कुत्ते की मौत
ताया : अरे ओ गंगाराम कहाँ भागे जा रहे हो।
गंगाराम : ताया,वह अपने गंगू ने आत्महत्या कर ली हैं।
ताया : तो भई गंगाराम उल्टी दिशा में काहे भागे जा रहे हो, गंगू का घर तो दूसरी तरफ है।
गंगाराम : ताया, पुलिस को खबर करनी है।
ताया : तो भई, पुलिस थाना भी इधर कहाँ है! वह भी तो दूसरी तरफ है!
गंगाराम : ताया, तुम तो एकदम उल्लू हो।
ताया : कैसे?
गंगाराम : पुलिस थाने जाने से पहले गाँववालों को इकठा करेंगे, तभी तो पुलिस कुछ कार्यवाही करेगी न।
ताया : ओह! अच्छा! अब समझा।
गंगाराम : शुक्र है, समझ गए वरना मैं तो समझा था कि तुम उल्लू की जात मेरा सारा दिन ख़राब करवाओगे।(मुँह कसैला बनाते हुये)
ताया : अच्छा, यह बताओ कि गांव वाले आएंगे क्या? (जैसे परिणाम पहले ही जनता हो)
गंगाराम : काहे नहीं आएंगे!
ताया : मुझे नहीं पता तुम बताओ काहे इकठे होंगे?
गंगाराम : अरे!वह अपने रामदीन की बिटिया जब आत्महत्या की थी तो पूरा का पूरा गाँव सड़क जाम कर दिया था। सारे पुलिस अफसर और कलक्टर तक को आना पड़ा था।तुम जानत नाही हो!
ताया : पर, वह तो रामदीन की बिटिया थी।
गंगाराम : ताया, अब क्या सारी उम्र उल्लू ही बने रहोगे?
ताया : अब क्या उल्लूपना कर दिया मैंने!(हैरानी से गंगा राम से)
गंगाराम : अब देखो, उस बक़्त रामदीन की बिटिया ने आत्महत्या की रही और इस बार जमनादास का बिटवा ने आत्महत्या किया है, क्या फरक है!(किसी तरफ इशारा करते हुए)
ताया : मुझे ना पता, तुम ही बता दो भला।
गंगाराम : कोई फरक ना है।अभी सारे गाँव को इकठा करूंगा और पुलिस थाणे का घेराव करेंगे फिर जरूरत पड़ी तो पूरा सड़क भी जाम करेंगे। (गुस्से में गाँव के घरों की तरफ देखा)
ताया : अच्छा भाई, तेरी मर्जी कर ले कोशिश! (जैसे सब जानता हो)
गंगाराम : करेंगे, बिलकुल करेंगे। तुमसे तो कुछ होता न,सारा दिन उल्लू की तरह बैठे रहते हो,तो क्या हम भी कुछ ना करें?( बड़बड़ाते निकल गया)
ताया : वापसी में जरूरत हो तो मुझे भी ले लेना।(झल्लाकर जोर से बोला ताकि दूर जाते वह सुन ले)
गंगाराम : काहे जरूरत पड़ेगी! गाँव के समझदार लोग ही काफी है।( दूर जाते जाते जोर से)
ताया : तेरी मर्जी। (आवाज ऊँची से नीची करते हुये)
आधे घंटे बाद
ताया : अरे, ओ गंगाराम!काहे मुँह लटकाए हो और वह सारी भीड़ कहाँ गयी जिसे तुम बुलाने गये...?
गंगाराम : ताया कोई ना आया सब कह रहे है कि व्यस्त है,अभी तो!
ताया : अरे ऐसी भी क्या व्यस्तता!(व्यंग्य भाव से)
गंगाराम : कोई व्यस्त ना है ताया।बस आना नहीं चाहते!
ताया : तो पूछे नाहीं कि रामदीन की बिटिया के लिए कहा से टाइम निकाले रहे तुम सब!
गंगाराम : पूछा!
ताया : क्या बताया?
गंगाराम : बोले रहे कि मैं तो उल्लू दिमाग का आदमी हूँ!
ताया : कैसे?
गंगाराम : वह एक महिला का मामला था। अब एक आदमी का मामला है!
ताया : तो क्या फरक पड़ गया!
गंगाराम : कहत रहे कि कायर था साला, इसीलिए कुत्ते की मौत मर गया।
ताया : तो पूछना चाहिए था कि रामदीन की बिटिया काहे मरी रही?
गंगाराम : पूछा न!
ताया : तो क्या बोले?
गंगाराम : अब,छोडो भी ताया।सब साले एक नंबर के घोंचू है।
ताया : समझ आ गया ना।
गंगाराम : हां,आ गया समझ।
ताया : तो बता क्या समझा।
गंगाराम : यही कि पूरा गाँव उल्लू की जात है।
ताया : कैसे भला?
गंगाराम : एक महिला आत्महत्या करे तो उसके लिए मरने मारने को तैयार और आदमी मरे तो जैसे कोई कुत्ता मर गया हो,ऐसे दिखाते हैं साले।
ताया : चल आ, मेरे पास बैठ और उल्लुओं का तमाशा बैठ कर देखेंगे।
गंगाराम : वोह कैसे ताया?
ताया : देख, जैसे रामदीन की बिटिया पहली बार मरी वैसी तकरीबन तीन हजार से ज्यादा हर साल मरती है, देश में।
गंगाराम : इतनी मरती है!
तया : और जमनादास का बेटवा पहली बार मरा इस गाँव में, वैसे बेटवा हर साल 90 हजार से ज्यादा मरते है,अपने देश में।
गंगाराम : तो हम क्या करें?
ताया : देख भाई गंगाराम। गांव है उल्लुओं का। जब भी रामदीन की बिटिया मरेगी यह हो हल्ला मचाएंगे और जब जमनादास का बेटवा मरेगा सब अपने बिल में सुस्ताएँगे। तो ऐसे में एक राज़ की बात सिख ले!
गंगाराम : वह क्या ताया! (उत्सुकता से)
ताया : देख भाई,हम अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए पैदा हुए है और जियेंगे,हम परवाह नहीं करेंगे कि किस किस जमनादास का बिटिवा या रामदीन की बिटिया मरे।सब एक बरोबर हैं!
गंगाराम : समझ गया ताया!(उदास मन से)
ताया : तो बैठ हुक्का पी।( धुँए को फिक्र में उड़ाते हुए) उसके बाद चलेंगे रामदीन की बिटिया के लिए गए थे और अब जमनादास के बिटवा के लिए भी जाएंगे एक ही बात है अपने लिए तो कोई फर्क ना है
स्वरचित