उस महल की सरगोशियाँ - 2 Neelam Kulshreshtha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उस महल की सरगोशियाँ - 2

एपीसोड – 2

ऐसा भी कभी सुना है जो कि महाराष्ट्र के मनमाड के पास के गाँव कवलाना में हुआ था ? इस गाँव में अचानक गायकवाड़ राज्य के पुलिस वाले आ गये घर घर जाकर पूछताछ करने लगे थे कि काशीराव गायकवाड़ का घर कौन सा है ?काशीराव के द्वार खोलते ही एक सिपाही ने पूछा था, "आपके कितने बेटे हैं ?"

काशीराव ने डरते हुये उत्तर दिया था, "त -त -त तीन बेटे हैं । "

"आप उन तीनों को लेकर बड़ौदा चलिये, वहाँ की राजमाता ने आपको बुलवाया है। "

"राजमाता को मुझसे क्या काम है ?"

"ये तो हमें नहीं पता। "

डर के कारण वे आगे कुछ कह नहीं पाए थे। कुछ आवश्यक सामान लेकर तीनों बेटों को लेकर उन सैनिकों के साथ चल दिए थे। रास्ते में उनका डर कम हुआ था क्योंकि ये सब उनकी ख़ातिरदारी करते, सभ्यता से बात करते ले जा रहे थे।. काशीराव जी के तीनों बेटों को बड़ौदा के अंग्रेज़ अफ़सरों व राज्य के दीवान के सामने पेश किया गया था। काशीराव बड़े असमंजस में कुछ घबराये से खड़े थे। किसी मसखरे सिपाही ने इन लड़कों से पूछा कि उन्हें यहाँ क्यों लाया गया है। बड़े दोनों भाई तो जवाब नहीं दे पाये लेकिन सबसे छोटे गोपालराव ने अपने दोनों हाथ कमर पर रखकर अकड़ कर जवाब दिया था, "मुझे यहाँ राजा बनाने लाया गया है । "

सबके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई थी लेकिन महारानी जमनाबाई को कुछ और परखना था क्योंकि महाराजा की मृत्यु के बाद संतानहीन महारानी को किसी से पता लगा था कि कवलाना गाँव में गायकवाड़ राज्य के अलग अलग बिखर गये ख़ानदान का कोई वंशज रहता है। उन्होंने तीनों को राजसी खाने की मेज़ पर आमंत्रित किया व मेज़ पर व्यंजनों की भरमार कर दी। दोनों बड़े भाई तो इतना वैभव देखकर खाना खाना ही भूल गये, गाबदू की तरह घबराये बौखलाये इधर उधर देखते रहे थे। । गोपालराव रानी व दीवान जी के खाना खाने के तरीके को गौर से देखता रहा। उसके बाद उसने उसी शालीनता से खाना खाना शुरू किया था। दूसरे दिन तो गोपालराव की दुनियां ही बदल गई थी। तब जमनाबाई के गोपालराव को बेटे के रूप में दत्तक लेते ही, उन्हें उत्तराधिकारी घोषित करते ही इस सुनहरे रुपहले बड़ौदा के नींव पड़ गई थी ?- उनके द्वारा लाई राजसी पोशाक को पहनाकर गोपालराव को दरबार लाया गया। था।ब्रिटिश सरकार के अँग्रेज़ प्रतिनिधि ने सं १८७५ में गोपालराव को दरबार में गद्दी पर बिठाकर उन्हें बड़ौदा शासन का महाराजा सयाजीराव तृतीय घोषित किया था। ऐसे कैसे कोई रंक से राजा बन जाता है ? --------वह इस तिलिस्म को समझ नहीं पाती तो सोचना छोड़ देती है।

उसे कभी ध्यान आता कैसे होंगे मद्रास विश्वविद्ध्यालय के प्रोफ़ेसर टी माधवराव तंजोरकर ?जिन्होंने उन्नीसवीं सदी में ब्रिटिश सरकार के कहने पर बड़ौदा में मल्हार राव के शासनकाल की गुप चुप रिपोर्ट तैयार की थी।इस रिपोर्ट से पता लगा था कि वे कोष अपने परिवार व रिश्तेदारों पर लुटा आ रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पदच्युत करके माधवराव को स्टेट का सचिव नियुक्त किया। इन्हीं के सुझाव पर भी इस स्टेट के उत्तराधिकारी की तलाश आरम्भ हुई थी।

--ये वही शहर है जहाँ गोपालराव की तकदीर उन्हें खींच लाई थी। उन्हें एक अँग्रेज़ शिक्षक एफ़ ए एच इलियट को नियुक्त करके उनके पढ़ाई आरम्भ की थी .जो उन्हें हमेशा ये अहसास दिलाते रहते थे उनका जन्म इस स्टेट में राज्य करने के लिये ही हुआ था।जब पहली बार उन्होंने गोपालराव की मानसिकता परखने के लिए उसे सम्बोधित किया था " महाराजा गोपालराव !"

गोपालराव ने सीधे उनकी आँखों में देखते हुये आत्मविश्वास से कहा था, " कहिये महानुभाव ?"

सर इलियट के होठों पर मुस्कान आ गई थी की उन्हें कवलाना गाँव से लाये गए गोपालराव को

अधिक ट्रेनिंग देने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी। उन्होंने उसे बस समझाया था, "क्योंकि आप ही बड़ौदा के भावी महाराज हैं। आपका जन्म ही इसी स्टेट में राज करने के लिए हुआ है। यहाँ की प्रजा के दुःख को, उनकी परेशानियों को आपको ही दूर करना होगा। ये शहर, ये राज्य आपके बड़े होने का इंतज़ार कर रहा है। "

"ये बात हमें यहां आकर महारानी व आप सबकी हमारे प्रति भावनाएं देखकर पता लग गई है। विश्वास करें हम आपके विश्वास को टूटने नहीं देंगे। हम यहाँ कुछ ऐसा काम करेंगे कि पूरे भारत में हमारी स्टेट एक अलग पहचान बनायेगी। अभी हम समझ नहीं पाते ये सब कैसे होगा ?लेकिन आपकी शिक्षा हमें इस लायक बनाएगी ."

गोपालराव बहुत गंभीरता से पढ़ाई में जुट गये थे । बहुत जल्दी ही उनकी गुजराती, मराठी व उर्दू भाषा की पढ़ाई आरम्भ हो गई थी। कभी टी माधवराव, कभी स्टेट का कोई मंत्री उन्हें अलग अलग विभाग या संस्थान दिखाने ले जाता।

कुछ वर्ष बाद सन १८८१ मे नज़र बाग में बम्बई के गवर्नर सर जेम्स फ़ॉरगॉसन ने भारत के वायसराय का प्रतिनिधित्व करते हुये उन्हें अठारह वर्ष की उम्र में बड़ौदा स्टेट का राजा घोषित करा दिया था। इनको कुछ समय के अंतराल से ब्रिटिश रेज़ीडेंसी में हाज़िरी देनी होती। ये टी .माधवराव के सामने रोष से कहते, "मैं यहाँ का राजा हूँ या अंग्रेज़ों का ग़ुलाम ?क्यों मुझे हाज़िरी देने जाना होता है ?"

माधवराव दूरदर्शी थे, "इस सरकार ने चालाकी से ऐसा अनुबंध कर लिया है कि बड़ौदा स्टेट में कुछ ऐसी परेशानियां हैं कि ब्रिटिश सरकार का अंकुश रहेगा ही। आप धीरज रखिये। दो वर्ष बाद ये आपके सपनों का नगर होगा। "

माधवराज ने कभी सोचा ही नहीं था कि ये महाराजा प्राथमिक स्त्री शिक्षा को अनिवार्य व मुफ़्त कर देंगे। उन्होंने प्रश्न भी किया था, " महाराजा ! स्त्री तो घर की शोभा होती है। उसे सिलाई, कड़ाई व पाककला में निपुण होना चाहिये। तो फिर वह शिक्षित होकर क्या करेगी ?"

"आपने कभी देखने का कष्ट नहीं किया है कि स्त्री ही हमारे सामाजिक मेल मिलाप को संचालित करती है। आपको नहीं लगता कि यदि वह शिक्षित होगी तो परिवार की और समाज की भी बुद्धिमत्ता से देख रेख करेगी।हमने विदेशों की यात्राएं कीं हैं तो हमें फ़र्क महसूस हुआ एक पढ़ी लिखी स्त्री में और अनपढ़ में . "

"वाह महाराज !आपके इस दूरगामी कदम से इस शहर की संस्कृति अवश्य प्रभावित होगी। "

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नीलम कुलश्रेष्ठ

kneeli@rediffmail.com