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विश्वासघात--भाग(१७)

जब सबने सुना कि साधना बुझी बुझी सी रहती है तो ये सुनकर किसी को अच्छा नहीं लगा,रात को जब लीला और शक्तिसिंह जी अपने कमरें थे तब उनके बीच कुछ बातें हुई तब लीला से शक्तिसिंह जी बोले____
इसका मतलब़ है वो डिटेक्टिव सही कह रहा था कि साधना बहन को उस घर में बहुत कष्ट है,वो बेचारी इतनी सीधी सादी,कितना भक्तिभाव है उनके मन में,बेचारी की ऐसी दशा हो रही है,इतना क्यों सह रही है बेचारी!उस नटराज के ख़िलाफ़ आवाज़ क्यों नहीं उठाती।।
आप नहीं समझेगें जी! वो एक औरत है और औरत हमेशा ये सोचती है कि उसकी गृहस्थी बिखरने ना पाएं और अपने माँ बाप के दिए संस्कारों की वज़ह से उसे चुप रहना पड़ता है,वो नहीं चाहती कि उसकी वज़ह से सारे समाज के सामने उसके पति की इज्जत का तमाशा बनें और मेरे ख्याल से कोई भी औरत अपने परिवार का नाम नहीं उछालना चाहेंगीं इसलिए औरतें सबकुछ सहकर भी चुप रहतीं हैं लेकिन उसकी ख़ामोशी को कोई ये समझें कि वो चुप बैठी क्योंकि जब उसके सिर से पानी ऊपर हो जाता है और जब वो अपनी चुप्पी तोड़ती है तो फिर केवल ज़लज़ले ही आते हैं,लीला बोली।।
वाह..जी! क्या बात कही है तुमने! लेकिन जो नटराज कर रहा है उसके लिए उसे बहुत बड़ी कीमत चुकानी होगी,देख लेना,शक्तिसिंह जी बोले।।
वो तो है जी! बुराई के बदले कभी भलाई नहीं मिलती और जो नटराज ने बोया है वही तो काटेगा,क्योंकि भगवान के घर देर है अँधेर नहीं,लीला बोली।।
सही कहती हो जी! लेकिन अब आगें क्या सोचा है? कैसे और राज जानोगी नटराज के,शक्तिसिंह जी बोले।।
चिंता ना कऱो जी! वो सब मैने सोच लिया है,तुम बस इतवार की तैयारी करो,बाकी़ मैं सम्भाल लूँगीं,लीला बोली।।
मधु तो आ रही है ना! शक्तिसिंह जी ने पूछा।।
हाँ! साधना बहन! तो कह रहीं थीं कि वो उसे लेकर जुरूर आएंगीं,लीला बोली।।
अच्छा! ये बताओ जी! तुम्हें ये पता है कि मधु और प्रदीप के बीच बातचीत शुरू हुई क्योंकि जो प्रदीप ने सबके सामने मधु के संग व्यवहार किया था,मुझे तो नहीं लगता कि मधु ने अभी तक प्रदीप से बात की होगी,शक्तिसिंह जी ने लीला से पूछा।।
ये बात तो मुझे नहीं मालूम जी लेकिन ये बात प्रदीप से कुसुम पूछ सकती है,हम बड़ो का ये सब पूछना अच्छा नहीं लगता,लीला बोली।।
सही कहती हो जी! तुम कुसुम से कहकर देखों वो पूछेगी कि अभी तक मसला हल हुआ या नहीं,शक्तिसिंह जी बोले।।
ठीक है जी! मैं कुसुम से सुबह बात करूँगीं,लीला बोली।।
और शक्तिसिंह और लीला के बीच ऐसे ही बातें चलतीं रहीं____

सुबह हुई लीला ने कुसुम से पूछा____
कुसुम बिटिया! इधर तो आ जरा!
हाँ,लीला माँ,कहो क्या बात है? कुसुम ने पूछा।।
अरे,तुझे ये मालूम है क्या?कि प्रदीप और मधु के बीच बात शुरु हुई या नहीं,लीला ने कुसुम से पूछा।।
ना माँ! मुझे कैसे मालूम होगा,इस मामले में तो प्रदीप भाई से मेरी कोई बात ही नहीं हुई,कुसुम बोली।।
तो पता कर सकती है,जरा प्रदीप से पूछ,मैं पूँछूगी तो थोड़ा अच्छा नहीं लगेगा,लीला बोली।।
ठीक है,लेकिन प्रदीप तो कल ही आएगा,क्योंकि कल उसकी सालगिरह जो मनानी है,कुसुम बोली।।
ठीक है तो कल ही पूछ लेना,अच्छा ऐसा कर तू रहने दे,कल अगर सालगिरह मे मधु आई तो खुदबखुद पता चल जाएगा,लीला बोली।।
हा,माँ! यही सही रहेगा,पूछने की जुरूरत ही नहीं है,कुसुम बोली।।
अच्छा,ठीक है तो चल कल की तैयारी करते हैं,क्या क्या बनाएं खाने में,लीला ने पूछा।।
एक दो तरह की सब्जियाँ,पूरी कचौरी,कुछ समोसे भी बना ही लेतें हैं, मीठे मे गुलाबजामुन और इमरतियाँ,आपको कुछ कमी लग रही तो बता दीजिए,कुसुम ने लीला से पूछा।।
ना! कुछ कमीं नहीं लग रही है,ऐसा करते हैं,समोसे और इमरतियाँ लच्छू हलवाई के यहाँ से मँगवा लेंगें बाक़ी हम दोनों मिलकर बना लेंगें क्योंकि अगर हम इतना बनाएंगे तो थक जाएंगे ,फिर शाम को दोनों थके हुए अच्छे नहीं लगेगें है ना!हा....हा...हा... हा...इतना कहते ही लीला हँस पड़ी।।
और दोनों माँ बेटी ऐसे ही बातें बातें करते करते योजनाएं बनाती रहीं।।

काँलेज में प्रदीप को फिर से मधु दिखी,प्रदीप का एक बार मन तो हुआ कि पूछे कि इतवार को मेरी सालगिरह में अपनी माँ के साथ आ रही हो ना! लेकिन मधु का रूख़ देखकर प्रदीप की हिम्मत ना पड़ी,मधु भी सोच रही थी कि प्रदीप आगे से बोले,लेकिन दोनों यही सोचते रहे कि पहले आप - पहले आप,मधु के मन में कई सवाल थे जो वो प्रदीप से पूछना चाहती थी लेकिन पूछ ना सकी तभी मधु की सहेली वीना आ पहुँची और वो प्रदीप से उस दिन के लिए माँफी माँगते हुए बोली____
मुझे माँफ कर दो प्रदीप! उस रात के लिए मैं बहुत शर्मिंदा हूँ,उस दिन से सोच रही थी कि तुमसे माँफ़ी माँगू लेकिन हिम्मत नहीं हुई।।
कोई बात नहीं वीना! कभी कभी नादानी में गल्तियाँ हो जातीं हैं,प्रदीप बोला।।
तभी वीना की बात सुनकर मधु बोल पड़ी____
शुक़र है वीना! तुझे थप्पड़ नहीं पड़ा,नहीं तो ऐसे ऐसे लोग हैं कि उनसे माँफी माँगो तो सरेबाज़ार थप्पड़ मारते हैं,तू तो नस़ीब वाली निकली जो तुझे थप्पड़ नहीं पड़ा।।
क्या मत़लब है तेरा मधु! क्या कहना चाहती है तू! वीना ने पूछा।।
कुछ नहीं यार! चल घर चलते हैं,मधु बोली।
तो तू अपनी साइकिल यहीं खड़ी कर दे,मेरी मोटर में चल,वीना बोली।।
नहीं यार! माँ ने कहा है कि सादगी से रहना सीख,वही कोशिश कर रही हूँ,वैसे भी मेरी गिनती तो बिगड़ी हुई लड़कियों में होती है,मधु बोली।।
अरे तू भी कैसी बातें करती है,चल घर चलें,वीना बोली।।
नहीं मैं साइकिल से ही जाऊँगी,तू जा ! नाह़क परेशान ना हो,मैं चली जाऊँगी,मधु बोली।।
अच्छा! ठीक है जैसी तेरी मर्जी,मैं जाती हूँ और इतना कहकर वीना चली गई।।
मधु ने भी अपनी साइकिल उठाई और वो भी निकल गई,आज प्रदीप भी साइकिल लेकर आया था और वो भी निकल पड़ा अपने कमरें की ओर,मधु आगें आगें और प्रदीप पीछ पीछे,दोनों चले जा रहे थे कि दो बदमाश लफंगे अपनी साइकिल से मधु का पीछा करने लगे,दोनों मधु के अगल बगल अपनी साइकिल चलाने लगें,कभी आगें तो कभीं पीछे,मधु को बहुत परेशानी भी हो रही थी, साथ साथ वो भद्दे शब्दों की छींटाकशीं भी कर रहे थे,ये सब प्रदीप पीछे से देख रहा था ,उसने अपनी साइकिल की रफ्त़ार बढ़ाई और उनके पीछे आ पहुँचा लेकिन तब तक उनमें से एक लफंगे ने मधु की साइकिल को जोर की टक्कर मारी और मधु साइकिल सहित जमीन पर जा गिरी।।
ये सब देखकर अब प्रदीप से ना रहा गया और उसने उनमें से एक लफंगे की शर्ट की काँलर पकड़ी और खींचकर दो थप्पड़ लगाकर जमीन पर पटक दिया , अब दूसरे की बारी थी, दूसरा तो डर के मारे कुछ नही बोला और पहले से ही माँफ़ी माँगने लगा,प्रदीप ने दोनों को धमकी दी कि आज के बाद किसी भी लड़की को छेड़ते हुए अगर मैने देख लिया तो जिन्दगी भर लूला लँगड़ा बनकर रहना पड़ेगा और जेल होगी सो अलग,दोनों लफंगों ने मधु से भी माँफी माँगी और भाग खड़े हुए।।
प्रदीप ने मधु को देखा तो वो अपने कपड़ो से मिट्टी झाड़ रही थीं,प्रदीप ने पूछा___
कहीं चोट तो नहीं आई।।
ये हमदर्दी का नाटक किसके सामने दिखाते हो मिस्टर!मधु गुस्से से बोली।
क्या मतलब़ है तुम्हारा? प्रदीप ने पूछा।।
यही कि पहले लफंगों को मेरे पीछे लगाते हो फिर उन्हें धमकाकर मेरा भरोसा जीतना चाहते हो,मधु बोली।।
क्या बकती हो? ये फ़ितूर कहाँ से आया तुम्हारे दिमाग़ में,तुम पागल हो,सरफिरी हो,कोई तुम्हारी भलाई करता है और तुम उस पर ऐसा घटिया इल्जाम लगा रही हो,शरम नहीं आती तुम्हें,प्रदीप गुस्से से बोला।।
और तुम्हें आती है शरम,किसी लड़की पर सरेबाज़ार हाथ उठाने में,मधु भी गुस्से से बोली।।
बोला ना ! कि हो गई गलती,माँफी भी तो माँगने आया था तुम्हारे पास लेकिन नहीं मैडम जी के तो भाव ज़ो बहुत बढ़े हैं ,प्रदीप बोला।।
हाँ बढ़े हैं भाव! क्या कर लोगे? जो बिगाड़ना हो तो बिगाड़ लेना मेरा,मेरे पास ना तो किसी की बकवास सुनने का टाइम है और ना किसी से बकवास करने का टाइम है,मैं जा रही हूँ,इतना कहते ही मधु चली गई।।
हाँ....हाँ....अरे!जाओ...जाओं... तुमसे बात ही कौन करना चाहता हैं,चोरी की चोरी ऊपर से सीनाजोरी,गलती करो तुम और माँफ़ी माँगें हम,ये अच्छा है भाई!प्रदीप पीछे से चिल्लाते हुए बोला।।
मधु घर पहुँची और किसी से बिना कुछ कहें सीधे अपने कमरें में चलीं गई,साधना भाँप गई कि शायद आज फिर कुछ हुआ है,वो मधु के कमरें पहुँची और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली___
क्या हुआ? तू इतनी गुस्से में क्यों हैं?
कुछ नहीं माँ! वो संदीप का बच्चा! उसे तो मै किसी दिन अच्छा मज़ा चखाऊँगी,मधु बोली।।
फिर वही आदत,तू तो मेरी अच्छी बेटी है,ऐसे बात बात पर गुस्से नहीं करते,अच्छा क्या हुआ बोल,साधना ने पूछा।।
अरे,कुछ नहीं माँ! ऐसे ही ,मधु बोली।।
अच्छा नहीं बताना चाहती तो मत बता,चल हाथ मुँह धो ले मैं खाना लगाती हूँ,मैने भी अभी तक खाना नहीं खाया सोचा तू आ जाएंगी तो साथ साथ खाएंगे।।
अच्छा! ठीक है माँ! तुम चलो,मैं अभी आई और ऐसे दिन ब्यतीत हो गया।।

इतवार का दिन___
सुबह ही दोनों भाई शक्तिसिंह जी के बँगले पहुँच गए थे,सबने सुबह का नाश्ता और दोपहर का खाना साथ में ही खाया और फिर सालगिरह की तैयारियों में लग गए,तैयारियाँ करते करते शाम हो गई,लीला और कुसुम ने भी रसोई का सारा काम निपटा लिया था,लीला ने सबसे कहा कि जाओं अब सब जाकर तैयार हो जाओ,सबने कहा ठीक है और सब तैयार होने चले गए।।
एकाध घंटे में सब तैयार होकर निकले और मेहमानों का इन्तज़ार करने लगें,कुसुम ने कलाकेन्द्र की अपनी दो तीन ख़ास सहेलियों को भी बुलाया था और संदीप ने भी अपने दो एक ख़ास दोस्तों को परिवार सहित बुलाया था ताकि ये ना लगें कि और मेहमान नहीं आएं।।
कुछ ही देर में मेहमानों ने आना शुरू कर दिया,पहले कसुम की सहेलियाँ आईं और फिर संदीप के दोस्त लेकिन जो ख़ास मेहमान थे जिनका सबको इंतजार था वो अभी तक नहीं पहुँचे थे।।

उधर मधु के घर में___
चल मधु बेटी !, तैयार हो जा,वो हमारा इंतजार कर रहे होगें,साधना बोला।।
कौन इंतज़ार कर रहा होगा?कहाँ जाना है? मधु ने पूछा।।
मै तो भूल ही गई तुझे बताना,आज प्रदीप की सालगिरह है,उसकी माँ न्यौता देने आई थी,साधना बोली।।
मुझे कहीं नहीं जाना! तुम अकेली चली जाओ ना माँ!मधु बोली।।
ना उन्होंने कहा था कि मधु बिटिया को जरूर लाना,साधना बोली।।
ना माँ ! मेरा मन नहीं है,मधु फिर से बोली।।
मुझे अकेले जाते अच्छा नहीं लगेगा,साधना बोली।।
मैं जाऊँ! वो भी उस प्रदीप की सालगिरह में,मधु बोली।।
चल ना बिटिया! तैयार हो जा! क्यों तंग करती है,मैं वैसे भी कहीं आती जाती नहीं,बड़े दिनों बाद तो किसी के यहाँ जा रही हूँ और तू हैं कि नखरे कर रही है,साधना बोली।।
अच्छा!ठीक है तुम्हारी खुशी के लिए तो कहीं भी जा सकती हूँ,मैं अभी तैयार होकर आई,मधु बोली।।
सुन! ये मैने तेरे लिए पहले से निकाल कर रखी है,तू आज इसे ही पहन,साधना बोली।।
ये साड़ी ,मैनें तो आज तक नहीं पहनी,मधु बोली।।
आज तुझे मैं तैयार करती हूँ,देखना आज तो परियों जैसे लगेगी,साधना बोली।।
और साधना ने मधु को तैयार किया,आज मधु एकदम परियों जैसी लग रही थी,दोनों माँ बेटी तैयार होकर मोटर में बैठे और निकल पड़े प्रदीप की सालगिरह मनाने।।

क्रमशः____
सरोज वर्मा___





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