शरणागति - 1 S Bhagyam Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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शरणागति - 1

सारांश

इस लघु उपन्यास के प्रसिद्ध लेखक इंदिरा सौंदर्राजन हैं। यह तमिल के बहुत बड़े लेखक हैं। इन्होंने करीब 500 उपन्यास और 800 कहानियां लिखी है। आपने चार हजार के करीब लेख लिखे हैं।

आप किसी भी एक समस्या को लेकर ही लिखते हैं। शरणागति में परिवार के टूटने की समस्या को लिया गया है और वृद्धाश्रम की समस्या के साथ लोगों की सहनशक्ति कम होती जा रही है इस पर विशेष ध्यान दिया है।

आदमी शराबी जुआरी हो उसे सुधारने की कोशिश करना चाहिए। उससे तलाक लेना समस्या का समाधान नहीं है।

 

शरणागति

अध्याय 1

घर के कॉलिंग बेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलते ही रंजनी को आश्चर्य हुआ।

दरवाजे के उस पार उसके ससुर जी सुंदरेसन खड़े हुए थे। उन्हें देखते ही आश्चर्य में पड़ कर नफरत से कुछ भी न बोल, बिना उन्हें अंदर बुलाए ही वह अंदर की तरफ मुड़ गई।

बेल की आवाज सुनकर रंजीता के अप्पा सोमसुंदर, अम्मा मनोहरी भी हॉल की तरफ आए।

उन्होंने सुंदरेसन को देखा।

पता नहीं क्यों वे लोग भी खड़े हो गए। वे भी सब को देखने लगे। फिर कुछ संकोच कर फिर भी अंदर की तरफ आकर हॉल के सोफे पर बैठ गए।

आखिर वे जब दो साल पहले इस घर में जब भी आते थे उसकी याद आ रही थी । जब वे बाहर टैक्सी से उतरते थे तभी सोमसुंदरम 'समधी आइए' कहकर उनका आवभगत किया करते थे !

अब तो सब कुछ उल्टा है...!

रिश्ते की ही जरूरत नहीं है ऐसा हो जाए तो फिर यही तो होगा? ऐसा होने पर भी सुंदरेसन स्थिर बुद्धि के हैं। शब्दों को सोने के तराजू में तोल कर बोलते हैं। हमेशा उनके माथे पर भभूति और कुमकुम साफ दिखाई देता था। उनके चेहरे पर दाढ़ी वगैरह सफाचट साफ-सुथरे और गंभीरता लिए हुआ चेहरा होता था । अब उसमें से आधा भी उनके पास नहीं है।

भभूति और कुमकुम भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था । इसके ऊपर से 'यहां क्यों आए? यहां आपका क्या काम है?' ऐसा गुस्से से रंजीता के पूछते ही उनके चेहरे की रंगत उड़ गई ‌।

एक गंभीर मौन वहां पसर गया.... उसे कौन तोड़ेगा एक घबराहट के साथ सुंदरेसन शुरू हुए।

"आप लोगों को मेरे आने की उम्मीद नहीं थी यह आपके चेहरे से पता चल रहा है। अब आकर बात करने पर कुछ भी नहीं बनेगा ऐसा मुझे भी लगा। परंतु भास्कर के पर्स में वृंदा के फोटो को देखते ही मेरे अंदर एक नया विश्वास पैदा हुआ। उसके साथ रंजनी की फोटो भी थी तो मुझे आश्चर्य हुआ। वही नहीं कुछ दिनों से उसने एक ड्रॉप भी नहीं पिया।

यह सब मुझे आश्चर्य ही लग रहा है। वक्त बदलना शुरू हो गया ऐसा मुझे लग रहा है... वैसे ही...."

वे अपने बेटे भास्कर के बारे में बोल रहे थे तो वे लोग दोबारा कुछ कहते उसके पहले बाहर स्कूल की बस आई उसमें से 8 साल की बच्ची वृंदा पीठ पर बोझ लादकर हाथ में एक टोकरी जिसमें टिफिन बॉक्स और पानी की बोतल को लिए दो चोटी कर थोड़े बिखरे बालों के साथ अंदर आई। उसे देखते ही सुंदरेसन खुश हुए। वह भी 'ताता' (दादा) कहकर तेज बोलकर धीरे से मां की तरफ देखा।

"जा... जाकर हाथ मुंह धो कर अपने कमरे में जाकर होमवर्क करो। अम्मा तेरे लिए बूस्ट लेकर आ रही हूं।" कहकर उसे भगाया। उसकी नजरें कभी सुंदरेसन के ऊपर और कभी रंजनी पर ऐसे बदल-बदल कर देखने लगी।

"अंदर जाओ मैंने बोला ना...? रंजनी के नाराज होते ही वह अपने बैग के साथ अंदर जाने की कोशिश कर रही थी तभी उसे उठा कर सुंदरेसन ने गले लगाया।

"वृंदा मेरी बच्ची... कैसी हो मेरी प्यारी बेटी ! पढ़ाई अच्छी चल रही है ?"

वह भी उनके गले लगी। रंजनी को उसके व्यवहार से घबराहट पैदा हुई।

"उसे छोड़ो..... उसे जाने दो। उसने अभी कुछ दिनों से ही पढ़ना शुरू किया है। उसे खराब मत करो।"

"क्या कह रही हो बेटी..... वृंदा मेरी वारिस है। मैं मरूं तो मुझे अग्नि देने का कर्तव्य उसी का है। मैं उससे गले मिलूं तो गलत है?"

"ऐसी कई बातें हमने बहुत कर ली। आप अपने आने का कारण बताकर यहां से जाने की सोचिए। कोर्ट में कोई रिश्ता नहीं है फैसला हो गया ना ?"

रंजनी ने सीधे-सीधे वार किया।

"बिल्कुल ठीक है बेटी.... कोर्ट ने फैसला सुना दिया। तुमने भी उससे बिना थके बहस कर मेरे बेटे से तलाक ले लिया। उसको यह चाहिए था। पत्नी और बच्ची से ज्यादा महत्वपूर्ण उसने शराब की बोतल को समझा था उसका फल तो उसे मिलना ही था? परंतु इससे वृंदा हमारी वारिस नहीं है ऐसा हो जाएगा क्या?"

"कोर्ट के फैसले में भी मेरे बेटे भास्कर अपनी बेटी को देखना चाहे तो आराम से देखकर जा सकता है। क्या उस बात को तुम भूल गई थी। उसके इस अधिकार का फायदा उठाकर ही मैं यहां आया हूं।"

"ऐसा करने का आपको अधिकार नहीं है। आपके बेटे को अधिकार हो सकता है। परंतु इसकी योग्यता उसमें बिल्कुल नहीं है।"

"यह सब हमें पता ही है। मैं झगड़ा करने नहीं आया हूँ । अधिकार किसका है इसके बारे में विवाद करने भी नहीं आया।"

"फिर यहां आकर हमारे अनुमति के बिना सोफे पर बैठे हुए हो। यहां से पहले चले जाइए...."

"नहीं रंजना ! इस तरह शब्दों के बाण मत छोड़ो। छूटे हुए बाण फिर से तरकस में नहीं आ सकते। मैं अपने लड़के की वकालत करने या वह सुधर गया ऐसा कहकर टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने नहीं आया हूं। मुझे मेरे बेटे से जो प्रेम और ममता थी वह तो भाप बनके कबका उड़ चुका है।"

"मैं और मेरी पत्नी कब यम देवता आकर हमें ले जाएंगे सोचकर बैठे हुए हैं। इसके बीच में भास्कर से हमने जो अपेक्षा की थी उससे भी ज्यादा बदलाव अभी हुआ है जिसकी हमने अपेक्षा भी नहीं की थी यह वह बदलाव है।"

"यह कैसे और क्यों हुआ जानकार आपको बड़ा आश्चर्य होगा। इसीलिए मैं यहां आया हूं।"

सुंदरेसन बड़े आराम से धीरे-धीरे बोलते हुए सोमसुंदरम और उनकी पत्नी मनोहरी को देखा।

उनकी तरफ से एक उत्सुकता उनके भौहों से पता लग रहा था । वहां पर एक मौन शांति दिखाई दी। परंतु रंजनी को उनकी बातों में कोई रुचि दिखाई नहीं दी।

"आपको कुछ बोलने की जरूरत नहीं। अभी मैंने सब कुछ भूलकर अपना जीवन जीना शुरू किया है। अभी कुछ कह कर मेरे मन को भटकाने की जरूरत नहीं चुपचाप रवाना हो जाइए...."

"रंजनी मैं बोल रहा हूं उसे जरा सुनो...."

"आप मेरी बात को सुनिए। आप लोगों के बारे में सोचने को भी मैं तैयार नहीं हूं। मुझे जितना भुगतना था वह बहुत हुआ। मैंने जो कुछ सहा.... अभी मुझे उन सब को भूलना है। दूसरा और कुछ नहीं। मेहरबानी करके आप रवाना हो जाइए..."

वह टप आवाज आएं जैसे दोनों हाथों को जोड़कर कांपते हुए शरीर से कानों के पास पसीना और आंखों में आंसू की बूंदे लिए हुए खड़ी थी।

वे उसी समय मौन आंखों में आंसू की बूंदे चमकते हुए वहां से रवाना हुए। उनके जाने के कई देर तक रंजनी वैसे ही खड़ी रही। उसी समय मोबाइल बजा। उसने सुना।

"रंजनी मैडम ?"

"यस... आप ?"

"हम शरणागति वृद्ध आश्रम से बोल रहे हैं। कल आप आपकी पत्रिका के साक्षात्कार के लिए आने वाले हो ना ?"

"हां... क्या बात है ?"

"आपको कल सुबह 9:00 बजे हमारे होम के डायरेक्टर ने आने के लिए बोला है।"

"ठीक है... मैं उसी समय आती हूं।" रंजनी बात करके मुडी। उसके अप्पा और अम्मा उसको घूर के देख रहे थे।

"मुझे अभी आप लोग क्यों ऐसे घूर के देख रहे हो....?"

"संबंधी से तुमने इतनी कठोरता से बात की वह हमें ठीक नहीं लग रहा है...."

"संबंधी.... नहीं मैं भूल भी जाऊं तो भी आप उसे नहीं भूलोगे क्या ?"

"दामाद ही तो हमारा विलन था। संबंधी कभी भी गलत तरीके से पेश नहीं आए बेटी....."

"बार-बार संबंधी मत बोलिए। वह तो सब कुछ खत्म कर दिया ना...."

"चिल्लाओ मत.... वे कुछ अच्छी बात बोलने आए जैसे लग रहा था। तुम्हें उन्हें बोलने देना चाहिए था।"

"कोई खास बात नहीं ‌। वे भी क्या बोले वह अब सुधर गया आपने सुना नहीं ?"

"क्यों बेटा वह सच नहीं हो सकता ?"

"ऐसे ही शुरुआत होती है। मैं जब तक रही वहां उनको और उनकी पत्नी को बहुत अच्छी तरह रखा। अभी मैं नहीं हूं। मेरे जैसे अब और एक मिलेगी भी नहीं। इसीलिए इनकी जीभ मर गई होगी। इसीलिए रिश्ते को नया करें क्या ऐसा सोच कर आए होंगे। यह बात आपके खोपड़ी में नहीं आएगी?"

रंजीता के इस तरह की बातों ने उन्हें आगे कुछ बात करने नहीं दिया। वे एक दूसरे को आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगे।

वृंदा भी बिना कुछ समझे देख रही थी।