शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 31 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 31

पेंटिंग

सार्जेंट सलीम को खुफिया विभाग के हेडक्वार्टर छोड़ने के बाद इंस्पेक्टर मनीष सीधे कोतवाली पहुंचा था। वहां कुछ देर बैठने के बाद वह दो सिपाहियों के साथ विक्रम के खान के स्टूडियो की तरफ निकल गया। वह एक बार पहले भी वहां जांच करने के सिलसिले में जा चुका था। तब विक्रम के खान ने उसे बुलाया था। आज वह स्टूडियो को सील करने के लिए जा रहा था।

वहां पहुंचने पर उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा। स्टूडिया का ताला टूटा हुआ था। अलबत्ता दरवाजा बंद था। मनीष ने दरवाजा खोला और सीधे अंदर पहुंच गया। पिछली बार हाल में पेंटिंग का अंबार लगा हुआ था, लेकिन आज सब कुछ व्यवस्थित था। उसने हाल का बड़ी बारीकी से जायजा लिया था। उसके बाद वह दूसरे कमरे में चला गया।

इस कमरे में विक्रम आराम किया करता था। वहां बेड पर एक न्यूड पेंटिंग रखी हुई थी। यह एक जवान औरत की पेंटिंग थी। पेंटिंग बहुत खूबसूरत थी। पेंटिंग में एक विदेशी महिला बिना कपड़ों के लेटी हुई थी। उसके लंबे सुनहरे बाल उसके सीने पर बिखरे हुए थे। मनीष जब पिछली बार यहां आया था, तो वह पेंटिंग वहां पर नहीं थी। उसे आश्चर्य हुआ। उसने मोबाइल से पेंटिंग की दो-तीन तस्वीरें उतार लीं। इसके बाद उसने कमरे का मुआयना किया और फिर बाहर निकल आया।

दोनों सिपाही बाहर खड़े हुए थे। उसने सिपाहियों से दरवाजे पर ताला लगाकर उसे सील करने के लिए कहा। सिपाहियों ने साथ लाया ताला लगा दिया। इसके बाद उस पर सूती कपड़ा लपेट कर कपड़े को किसी तरह सूई और धागे से सी दिया। बाद में बीचों-बीच मोमबत्ती से लाख पिघलाकर लगाया और उस पर पुलिस की मोहर मार दी। इस काम से फारिग होने के बाद मनीष नीचे आ गया।

बाहर आने के बाद उसने इंस्पेक्टर सोहराब का फोन कई बार मिलाया, लेकिन वह नॉट रीचबल बताता रहा।


दस्तावेज


सार्जेंट सलीम ऑफिस में बैठा शेयाली की फाइल को ध्यान से पढ़ता रहा। वह एक-एक प्वाइंट को बड़े ध्यान से पढ़ रहा था। कुछ बातें वह अपनी जेबी डायरी में नोट भी करता जा रहा था। जरूरी बातें मोबाइल के नोटपैड में भी लिखी जा सकती थीं, लेकिन सोहराब और सलीम हमेशा इससे गुरेज करते थे। सोहराब का साफ कहना था कि मोबाइल फोन सेफ नहीं होते। न तो जरूरी बातें उस पर की जानी चाहिए न ही उसमें कुछ नोट किया जाना चाहिए। इस बात का दोनों ही ख्याल रखते थे।

सलीम को पूरी फाइल खंगालने में तकरीबन डेढ़ घंटे लग गए। कुछ सवाल थे, जिसे उसने डायरी में नोट किया था। यह सवाल उसे बेचैन कर रहे थे। पहला सवाल खुद शेयाली थी, यानी उसकी रहस्यमय मौत। दूसरा सवाल वह मोबाइल ऐप था, जिसकी लांचिंग उसकी मौत के ही दिन बड़ी खामोशी से की गई थी। आखिर उस मोबाइल ऐप का राज क्या था? तीसरा सवाल पेंटर विक्रम के खान की खुदकुशी थी। आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी थी, जिससे विक्रम हार गया था और मौत को गले लगा लिया था? हाशना और श्रेया भी एक सवाल थीं। श्रेया पर हमले क्यों हो रहे थे और हर एपिसोड में वह मौजूद थी। हाशना के बाल का डीएनए कराया जा रहा था।

सार्जेंट सलीम ने जेब से वानगॉग का पाउच निकाल लिया और पाइप में तंबाकू भरने लगा। अचानक उसके जेहन में शेयाली की फिल्म की बात कौंध गई। शेयाली की मौत के बाद भी फिल्म बन रही थी। सार्जेंट सलीम, कैप्टन किशन और शैलेष जी अलंकार को पूरे मामले में कहीं फिट नहीं कर पा रहा था। उसने पाइप सुलगा लिया और हल्के-हल्के दो-तीन कश लेने के बाद फिर से कलम और डायरी संभाल ली। एक सवाल अचानक उसके जहेन में कौंधा था। कहीं ऐसा तो नहीं है कि शेयाली की मौत के बाद उसकी सारी प्रॉपर्टी कैप्टन किशन के पास चली जानी थी। इसी वजह से उसे रास्ते से हटा दिया गया! उसने पाइप की राख ऐश ट्रे में झाड़ दी और पाइप जेब में रख लिया।

सलीम ने ऑफिस के लैंड लाइन से एक नंबर डायल किए और उधर से आवाज आने पर कहा, “कैप्टन किशन का वकील कौन है?”

दूसरी तरफ से उसे नाम बता दिया गया। इसके बाद वह ऑफिस से बाहर आ गया। तकरीबन एक किलोमीटर पैदल चलकर वह खुफिया विभाग के अहाते से बाहर आ गया। गेट से बाहर आने के बाद वह एक तरफ पैदल ही चल दिया। यह इलाका शहर से बाहर था। इधर प्राइवेट टैक्सियां नहीं आती थीं। सार्जेंट सलीम चाहता तो ऑफिस की कार इस्तेमाल कर सकता था, लेकिन उसने इससे गुरेज किया था।

तकरीबन तीन किलोमीटर पैदल चलने के बाद उसे प्राइवेट टैक्सी मिल गई। टैक्सी पर बैठने के बाद उसने ड्राइवर से लिंकन रोड चलने के लिए कहा। कुछ देर बाद ही टैक्सी फर्राटे भरने लगी। सलीम ने जेब से डायरी निकाल ली और उस पर की गई नोटिंग को देखने लगा।

सलीम को कुछ देर बाद टैक्सी ने एक मल्टी स्टोरी बिल्डिंग के सामने उतार दिया। पूरी बिल्डिंग में वकीलों के ऑफिस बने हुए थे। बिल्डिंग के बाहर बैठे गार्ड से उसने संदर्भ सिंह एडवोकेट के बारे में पूछा। उसने बिल्डिंग और फ्लैट नंबर सलीम को बता दिया। इसके बाद वह लिफ्ट की तरफ बढ़ गया।

कुछ देर बाद सलीम एडवोकेट संदर्भ सिंह के सामने था। यह एक बूढ़ा सा आदमी था। शक्ल से कॉफी चिड़चिड़ा लग रहा था। उसने गोल चश्मा लगा रखा था। संदर्भ ने चश्मे के ऊपर से सलीम को घूर कर देखा। सलीम ने जेब से अपना कार्ड निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दिया।

“आपको अपाइंटमेंट लेकर आना चाहिए था।” संदर्भ ने खरखराती सी आवाज में कहा।

“मैं माफी चाहता हूं, लेकिन अर्जेंट था इसलिए सीधे चला आया।”

“खुफिया विभाग को मेरी क्या जरूरत पड़ गई?” बूढ़े ने त्योरी चढ़ाकर पूछा।

“क्या आप कैप्टन किशन के वकील हैं?” सलीम ने पूछा।

“हूं तो?” संदर्भ का लहजा डपटने वाला था।

संदर्भ के इस तरह से बात करने पर सलीम को गुस्सा तो बहुत आ रहा था, लेकिन उसका लहजा अभी भी मुलायम था।

“जनाबेआली! मैं आपसे यह जानना चाहता हूं कि शेयाली ने क्या कोई वसीयत तैयार कराई थी।” सलीम ने नर्मी से पूछा।

“बहुत देर से जागे। यह बात तो आपको शेयाली के गायब होने के बाद ही मालूम करनी चाहिए थी।” संदर्भ ने व्यंगात्मक लहजे में कहा।

“आप दुरुस्त फरमा रहे हैं, लेकिन विक्रम के खान शेयाली का वारिस था, इसलिए हमारे लिए यह सवाल विक्रम की मौत के बाद ज्यादा मौजू है।”

जवाब में संदर्भ कुछ नहीं बोला और झुक कर सामने रखी फाइल स्टडी करने लगा।

सलीम का मूड बुरी तरह ऑफ हो रहा था। वह बैठा अजीब-अजीब मुंह बनाता रहा। संदर्भ का जूनियर वकील की उस पर नजर पड़ी तो उसकी हंसी निकल पड़ी। उसने बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोकी। काफी देर हो गई तो सलीम ने तेज आवाज में खंखारा।

“सब्र रखिए।” बूढ़े ने उसकी तरफ देखे बिना कहा।

कुछ देर बाद बूढ़े ने फाइल बंद करके एक तरफ रख दी। उसके बाद उसने कहा, “मिस्टर जासूस! शेयाली की अभी इतनी उम्र नहीं थी कि वह अपनी वसीयत तैयार करवाती।”

सार्जेंट सलीम आश्चर्य से संदर्भ का चेहरा तकता रह गया। इसके बाद बूढ़े ने जूनियर वकील से एक अलमारी से शेयाली की फाइल निकालने के लिए कहा। जूनियर वकील ने फाइल संदर्भ के सामने रख दी। उसने फाइल से एक कागज निकाल कर सार्जेंट सलीम को दे दिया। सलीम बड़े ध्यान से कागज को पढ़ने लगा। यह कैप्टन किशन की तरफ से तैयार कराया गया एक कानूनी दस्तावेज था। इसके मुताबिक शेयाली का बंगला और उसकी बाकी दौलत लड़कियों के अनाथ आश्रम को दान कर दी गई थी। आश्चर्य की बात यह थी कि दस्तावेज पर आज की तारीख पड़ी थी। यानी यह दस्तावेज विक्रम के खान की मौत के बाद तैयार कराया गया था।

यह एक महत्वपूर्ण सूचना थी। सलीम ने दस्तावेज पढ़कर संदर्भ को वापस कर दिया। संदर्भ ने दस्तावेज लेते वक्त रहस्यमयी अंदाज में सार्जेंट सलीम की तरफ मुस्कुरा कर देखा था। उसकी मुस्कुराहट से सलीम के बदन में झुरझुरी दौड़ गई थी। सलीम तुरंत ही वहां से उठ गया और ऑफिस से बाहर आ गया।

उसके बाहर निकलते ही संदर्भ ने किसी का फोन डायल किया था।

लिफ्ट से सलीम नीचे आ गया और टहलता हुआ सड़क पर पहुंच गया। उसने टैक्सी रोकी और पीछे का गेट खोलकर उस पर सवार हो गया। उसने टैक्सी ड्राइवर से शेक्सपियर कैफे चलने के लिए कहा। टैक्सी के आगे बढ़ते ही सार्जेंट सलीम का एक कार ने पीछा शुरू कर दिया था।


चीख


नकाबपोश तकरीबन सवा घंटे तक शेयाली के कमरे में था। कमरे से बाहर निकल कर उसने फिर से उसमें ताला लगा दिया। उसके बाद वह बगल के दूसरे कमरे में चला गया। दरवाजे पर कुंडी लगी हुई थी, लेकिन यहां ताला नहीं लगा था। यह कमरा शायद मेहमानखाना था। यहां ज्यादा सामान भी नहीं था। नकाबपोश ने टार्च की रोशनी में वार्डरोब खोलकर देखा। उसमें कुछ कपड़े टंगे हुए थे। उसने बेड का गद्दा भी उलट-पलट कर देख डाला।

नकाबपोश ने अपनी विशेष टार्च बंद कर दी और कमरे से बाहर निकल आया। बाहर चारों तरफ गहरा अंधेरा फैला हुआ था। कुछ झींगुरों की झांय-झांय के सिवा कोई आवाज नहीं थी। नकाबपोश ने दरवाजे में कुंडी लगा दी। वह जैसे ही पीछे पलटा कि किसी चीज से टकरा गया। टकराने वाली चीज जमीन पर गिर पड़ी और साथ ही एक लड़की की चीख हवा में गूंज कर रह गई।

*** * ***

मनीष को क्या गायब पेंटिंग मिल गई थी?
शेयाली के बंगले में नकाबपोश से टकराने वाली लड़की कौन थी?

इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर का अगला भाग...