बैंगन - 28 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 28

वापस लौट कर मैंने बस से उतरते ही तन्मय को अच्छी तरह समझा दिया कि वो अब किसी भी तरह की चिंता न करे, वो अब मेरा कर्मचारी है, अभी वो एक सप्ताह के लिए अपने घर जाकर आराम करे और फ़िर सप्ताह भर बाद मेरे पास आ जाए। मैंने उसे ये भी आश्वस्त कर दिया कि इस बीच उसका वेतन जारी रहेगा। मैंने उसे समझा दिया कि मैं उसे एक सप्ताह की सवैतनिक छुट्टी इसलिए दे रहा हूं क्योंकि मैं अब कुछ दिन भाई के बंगले पर उनके साथ ही रहूंगा।
साथ ही मैंने उसे ये भी कह दिया कि इस बीच वो अपने तांगे का भी जो कुछ करना हो, कर दे। चाहे तो उसके पुराने मालिक को वापस लौटा दे, चाहे अपने किसी दोस्त को चलाने के लिए किराए से दे दे, या फिर उसे बेच डाले। क्योंकि मेरे पास नौकरी करते हुए तांगा अब उसके काम आने वाला नहीं था। एक बार पुलिस के चक्कर में पड़ जाने के बाद ये तांगा उसे मुश्किल से ही वापस मिल पाया था। तन्मय के पिता तो तन्मय के मेरे पास आ जाने के बाद तांगे का कोई उपयोग कर पाने की स्थिति में थे ही नहीं।
तन्मय को उसके ख़र्च के लिए कुछ रुपए देकर उसके घर भेजा और मैं भाई के बंगले पर आ गया।
घर पर सब लोग मिले और बच्चों तथा भाभी ने चाव से पूछा कि मैं कहां - कहां घूम आया?
दोपहर को खाना खाने के बाद मैं, भाभी और दोनों बच्चे देर तक कैरम खेले।
मेरी भतीजी ने हम सब को खूब हराया।
खेल के बीच जब भाभी चाय बनाने के लिए उठीं तो हम सब का ध्यान खेल से हट कर टीवी पर चला गया जो अब तक किसी की बेध्यानी में चल रहा था।
सहसा मैंने देखा कि समाचारों के बीच हवाई अड्डे और रेलवे स्टेशन पर भारी मात्रा में नशीले पदार्थों के बरामद होने की खबरें आने लगीं।
गांजा, अफीम, चरस तो तस्करों से बरामद होना अब एक आम बात ही हो गई थी लेकिन ब्राउन शुगर, हेरोइन आदि भी भारी मात्रा में पकड़ी गई थी।
ऐसे- ऐसे वाकयात दिखाए जा रहे थे कि सुनकर रौंगटे खड़े हो जाएं।
लोग तरह- तरह से पुलिस और कस्टम वालों को चकमा देकर इन निषिद्ध चीजों को इधर - उधर पहुंचा रहे थे। हवाई जहाज, रेल, बस, निजी कारें, सभी में तस्कर पकड़े जा रहे थे।
केवल सामान, वाहन, कपड़ों आदि में ही नहीं बल्कि ख़ुफ़िया तरीके से शरीर के अंगों तक में छिपा कर लोग इन बेशकीमती नशों का कारोबार करने लगे थे। छोटी छोटी पुड़िया या पैकेट्स की क़ीमत हज़ारों में होती।
भाभी ने चाय के साथ बेहद स्वादिष्ट पापड़ परोसे थे। बैठे - बैठे प्लान बना कि शाम को भाई के आने के बाद हम लोग कहीं बाहर घूमने के लिए चलें।
शाम को भाई ने ही मुझे बताया कि उसने बंगले पर ताज़ा फूलों के गुलदस्ते देकर जाने के लिए एक लड़के को रखा था। भाभी को ताज़ा फूलों का बेहद शौक होने के कारण वहां विदेश में भी उन लोगों को अपना घर रोज़ ताज़ा फूलों से सजाने की आदत हो गई थी तो मुश्किल से ढूंढ कर यहां भी एक फूल बेचने वाले लड़के को उन्होंने महंगे दामों पर लगा लिया था। पर वो पिछले कुछ दिनों से नहीं आ रहा है। उसकी कोई खोज खबर भी नहीं है।
भाई के मुंह से ये बात सुन कर मैं बुरी तरह चौंक गया। क्योंकि फूल वाला वो लड़का तन्मय मेरा ही भेजा हुआ तो था। वह यहीं से चोरी के इल्ज़ाम में पुलिस को सौंपा गया था। और भाई ख़ुद मेरे साथ जाकर पुलिस स्टेशन से उसे छुड़ा कर लाया था। भाई ने अपने दोस्त पुलिस अफ़सर की मदद उसे हिरासत से छुड़ाने में ली थी और अब भाई मुझे फूलों वाले लड़के की दास्तां इस तरह से सुना रहा है मानो मुझे कुछ नहीं मालूम।
तो क्या सचमुच भाई ने तन्मय को नहीं पहचाना था? या तन्मय किसी और घर में घुस जाने पर पकड़ा गया था? क्या तन्मय ने जिस लड़की के कारण अफरा तफरी में फंस जाने का ज़िक्र किया था वो भाई के बंगले की नौकरानी नहीं थी? आखिर ये क्या माजरा था? ये क्या गफलत थी?
ये ठीक है कि फूल वाले लड़के के रूप में यहां आने पर तन्मय ने अपना हुलिया थोड़ा बहुत ज़रूर बदल लिया होगा, पर क्या सचमुच भाई को इस बाबत कुछ पता नहीं चला? क्या उसने देख कर भी लड़के को नहीं पहचाना?
हो सकता है कि तन्मय की बात या उसका आमना सामना भाई से कभी हुआ ही न हो, वो भाभी या बच्चों से ही मिला हो। या उसकी मुलाकात केवल घर की नौकरानी से ही रही हो, पर उसे पैसे देने का काम तो कोई घर का सदस्य ही करता रहा होगा? या शायद ये ज़िम्मेदारी भी घर के किसी अन्य नौकर या कर्मचारी की रही हो? शायद भाई से उसकी सीधी मुठभेड़ हुई ही न हो?
तो क्या उसकी गिरफ़्तारी भी भाई के बंगले से नहीं हुई?