एपिसोड---32
घटनाओं के निरंतर घटने से ही जीवन में गतिशीलता होती है और यही घटनाएं यादों में जब अपना बसेरा ढूंढने लगती हैं तो ठौर मिलते ही अपना कुनबा रच बैठती हैं। फिर आवाज देकर बुलाने से एक-एक कर के बाहर झांकती हैं और अपनी उपस्थिति दर्ज कराती हैं। आज तो मैं आपसे रवि जी का एक संस्मरण साझा करूंगी। मेरे पूछने पर उन्होंने मुझसे सांझा किया था कि उनकी और राज कपूर जी की दोस्ती कैसे हुई थी? उन्होंने सुनाया—-
“ग्रेजुएशन के पश्चात अपने मित्र महेन्दर को साथ लेकर मैं कश्मीर घूमने गया | वहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य के मोहपाश में न चाहते हुए भी मैं बँधा जा रहा था | कि तभी देखता हूँ बादल का एक नन्हा टुकड़ा अभी-अभी पधारे चाँदको चूम रहा है | और चाँद की चमक इस प्यार से दुगुनी हो रही है | मैं हतप्रभ रह गया | अपने कैमरे में यह सब कैद करते हुए भी मन भर नहीं रहा था | मन में एक नया विचार जन्म ले रहा था | एक सुन्दर वृक्ष का मानो बीजारोपण हो रहा था |
मैंने देखा पहलगाम के हर तरफ़ फोटोग्राफी के दृश्य बिखरे पड़े हैं, पर वहाँ उन्हें कैमरे में कैद करने वाला कोई नहीं है | कोई फोटो स्टूड़ियो नहीं था वहाँ | हम दोनो मित्रों ने गुलमर्ग, मटन, कुकरनाग, श्रीनगर में नगीन लेक, डल लेक सब की सैर की और हर सैलानी की तरह घर को लौट गए | लेकिन मन में बचैनी लिए …
लगता था मानो कश्मीर बुला रहा हो | सन 1961 के मार्च महीने में मैं पुनः श्रीनगर गया, वहाँ एक मित्र शर्माजी के घर ठहरा | उनके साथ बैठकर कुछ जुगाड़ लगाया, और पहलगाम में एक दुकान किराए पर ले ली | हालांकि तब मैं स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जालंधर में काम करता था। बस यही बना मेरे जीवन का मील पत्थर !
अपने स्कूल के दिनों से ही राजकपूर के आर. के का बैनर मेरे ख़्यालों में रचा -बसा था | मैं हर काँपी के पिछले पृष्ठों पर उसी की नकल बनाता रहता था | सो, अब वो ख़्वाब हक़ीक़त का जामा पहनने जा रहा था | अपने नाम रविंदर कुमार के अनुरूप दुकान का नाम आर.के स्टूड़ियो रखना तय था | 1961 मई की तीन तारीख को दुकान की शानदार फिटिंग करवा के रात के समय हम आर.के स्टूडियो का बोर्ड लगा रहे थे कि तभी दुकान के सामने पैदल सैर करते राज कपूर जी दुकान पर आ गए और बोले, ”ओए ! R.K.Studio ? उन दिनों फिल्मी-सितारे पर्दे की चीज़ थे |उन्हें देख पाना बहुत मुश्किल होता था | राजकपूरजी को देखकर हम हक्के-बक्के थे कि वे बोले,
‘ भई, यह तो मेरा स्टूडियो है –आर.के ! इस पर मैंने अपना नाम बताया। तो आंखों से मुस्कुराते हुए उन्होंने मेरे दोनों हाथ थाम लिए।
उन दिनों एक दक्षिण भारतीय फिल्म की शूटिंग हो रही थी पहलगाम में। जिसमें जेमिनी गणेशन और वैजयंती माला थे। मैं उसी दिन वैजयंती माला की फोटो खींचकर लाया था और उसे frame में लगा कर काउंटर पर रखा था । उसे देखते ही वह बोले, ” अरे राधा भी यहां आई हुई है?”मैंने हैरान हो पूछा राधा कौन है ? तो बोले अगली फिल्म में--- यह राधा है। उन्होंने बताया कि वह फिल्म "संगम" की स्टोरी और स्क्रिप्ट लिखने पहलगाम आए हैं। मैंने उनसे अर्ज़ की कि आप कल मेरे स्टूडियो की ओपनिंग अपने हाथ से करें। इस बात पर वह प्रसन्नता से बोले कि अवश्य । मैं सुबह पहुंच जाऊंगा । अगले दिन उनके आने पर उनके हाथ में रिबनवाली कैंची दी, दुकान के सामने हिस्से में रिबन बाँधा था । उनसे रिबन कटवाया | तालियों की गड़गड़ाहट में लडडुओं से सब का मुँह मीठा कराया गया | स्टूडियो के साथ-साथ, एक दोस्ती की नींव भी पड़ी उसी पल ।
उन्होंने मुझे सलाह दी कि तुम बोर्ड के ऊपर कैमरे के साथ खड़े हो ऐसा वाला बैनर बना लो और वही बैनर चलता रहा जबकि उनके हाथ में नरगिस और वायलिन थी।
राजकपूरजी सरकारी Hut ए-4 में ठहरे थे |जो नटराज होटल के पास थी। साथ में तीन चार लोग और भी थे। उन्होंने बताया कि वे दो महीनों के लिए कश्मीर में आराम करने आए हैं | विश्वमेहरा -जिन्हें सब मामाजी कहते थे, शायद वे रिश्ते में उनके मामाजी ही थे–हर समय उनके साथ होते थे | वहीं Hut में बैठे फुर्सत के पलों में अगले दिन राजकपूरजी ने दिल की कुछ बातें साँझा की यह बताकर कि उन्होंने पाँच वर्ष पहले अपनी फिल्म “जिस देश में गंगा बहती है ” घोषित की थी |
लेकिन उन्हीं दिनों नरगिस के साथ रिश्तों में दरार आने से और साथ ही रिश्ता खत्म होने से उसने आर.के. स्टूडियोस बाँम्बे से अपने सारे शेयर वापिस ले लिए थे | इस अकस्मात आए आर्थिक संकट से उबरने के लिए उन्होंने पाँच वर्षों तक कठिन संघर्ष किया और किसी भी बैनर की फिल्म को साईन कर उसमें एक्टिंग की। जिससे अपनी आर्थिक कमी को पूरा करने में सक्षम हुए |
अब उनका अगला टारगेट था – अपनी अधूरी फिल्म को पूरा करना और उसे उन्होंने सन् 1961अप्रैल तक पूरा कर भी लिया | इसका प्रीमियर पहली मई को दिल्ली में करके वे सीधे आराम करने दिल्ली से श्रीनगर आ गए थे| सारा दिन उनके पास आना-जाना लगा रहता था | खाना वगैरह भी साथ ही होता था | किन्तु उनको मुझसे एक गिला सदा ही रहा, रवि ! यार तूँ पीता नहीं है | आर.के. स्टूडियो की सीड़ी पर बैठ जाते थे और बोलते थे कि--- यार !
कभी मेरे जांम को अपने लबों से लगाकर जूठा ही कर दे | और मैं उनके हाथों से ही उन्हें पुनः प्यार से पिलाता | वे मुझे कंधे के ऊपर से पकड़कर छाती से लगा लेते थे | रात को बारह बजे आर्.के.स्टूडियो खुला रहता था | जिससे बाजार में देर तक रौनक लगी रहती थी | लोग भी राजकपूर के साथ फोटो खिंचवाने की खातिर आर.के. स्टूडियो के बाहर मेला लगाए रहते थे|
राजकपूर बोले कि वे कुछ दिनों के लिए गुलमर्ग़ और श्रीनगर होकर वापिस फिर पहलगाम आते हैं | वापिस आने पर उनके साथ इस बार ‘संगम” उनकी आने वाली अग़ली फिल्म के कहानी -लेखक ‘इन्दरराज आनन्द’ भी थे |यहीं पहलगाम में उन्हें अपने साथ बैठाकर राजकपूर ने ‘संगम’ की पटकथा पूरी की | इसके पूर्ण होने पर उनका मन हुआ कि इसे शिव-चरणों में चढ़ाया जाए और उनका आशीर्वाद लेने के लिए बर्फानी बाबा अमरनाथजी की यात्रा की जाए |उनके पापा पृथ्वीराज कपूर शिव की पूजा आराधना करके फिल्म शुरू करते थे ।
उनके आग्रह पर मैं भी उनके साथ-साथ हो लिया | हमारा काफ़िला पहली जुलाई को पोनीस (खच्चर)पर बैठा |साथ थे–श्री हरीश बिबरा, विश्व मेहरा मामाजी, इन्दरराज आनन्द, के.सी, मेहरा (छबीली फिल्म में तनुजा के साथ नए हीरो थे। ), एक इंसपेक्टर चोपड़ा और मिस्टर एंड मिसेस जैन । मिस्टर जैनअकाउंटेंट जनरल ऑफ कश्मीर थे। वे हनीमून पर गुलमर्ग गए हुए थे और राजकपूर को मिलने गए । उनकी वाइफ बहुत खूबसूरत थीं । वह लोग भी पहल गांव आ गए थे । चंदनवाणी से बर्फ़ का पुल पार करके, आगे पिस्सू-घाटी की मुश्किल चढाई चढ़कर नीचे शेषनाग झील पर पहुँच, रात को डाक्-बंगले पर सबने विश्राम किया | अगले दिन हिम शिलाओं को लाँघते, ऊचे-नीचे दर्रों को ताक पर रखते हुए हम खुशहाली के माहौल में वहाँ बर्फानी बाबा के चरणों में ‘संगम’ की पटकथा को माथा नवांकर व दर्शन करके वापसी में पंचतरणी के डाक बंगले मे रहे । तीसरे दिन वापिस पहलगाम आ गए थे |
पिछले एक हफ्ते से साथ रहते-रहते हम सब काफी निकट आ गए थे | राजकपूर जी के घोड़े की लगाम पकड़े हुए मेरी एक फोटो 22”/24” की सन 2005 तक मेरी दुकान की masterpiece photo थी| वे जब भी आते उसे देख प्रसन्न हो जाते थे |(एक आग के हादसे में हमें उसे खोना पड़ा !)
दोस्ती प्रगाढ़ हो चली थी |दुकान महेन्दर के भरोसे छोड़ ‘, मैं पापाजी के साथ -साथ ही रहा |अगला पड़ाव था श्रीनगर व उसकी झीलें | शहर से दूर एकांत में एक बड़ी सी डीलक्स हाऊसबोट में नगीन -लेक में हम ठहरे | वहाँ शिकारों में दिन- भर सैर करने का अपना ही आनन्द था |शेयरो-शायरी का माहौल बन जाता था | जाम पर जाम खनकते थे वहां। खाना भी तरह-तरह का सर्व होता था |अगली सुबह खबर मिली कि “जिस देश में गंगा बहती है ” की हीरोईन पद्ममिनी शादी करके अपने पति के साथ हनीमून पर कश्मीर पहुँची है | लो जी, राजकपूरजी ने रेसीडेंसी रोड--- बँड पर स्थित “प्रीमियर होटल ” में उनके स्वागत की पार्टी शाम को रख दी | उन्हें सादर निमंत्रित किया गया | पार्टी में आरकेस्ट्रा पर उनकी इसी फिल्म"जिस देश में गंगा बहती है" के गीतों की धुनें बजाई गईं | धीरे-धीरे सब थिरकते रहे | रात जवान थी, और पार्टी अपनी जवानी पर|
लेकिन, मैंने उनसे विदा ली इस वायदे के साथ कि बम्बई शीघ्र ही आऊँगा |
राज कपूर जी के साथ इस टूर की ढेरों फोटोस फिल्म मैगजीन Screen में 27th July 1961 में छपीं "Pilgrimage to the Amarnath by RajKapoor " by RK studio Pahalgam.
पंजाब में इन फोटोस ने धूम मचा दी थी। सब समझते थे कि रवि फिल्मों में जा रहा है। लेकिन मेरी पसंद तो कश्मीर था। इस वाकये के बाद ये दोस्ती सारी उम्र चली | उनका आना-जाना लगा ही रहता था कश्मीर में | हमारे संबंध सदा मधुर बने रहे।"
जी हां, तभी तो मैंने पूछा था। और मुझसे कई लोगों ने पूछा था।
विशेष---
आज 2 जून को उनकी बरसी है। उन्हें हमसे जुदा हुए 32 वर्ष हो गए हैं। आज उनकी यादें ताज़ी करके हम उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं।
वीणा विज ‘उदित’
जून/2020