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नफीस की आदत थी कि अपने इन्वेस्टीगेशन के दौरान उसकी किसी से भी बातचीत होती थी तो वह उसे रिकॉर्ड कर लेता था। उस दिन यॉट पर जो घटा पप्पू ने जैसा बताया था उसे सुनकर नफीस ने अपने लैपटॉप पर लिख लिया था।
नवीन मानवी को उसी तरह गन प्वाइंट पर लिए हुए कैप्टन के केबिन से बाहर आया। उसने पंकज और उसके साथी को धमकाया,
"मेरे आदमियों को छोड़ दो।"
पंकज और उसका साथी कुछ करते उससे पहले ही एक गोली चली। नवीन पप्पू के सामने ही ज़मीन पर गिर गया। पप्पू ने देखा कि वह गोली अंजन ने चलाई थी। मानवी अपनी जगह पर खड़ी डर कर जोर जोर से रो रही थी। अंजन उसके पास गया और उसे चुप कराने का प्रयास करने लगा। घबराई हुई मानवी कस कर उसकी छाती से चिपक गई।
अंजन प्यार से उसके सर पर हाथ फेर रहा था।
पप्पू ने बताया कि अंजन के एक साथी को इस बात की भनक लग गई थी कि नवीन अपने साथियों के साथ मानवी को किडनैप करने जा रहा है। वह फौरन अपने साथियों के साथ उसे बचाने के लिए निकल पड़ा।
यॉट पर जिस तरह से अंजन ने मानवी को बचाया था वह उन दोनों के प्यार का आधार बना था।
नफीस को अब यह जानना था कि रघुनाथ परिकर उनके रिश्ते के लिए कैसे तैयार हो गया ?
उन दिनों नफीस एक मराठी अखबार शहर च्या दर्पण में काम करता था। क्राइम रिपोर्टिंग करते हुए उसकी बहुत से लोगों से जान पहचान हो गई थी। इनमें से एक था कुशल पालेकर। कुशल परिकर कंस्ट्रक्शन्स में इंजीनियर था। उसका काम के सिलसिले में रघुनाथ परिकर से मिलना जुलना होता रहता था। नफीस जानता था कि कुशल को अंदर की बातें पता करने का शौक है। पहले भी वह कई बार कुछ बातें पैसों के लालच में उसे बता चुका था।
नफीस को उम्मीद थी कि इस बार भी वह उसके काम आ सकता है। उसने कुशल से संपर्क कर उसे मिलने बुलाया।
कुशल उसी ईरानी कैफे में उससे मिला जहाँ पहले भी दोनों मिल चुके थे। नफीस ने उसके सामने अपना सवाल रखा,
"कुशल तुमने पहले भी मुझे रघुनाथ परिकर के बारे में सटीक खबरें दी हैं। इस बार भी मैं तुमसे कुछ जानने के लिए ही आया हूँ। तुम्हें तो पता है कि रघुनाथ ने अपनी इकलौती बहन की इंगेजमेंट अंजन विश्वकर्मा से कर दी है। तुम जानते हो कि अंजन रघुनाथ के लिए क्या काम करता था। फिर रघुनाथ इतनी आसानी से उसे अपना बहनोई बनाने को कैसे तैयार हो गया ? यही नहीं उसे अपने बिज़नेस में पार्टनर भी बना लिया।"
कुशल ने कहा,
"मानवी और अंजन को बहुत से लोगों ने एक साथ देखा था। दोनों के बीच एक रिश्ता है। रघुनाथ ने उसी रिश्ते को नाम देने का काम किया है।"
नफीस जानता था कि उसने टालने वाला जवाब दिया है। वह बोला,
"फिर भी मुझे नहीं लगता है कि रघुनाथ इतनी आसानी से मान गया होगा।"
कुशल ने हंसकर कहा,
"बात तो सही है तुम्हारी। मुझे भी यही लगता है कि इसमें जरूर कोई गहरी बात है। लेकिन मैंने पता करने की कोशिश नहीं की थी। जो भी हो उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
नफीस समझ गया कि कुशल का इशारा किस तरफ है। उसने जेब से वॉलेट निकाल कर कुछ पैसे देते हुए कहा,
"मैंने भी तुमसे बेमतलब काम कब करवाया है। अब तो ठीक है ना।"
कुशल ने पैसे गिने। अपनी जेब में रखने से पहले इधर उधर देखा। उसके बाद बोला,
"यह बहुत अंदर की बात है। यह बात निकालना इतना आसान नहीं होगा। अभी इतने रख लेता हूंँ। लेकिन इस बार काम के बाद कुछ और देना होगा।"
"ठीक है... लेकिन हर बार की तरह खबर एकदम पक्की होनी चाहिए।"
"उसकी फिक्र मत करो। दो दिन बाद मैं तुम्हें फोन करके यहीं बुलाऊँगा।"
कुशल उठकर चला गया। नफीस ने कैफे का बिल चुकाया और वहाँ से निकल गया।
वह अपने अखबार के मालिक गौतम उसगांवकर के घर पहुँचा। गौतम ने कहा,
"नफीस कैसे आना हुआ ? कोई खास खबर ?"
"सर आजकल अपने एरिया में एक बात बहुत चर्चा की है। रघुनाथ परिकर ने अपनी बहन मानवी का रिश्ता अपने एक मामूली से आदमी अंजन से पक्का कर दिया है। सभी जानना चाहते हैं कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है। अभी तक किसी के पास भी इस मामले में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन मैं आपको यह जानकारी लाकर दे सकता हूंँ।"
नफीस की बात सुनकर गौतम उसकी बात पर विचार करने लगा। नफीस ने कहा,
"सर अगर हमारे अखबार में सही बात छप गई तो हमारे अखबार का सरकुलेशन कितना बढ़ जाएगा।"
गौतम ने कहा,
"क्या गारंटी है कि ऐसा हो। फिर जो खबर छपे वह सही ही हो। यह भी कैसे कहा जा सकता है।"
नफीस ने हंसकर कहा,
"क्या सर ? आप तो मुझ से बहुत अधिक अनुभवी हैं। जानते हैं कि लोग वह जानने में ज्यादा इच्छुक होते हैं जो रहस्य की बात हो। आजकल यह बात किसी रहस्य से कम नहीं है। अगर हमारा अखबार इस रहस्य से पर्दा उठाएगा तो लोग हमारा अखबार ही खरीदेंगे। रही बात खबर के पक्के होने की तो आज तक मैंने जो भी खबर लाकर दी है कच्ची नहीं रही।"
गौतम एक बार फिर उसके प्रस्ताव पर विचार करने लगा। नफीस ने अपनी बात जारी रखी,
"सर जो खबर मैं लेकर आऊंँगा एकदम सटीक होगी। लेकिन खबर निकालने में खर्च होगा।"
गौतम ने उसकी ओर देखकर कहा,
"कितना लगेगा ?"
नफीस ने मन ही मन हिसाब लगाकर रकम बता दी। गौतम ने कहा,
"इतने पैसे ज्यादा नहीं हैं ?"
"बिल्कुल नहीं सर। एकदम वाजिब हैं। मेरी गारंटी है कि आप इस खबर को छापने के बाद बहुत खुश होंगे।"
"अगर बात उल्टी हो गई तो ?"
"सर आप जितना ना सही पर अनुभव तो मेरे पास भी है। उसी अनुभव के आधार पर कह रहा हूंँ। अगर मैंने जो कहा है वह ना हुआ तो आप सारी रकम मेरी तनख्वाह से काट लीजिएगा।"
गौतम मुस्कुरा दिया। नफीस समझ गया कि उसका काम हो गया। गौतम ने नफीस की बताई हुई रकम उसे दे दी।
दो दिनों के बाद नफीस उसी ईरानी कैफे में कुशल की राह देख रहा था। करीब दस मिनट इंतज़ार के बाद कुशल कैफे पहुँचा। अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोला,
"सॉरी देर हो गई। पर तुम्हारा काम पुख्ता किया है।"
नफीस ने कहा,
"पहले पूरी बात बताओ। तब तय होगा कि काम पुख्ता हुआ है कि नहीं।"
"ठीक है सब सुनकर ही फैसला करो।"
कुशल ने उसे वह बताया जो उसने पता किया था।
मानवी और अंजन एक दूसरे को प्यार करने लगे थे। दोनों अक्सर एक दूसरे से मिलते थे। कई लोगों ने उन्हें एक साथ देखा था। इस बारे में बातें भी होने लगी थीं। सबसे पहले यह बात मानवी के छोटे भाई यदुनाथ के कान में पड़ी। उसने जब यह सुना कि उसकी छोटी बहन उनके यहाँ काम करने वाले अंजन को प्यार करती है। उसके साथ घूमती फिरती है तो वह बहुत गुस्सा हुआ। उसने मानवी को बुलाकर उसे खूब डांट लगाई।
रघुनाथ मानवी का बड़ा भाई था। लेकिन उसकी आई ने मरते समय सात साल की मानवी की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी थी। बाइस साल की उम्र में रघुनाथ अपनी बहन का पिता बन गया था। उसने मानवी को अपनी औलाद की तरह ही पाला था। मानवी से बढ़कर उसके लिए दुनिया में कुछ नहीं था।
यदुनाथ मानवी और अंजन की शिकायत लेकर रघुनाथ के पास पहुँचा। सब सुनकर रघुनाथ को गुस्सा तो आया किंतु मानवी की जगह अंजन पर। उसने अपने भाई रघुनाथ से कहा कि मानवी तो बच्ची है। उसे दुनियादारी का अधिक ज्ञान नहीं है। ज़रूर अंजन ने उसे बरगलाया होगा। उसने यदुनाथ से कहा कि वह अंजन से मिलना चाहता है। लेकिन उससे जो भी कहना होगा वह खुद ही कहेगा। यदुनाथ सिर्फ उसे संदेशा दे कि वह उससे मिलना चाहता है।
खंडाला के पास परिकर कंस्ट्रक्शंस के एक होटल का काम चल रहा था। यदुनाथ ने अंजन को वहीं आने को कहा। सही समय पर अंजन रघुनाथ से मिलने के लिए पहुंँच गया।
रघुनाथ ने अंजन को घूर कर देखा। उसके बाद सख्त लहज़े में कहा,
"जब मैंने तुम्हें काम पर रखने के लिए बुलाया था तब मैंने तुमसे पूँछा था कि तुम्हारी इमानदारी किसके लिए है। तब तुमने कहा था कि पैसों के लिए।"
अंजन ने कहा,
"जी याद है..."
रघुनाथ ने उसी अंदाज़ में कहा,
"तब मैंने भी कहा था कि मुझसे धोखा करने वाला जिंदा बच जाए यह मुमकिन नहीं है।"
अंजन ने निडरता से कहा,
"लेकिन मैंने तो आपके साथ कोई धोखा नहीं किया।"
रघुनाथ गुस्से से चिल्लाया,
"तुम सोचते हो कि मेरी बहन को बहका कर तुम अपने मंसूबों में कामयाब हो जाओगे। मेरी बराबरी पर आ जाओगे। लेकिन याद रखना कि मेरी बहन को सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। इसलिए मानवी की ज़िंदगी से दूर चले जाओ।"
अंजन ने बिना कोई गुस्सा दिखाए बड़े शांत भाव से कहा,
"भाई मैं और मानवी दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं। मेरे लिए मानवी कोई सीढ़ी नहीं है। आपकी बात मानकर मैं उससे दूर चला जाऊँगा। लेकिन आपने मानवी को अपनी बेटी की तरह पाला है। एक बार आप उससे भी पूँछ लीजिए।"
जिस शांत भाव से अंजन ने अपनी बात कही थी उसी तरह शांति से वहाँ से निकल गया।
कहानी बताते हुए कुशल ने कहा,
"उस दिन मेरा एक खास आदमी वहाँ था। उसने बड़ी सावधानी से यह सारी बातें सुनी थीं।"
नफीस ने कहा,
"पर रघुनाथ ने जब अंजन को मानवी से दूर जाने को कहा था। उसने कहा भी था कि वह रघुनाथ के कहे अनुसार दूर चला जाएगा। तो फिर उसकी और मानवी की शादी कैसे पक्की हुई ?"
कुशल ने आगे की कहानी सुनाई। यह कहानी उसने रघुनाथ के एक नौकर से पता की थी।