छुट-पुट अफसाने - 35 Veena Vij द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छुट-पुट अफसाने - 35

एपिसोड---35

अतीत के स्मरण की तरंग मुझे अपने वेग में उलझा कर दूर खींच ले जाने को व्याकुल हो उठी है। मन बहुत भारी है। जाने कितने ही भाव कसक उठे हैं ।

भीतर दर्द ही दर्द उमड़ने लगा है। वैसे तो सभी अपने हैं लेकिन एक ही मां बाप से जन्म लेकर जिस बंधन में हम गुंथे होते हैं उसमें से एक भी धागा टूट जाए, तो ढील पड़ ही जाती है।

अकस्मात ही छोटी बहन का जाना ऐसी ठेस दे गया, मानो ढलते हुए आषाढ़ के सूरज को पीले उदास बादलों की एक झीनी तह ने ढंक लिया हो और सूरज लुप्त हो गया हो अपना अस्तित्व मिटा कर। लेकिन जीवन ने निरंतर चलना है। प्रकृति के नियम शाश्वत हैं कल फिर सुबह होगी। सूरज भी आएगा और तुमने भी नया चोला धारण किया होगा लेकिन हमें कभी ज्ञात नहीं होगा। हम में दिव्य दृष्टि नहीं है। सृष्टि का जीवन क्रम तो निरंतर चलता रहेगा।

आज चौथा उठाला है। Video conferencing से मैंने भी हवन के मंत्र साथ पढ़ लिए थे, दिल की तसल्ली के लिए उसके बच्चों और पति के साथ थी। कोरोना काल में उसका जाना बहुत अखर गया। हमारे समाजिक रीति रिवाज सदियों से जो चले आ रहे थे, वे हाथ मलते रह गए। भावनाओं को भी सुलाना पड़ गया है। कहते हैं ना दुख भी बांटने से हल्का होता है और सुख भी अपनों के बिना अधूरा लगता है। कोरोना ने सारी मान्यताएं ताक पर रख दी हैं। बस यही ठीक है "जही विधि राखे राम तेहि विधि रहिए राम राम कहिए!"आज कोरोना ने भावनाओं पर भी नियंत्रण करना सिखा दिया है।

लेकिन विचार या कल्पनाएं अतीत में जाकर तो झांक सकते हैं न !"कमला भवन" कटनी में मैनी साहब की पांचवी बेटी आई तो मैं (पहली बेटी )दौड़ती गई अपनी ताई को बताने कि पांचों उंगलियां पूरी हो गईं हैं हथेली की। वे हैरान । क्या बोल रही है? तो मैंने समझाया की पांचवी बेबी आ गई है घर में और आप यहां बैठे हो? चलो मम्मी के पास।

पापा बोले "लक्ष्मी ने फिर मेरा दर खटखटा लिया!"  चाचा जी शिव भक्त थे। वे कहते थे, "पांच बेटियां होंगी भाभी।"दादी उन दिनों उनके पास थीं। उन्होंने चाची से चिट्ठी लिखवाई कि इसका नाम"राजकुमारी" रखो। एक और घर को स्वर्ग बनाने वाली आ गई है।"दादी बहुत खुले विचारों वाली थीं। हम उसको पप्पू बुलाते थे। पापा बोलते थे एक राजा की पांच राजकुमारियां थीं। वह किस्मत वाला राजा मैं ही तो हूं। शादी के बाद" इंदु" ससुराल का नाम था।

जब दसवीं के बाद मैं जबलपुर हॉस्टल में गई तो वह भी मम्मी के साथ आती थी क्योंकि वह सबसे छोटी थी। केवल 6 साल की। एक बार पलंग के नीचे उसकी बॉल चली गई तो रो-रो कर आसमान सिर पर उठा लिया कि बॉल अपने आप बाहर आए। क्योंकि वह अपने आप भीतर गई है। मम्मी ने उसको सीने से लगाया और मुझे इशारा कर दिया। मैंने झट डंडे से बाहर की ओर हिला दी बॉल...! बॉल को आते देख कर वह ताली बजाकर खुश हो गई।

एक बार हमारा नौकर गणेश एक सेर गुड़ लेकर आया तो उसके मुंह में थोड़ा सा डाल दिया । उसे इतना अच्छा लगा कि वह बोली मैं सारा गुड खाऊंगी। किसी को नहीं दूंगी। गोदी में रखकर खाने लग गई। मम्मी परेशान कि इतना मीठा पेट ना खराब कर दे। उसे मनाने की खूब कोशिश की! और जब नहीं मानी तो आखिर बोलीं, " अच्छा सारा खा ले! इतना बोल कर वे बाहर की ओर बढ़ीं तब उसने सारा गुड़ छोड़ दिया। पप्पू की ऐसी बाल- सुलभ क्रीणाएं मेरी यादों के घेरे में चलचित्र की तरह घूम रही हैं। हर घर में बच्चे कुछ ना कुछ शरारतें करते रहते हैं यह कोई नई बात नहीं है। पर आज उसके बिछड़ने पर याद आ रहे हैं। ढेरों किस्से...

Co-ed में पढ़ाई की।और Noida की आर्य समाज मैं मां की तरह कार्यशील हो गई। Inner wheel club Noida में भी खूब सोशल सर्विस करी। बहुत ही एक्टिव रहती थी। ना जाने कैसे इतनी जल्दी चली गई। ना किसी को तंग किया और ना ही अपने पर कोई पैसा खर्च कर वाया । बस धीरे से गर्दन गिरा दी। अब यहीं विराम देती हूं अपनी लेखनी को। रुलाई फूट रही है .....

...

 

ग़ालिब ने कहा है--

जिंदगी में ग़म है ग़म में द़र्द है

दर्द में मज़ा है और मज़े में हम हैं।

 

वीणा विज'उदित'

25/6/2020