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एक दिन...



दिन को धीरे-धीरे चलते हुए देखना सुखद अनुभव है। लेकिन शाम को विदा कहना उतना ही कठिन। दिन मेरे लिए एक व्यक्ति हो सकता है, जिसके चलने के निशान में धूप की रोशनी अपने पीछे वियोग छोड़ जाती है । घर के भीतर ''दिन'' हर रोज एक रोशनी बनकर आती है, लेकिन व्यस्तता में वह हर रोज शाम को मिलती है । आज दफ्तर के अवकाश में पूरा समय दिन के साथ बना रहा । यूं कहें तो उसकी चाल के साथ। घर के चारों तरफ की खिड़की खोल चुका हूँ, क्योंकि दिन का घर में प्रवेश करने का यही द्वार है । सभी लाइट बंद है ।

''दिन'' पहले किचन की खिड़की से घर में पहुंचता है । वह मेरी सुबह थी, जिसकी उपस्थिति में मैंने पहली कॉफी बनाकर पी । जब-तक दिन किचन से न चला जाए अपने लिए नाश्ता बनाता रहा । इस वक्त दिन का धीमे- धीमे चलना दीवार में कम होती धूप की रोशनी से देख रहा हूँ । किचन से हॉल की दूरी तय कर ''दिन'' अब दोपहर में पहुंच चुका है । मैं हॉल की खिड़की के करीब कुर्सी लगाकर आंखे बंद कर चेहरे पर पड़ने वाली रोशनी का इंतजार कर रहा हूँ । थोड़े ही देर में आँखों के भीतर का काला रंग लाल में बदलने लगा । यह धूप का चेहरे पर आना था । आंखे बंदकर दिन के चलने को करीब से महसूस किया जा सकता है । घंटो आंखे बंदकर भीतर के लाल रोशनी में अतीत का जीवन काफी साफ नजर आने लगा था । कुछ लोगों को दुखी देखना एक तरह से आत्माग्लानि थी ।

वर्तमान का जीवन धुंधला दिखाई पड़ने के बावजूद छूटे हुए लोगों के शक्ल कतार में खड़े हुए थे । अपनी ज्ञात गलतियों की माफ़ी मांगना चाहता हूँ...,यह शब्द कहते ही आँखों के भीतर पहले के तरह सब काला रंग छा गया । हड़बड़ाहट में आँख खोला। हॉल में दिन कहीं नजर नहीं आया। किचन का अँधेरा पूरा भरने के बाद हॉल में आने लगा था । मैं बेडरूम में पंहुचा, दिन अपनी खूबसूरत यादों के साथ शाम को टेबल पर मिला । इस वक्त खिड़की से दीवाल पर धूप की रोशनी से बनने वाली आकृति देखना, घंटो किसी किताब में दिन के साथ बने रहना बेहद सुखद है । दिन अकेला आता है, लेकिन जाता शाम के साथ है । और अपने पीछे कई यादें छोड़ जाता है । थोड़े देर में रूम की खिड़की से दिन इस घर को विदा कह देगा । पांच बजते ही घर में अँधेरा हो चूका था । सभी जगह दिन का वियोग बिखरा हुआ है ।

किचन में सुबह की झूटी पी हुई कॉफ़ी, हॉल में खाली कुर्सी, रूम में खुली हुए किताब और चारों तरफ केवल अँधेरा.. । रूम से धुप की रोशनी ख़त्म होती ही मैं छत में जा पहुंचा.. वहां दिन हमेशा की तरह मेरे इंतजार में था । इस वक्त बहुत कुछ कहना चाहता था, लेकिन मैं केवल दिन और शाम को जाते देखता रहा. और दिन बड़ी सादगी से चला गया... आसमान में उसकी याद की लाल रोशनी बिखरी पड़ी थी, जिसे मैंने दोपहर महूसस किया था । अब उस रोशनी में मुझे पूरा दिन याद आ रहा है ।यह लिखने के बाद इच्छा हो रही, काश दिन थोडा वक्त और साथ होता, तो कह देता मुझे तुमसे बहुत प्यार है.. केवल आज के लिए नही, ताउम्र के लिए..🌻🌸

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