और एक ककङी । मामी ने काले चनों के साथ चावल बना लिए हैं । आम काटकर फांके प्लेट में सजा दी गयी है । सबने रोटी खाई । मुझे मिरची लग रही है । मामी ने मेरे लिए मलाई में बूरा मिला दिया है । रोटी के बाद सबको गुङ भी मिला । सब खा पीकर तृप्त हो गये है ।
रात की रोटी खाकर हम अपने नये घर में लौट आये हैं । थोङी देर में बङे मामा हमसे मिलने आये । माँ ने सोढा डालकर दूध बनाया है । सबको दूध दिया गया है । मुझे यह दूध बहुत पसंद आया । आज का दिन बहुत अच्छा बीता । पहले कुल्फी , फिर आम और बूरा और अब सोडेवाला दूध । मैं माँ से पूछ रही हूँ – माँ अब हम यहीं रहेंगे न ।
माँ ने मुझे अपने साथ भींच लिया है और एक ठंडी साँस लेकर चुप हो गयी है ।

शेष अगली कङी में ...