अध्याय 7
विवेक और विष्णु मुन्नार में उस छोटे राजकीय हॉस्पिटल के सामने पेड़ के नीचे कार पार्क कर उसके अंदर बैठे हुए थे।
बड़े-बड़े देवदार के पेड़.... चारों तरफ खंबे जैसे दिखने वाले बर्फ और कोहरे से आच्छादित थे । ठंडी हवा मिलकर सुई जैसे चुभ रही थी।
"बॉस...."
"हां...."
"वन विभाग के लिखे हुए बोर्ड को देखा ?" - विष्णु ने जहां बताया अपनी निगाहों को विवेक वहां ले गया।
"एक बोर्ड दिखाई दिया। उसमें लिखा हुआ पढ़ने वालों के आंखों में लग रहा था।
"पेड़ों से प्रेम कीजिए।
परंतु
पेड़ के नीचे
प्रेम मत करिए।”
"यह फॉरेस्ट रेंजर एक कवि है लगता है !" - विवेक के बोलते समय ही उनका सेलफोन बजने लगा।
निकाल कर देखा।
रुपला।
"बोलो रूबी...!"
"वहां का क्या हाल है ?"
"बालाचंद्रन की बॉडी पोस्टमार्टम के लिए गई है। रिपोर्ट के लिए वेट कर रहे हैं।"
"यह कितनी निष्ठुरता है ? मुन्नार आते ही आपको बेकार का काम करना पड़ गया। कब आओगे ?"
"रिपोर्ट को देखकर आ जाएंगे।"
"वह आदमी कैसे मरा ?"
"वही तो समझ में नहीं आ रहा है। उसके बाई ओर बगल में एक लाइन खींचा हुआ सा लग रहा है। शरीर में से एक बूंद खून भी बाहर नहीं आया। आदमी बड़े सुंदर ढंग से मरा है।"
"मैं कमरे में नहीं रह पा रही हूं। बहुत ही बोर हो रही हूँ।"
"टी.वी. देखो...."
"ऐसा है तो मैं चेन्नई ही चली जाऊंगी।'
"प्लीज रूबी.... एक-दो दिन सहन करो। यह रिटायर डी.जी.पी. बालचंद्रन कैसे मरे... इसका इन्वेस्टिगेशन करके रिपोर्ट को देकर आ जाऊंगा।"
"क्या है जी यह....! कोई पॉपकॉर्न का पैकेट लेकर आ रहा हूं जैसे बोल रहे हो ? यह कितनी बड़ी बात है ? वह बालचंद्रन आतंकवादियों से मिला हुआ था इसके लिए ही तो दिल्ली से आपको भेजा था। "
"आपको जो असाइनमेंट दिया है वह मेगा असाइनमेंट है। उनका अभी मर्डर बाय समबड़ी। अब पहले से भी ज्यादा असाइनमेंट भारी हो गया। आप इस मुन्नार को छोड़कर चेन्नई रवाना होने में कम से कम एक महीना हो जाएगा। उसके बीच में यहां का सीजन खत्म होकर बारिश के दिन शुरू हो जाएंगे।"
"अरे रे रे! तुम जो सोच रही हो वैसा यह हेवी असाइनमेंट नहीं है.... रूबी!"
"आपसे बात करके कोई फायदा नहीं। पास में विष्णु है क्या ?"
"है....."
"उसे बुलाओ....."
विवेक ने विष्णु को सेलफोन दिया.... उसे लेकर, "बोलिए मैडम !" बोला।
"क्यों समस्या बड़ी हो गई है लगता है ?"
"हां हां मैडम.….. समस्या ए.बी.सी.डी. से ही खत्म हो जाएगी सोचा। वह 'निकास' तक चला गया है। ए.बी.सी.डी. की छाया में उनके कार्यों को ढूंढ निकालें ऐसे सोचकर आए थे। वे अभी जिंदा नहीं है। उन्हें मैं और बॉस जासूसी करने आए यह बात किसी को पता चल गई.... चाय के बगीचे में उन्हें मार डाला।"
"कैसे मरे पता नहीं चला। उनके बगल में एक पगडंडी जैसे लाइन दिखाई दे रही है। वह क्या है पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आए तो पता चले।"
"इस केस के स्थिति को देखें तो लगता है तुम और तुम्हारे बॉस एक महीना यहीं रहोगे ?"
"क्या बोला मैडम....? एक महीना....! चांस ही नहीं है?"
"ठीक है....! कितने दिनों में केस इन्वेस्टिगेट करके खत्म करोगे?"
"वैसे भी 30 दिन लग जाएंगे मैडम....! आपके बोलने जैसे एक महीना तो नहीं होगा...."
"तू रूम में आ... तुझसे बात करूंगी.....!" रुपला से बात करते समय ही... इंस्पेक्टर हॉस्पिटल के अंदर से बाहर आए।
चेहरे पर पहले से भी ज्यादा घबराहट थी। "सर......!"
"क्या बात है पंगजाटशन... रिपोर्ट रेडी!"
"रिपोर्ट क्या बताओ ?"
"वह... वह.... वह जो है सर...."
"क्यों हिचकिचा रहे हो ? एनीथिंग एबनॉर्मल?"
"यस सर....! डॉक्टर्स आपको अंदर बुला रहे हैं..."
"क्यों ?"
"प्लीज कम... सर ! बॉडी देखेंगे तो ही आपको उसकी भयंकरता समझ में आएगी...."
पंगजाटशन... बोलकर आगे चले.... विष्णु और विवेक चेहरे पर अधीरता लिए हुए उसके पीछे जाने लगे।
"बॉस...."
"हां..."
"यह जो घटनाएं घट रही है उन्हें देखें तो मुझे यह बात साफ समझ में आ रही है...."
"क्या?"
"मुन्नार से निकलने में करीब 6 महीने लगेंगे ऐसा लगता है....."
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