छुट-पुट अफसाने - 39 Veena Vij द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छुट-पुट अफसाने - 39

एपिसोड---39

विवेकानंद रॉक मेमोरियल

कन्याकुमारी में तट से एक छोटे जहाज में, जो लहरों पर खतरनाक तरीके से डोल रहा था और जिस में बीच-बीच में लहरें उछलकर पानी डाल जाती थीं। डरते हुए हम श्री रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विवेकानंद को समर्पित

"विवेकानंद रॉक मेमोरियल" पर पहुंचे! यह समुद्र तल से 17 फीट की ऊंचाई पर एक छोटे से द्वीप के पर्वत की चोटी पर स्थित है। इसके चारों ओर बंगाल की खाड़ी वाले समुद्र की ऊंची- ऊंची लहरें उठ रही थीं।

‌  वहां पर बहुत बड़ा मेडिटेशन सेंटर भी था भीतर की ओर। जब सब लोग भीतर घूम रहे थे तो मैं वहां थोड़ी देर के लिए मेडिटेशन करने बैठ गई। बरसों से यह मेरी ख्वाईश थी, जिसे मैं हकीकत का जामा पहना रही थी। हैरानी की बात है कि बाहर चट्टानों से टकराती लहरों का शोर भीतर मेडिटेशन सेंटर में आता ही नहीं। वहां पूर्ण शांति थी।

कहते हैं ना तुम ख्वाब देखो तो सही, फिर परिस्थितियों के साथ-साथ कायनात भी तुम्हारा साथ देती है उसे पूरा करने में। वहां बैठते ही अश्रु जल धाराओं से मेरे गाल भीग रहे थे। ईश्वर का धन्यवाद करते मैं थक नहीं रही थी। मेरी बचपन की ख्वाईश अब पूरी हो गई थी। मेरे आदर्श थे स्वामी विवेकानंद क्योंकि उनका कहना था

"Prayers can move the mountains"and I solemnly believe it.

उम्र का वह दौर परफेक्ट था चलने के लिए। अब इस उमर में हम इतना नहीं चल सकते क्योंकि वहां बहुत चलना पड़ता है। खूब नारियल पानी पिया नारियल खाया और कन्याकुमारी घूमने के बाद अब हम केरला की ओर चल पड़े थे। और त्रिवेंद्रम के लिए ट्रेन में बैठ गए।

त्रिवेंद्रम(Kerala)

त्रिवेंद्रम में मेरी बहन की ननद शशि रहती थी। उनके पास ही जा रहे थे हम। शशि के तीन बेटे थे और मेरे तीनो बच्चे सब आपस में मस्त हो गए थे। वहां एक दिन हम त्रिवेंथापुरम चिड़ियाघर देखने गए। यह दुनिया में बहुत बड़ा और काफी पुराना चिड़ियाघर माना जाता है, इसे पैदल नहीं देखा जा सकता । हम जीप में सांझ ढले थके मांदे जब वहां से बाहर निकले तो सामने वहां रेहड़ी पर लाल, पीले, हरे केले बिकते देखे। इतनी किस्में देखकर हम चकित थे । और उन्हें खाने की लालसा हो आई। लाल केले 2-3" इंच के भी थे और बहुत मीठे थे।

दूसरे दिन हम "पद्मनाभास्वामी मंदिर" गए। इसके प्रवेश द्वार को " गोपुरम"कहते हैं। जो 100 फुट ऊंचा है और 40 फुट जमीन के भीतर है। पद्मनाभास्वामी अर्थात नाभि से निकले कमल पर ब्रह्मा । वहां भीतर दर्शन करने के लिए धोती पहन कर जाना पड़ता है। मैं साड़ी पहनती हूं इसलिए मैं तो आराम से गई। लेकिन हमारे साथ मर्द और बेटे कपड़े बदलने को तैयार नहीं थे, इसलिए वह लोग भीतर नहीं गए।

मजेदार बात यह है कि हमें मलयालम आती नहीं और उनको हिंदी आती नहीं। अपने ही देश में लगता है हम विदेश में हैं। ख़ैर, इसलिए वहां के दुकानदार अंग्रेजी के दो चार शब्द बोलते हैं।सो, जहां हम खड़े थे, दुकानदार ने इशारे से पूछा, where?

इस पर रवि जी बोले, "पंजाब!"

वह हैरानी से बोला, " भिंडरावाले---?"

यह सुनते ही हम सब हैरान कि इसे पंजाब का इतना ही ज्ञान है। हमने" हां" में सिर हिला दिया।

मैं भीतर जाकर देखती हूं --भीतर छोटा सा मंदिर था, बीच में एक खंभा था। इसमें शेषनाग शैया पर श्री विष्णु भगवान लेटे हैं । खंभे से दूसरी ओर देखने पर उनकी नाभि से निकले खिले कमल पर ब्रह्मा जी विराजमान हैं। ऐसा मंदिर उत्तर भारत में या मध्य भारत में मैंने कभी नहीं देखा था। यह मंदिर 7 मंजिला है । बहुत ही सुंदर कारीगरी के मध्य में हर मंजिल पर एक दरवाजे जितना झरोखा था।

और हैरानी की बात है कि सूर्य उदय होने पर बारी - बारी हर झरोखे से सूर्य नीचे आता दिखाई देता है। लगता है, 16 वीं शताब्दी में बहुत ही कुशल इंजीनियर और आर्किटेक्ट्स ने यह मंदिर बनाया होगा!

भारत के मंदिरों में बहुत अजूबे देखने को मिले। गर्व होता है भारत की कलाकृति और संस्कृति पर।

केवल किताबों में ऐसी तस्वीर देखी थी।(अभी कुछ वर्षों पूर्व वहां के सोने के आभूषणों से भरे खजाने के बारे में बहुत कुछ पढ़ा। जो उस मंदिर के नीचे था समुद्र तट की ओर। कहते हैं इसका एक गर्भ गृह अभी भी बंद पड़ा है।) इसे दुनिया का सबसे धनाढ्य मंदिर माना जाता है। त्रिवेंद्रम के कोवलम बीच पर भी बच्चे फिर पानी में मस्ती करने उतर गए और मौसम भी उनका साथ दे रहा था।

कोचीन

त्रिवेंद्रम से हम भारत के पश्चिम तट अरब सागर की ओर लक्षद्वीप सागर के साउथ वेस्ट में "कोचीन" पहुंचे। इसे Ernakulam भी कहते हैं। वहां पर कश्मीर की तरह हाउसबोट तो नहीं थीं। हां, पानी में गोल झोपड़ी नुमा बेंत के बुने हुए घर की नाव चलती है। टूरिस्ट लोग उन्हीं में रहना पसंद करते हैं। और सैर के लिए भी जाते हैं । वहां से मैं अपनी रसोई के लिए स्टील की मटकी खरीद कर लाई थी बहुत सुंदर। जो मैंने पहले कहीं नहीं देखी थी।

यहां मल्लाहों की पानी में नौका रेस होती है। नौकाएं भी दोनों छोर पर सुंदर तरीके से डिजाइन वाली बनी होती हैं। वहां बंदरगाह पर जहाज भी बहुत देखे। Cochin का shipyard famous है। लेकिन बीच देखते ही बच्चों ने समुद्र में यहां भी स्नान किया और मस्ती की।

इस तरह तमिलनाडु के बाद केरला का टूर करके ढेरों मीठी यादें लिए हम लौट आए थे। आंध्र प्रदेश, राजस्थान, वेस्ट बंगाल ---यह सब यात्राएं आपको बाद में सुनाऊंगी। अगली बार आपको रोमांचित कर देने वाला कश्मीर का संस्मरण सुनाती हूं....

 

वीणा विज'उदित'

21/7/2020