शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 29 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 29

बाल की खाल

इंस्पेक्टर कुमार सोहराब और सार्जेंट सलीम लॉन में आकर बैठ गए। सोहराब के चेहरे पर गहरी चिंता थी। उसने सिगार का एक गहरा कश लेते हुए कहा, “मैं विक्रम के खान को कभी नहीं भूल पाऊंगा। वह दुनिया का जाना-माना पेंटर था, लेकिन वक्त ने उसे बद से बदतर हालात में पहुंचा दिया था।”

“उसकी मौत कैसे हुई है? किस नतीजे पर पहुंचे आप?”

“नतीजे इतनी जल्दी नहीं निकाले जा सकते हैं, लेकिन हालात से लग रहा है कि उसने खुदकुशी की है।”

“ऐसा किस बिना पर कह रहे हैं आप?”

“इसलिए कि कमरे में संघर्ष के कोई निशान नहीं हैं। न ही उसकी बॉडी पर ही चोट या खरोंच का कोई निशान मिला है। वह इतना कमजोर नहीं था कि आसानी से कोई उसे काबू में कर लेता।”

“वह इतना बुजदिल तो था नहीं कि खुदकुशी कर ले!” सार्जेंट सलीम ने कहा।

“उसने एक सुसाइड नोट छोड़ा है।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा और कोट की जेब से सुसाइड नोट निकाल कर सार्जेंट सलीम को थमा दिया।

सलीम कागज को खोल कर पढ़ने लगा। बहुत आर्टिस्टिक राइटिंग थी। कागज पर एक छोटा सा नोट लिखा हुआ था, ‘मैं अपनी शेयाली के पास जा रहा हूं।’ सलीम ने दो-तीन बार उस इबारत को पढ़ा और कागज का रुक्का सोहराब को वापस कर दिया।

“यह राइटिंग किसी और की भी तो हो सकती है?” सलीम ने कहा।

“मैं विक्रम खान की राइटिंग पहचानता हूं। एक बार वह इसी लान में एक किताब पढ़ रहा था। उस पर उसने कुछ नोट लिख रहा था। तब मैंने उसकी हैंड राइटिंग देखी थी। फिर भी राइटिंग एक्सपर्ट से इसकी जांच तो करानी ही होगी।”

“यह भी तो हो सकता है कि उससे जबरन सुसाइड नोट लिखा कर उसका गला दबा दिया गया हो?” सलीम ने खदशा जाहिर किया।

“मुमकिन है।” इंस्पेक्टर सोहराब की आवाज गहरी सोच में डूबी हुई थी।

“सुसाइड नोट से तो लग रहा है कि वह शेयाली से बहुत प्यार करता था।” सलीम ने पूछा।

“बेइंतेहा।” कुमार सोहराब ने कहा, “वह शेयाली को लेकर एक मास्टपीस बनाना चाहता था। उसकी वह पेंटिंग अधूरी रह गई।”

“मास्टपीस!” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“स्पेन के मशहूर पेंटर पाब्लो पिकासो की एक प्रेमिका थी, सिलवेट।” सोहराब ने कहा।

“लेकिन पिकासो से विक्रम का क्या संबंध?” सलीम ने बीच में ही सवाल किया।

“इत्मीनान रखिए... बताता हूं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, “पिकासो की आखिरी प्रेमिका थी सिलवेट। सिलवेट से पिकासो की मुलाक़ात 1954 में हुई थी। पिकासो तब इंटरनेशनल सेलेब्रिटी थे। वह फ्रांस के वैलेयुरिस में आलीशान महल में रहते थे। 70 बरस के पिकासो की जब सिलवेट की मुलाकात हुई तो वह 19 साल की थीं। सिलवेट के बाल सुनहरे थे और वह सिर पर ऊंची पोनी बांधा करती थीं। पिकासो ने सिलवेट की ऊंची पोनी टेल वाली पेंटिंग बनाई थी। सिलवेट बेहद संकोची स्वभाव की थीं। उन्होंने अपनी न्यूड तस्वीर बनवाने से मना कर दिया था। सिलवेट खुद को पिकासो की मोनालिजा मानती थीं।”

सोहराब ने रुक कर बुझ चुके सिगार को दोबारा जलाया और बताना शुरू किया, “शेयाली विक्रम की सिल्वेट थी। शेयाली ने भी विक्रम के लिए न्यूड पेंटिंग बनवाने से मना कर दिया था। विक्रम सिल्वेट की तरह की शेयाली की ऊंची पोनी टेल वाली एक पेंटिंग भी बना रहा था। अफसोस की वह पेंटिंग अधूरी ही रह गई।”

“आपको इतनी जानकारी कैसे हुई?” सलीम ने आश्चर्य से पूछा।

“एक बार मैंने विक्रम खान को सिल्वेट पर एक किताब पढ़ते हुए इसी लॉन में देखा था। मैंने उससे मांग कर वह किताब देखी थी। किताब में उसने कुछ नोट्स लिखे थे। बाद में मैंने खुद भी वह किताब पढ़ी थी। मैंने शेयाली की वह अधूरी पेंटिंग भी देखी है। विक्रम शेयाली से दिल की गहराइयों से प्यार करता था। कुछ कमियों के बावजूद वह भला और अच्छा इंसान था। एक महान पेंटर, जिसे वक्त ने तबाह कर दिया।”

कुछ देर खामोशी के बाद सोहराब ने कहा, “विक्रम ने खुदकुशी की है या हत्या है... यह तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद तय होगा, लेकिन इसके पीछे जो भी है मैं उसे बख्शूंगा नहीं।”

विक्रम खान की लाश का पंचनामा भर दिया गया था और अब लाश को एंबुलेंस पर रखा जा रहा था। ठीक तभी लान में एक कार आ कर रुकी। उसमें से हाशना उतरी और बहुत तेजी से एंबुलेंस की तरफ बढ़ी। वहां विक्रम की लाश को देख कर वह ठिठक गई। उसके चेहरे का रंग सफेद हो गया था। उसकी आंखें डबडबा आई थीं।

वह काफी देर यूं ही खड़ी लाश को देखती रही। कुछ देर बाद एंबुलेंस लाश लेकर रवाना हो गई। उसके बाद हाशना भारी कदमों से आकर सोहराब और सलीम के पास एक कुर्सी पर बैठ गई। वह कुछ देर यूं ही खामोश बैठी रही।

“आपको कैसे पता चला इस बारे में?” सोहराब ने उसकी तरफ गहरी नजरों से देखते हुए पूछा।

“मोबाइल पर एक न्यूज ग्रुप में ब्रेकिंग आई थी।”

“ओह!” सोहराब ने कहा, “विक्रम की मौत के बाद अब आपके दादा जी वाली पेंटिंग भी हमेशा के लिए रहस्य बन जाएगी।”

“क्या घर की तलाशी में नहीं मिली?” हाशना ने तुरंत ही पूछा।

“नहीं।” इंस्पेक्टर सोहराब ने कहा, “अब मैं आपके दादा की मदद करने को तैयार हूं।”

इस बीच अचानक सार्जेंट सलीम अपनी कुर्सी से उठ गया और टहलते हुए एक घुमाव लेकर हाशना के पीछे आकर चुपचाप बैठ गया। उसने बहुत खामोशी के साथ हाशना के सर का एक बाल तोड़ लिया। हाशना ने इस वक्त पोनी बांध रखी थी। बाल तोड़कर सलीम ने रुमाल में लपेट लिया और फिर उसे कोट की जेब में रख लिया। उसके बाद वह एक घुमाव लेकर फिर आकर बैठ गया।

“कब मिलना चाहेंगे दादा जी से?” हाशना ने सोहराब से पूछा।

“अभी इसी वक्त।” सोहराब ने कहा।

“आप चलेंगे या दादा को बुला लूं?” हाशना ने पूछा।

“नहीं... मैं साथ चलता हूं आपके।” सोहराब ने कहा। इसके बाद सोहराब और हाशना उठ गए। सलीम वहीं बैठा रह गया। हाशना की कार के पीछे सोहराब की घोस्ट शेयाली के बंग्ले के गेट से बाहर निकल पड़ी।

सोहराब के जाने के बाद सलीम ने जेब से पाइप निकाला और वानगॉग तंबाकू का पाउच निकाल कर उसमें भरने लगा। पाइप सुलगाने के लिए लाइटर तलाशने लगा, लेकिन वह नहीं मिला। वह उठ कर गार्ड रूम की तरफ चला गया। मनीष भी वहीं था। उसने एक गार्ड से माचिस लेकर पाइप सुलगाया और लान में ही टहलने लगा। उसका मन उदास था।

कैसे एक हंसती-खेलती जिंदगी तबाह हो गई थी। एक-एक करके सारी तस्वीरें उसके जेहन के पर्दे पर आतीं और गायब हो जातीं। उसने शेयाली और विक्रम को पहली बार होटल में देखा था। शेयाली उसकी बिल्ली से खेल रही थी। उसके बाद शेयाली समुंदर में डूब गई थी। फिर आज विक्रम के खान भी एक लाश के तौर पर उसके सामने था।

सलीम को एक बात समझ में नहीं आ रही थी। सोहराब इस पूरे मामले के पीछे किसी बड़ी साजिश को मान रहा था, लेकिन सलीम को अभी तक कुछ भी समझ नहीं आया था कि आखिर यह पूरा मामला क्या है? सोहराब भी उसे कुछ साफ-साफ नहीं बताता था। सब कुछ पर्दे में छुपा हुआ था। अलबत्ता श्रेया पर कुछ हमले जरूर हुए थे, जिसे ओपेन क्राइम कह सकते हैं।

“सलीम साहब! आइए चलते हैं।” कोतवाली इंचार्ज मनीष ने उसे पुकारा। उसकी आवाज सुन कर सलीम की सोचने की श्रंख्ला टूट गई।

सलीम, मनीष की जीप में आकर बैठ गया और जीप रवाना हो गई। सार्जेंट सलीम सोहराब के साथ घोस्ट से आया था। सोहराब उसे छोड़ कर हाशना के साथ चला गया था। अब उसके पास कोई साधन नहीं बचा था।

एक बार फिर सार्जेंट सलीम अपनी सोच में गुम हो गया। आखिर इस मामले में श्रेया का क्या रोल है? हाशना को कहां फिट किया जा सकता है?

“आपको कहां छोड़ दूं।” मनीष की आवाज पर सलीम चौंक पड़ा था।

“अ हां... आप मुझे ऑफिस ड्रॉप कर दीजिए।” सार्जेंट सलीम ने कहा।

कुछ देर बाद मनीष ने सलीम को खुफिया विभाग के गेट पर छोड़ दिया। सलीम ने रेटिना की स्क्रीनिंग कराई और फिंगर प्रिंट लगाने के बाद अंदर दाखिल हो गया। वह सीधे सोहराब के ऑफिस में पहुंचा था। वहां उसने अलमारी पर लगे नंबरों पर कोड डायल किए और फिर एक शीशे पर फिंगर लगाई और अलमारी खुल गई। सोहराब ने अलमारी पर अपनी उंगली के साथ ही सलीम की उंगली का प्रिंट भी दे रखा था, ताकि वक्त जरूरत वह भी अलमारी का इस्तेमाल कर सके।

सलीम ने अंदर से शीशे की एक डिबिया निकाली। उसमें दो लंबे बाल रखे हुए थे। उनका रंग पीला था। सलीम ने जेब से रुमाल निकाल लिया। उसमें भी दो पीले बाल रखे हुए थे। एक बाल सोहराब को अलमारी की हैंडल पर मिला था और दूसरा बाल सलीम ने हाशना के सर से तोड़ा था।

सलीम ने आज मिले दोनों बाल शीशे की डिबिया में रखे और अलमारी लॉक करके लैब की तरफ चला गया। वहां उसने डिबिया देकर चारों बालों का डीएनए करने के लिए कहा और वापस अपने ऑफिस में आकर बैठ गया।

*** * ***


पीले रंग का बाल किसका था?
वह नकाबपोश कौन था?

इन सभी सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर’ का अगला भाग...