उस महल की सरगोशियाँ - 4 Neelam Kulshreshtha द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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उस महल की सरगोशियाँ - 4

एपीसोड – 4

बहुत दिलचस्प रही थी सोने की तार जैसी महारानी से मुलाक़ात, ये जानना कि इस राजपरिवार को आज भी क्यों इतना सम्मान दिया जाता है। इन्होने बेबाक होकर बताया था, " आई एम नॉट अ रॉयल पर्सन। लेकिन मैं ग्वालियर की एक एरिस्टोक्रेट फ़ैमिली की बेटीं हूँ । लखनऊ में मेरी एजुकेशन हुई है। "

"मैंने सुना है कि अपने राजपरिवार के साथ आप भी समाज सेवा में रूचि लेतीं हैं ?"

"मैं बहुत से समाज सेवी कार्यों से जुड़ीं हुईं हूँ । मैं अखिल भारतीय महिला परिषद की अध्यक्ष हूँ जिसकी नींव मेरी पर दादी सास यानि चिमणा बाई ने डाली थी ."

"मुझे ये शहर बहुत क्रिएटिव लगता है। क्या आपको भी ?

"इस शहर में ही हमारे पर दादा श्वसुर महाराजा सयाजीराव ने कुछ ऐसे काम किये हैं कि इस शहर की क्रिएटिविटी इतनी ज़्यादा है कि जो कोई भी यहाँ बसता है इसकी क्रिएटिविटी से जुड़ जाता है, डल नहीं रह पाता। मेरे ऊपर भी मेरे राजपरिवार व शहर का प्रभाव पड़ा।"

"आप भी तो कुछ एन जी ओज़ से जुड़ीं हुईं हैं ?"

"जी, एक पर्यावरण के लिये काम करने वाली संस्था की उपाध्यक्ष हूँ। हम लोग अभी पुस्तकें पढ़कर, विशेषज्ञों से राय लेकर योजना बना रहे हैं कि बढ़ती हुई जनसँख्या में पर्यावरण को सुरक्षित करने के लिये हमें सन २००० के बाद शहर में क्या क्या करना है। हमारे राज्य का संग्रहालय, जिसे सरकार को दे दिया है, देश का पहला संग्रहालय है जिसके लिये विशेष रूप से इमारत बनी गई थी। नहीं तो किसी पुरानी इमारत में संग्रहालय बना दिए जाते हैं। मैं उसकी ट्रस्टी हूँ। वह भी मेरी ज़िम्मेदारी है। "

"आप लोगों का जीवन अच्छा है घर का कुछ काम नहीं करना पड़ता। "

"ये आपसे किसने कह दिया ?"

सोने के तार जैसी रानी ने मेज़ पर रक्खे गिलास से पानी पीया व बोलीं थीं, " इतना बड़ा राजमहल है, गार्डन हैं, दूसरे राजमहल में हमारे ऑफिसेज़ हैं उनकी साज सज्जा व सफ़ाई का कितना ध्यान रखना पड़ता है। ये बात और है कि हमारे सेवक ये काम करते हैं लेकिन उनको मॉनीटर करने के लिए हाऊस कीपिंग स्टॉफ़ है लेकिन सब पर नज़र तो रखनी पड़ती है। देशी विदेशी मेहमान आते ही रहते हैं। कभी कभी अपने लिये समय निकलना मुश्किल हो जाता है। "

उन्होंने अपनी एक अपनी जैसी ख़ूबसूरत पेंटिंग अपने ऑफ़िस दिखाई थी जिसे उनके पति ने बनाया था।

वह मुस्करा उठी थी, "ये बात तो मैंने सुनी थी कि महाराजा साहब के कलाकर व्यक्तित्व के होने के कारण पार्लियामेंट के सांसद होने पर भी राजनीति छोड़ दी थी . ये मुझे पता है कि वे बहुत अच्छे शास्त्रीय संगीत के गायक हैं लेकिन वे एक पेंटर भी हैं ये बात पता नहीं थी। "

"वो सिर्फ़ पेंटर ही नहीं हैं पेंटिंग्स के कला प्रसार में भी लगे रहते हैं। हम लोग पंद्रह दिन के लिये जे जे स्कूल ऑफ़ आर्ट्स, बॉम्बे में हमारे म्यूज़ियम के पेंटिंग कलेक्शन जैसे राजा रवि वर्मा, रशियन पेंटर रोरिक व दूसरी पेंटिंग्स की एग्ज़ीबीशन लगा रहे हैं। "

"हम लोग से मतलब ?आप को भी पेन्टिंग में रूचि है ?"

"बहुत तो नहीं लेकिन परिवार में जो काम हो रहा है उसमें मेरा भी क्या हर गृहणी का रोल रहता है। मैं ये देखती रहतीं हूँ कि इन पेंटिंग्स की ठीक से पैकिंग हुई है या नहीं।ठीक से म्यूज़ियम हॉल से उन्हें ट्रक में लोड करवाना है। उनके नंबर का हिसाब रखना है।ये काम किसी मैनेजर से करवाया जाता है लेकिन ख़ुद वॉच करना भी बहुत ज़रूरी है। आफ़्टर ऑल दे आर क़्वाइट प्रेशियस [ये बहुत मँहगीं हैं ]। "

उनकी व्यस्ततायें सुनकर उसका दिमाग़ चकरा गया था--- जैसा ऊँचा परिवार उतने ही पहाड़ जैसे काम, वह अपने को ये पूछने से रोक नहीं पाई थी, " आपकी उच्च शिक्षा इतने काम सँभालने में काम आती होगी ?"

"शिक्षा से अधिक कर्मचारियों को सम्भालने में कॉमन सैंस काम आता है। "

"मुझे पत्रिका के लिये आपका फ़ोटो भी चाहिये। "

"आप ऐसा करिये कि मेरे पी ए को अपना पता नोट करवा दीजिये। वो मेरी फ़ोटो भिजवा देंगे। "

दो दिन बाद ही पीछे के कम्पाउंड के गेट पर ठक ठक हुई। उसने बाहर निकलकर देखा। चपरासी से लगते एक आदमी ने अपना हाथ उठाकर अभिवादन किया व बोला, "मैं पैलेस से आया हूँ। "

"जी, कहिये। "

"महारानी के पी ए साहब ने आपको ये पत्र देने को बोला है। "

"पानी जुइए?"

"नथी। "

उसने व्यग्रता से वह लिफ़ाफ़ा खोला था। उसमें उनका सिर पर पल्लु लिए भव्य फ़ोटो था। एक पत्र उनके हस्ताक्षर सहित था। उसमें लिखी हल्की सी डाँट की भाषा थी । इस औपचारिक पत्र के अंत में लिखा हुआ था -`हम इस शहर की` महारानी `हैं, न कि `रानी `.आगे से हमारे नाम के आगे `महारानी `लिखकर हमें सम्बोधित करें। `इस बात को पढ़कर उसके होंठ मुस्करा उठे थे-अच्छा हुआ जो राजा महाराजाओं के ज़माने चले गये, नहीं तो पता नहीं वो उसे इस ग़लती के लिये क्या पता कोई कड़ा राजदंड सुना देतीं।

बाद में उनके विषय में उसकी ग़लतफ़हमी समाप्त हो गई थी क्योंकि जब जब लेखिका मंच के कार्यक्रम में उन्हें आमंत्रित किया, वे बहुत स्नेह से आईं व उसकी पुस्तक भी विमोचित की थी। धर्म के स्त्री शोषण वाली पुस्तक के लिये विमोचन के अवसर पर उनके उदगार सुनकर वह गदगद हो गई थी, "बड़ौदा हर क्षेत्र में एक क्रन्तिकारी शहर रहा है। वीर सावरकर जैसे वीर यहाँ रहे हैं। वैसे ही इन्होंने भगवा न के प्रकोप या धर्म के मठाधीशों से बिना डरे वीर सावरकर जैसे वीरता दिखाते हुये ये पुस्तक सम्पादित की है। "

***

हाँ, इस राज्य की राजमाता अर्थात उनकी सास ने बहुत चतुराई से विशाल लक्ष्मी विलास पैलेस के कुछ मुख्य कक्ष दिखा दिए थे। हुआ ये था कि वह उनका इंटर्व्यू लेने राजमहल पहुँच गई थी। उसी राजमहल जिसके दरबार हॉल में ठुमरी सुनी थी। महल की उनकी सेविका उसे एक हॉल के सोफ़े पर बिठाकर पानी लेने चली गई थी। वह पानी पीते हुये कमरे की राजसी शान के मज़े ले रही थी। यही हैं वो राजसी कक्ष, ये महराबें, ये विशाल दीवारें, ये मखमली विशाल सोफ़े, ये झरोखे जहां सयाजीराव तृतीय की पत्नी लक्ष्मीबाई की पायल की रुन झुन गूंजती होगी। यूँ तो न जाने इस राजवंश की कितनी पीढ़ियां इस महल से गुज़री होंगीं लेकिन उसे उसे हर समय ये ही महाराजा क्यों याद आते हैं ?क्यों न याद आयें क्योंकि बड़ौदा आने वाले हर इंसान पर जगह जगह इनके नाम को देखकर इनका अनोखा व्यक्तित्व उसके दिमाग़ पर छा जाता है। उनकी पत्नी का नाम राजवंश की परंपरा के कारण बदल कर चिमणाबाई रख दिया था ।

नीलम कुलश्रेष्ठ 

kneeli@rediffmail.com