बैंगन - 36 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 36

इस बार मैं जब भाई के घर से वापस अपने घर जाने लगा तो वही सब शुरू हो गया। भाभी ने घर के लिए खुद बना कर तरह- तरह की खाने की चीज़ें तो रखी ही, बच्चों और अम्मा के लिए बाज़ार से खरीद कर महंगे उपहार भी दिए। मेरी पत्नी के लिए एक सुंदर सी साड़ी भी लाकर रखी थी जो मुझे दिखाते हुए भाभी ने मेरे सामान में रखी।
साड़ी रखते- रखते भाभी मज़ाक करना नहीं भूलीं। परिहास से बोलीं- ये मेरी देवरानी को देने की याद रखना, ऐसा न हो कहीं ऐसे ही पैक हुई रखी - रखी पुरानी हो जाए।
मैंने भी नहले पर दहला मारा, मैं बोला- आपकी देवरानी ऐसी संन्यासिनी नहीं है कि जो मैं दूंगा वही ग्रहण करेगी। वो जाते ही मेरी जेबें तक टटोल कर चैक कर लेगी, सामान की तो बात ही क्या!
भाभी ने किसी न्यायाधीश की तरह कहा- ऑर्डर ऑर्डर! मेरी प्यारी देवरानी के ख़िलाफ़ कुछ न कहा जाए।
मैंने अब सचमुच कुछ गंभीर होकर कहा- अरे, मैं तो अब यहां आता ही रहता हूं, ये इतना सब कुछ बार - बार ख़र्च करने की क्या जरूरत है?
भाभी बोलीं- ये बच्चों, अम्मा जी और हमारी आपस की बात है, आपके लिए तो कुछ खर्च नहीं किया है। आपको तो केवल कोरियर सर्विस देनी है, जो भेजा है वो पहुंचा देना है।
ऐसा कह कर भाभी ने मुझे चुप ही कर दिया।
लेकिन मेरे लिए अचंभे की बात तो तब हुई जब इस बातचीत में भाई भी उतर आया। भाई बोला- एक काम मेरा भी करना।
- क्या? आपका क्या काम आ गया। मैंने कहा।
भाई ने अपनी जेब से एक चाबी निकालते हुए मेरी ओर बढ़ाई और मुस्कराते हुए बोला- बाहर एक नई गाड़ी खड़ी है, सिल्वर कलर की, उसे ले जाना।
- कहां? किसे देनी है? क्यों? मैंने लगभग बदहवास सा होते हुए कहा।
- किसी को नहीं देनी, लेकर जानी है और घर पर रखनी है। आगे से जब भी यहां आए तो बस या ट्रेन से नहीं, बल्कि इसी से आना है और बच्चों को भी साथ लाना है।
- ये सब क्या है भैया? मैं कुछ समझा नहीं। तोहफ़ों की ये बरसात कैसी? कोई मुझे इस सब का कारण भी तो बताए। और कार??? इतना महंगा तोहफ़ा कोई बिना बात के दिया जाता है? मैं लगभग हड़बड़ा ही गया था।
भाभी बीच में बोल पड़ीं- आती हुई लक्ष्मी को ठुकराते नहीं हैं, आपके भाई साहब दे रहे हैं तो ख़ुशी से स्वीकार कीजिए।
ये सब क्या है भाभी? मुझे तो ये सब गोरखधंधा कोई परी कथा जैसा लग रहा है। फ़िर अगर कुछ देना भी है तो जब आप लोग वहां आएं तब अपने हाथ से दीजिएगा। सोचिए, घर पर सब मुझसे पूछेंगे नहीं, कि किस ख़ुशी में ये सब इतना सारा अनमोल खज़ाना उठा लाए? आख़िर पता तो चले कि बात क्या है? हां, सचमुच कोई बड़ी खुशी की ऐसी कोई बात हो तो ये सब अच्छा भी लगे। मैं एक सांस में कह गया।
तभी अचानक भाई के शोरूम से एक आदमी आया और उसने भाई के बिल्कुल करीब आकर उनके कान में कुछ कहा।
मैं और भाभी हैरानी से उस तरफ देखने लगे।
कर्मचारी की खुसुर - फुसुर जारी ही थी कि फ़िर एक धमाका हुआ।
ज़ोर - ज़ोर से एक सायरन बजने लगा। किसी को समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है, और ये खौफ़नाक आवाज़ कहां से आ रही है!
क्या कोई एम्बुलेंस आई थी या फिर ये आवाज़ किसी फायर ब्रिगेड की थी। क्या कहीं आग लग गई! सब बदहवासी में एक दूसरे की ओर देखने लगे। भाई भी तेज़ी से हरकत में आ गया पर एकाएक उसकी भी समझ में कुछ नहीं आया कि क्या हुआ है।
सायरन की ये आवाज़ इतनी कानफोडू थी कि सब किंकर्तव्यविमूढ़ से हो गए। लेकिन ये आवाज़ इतनी नज़दीक सुनाई दे रही थी कि इसे अनसुना या अनदेखा हरगिज़ नहीं किया जा सकता था।
एक मिनट लगा हम सभी को स्थिर- शांत होकर भांपने की कोशिश करने में।
इसी के साथ कुछ लोगों के कदमों की आहट भी बिल्कुल आसपास ही कहीं सुनाई पड़ी।
मुझे दरवाज़े में एक आदमी का चेहरा दिखाई दिया, जो शायद भीतर ही आ रहा था। मैंने आव देखा न ताव, और मैं उछल कर तेज़ी से बाहर की ओर भागा। बाहर के बरामदे से ड्राइंगरूम की ओर जाने वाले गलियारे में दो- तीन लंबे लंबे डग भरता हुआ मैं तेज़ी से उसी वाशरूम में दाखिल हो गया जो इस गैलरी में था। मैंने भीतर घुस कर तेज़ी से दरवाज़ा बंद कर लिया।