"यशवंत देख तेरी बेटी ने क्या कमाल कर दिया।"गांव का सरपंच बलवंत सुबह सुबह ही अखबार लेकर यशवन्त के घर जा पहुंचा।वह उसे अखबार देते हुए बोला,"ले इसे पढ़।"
यशवन्त ने अखबार पढ़ा था।उसमें छपे समाचार को पढ़कर उसके अतीत के पन्ने फड़फड़ाकर खुलने लगे।
यशवन्त तुलजा का रहने वाला था।गांव में ही उसकी थोड़ी सी जमीन थी।जिस पर वह खेती करता था।उसकी शादी शालिनी से हुई थी।शादी के पांच साल बाद भी शालिनी के पैर भारी नही हुए तो उसे चिंता हुई।शालिनी ने अपनी चिंता पति को बताई।यशवन्त पत्नी को लातूर ले गया।उसने पत्नी को स्त्री रोग के डॉक्टर को दिखाया।डॉक्टर ने पति पत्नी दोनों के ही टेस्ट कराए।रिपोर्ट देखने के बाद डॉक्टर बोली,"मा बनने की पचास प्रतिशत संभावना है।"
हर विवाहित औरत की साध होती है मातृत्व।माँ बनकर ही औरत सम्पूर्ण कहलाती है।इसलिए हर औरत माँ बनना चाहती है।शालिनी भी माँ बनना चाहती थी,ताकि उसके वंश की व्रद्धि हो सके।डॉक्टर कि बात सुनने के बाद उसने व्रत उपवास का सहारा लिया।गढ़े ताबीज भी कराए।पति के साथ मन्नत माँगने के लिए वह तिरुपति भी गई।जिसने जो बताया,शालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए वो उपाय किया।और आखिर शादी के दस साल बाद आस बंधी थी।
पत्नी के गर्भवती होने पर यशवन्त की खुशी का ठिकाना नही रहा।लेकिन उसकी खुशी ज्यादा दिनों तक स्थायी नही रह सकी।वह चाहता था,उसके लड़का पैदा हो।इसलिए वह लिंग परीक्षण के लिए पत्नी को शहर ले गया।कानूनी रुप से लिंग परीक्षण पर रोक है।वह कई डॉक्टरों से मिला ।सबने मना कर दिया।काफी प्रयास के बाद एक डॉक्टर शालिनी का लिंग परीक्षण करने के लिए तैयार हो गया।
जब यशवन्त को पता चला पत्नी के गर्भ में लड़की है,तो वह आग बबूला हो गया।वह वंश वर्द्धि करने वाली संतान लड़का चाहता था।पत्नी शादी के दस साल बाद गर्भवती भी हुई,तो लड़की से।उसने पत्नी से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था,"मुझे लड़की नही चाहिए।"
"लड़का लडक़ी में कोई फर्क नही है।"शालिनी ने पति को समझाने का भरसक प्रयास किया,लेकिन वह नही माना।पति की जिद्द पर शालिनी को गर्भपात के लिए तैयार होना पड़ा।
यशवन्त पत्नी को लेकर कई डॉक्टर के पास गया।लेकिन कन्या भ्रूण हत्या कानूनन अपराध है।इसलिए कोई डॉक्टर शालिनी के गर्भपात को तैयार नही हुआ।तब उसने गांव कि बूढ़ी दाई का सहारा लिया।दाई ने देशी जड़ी बुटीयो का काढा बनाकर शालिनी को पिलाया।पर व्यर्थ।
यशवन्त के न चाहने पर भी उसके यंहा बेटी ने जन्म ले ही लिया।वह बेटी नही चाहता था।वह उसके लिए अवांक्षित थी।बेटी के जन्म से वह बिल्कुल खुश नही था।इसलिए उसने उसका नाम नाकुशी रख दिया।
यशवन्त ने कभी भी अपनी बेटी की तरफ प्यार से नही देखा था।वह उसे हमेशा दुत्कारता फटकारता रहता।वह उसे पढ़ाना भी नही चाहता था।इसलिए जब पत्नी ने उसे स्कूल भेजने के लिए कहा तो वह बोला,"इसे कौनसी नौकरी करनी है।"
यशवन्त ने पत्नी के कहने पर बेटी का स्कूल में भर्ती नही कराया।लेकिन गांव के सरपंच के समझाने पर उसे बेटी को स्कूल भेजना पड़ा।
नाकुशी बचपन से ही पढने में तेज थी।मास्टर हमेशा उसकी तारीफ करते थे।लेकिन यशवन्त को बेटी की प्रशंसा सुनकर कभी भी खुशी नही हुई।शालिनी हमेशा बेटी का साहस बढ़ा कर प्रेरित करती रहती।माँ की प्रेरणा का ही असर था कि बेटी ने इन्टर.की परीक्षा पूरे जिले में टॉप रहकर की थी।