प्रायश्चित - भाग-8 Saroj Prajapati द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रायश्चित - भाग-8

जब से शिवानी हॉस्पिटल से आई थी। तब से किरण देख रही थी कि कुमार के स्वभाव में काफी बदलाव आने लगा था। बात-बात पर उस पर चिल्लाने वाला कुमार अब उससे बहुत प्यार से बात करता। साथ ही उसका बहुत ध्यान रखने लगा था। सबसे बड़ी बात वह रियान के खूब लाड़ दुलार करता।
अब तो वह अक्सर शिवानी की सास के साथ बैठकर खूब बातें भी करता।
सब उसके बदले व्यवहार को देखकर बहुत हैरान थे। अम्मा जी सबको समझाते हुए यही कहती बिटिया भगवान सबकी सुनता है।
अम्मा जी, आप कहते हो तो मान लेती हूं लेकिन यकिन करना मुश्किल है क्योंकि इतने सालों से जो नहीं बदला वह एकदम से अचानक!!! किरण का हमेशा यही जवाब होता।
अचानक कुछ नहीं बदला बिटिया , सब तेरे पुण्य प्रताप है।
हां मां जी, आप की बात सच हो!!
बिल्कुल सच होगी मेरी छोटी बहना। तू है ही इतनी प्यारी कोई तुझसे ज्यादा समय तक नाराज नहीं रह सकता। फिर वह तो तेरा पति है। एक ना एक दिन तो उसे तेरी नजरो से कत्ल होना ही था । पीछे से शिवानी हंसते हुए बोली।
आप भी ना दीदी! कुछ भी कह देते हो। देख तो लेते अम्मा जी खड़ी है । किरण शर्माते हुए बोली।
अरे बिटिया, सास भी कभी बहू थी। माना शरीर बूढ़ा हो गया है लेकिन दिल तो जवान है मेरा। शिवानी की सास शरारत से उसे छेड़ते हुए बोली।
किरण अपने कमरे में आ गई। सभी के बार बार समझाने से उसे भी अब लगने लगा था कि सचमुच कुमार बदल गया है। हां, जैसे शुरू के कुछ दिन रहा था वो।
कुमार उसकी मां के साथ उसी फैक्ट्री में काम करता था और कई बार उसके घर आ चुका था।
अपने मिलनसार स्वभाव के कारण उसने जल्दी ही उसकी मां का दिल जीत लिया था । किरण के पिता के मृत्यु के समय कुमार ने आगे बढ़कर कई कामों में उनकी मदद की।
पिता की मृत्यु के बाद उसकी मां ने फैक्ट्री का काम छोड़ दिया क्योंकि लड़कियों को घर में अकेला छोड़ना उन्हें सही ना लगा।

माना उसके पिता बीमारी के कारण बिस्तर पर थे लेकिन घर की चौकसी तो थी उनके कारण और अब तो बिल्कुल अकेले!पिता की गुजरने के बाद कुमार अक्सर उनके यहां आ जाता और किसी ना किसी बहाने उनकी मदद कर ही देता।
मां को अच्छा तो बहुत लगता है लेकिन एक डर भी था कि लड़की जवान है और मोहल्ले वाले इस तरह वह बार-बार आएगा तो बातें ना बनाएं।
1 दिन दबी आवाज में उन्होंने कुमार से जब इस बारे में बात की तो वह बोला हां मैं आपकी बात से सहमत हूं मैं बहुत दिनों से एक बात कहना चाहता था अगर आप इजाजत दे तो!!!
हां बोलो बेटा, क्या कहना चाहते हो। तुम तो अपनी हो। फिर इजाजत की बात कहां से आई!
आंटी जी, मैं आपसे किरण का हाथ मांगता हूं। आप कई सालों से मुझे देख रहे हो अगर आपको सही लगे तो इस रिश्ते को मंजूरी दे वरना मैं बुरा नहीं मानूंगा!
बेटा तुम्हारे जैसा हीरा लड़का आगे बढ़ कर खुद मेरी बेटी का हाथ मांग रहा है इससे बड़ी क्या बात हो सकती है। लेकिन शादी ब्याह की बातें मां बाप करें तो ज्यादा अच्छा है।
आंटी जी, मैं बिल्कुल अकेला हूं इसलिए खुद अपने रिश्ते की बात आपसे कर रहा हूं। आपमें सदा मैंने अपनी मां को देखा है। बस अपना आशीर्वाद का हाथ मेरे सर पर रख दे तो मेरा भी घर बस जाए।
हां हां बेटा मेरी तरफ से यह रिश्ता मंजूर है। किरण की मां ने खुश होते हुए कहा।
आंटी जी, एक बार किरण से भी पूछ लेते!!!!
अरे उससे क्या पूछना है। वह क्या तुझे नहीं जानती।
फिर भी आंटी जी, उसकी भी तो जिंदगी का सवाल है।
किरण की मां ने आस भरी नजरों से किरण की देखा किरण ने भी सहमति में सिर हिला दिया।
ना करने जैसी कोई बात भी तो ना थी। कुमार को वह भी कई सालों से देख रही थी और शक्ल सूरत तो उसकी ऐसी थी कि कोई एक बार देख ले तो ना कर ही नहीं सकता था। फिर वह कौन सी कहां की राजकुमारी थी।
सहमति मिलते ही 2 महीने के भीतर उन दोनों की शादी हो गई।
शादी के बाद शुरू के 6 महीने किसी हसीन ख्वाब से कम ना थे उसके लिए। कुमार उसका बहुत ध्यान रखता है । उसकी हर इच्छा पूरी करता और सबसे बड़ी बात उसे टूट कर प्यार करता था । किरण को तो यह सब सपना लग रहा था। आज तक दुख ही दुख तो देखे थे उसने । इतना सुख देखने कि उसे आदत कहां थी।
लेकिन हकीकत में बदलने से पहले ही उसके ख्वाबों का महल दरकने लगा था। कुमार का असली चेहरा धीरे-धीरे किरण के सामने आने लगा। पहले जहां कुमार महीने 15 दिन में पी कर आता था।अब अक्सर पीकर घर आता और बात बेबात किरण से झगड़ा करने लगा।
धीरे धीरे अपनी कमाई के पैसे भी किरण को देने बंद कर दिए। वैसे भी कमाई होती कहां से!!! या तो वह काम पर जाता ही नहीं और जाता तो जो पैसे मिलते उन्हें अपने शौक के पीछे खर्च कर देता।
पहले तो किरण इसे अपनी किस्मत मान रो धोकर चुप रह जाती लेकिन अब बात हद से ऊपर गुजर गई थी क्योंकि घर में खाने के लिए भी दाने ना थे। एक दिन उसने कुमार से जब इस बारे में सवाल जवाब किए तो वह आपे से बाहर हो गया और उस पर हाथ उठा दिया। एक बार जो हाथ उठा तो उठता ही चला गया । कुमार ने उसे साफ-साफ कह दिया था उसने उसके रूप को देख उससे शादी की थी। रहना है तो इस घर में उसे उसकी मर्जी से चलना होगा वरना अपनी मां के घर वापस जा सकती है।
किरण की ढलती सेहत और उतरा चेहरा देखकर उसकी मां से भी कुछ छुपा ना रहा। वह इस बात के लिए अपने को खूब कोसती कि उसकी किस्मत में तो दुख लिखे ही थे और उसने अपनी बेटी के जीवन में बिना देखे भाले कुमार जैसा कांटा बो दिया।
किरण अपनी मां को हमेशा समझाती कि इसमें आपका नहीं उसकी किस्मत का दोष है लेकिन वह इस के लिए अपने आपको कसूरवार मान हमेशा रोती रहती हैं।
उसके गम में उसकी मां बीमार भी रहने लगी थी।
किरण ने फैसला कर लिया था कि अब वह यहां नहीं रहेगी। किसी ना किसी बहाने
से कुमार को मना कर यहां से दूर ले जाएगी वरना उसकी मां उसे अपनी आंखों के सामने देख घुट घुट कर मर जाएंगी और उसकी दोनों बहने!!! फिर उनका क्या होगा!!!!
अब किरण ने धीरे-धीरे कुमार के मन में एक बात बैठानी शुरू कर दी थी कि यहां काम धंधा नहीं रहा। चलो किसी बड़े शहर चलते हैं। वहां पर कुछ अच्छी नौकरी करोगे तो दो पैसे हाथ में भी आएंगे।
कुमार को भी उसकी बात कुछ-कुछ सही लगने लगी थी और लगती भी क्यों ना यहां तो उसने इतने लोगों से उधारी कर ली थी, जिसे पूरा करना उसके बस की बात ना थी इसलिए उन दोनों ने वह शहर छोड़ने का फैसला कर लिया।
किरण ने अपनी मां से यह झूठ बोल उनके दिल को तसल्ली दी कि कुमार की दूसरे शहर में एक अच्छी नौकरी लग गई है इसलिए हम वहां जा रहे हैं। हो सकता है वहां जाकर वह सुधर जाए ।आप हमारी चिंता मत करना और इन दोनों का अच्छे से ध्यान रखना।
यहां आकर कुमार की नौकरी तो अच्छी लग गई लेकिन कहते हैं ना आपका स्वभाव जैसा होता है, वैसे ही संगत के लोग आपको हर जगह मिल जाते हैं तो यहां भी कुमार को अपने स्वभाव के अनुसार लोग तो मिले लेकिन उनकी संगति अच्छी ना थी।
वह तो शिवानी दीदी का घर उन्हें किराए पर मिल गया ।जिसके कारण वह अपने सुख-दुख उनसे साझा कर लेती और अब तो कुमार !!!!!!
हां सही कहती है मांजी। सचमुच अब वह बदल गया है।
सरोज ✍️