नाकुशी-एक लड़की (अंतिम भाग) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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नाकुशी-एक लड़की (अंतिम भाग)

बेटी के इन्टर पास करने के बाद यशवन्त पत्नी से बोला,"अब इसकी शादी कर देते है।"
" शादी।अभी शादी।अभी इसकी उम्र ही क्या है,"पति की बात सुुुनकर शालिनी बोली,"अभी यह अठारह साल की हुई है।"शालिनी बोली,"अभी शादी क्यो करना चाहाते हो।"
"अगर इसकी शादी नही करेंगे,कतो घर मे बैठी क्या करेगी?"
"उसका मन अभी पढ़ने का है।वह आगे पढ़ना चाहती है।"पति की बात सुनकर शालिनी बोली थी।
""क्या करेगी आगे पढ़कर?हमारी बिरादरी मे अभी शिक्षा का बहुत अभाव है।इसे ज़्यादा पढ़ा दिया तो इसके लिए लड़का ढूंढना मुश्किल हो जायेगा"
"भगवान पर भरोसा रखो।वह सब अच्छा ही करेगा।"शालिनी ने पति को समझाया था।
सिर्फ शालिनी ही नही गांव का सरपंच और लोग भी नाकुशी की पढ़ाई के पक्ष में थे।और लोगों के समझाने पर यशवन्त बेटी की पढ़ाई के लिए तैयार हो गया।नाकुशी ने अपनी सहेलियो के साथ लातूर के कॉलेज में एड्मिसन ले लिया।
वह रोज बस से लातूर आने जाने लगी।उसका व्यवहार शालीन था।पढ़ाई में होशियार होने के साथ वह सूंदर भी थी।उसके चेहरे पर ओज था।वह आकर्षक थी।फिर भी कॉलेज की लड़कियां उसके नाम को लेकर उसका मजाक उड़ाती।वे उसे चिढ़ाती,"तेरे माँ बाप को ऐशवर्या,करीना,प्रियंका,काजोल जैसे नाम से चिढ़ थी,तो लक्ष्मी,पार्वती जैसा ही नाम रख लेते।भला नाकुशी भी कोई नाम है।
कॉलेज की लड़कियां जब उसके नाम को लेकर मजाक उड़ाती तो उसे भी बुरा लगता।वह अपने को कोसती।कभी सोचती।मुझसे इतनी नफरत है,तो पिता ने जन्म लेते ही क्यो नही मार डाला।ऐसा नाम रखकर क्यो उसे जिंदगी भर के लिए हँसी का पात्र बना दिया।जब वह अपने नाम को लेकर लड़कियों के ताने सुनकर परेशान हो जाती।तब माँ की गोद मे सिर रखकर रोने लगती।तब शालिनी उसके सिर पर हाथ रखकर प्यार से समझाती,"औरत की पहचान उसके नाम से नही।उसके व्यवहार, गुण, योग्यता से होती है।तू लड़कियों की बातों पर ध्यान मत दे।अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे।एक दिन यह तेरे नाम के आगे नगीने जड़ देगी।"
माँ की बाते,सिख उसका हौसला बढ़ाती।जो लडकिया शुरू में उसके नाम को लेकर उसका मजाक उड़ाती थी।उसकी सहेलिया बन गई।समय अपनी गति से चलता रहा।वह कॉलगड की परीक्षा में भी टॉप आयी थी।
कॉलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद उसकी कुछ सहेलियो ने आई ए एस का फॉर्म भरा था।अपनी मां से पूछ कर उसने भी फॉर्म भर दिया।फॉर्म भरने के बाद वह पूरी मेहनत से तैयारी करने लगी।उसकी मेहनत रंग लाई और उसने प्री परीक्षा पास कर ली।प्री परीक्षा पास कर लेने के बाद उसके मन मे विश्वास जागा की वह इसमें सफल हो सकती है।मन मे यह विश्वास उतपन्न होते ही वह और ज्यादा मेहनत करने लगी।उसने परीक्षा में पास होने के लिए रात दिन एक कर दिया।माँ उसका हौसला बढ़ाती रही।बेटी को प्रेरित करती रही।उसकी मेहनत बेकार नही गई।उसने आई ए एस की परीक्षा पास कर ली।
नाकुशी की इस कामयाबी ने यशवन्त और उसकी जाती ही नही गांव के नाम मे भी चार चांद लगा दिए।वह गांव की पहली औरत थी जो इस प्रतिष्ठित पद के लिए चुनी गई थी।नाकुशी का फोटो अखबार में छपा था।इस समाचार को पढ़ते ही गांव का सरपंच बलवंत,यशवन्त के घर जा पहुंचा।
"तेरी बेटी हीरा है।इसने गांव का नाम रोशन कर दिया।"
नाकुशी की कामयाबी कि खबर फैलते ही गांव के लोग यशवन्त के घर बधाई देने के लिए आने लगे।तब यशवन्त को पश्चाताप हुआ कि उसने बेटी के साथ अन्नाय किया।वह उससे घृणा करता रहा।उसने कभी नही सोचा कि बेटी भी कुल का दीपक होती है।
आज उसे एहसास हुआ था कि माँ बाप के लिए बेटा बेटी समान है।उनमें भेदभाव नही करना चाहिए।अपनी गलती का ऐहसास होने पर वह बेटी को गले लगाकर बोला,"मैं माफी के काबिल नहीं लेकिन
मुझे तुझ पर गर्व है।तेरी जैसी बेटी भगवान सब को दे