बदलते रिश्ते (अंतिम भाग) Kishanlal Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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बदलते रिश्ते (अंतिम भाग)

""हां,"सालू दीर्घ निःस्वास छोड़ते हुए बोली,,"उसी प्यार का वास्ता देकर तुमसे कुछ मांगने आयी हूँ।"
"तुम्हारे लिए जान भी हाज़िर है।मांगो क्या मांगना है?"
"मेरे पति को मेरा तुमसे मिलना पसंद नही है,"सालू बोली,"तुम मुझे अपनी तो नही बना सके।लेकिन मेरे लिए इतना तो कर ही सकते हो ---
"क्या?"सालू कहते हुए रुक गई तब महेश ने पूछा था।
"भविष्य मे तुम मेरे से मिलने का प्रयास नही करोगे।अगर इत्तफाक से हमारा आमना सामना भी हो जाये तो अजनबी की तरह निकल जाओगे,"सालू अपनी बात कहते हुए रुओ पड़ी,"अगर तुमने ऐसा नही किया,तो मेरा दाम्पत्य जीवन तबाह हो जाएगा।"
"सालू तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी है।"
और उस दिन के बाद सालू की महेश से मुलाकात नही हुई।इस बात को वर्षो बीत गए।सालू अब अधेड़ हो चुकी थी।उसकी इकलौती बेटी रश्मि जवान हो चुकी थी।सालू अपने प्यार को अपना नही बना सकी लेकिन चाहती थी।उसकी बेटी के साथ ऐसा न हो।इसीलिए वह रमेश से मिलने उसके घर गई थी।लेकिन वंहा से अपने अतीत की यांदे लेकर लौटी थी।
"मम्मी मिल आयी रमेश से?"ड्राइंग रूम में प्रवेश करते ही रहमी ने मा को घेर लिया था।बेटी की बात सुनकर सालू कुछ नही बोली।धम्म से सोफे पर बैठ गई।
"मम्मी कैसा लगा आपको रमेश?"माँ को चुप देखकर रश्मि ने फिर पूछा था
"तुम्हारी शादी रमेश से नही हो सकती,"बेटी के बार बार पूछने पर सालू ने अपनी चुप्पी तोड़ी थी,"रमेश से शादी का ख्याल दिल से निकाल दो और उसे भूल जाओ।"
"क्यो भूल जाऊं।क्या कमी है उसमें?"
"उसमे कोई कमी नही है।"
"फिर आप मेरी रमेश से मेरी शादी न कराने के पीछे क्या कारण है।"
"जरूरी है कारण बताना?"
"आप न बताए लेकिन मैं समझती हूँ।रमेश दूसरी जाति का है।इसलिए आप मेरी शादी उससे नही करना चाहती।"
"मैं जाति को नही मानती।"
"फिर क्या वजह है।"
"हर बात बताना जरूरी नही है।"
"मा मैं अब बच्ची नही रही।बालिग हूँ।हर बात समझती हूं।मुझे बात जानने का अधिकार है,"माँ की बात सुनकर रश्मि बोली,"अगर आपने कारण नही बताया तो,मैं रमेश से कोर्ट मैरिज कर लुंगी।"
"नहीं----तुम ऐसा नही कर सकती,"सालू जोर से चीखी थी।उसकी आंखों के सामने वर्षो पहले का दृश्य घूम गया था।
सुरेश से फेरे लेने के बाद सालू रात में चुपचाप महेश के कमरे पर जा पहुंची थी।
"तुम?"सालू को दुल्हन के भेष में अपने सामने देखकर महेश चोंका था,"तुम्हे यंहा आते हुए किसी ने देख लिया होगा तो।"
"मन से मैं तुम्हें अपना पति मान चुकी हूँ।औरत जीवसं में प्यार सिर्फ एक ही बार करती है।दुनिया की नज़रो में मैं सुरेश की पत्नी जरूर बन गई हूं।लेकिन मन से तुम ही मेरे रहोगे।"
"आखिर तुम कहना क्या चाहती हो?"सालू की बाते सुनकर महेश बोला था।
"मुझे अपने प्यार का प्रतिदान चाहिए।"
महेश,सालू के हाव भाव देखकर विचलित हो गया।वह सालू को समझा बुझाकर वापस भेजना चाहता था।पर नारी के सामने पुरुष।मेनका ने विश्वामित्र जैसे महान ऋषि की तपस्या भंग कर दी थी।सालू भी मन मे दृढ़ इरादा करके आयी थी।जिसे पूरा करके ही लोटी थी।
"क्या सोचने लगी?"माँ को सोच में डूबा देखकर रश्मि बोली थी।
"सुन सकोगी,मेरी बात?"
"आपकी बेटी हूं।बेटी को कमजोर मत समझो।"
"रमेश का पिता महेश मेरा प्यार था।मैं उससे शादी करना चाहती थी,लेकिन वक़्त ने हमे एक नही होने दिया।"
"तो आओ चाहतो है,जो आपके साथ हुआ।वो ही आपकी बेटी के साथ हो।"
"तुम गलत समझ रही हो।तुम मेरे पहले प्यार की निशानी हो।रमेश का और तुम्हारा जन्मदाता एक ही है।"
बेटी को सच्चाई बताकर सालू ने अपना मुह छिपा लिया था।