प्रायश्चित - भाग-3 Saroj Prajapati द्वारा रोमांचक कहानियाँ में हिंदी पीडीएफ

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प्रायश्चित - भाग-3

शिवानी सोने की बहुत कोशिश कर रही थी लेकिन पिछली यादें जिन्हें वह भूलने की कोशिश में इतने सालों से लगी थी मानो आज फिर से जीवित हो उठी थी।

शिवानी को आज भी याद है कि किरण जितनी शांत महिला से वह अपने जीवन में पहली बार मिली थी। शिवानी उससे कोई भी बात करती , वह बस "हां हूं " में ही जवाब देती ।
शिवानी को उसके ऐसे व्यवहार से लगता कि वह बहुत घमंडी है।‌ साथ ही अपने पर भी बहुत गुस्सा आता था कि जब वह बोलना ही नहीं चाहती तो वह क्यों आगे बढ़ उससे बात करना चाहती है। पर क्या करें वह अपनी आदत से मजबूर थी। शुरू से ही पक्की बातूनी जो ठहरी। अपनी बातों के चक्कर में सबसे ना जाने बचपन में दिन में कितनी बार डांट खाती थी। जब भी कोई उसे काम बताता, वह हमेशा बातों के चक्कर में भूल जाती ‌।

और अब! अब तो जैसे वह बोलना ही भूल गई थी। याद कर शिवानी ने ठंडी आह भरी।
एक दिन दिनेश अपने काम पर गया हुआ था और वह अपनी रसोई के काम समेट रही थी।
तभी उसे किरण के कमरे से कुछ चीखने की आवाज सुनाई दी। पहले तो उसने अनदेखी कर दी फिर ज्यादा ही चिल्लाने और रोने की आवाज आई तो वह अपने आप को रोक ना सकी।
उसने किरण का दरवाजा खटखटाया। काफी देर बाद ‌कुमार ने दरवाजा खोला।
किरण फर्श पर गिरी हुई थी और उसके चेहरे पर चोट के निशान थे।
शिवानी ने उसे उठाया और गुस्से से कुमार को देखते हुए बोली "तुम इंसान हो या जानवर ! जो इतनी बुरी तरह मार रहे थे इसे। शर्म नहीं आती तुम्हें अपनी पत्नी पर हाथ उठाते हुए।"

उसकी बात सुन कुमार गुस्से से बोला "शिवानी जी आपको कोई हक नहीं हमारे घर के मामले में दखल देने का।"

"वाह क्या खूब कही आपने! घर का मामला होता तो आप तमाशा ना बनाते । अरे, कोई भी सुनेगा तो एक बार इंसानियत के नाते जरूर आएगा। सब आपकी तरह बेगैरत नहीं। अगर आपको यही सब करना है तो आप‌ यहां से मकान खाली कर कहीं दूसरी जगह देखिए। हमारे यहां यह सब कुछ नहीं चलेगा।"
सुनकर कुमार का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ और वह चुपचाप वहां से चला गया। ‌
उसके जाने के बाद शिवानी ने किरण को पानी दिया और बोली "वह तुम्हें मार रहा था और तुम पिट रही थी। आखिर क्यों!"
सुनकर किरण कुछ नहीं बोली । उसका रोना अब तक सुबकियों में तब्दील हो चुका था।
"अरे, बोलती क्यों नहीं! तुझसे ही पूछ रही हूं मैं। किस मिट्टी की बनी हो। हमेशा चुप ही रहती है।‌ "
"क्या बोलूं दीदी! पति है वह मेरा! मार दिया तो क्या, अब मैं उसे उल्टा तो नहीं मार सकती ना! गलती मेरी ही थी।"

"क्या मतलब पति है, तो कुछ भी करेगा ‌। गलती थी तो समझा सकता था। हाथ उठाने की क्या जरूरत थी। शादी करके लाया है । तुझे कोई खरीदा तो नहीं। गुलाम है क्या तू उसकी। जो उसकी ज्यादती सहेगी। एक बात कान खोल कर सुन ले। पति पत्नी दोनों बराबर होते है ।यह तो हमारे समाज में पतियों को देवता बना रखा है। अगर पहली बार में तूने उसका विरोध नहीं किया तो फिर कभी नहीं कर पाएगी। यूं ही जब तब हाथ उठाएगा तुझ पर। फिर रोते रहना उम्र भर! कोई मेरी तरह से तेरा साथ देने या समझाने नहीं आएगा दुनिया दूर से तमाशा देखती है समझी। अपनी मदद खुद ही करनी होती है।"
सुनकर किरण कुछ नहीं बोली थी। बस नज़रे नीचे कर, सहमति में सिर हिला दिया था उसने।
शाम को जब दिनेश आया तो शिवानी ने उसे सारी बातें बताई। सुनकर दिनेश बोला "यह तो बिल्कुल भी सही नहीं किया उसने। ऐसे ही आदमी हम जैसे लोगों का नाम भी खराब करते हैं। मैं नहीं चाहता कि वह हमारे यहां रहे। बुरा असर पड़ता है बच्चों पर। कहो तो उसे कमरा खाली करने का नोटिस दे दूं।"
"रहने दो! मैंने बोल दिया है शायद आगे से ऐसा ना करें।" शिवानी कुछ सोचते हुए बोली।
उसके मना करने के पीछे सिर्फ यह मंशा थी कि ऐसे आदमी कभी नहीं सुधरते। यहां रहे तो वह किरण के साथ आगे अत्याचार नहीं होने देगी। उसे संभाल लेगी। पता नहीं दूसरी जगह कोई इस निर्दयी को रोकने वाला होगा भी या नहीं।
अगले दिन जब दिनेश अपने काम पर चला गया और कुमार भी घर पर नहीं था। तब शिवानी किरण के पास गई।
उसे देख कर किरण हल्का सा मुस्कुराते हुए बोली
"आओ दीदी!"
उसको मुस्कुराते देख शिवानी को अच्छा लगा और वह बोली "अच्छा जी, हमारी इस मोम की गुड़िया को मुस्कुराना भी आता है। बहुत अच्छी लगती है मुस्कुराहट तुम्हारे चेहरे पर। सदा ऐसे ही मुस्कुराते रहो।"
"दीदी, आपके लिए चाय लेकर आती हूं।"

"नहीं किरण, मैं तो बस तुमसे ऐसे ही मिलने आ गई थी। कल तो ज्यादा बात नहीं हुई। बता आने के बाद तो कुमार ने कुछ नहीं कहा ना तुझे!"
"नहीं दीदी! "
"मैं तो कहती हूं, अपने मायके चली जा और जब तक यह अपनी गलती की माफी ना मांगे, मत आ। जब अपने आप घर बाहर के काम करेगा तो सारे होश ठिकाने आ जाएंगे इसके।"
"नहीं दीदी ठीक हूं यहीं पर। वहां भी...! " कहते कहते किरण चुप हो गई। उसके चेहरे पर दुख की रेखाएं उभर आई।

शिवानी उसे चुप देख कर बोली "क्या बात है किरण! तेरे मायके में सब सही है ना। कौन-कौन है वहां!"

"हां दीदी, सब सही है। मां और दो बहने हैं। दोनों बहने अभी पढ़ रही है । अगर मैं लड़ झगड़ कर वहां बैठ गई तो आप समझ सकती है ना, मां के दिल पर क्या बीतेगी।" किरण की आवाज में नमी थी।
शिवानी उसके बारे में जानकार चुप हो गई। इतना तो उसे भी पता था कि बेटियों का मायके बैठना कोई आसान नहीं है।
वह तो भरे पूरे घर से हैं। सुख में सौ बार पीहर वाले बुला लेंगे और खुशी खुशी रख भी लेंगे लेकिन दुख में 1 दिन भी कोई साथ देने को तैयार ना होगा। सबको वह बोझ नजर आने लगती है। जिस घर में बेटियां जन्म लेती है, पलती बढ़ती है, वही घर शादी के बाद कैसे पराया हो जाता है उनके लिए। किसी चीज पर उसका कोई अधिकार नहीं यहां तक कि रिश्तो पर भी। सोचते हुए उसकी आंखों के कोर गीले हो गए थे।
"अच्छा ठीक है। किसी भी चीज की जरूरत हो या कोई तकलीफ हो मुझे कहना। मैं तेरी मकान मालकिन नहीं बड़ी बहन हूं। समझी!"
सुनकर किरण मुस्कुरा भर दी।
अब तो शिवानी अक्सर किरण के हालचाल पूछती रहती । उसके साथ खूब बातें करती । किरण सुनती और मुस्कुरा भर देती । बोलती अब भी बहुत कम थी।
हां, रिया के साथ किरण खूब खेलती और उसके खूब लाड दुलार करती थी।
अभी पिछली बातों को एक महीना भी नहीं हुआ था कि किरण के कमरे से फिर से उसे हल्का सा शोर सुनाई दिया सुनकर शिवानी का दिल धड़क गया और वह जल्दी से उसके कमरे में गई ‌।
सामने कुमार गुस्से में खड़ा था और किरण कोने में चुपचाप खड़ी रो रही थी। उसके चेहरे पर उंगलियों के निशान थे।
देखकर शिवानी का खून खौल गया। वह कुमार पर चिल्लाते हुए बोली " बहुत हुआ! मैंने उस दिन भी तुम्हें समझाया था। इसके बाद भी तुम्हारी वही हरकत। मैं अभी पुलिस को फोन करती हूं। वही तुम्हारे होश ठिकाने लगाएगी।"

"नहीं नहीं दीदी! आप ऐसा कुछ नहीं करोगे। इनका कोई कसूर नहीं था आज। ‌ मेरी ही गलती थी । आप जाइए यहां सब सही है।" कह किरण आंसू पोंछते हुए रसोई में चली गई।
शिवानी उसे हैरानी भरी नजरों से देखती रही और चुपचाप वहां से वापस आ गई। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था अपनी बेवकूफी पर। क्यों बेवजह मियां बीवी के झगड़े में पड़ी। जब किरण को ही कोई फर्क नहीं पड़ता तो वह क्यों दुखी होती है उसके दुख को देखकर।
आज के बाद वह उससे बोलेगी भी नहीं । झगड़ा होता है तो होता रहे। मुझे क्या मैं तो अपने आंख कान बंद कर लूंगी । भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा!
आने दो इन्हें आज। कमरा खाली करवाने के लिए बोलती हूं।
मन ही मन बड़बडाती हुई,वह काम में लग गई।‌ काम करते हुए गुस्से के कारण उसका बीपी बढ़ गया और उस चक्कर आने लगे। किसी तरह वह ड्राइंगरूम में आई और सोफे पर बैठते ही बेहोश हो गई । रिया अपनी मां की हालत देखकर घबरा गई और रोने लगी।
क्रमशः
सरोज ✍️