अध्याय 2
चेन्नई।
स्वर्णम मेडिकल सेंटर। न्यूरो वार्ड।
डॉ. अमरदीप अपने सामने बैठे हुए उस 30 साल के युवा से बात कर रहे थे।
"आपका नाम बताइए !"
"पोरको"
"तुम्हारा नाम कुछ अलग है। यह क्या पोरको ?"
"मेरे पिताजी एक अध्यापक थे। इसीलिए एक ऐसे नाम रखा। 'को' शब्द का अर्थ राजा हैं... डॉक्टर !"
"आप क्या काम करते हैं ?"
"इफ्लोरा सॉफ्टवेयर नामक एक आई.टी. कंपनी में काम करता हूं डॉक्टर!"
"ठीक है ! आप की क्या समस्या है?"
"डॉक्टर ! थोड़े दिनों से मैं नॉर्मल नहीं हूं। सुबह आँख खुलते ही सिर के पीछे की तरफ दर्द होता है। सुबह के कर्मों से निपट कर जब ब्रश करता हूं तो दर्द गायब हो जाता है। उसके बाद मैं ऑफिस जाने के लिए बाहर आते समय वह दर्द धीरे से शुरू हो जाता है।"
"इलेक्ट्रिक ट्रेन में ट्रैवल करके ऑफिस पहुंचने तक वह दर्द रहता है। ऑफिस के अंदर प्रवेश करते ही दर्द गायब हो जाता है। फिर से दर्द.... सिर के पीछे की तरफ शुरू हो जाता है। घर आकर पहुंचने तक दर्द होता है। घर के अंदर घुस के अम्मा के हाथ की कॉफी को पीने के बाद दर्द गायब हो जाता है। उसके बाद दूसरे दिन सवेरे आंख खुलते ही वह दर्द आ जाता है।"
डॉ. अमरदीप अपने ठुड्डी पर हाथ रख उस युवा को आश्चर्य से देखा।
"यह कितने दिनों से है ?"
"दो महीने से...."
"इससे पहले कोई और डॉक्टर को दिखाया था क्या ?"
"दिखाया। न्यूरो सर्जन नरसिम्हा मूर्ति।"
"वे क्या बोले ?"
"सीटी स्कैन लेने को बोला। मैंने लिया। रिपोर्ट देखकर नॉर्मल है बताया। डरने लायक कुछ भी नहीं है । मैं कुछ दवाइयां लिख देता हूं उसे बराबर खाइए। दर्द ठीक हो जाएगा।"
"मैं भी उन दवाइयों को बराबर लेता रहा। बट मुझे उससे एक परसेंट भी रिलीफ नहीं मिला। यह प्रॉब्लम वैसा ही है।"
"बिल्कुल भी कम नहीं हुआ ?"
"नहीं हुआ डॉक्टर....!"
"उन्होंने जो दवाइयां लिखी उसका प्रिसक्रिप्शन, सिटी स्कैन की रिपोर्ट आप लेकर आए हो ?"
"यह है !"
पोरको ने एक फाइल को निकाल कर दिया। डॉ. अमरदीप उसे लेकर कुछ देर देखने के बाद.... उन्होंने सिर हिलाया ।
"स्कैन रिपोर्ट नॉर्मल ही है। उन्होंने जो दवाई लिखी वह भी ठीक ही है।"
"फिर क्यों डॉक्टर..... यह दर्द होता है?"
"डॉक्टर नरसिम्हा मूर्ति से यह प्रश्न पूछा क्या ?"
"पूछा।"
"उन्होंने क्या बोला ?"
"यह एक मानसिक दर्द है। योगा से जाइएगा। अब मैं योगा और मेडिटेशन सब कुछ कर रहा हूं। परंतु वह दर्द फिर भी है।"
"डॉ अमरदीप कुछ समय मौन रहकर फिर धीरे बोलना शुरू किया।
"ओ.के....! अब मैं जो प्रश्न पूछूंगा उनका सही जवाब देना ।"
"बोलूंगा डॉक्टर....."
"तुम्हारे घर में कुल कितने लोग हैं ?"
"मैं, अम्मा, अप्पा, तीन बहनें। कुल छ: जने। घर में मैं सबसे बड़ा हूं। अप्पा एक टीचर थे अब रिटायर हो गए। अम्मा हाउसवाइफ हैं।"
"तुम्हारे तीनों बहनों की शादी हो गई क्या ?'
"नहीं हुई डॉक्टर.....!"
"उसके लिए वर देख रहे हो क्या ?"
"देख रहे हैं। आने वाले लोग गहने, दहेज आदि की उम्मीद करते हैं। इसी कारण टलते जा रहा है...."
"अप्पा हेल्थी है क्या ?"
"नहीं डॉक्टर ! वे डायबिटिक हैं। जिसकी वजह से उनकी आंखों पर प्रभाव पड़ा... शाम 6:00 बजे बाद वे कुछ भी ठीक से नहीं देख सकते...."
"अम्मा का हेल्थ कैसा है ?"
"अम्मा भी स्वस्थ नहीं हैं डॉक्टर ! ठंड के दिन आए तो.... वे सांस नहीं ले सकतीं।"
"आप लोग जहां रहते हैं वह किराए का घर है ?"
"हां डॉक्टर !"
अमरदीप के होंठों पर एक खाली मुस्कान दिखी। "मिस्टर पोरको! डॉक्टर नरसिम्हा मूर्ति बोले जैसे.... यह एक मनोवैज्ञानिक दर्द है। घर में फादर, मदर दोनों की तबीयत ठीक नहीं। उसमें भी फादर रिटायर्ड पर्सन। शादी की उम्र की तीन बहनें। यह एक तरह का तनाव है।"
"सॉरी डॉक्टर ! मैंने जीवन को अच्छी तरह समझ लिया। बीमारियां, बुजुर्ग लोगों को आना स्वाभाविक है। मेरे पिताजी और मेरी अम्मा के बारे में मैंने कभी फिक्र नहीं करी। वैसे ही शादी ना होने वाली बहनों के लिए मैं कभी दुखी नहीं हुआ। उनकी जब शादी होनी होगी तब होगी।"
"यू में भी करेक्ट ! बट... इस समय आपके परिवार का पूरा भार आपके ऊपर ही तो है?"
"हां डॉक्टर ! सभी कर्तव्य मेरे ही हैं। इसलिए मैं खुश हूं। बुजुर्ग अप्पा और अम्मा की आखिरी समय तक रक्षा करना... बहनों की शादी करने का मुझे एक अच्छा अवसर मिला है।"
"अभी... आप क्या सैलरी ले रहे हैं ?"
"पच्चीस हजार...."
"पिताजी का पेंशन आ रहा है ?"
"आ रहा है...."
"कितना ?"
"पांच हजार।"
"अर्थात् कुल आमदनी तीस हजार रुपए !"
"हां..."
"आजकल की महंगाई में ये तीस हजार रुपए घर के खर्चे के लिए बहुत है ? आप कुछ बचा पा रहे हैं ?"
"नहीं...."
"फिर कैसे शादी करोगे...?"
"मेरे फ्रेंड्स कुछ अच्छे हैसियत वाले हैं। उनसे उधार लेने की सोच रहा हूं।"
"दे देंगे ?"
"देंगे डॉक्टर !"
"ऐसे कैसे विश्वास है आपको ? उधार देने के लिए उन फ्रेंड्स ने आपसे कहा है क्या?"
"नहीं कहा...."
"फिर कैसे ?"
"वे लोग देंगे ऐसा मेरी आत्मा ने बता दिया डॉक्टर !"
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