सलाखों से झाँकते चेहरे - 10 - अंतिम भाग Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 10 - अंतिम भाग

10 --

एक भद्र महिला को अपने सामने देखकर लुंगी वाले महानुभाव कुछ खिसिया से गए, उन्होंने अपनी लुंगी नीचे कर ली फिर अपने पास खड़े हुए दो युवा लड़कों को देखकर उनमें से एक से कहा ;

"रौनक ! इसको अंदर लेकर कोठरी में बैठाओ, मैं बाद में इससे बात करूँगा --"

"जी, कहिए --" वे लुंगी वाले महाशय इशिता की ओर मुखातिब हुए |

"मैं डॉ.इशिता वर्मा, अहमदाबाद से ---मि. कामले के साथ ----"

"अरे ! आपको तो आज जेल की मुलाकात लेनी है, लेकिन आप इस तरह से ?---माफ़ करिए, मैं यहाँ का जेलर अनूप सिन्हा ----" वह बंदा कुछ अधिक ही शर्मिंदा लग रहा था |

"आप अंदर आइए। मेरे पास झाबुआ से कलेक्टर साहब के पास से सब लिस्ट आ चुकी है लेकिन आप अकेले ? इस समय ?ऐसे ?---" उसने उन दोनों को अंदर आने का आग्रह किया और स्वयं आगे चला |

जेल के अंदर प्रवेश करते ही इशिता ने जेल के उस खूब बड़े से प्रांगण को देखा जो पेड़-पौधों, बेलों, फूलों से भरा पड़ा था | जेलर साहब फूलों की पंक्ति में बनी एक पगडंडी पर चल रहे थे जो एक बरामदे पर जाकर बंद होती थी | बरामदे में खूबसूरत लॉन-चेयर्स थीं और सामने ही एक दरवाज़ा |

"आप बैठें प्लीज़, मैं आता हूँ --" वे जल्दी से दरवाज़ा खोलकर कमरे में चले गए | उनकी आवाज़ आ रही थी |

"अरे ! बाहर आओ मुक्ता --देखो कौन आया है ---?"

इशिता ने रैम की ओर देखा और उसे यह महसूस हुआ कि उसने यहाँ आकर गलती नहीं की है |

पाँच मिनट के अंदर जेलर साहब लुंगी पर कुरता पहनकर पत्नी सहित उसके सामने थे |

"मेरी पत्नी --मुक्ता ----"

सुंदर सी स्त्री थी मुक्ता, मुस्कुराते चेहरे से उसने इशिता को अभिवादन किया |

"आपको इस तरह मिलना मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति हो गई लेकिन हम लोगों के लिए यह बहुत नॉर्मल है --हमें हर दिन ऐसी स्थिति से रूबरू होना पड़ता है ---हम लोग अगर इनसे ऐसे मार-पीट न करें तो ये यहाँ मारकाट करवा दें --"

जेलर साहब ने बताया कि उस जेल में ऐसे कैदी रखे जाते हैं जिन्होंने क़त्ल किया होता है | वहाँ ताड़ी पीना आम बात है और ताड़ी की बोतल पर इन सीदे-सादे लोगों से क़त्ल करवा लिए जाते हैं | झाबुआ से भी कैदी इसी जेल में भेज दिए जाते हैं | वो जिस औरत की पिटाई कर रहे थे, ऐसा उन्हें लगभग हर रोज़ करना पड़ता है | ये औरतें अपने प्रेमी या पति के लिए छिपाकर ताड़ी की बोतल भरकर लातीं और मिलने के बहाने अंदर जाकर गंदे नालों में डालकर उनके पास पहुंचा देतीं |

इनके मिलने के लिए दिन में सुबह और शाम एक-एक घंटा निश्चित किया गया है लेकिन ये स्त्रियाँ बहुत पहले से आकर जेल के बाहर चक्कर मारने लगती हैं और पकड़ी जाती हैं | जेलर साहब ने जेल के ही कुछ बंदों को इस काम पर लगा दिया था | रौनक इन सबका प्रमुख था |

अब जेलर अनूप सिन्हा ने इशिता से पूछा कि वह इस प्रकार यहाँ कैसे पहुँची और मि. कामले और क्रू के अन्य सदस्य कहाँ पर थे ? इशिता पहुत परेशान सी तो लग ही रही थी उसने फटाफट सारी बातें बता दीं | वह होटल से पर्स तक नहीं उठाकर लाइ थी |

"ओह ! मैडम, वह जगह आपके ठहरने के लिए नहीं है |मैं इंतज़ाम करवाता हूँ | "

इशिता के कहने पर मुक्ता उसे वॉशरूम ले गई जहाँ वह चैन से फ्रेश हो सकी |

रौनक चाय, नाश्ता लेकर हाज़िर हो गया था | जेलर साहब ने उससे कहा कि वह दूसरे लोगों से मिलकर बराबर वाला बँगला ठीक कर दे, मैडम रात भर से नहीं सोई हैं, थोड़ी देर आराम कर लेंगी|

इशिता को वहाँ बैठकर बहुत अच्छा लग रहा था, बिलकुल नहीं लग रहा था कि वह जेल के प्रांगण में बैठी है | मुक्ता का अपनत्व, जेलर साहब का उससे बड़े होते हुए भी दीदी कहना, उसे कहीं छू गया था |

"दीदी ! अब आप यहाँ से नहीं जाएँगी, रैम को ड्राइवर के साथ भेजता हूँ, आपका सामान भी आ जाएगा और सब लोगों को पता भी चल जाएगा कि आप सुरक्षित हैं |"

मुक्ता उसे लेकर पीछे के रास्ते से बराबर वाले बँगले में ले गई जिसमें रौनक ने उसके लिए कमरा तैयार कर दिया था | कमरा साफ़-सुथरा, खुला व हवादार था | पीछे से आते हुए इशिता ने अंदर जेल में काम करने वालों के घर भी देखे जहाँ बच्चे खेल रहे थे।बीच में एक बड़ा सा दरवाज़ा था जो जेल थी, उस दरवाज़े के गेट पर दो सिपाही बंदूकें ताने खड़े थे |

कुछ ही देर में रैम उसका सामान लेकर आ गया |

"मैम, सर बहुत परेशान हो रहे थे, होटल वाले रामदेव बाई को बी मालूम नहीं अम लोग कहाँ गया ? मुझको सर ने गुस्सा किया ----"

इशिता का सामान रखकर रैम वापिस चला गया | जेलर साहब ने होटल में मि. कामले से बात कर ली थी | मुक्ता उसे आराम करने को कहकर चली गई और न जाने कब इशिता की आँख लग गईं |

लगभग ग्यारह बजे इशिता की आँखें खुलीं, वह तैयार होकर पीछे के रास्ते से निकली तभी मि. कामले के साथ सब लोग जेल में पहुँच रहे थे |

"मैडम ! फ़्रेश ----" कामले मुस्कुराए |

"हम तो घबरा गए थे मैडम, आपके साहब को क्या जवाब देंगे ----? " इशिता मुस्कुराई, कुछ उत्तर नहीं दिया |

जेल में प्रवेश करते ही पता चला कैदियों ने अंदर से जेल को खूब सजा रखा था |जेल का भीतरी भाग बहुत बड़ा था जिसको कागज़ की रंग-बिरंगी झंडियों से बंदनवार बनाकर सजाया गया था | कैदी नए कपड़े पहने थे, किसी ने नए फैशन की बनियान भी पहन रखी थी जिन पर रंगीन धागों से कढ़ाई करके नाम लिखे गए थे | किसी बनियान पर फूल भी बने हुए थे |

" ये किसका नाम है ?" इशिता के आगे तीन -चार कैदी थे, वह जिनसे बात कर रही थी |

लड़का शरमा गया, उसने अपने हाथ से नाक की नथनी का आकार बनाया और वहाँ से भाग गया | यानि वह उसकी प्रेमिका का नाम था | इशिता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई |

कैदी अपनी नई पोशाकों में सजे आदिवासी संगीत का कार्यक्रम करने के लिए ढोल मंजीरे लेकर आ गए थे | शूटिंग वाले क्रू के सब लोग तैयार थे | कैदी समुदाय झंडियों से सजे बड़े से पेड़ के नीचे आकर पूरे उत्साह में दिखाई दे रहा था |

मि. कामले के आदेश देते ही उन्होंने अपने साज बजाने शुरू किए, साथ ही उनका नृत्य और गायन शुरू हो गया | वो सब बिना झिझक के नाच-गाने में तन्मय हो चुके थे और सुबीर के आदेशानुसार उनको शूट किया जा रहा था | बहुत कर्णप्रिय था उनका नृत्य व संगीत !

अचानक इशिता की दृश्य एक सैल में गई जहाँ से कुछ लोग जंगलों में से झाँककर बड़ी उत्सुकता से बाहर के दृश्य देख रहे थे | उस बड़े से लोहे के जंगलों को भी अलग-अलग भागों में बाँटा गया था | इशिता का ध्यान गीत-संगीत की दुनिया से निकलकर उन जंगलों की ओर चला गया था | जेलर साहब पास ही ुरसी पर बैठे थे ;

"उन बेचारों को क्यों बंद रखा है ? उन्हें क्यों नहीं निकाला ?" इशिता ने उनसे पूछा|

"दीदी ! इनको बाहर निकाला और एक-दो का मर्डर तो पक्का --" उन्होंने कहा |

"सबसे बड़ी मुसीबत ये है कि इसके लिए मेरी ज़िम्मेदारी हो जाती है और मुझे ऊपर जवाब देना पड़ता है ---" जेलर बहुत संजीदा थे | एक तरफ़ जश्न चल रहा था और दूसरी ओर इशिता का मन उधेड़बुन में निर्लिप्त हो रहा था |

"दीदी! आज आपने मुझको जिस हालत में देखा, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ पर क्या करूँ अपनी ड्यूटी से मज़बूर हूँ --"

" वो देख रही हैं दूसरे नं के सींखचे में ? इसने अपने बेटे का खून किया है --पेड़ पर चढ़कर वह ताड़ी की मटकी उतार रहा था कि बिना सोचे-समझे उसने तीर चला दिया --अब छह माह से जेल में है | ताड़ी इसकी कमज़ोरी है और ताड़ी पीकर यह पागल हो जाता है ---"

"आप पिछले हफ़्ते यहाँ होतीं तो इसी चार रास्ते पर आपको चार मुंडियां कटी पड़ी मिलतीं |" "

"ये रौनक यहाँ क्यों है ? "

" साल भर पहले अपने बाप का खून कर दिया था ---बस इसलिए कि उस दिन खूब बढ़िया खाना बना था जो इन्हें कम ही नसीब होता है | बाप-बेटे ताड़ी के नशे में खाने बैठे थे | माँ ने पहले इसके पिता को रोटी दे दी, इसे इतना गुस्सा आया कि आव देखा न ताव --पास पड़ा गंडासा उठाया और बाप का सिर काट डाला --"

" यह कैसे बाहर घूम रहे हैं ?"

"वैसे यह बहुत अच्छा लड़का है दीदी, इसकी ताड़ी पीने की आदत छुड़ाई, मुक्त ने इसे सारा घर का काम सिखाया, अब हमारे घर का सारा काम यही करता है --"

"ये आदिवासी बहुत प्यारे इंसान हैं लेकिन इन्हें सही ट्रेनिंग देने की ज़रुरत है जिसके लिए हम कोशिश कर रहे हैं ---"

"इन्हें यह सब करके पश्चाताप नहीं होता ---?"

"पश्चाताप ? बिलकुल नहीं, यही तो मुश्किल है यदि इन्हें पश्चाताप होने लगे तो आधी से अधिक समस्याएँ हल हो जाएं | रौनक और उस जैसे कई लड़के अब यह महसूस करने लगे हैं कि यह नहीं होना चाहिए लेकिन पश्चाताप ये कभी नहीं समझते, बिलकुल नहीं --" जेलर कष्ट में थे |

" ये जो उधर से तीसरे नं की जाली दिखाई दे रही है न, वो ---देखिए जो लड़का झाँक रहा है उसने साल भर पहले मेंझाबुआ तीर चलकर एक नर्स की मुंडी काट दी थी ---" इशिता को अचानक फिर से कामले द्वारा सुनाई हुई कहानी याद आ गई और वह पसीने से नहा उठी |

नाच -गाना अपनी द्रुत गति पर था और इशिता के दिल की धड़कन सप्तम स्वर में !