सलाखों से झाँकते चेहरे - 7 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

सलाखों से झाँकते चेहरे - 7

7---

उस गाँव से निकलकर कामले ने गाड़ी का रुख एक छप्पर वाले होटल जैसी जगह पर करवाया | तब तक शाम के चार बजने वाले थे |सबके पेटों में बैंड बज-बजकर शांत होने लगे थे |

" सर ! पाँच बजे हमको कलेक्टर साहब को भी मिलना है ---" सुबीर ने कहा |

" हाँ, याद है, नहीं तो कल कैसे अलीराजपुर जा सकेंगे ?" अहमदाबाद से लाए गए आज्ञा-पत्र पर कलेक्टर साहब के हस्ताक्षर करवाकर उनका आज्ञा-पत्र भी लेना था | अलीराजपुर की जेल के कैदियों से मिलने जाना था और वहाँ यह भी नोट करवाना था कि कितने लोगों को ले जाया जा रहा है | अलीराजपुर झाबुआ के अंतर्गत था, सरकारी काम के लिए कलेक्टर के आज्ञा-पत्र की आवश्यकता थी |

"जल्दी जल्दी पेट में कुछ डाल तो लें ---"कामले ने एक खारी बिस्किट मुह में भरते हुए कहा | सबका ही भूख के कारण बुरा था |

होटल के मालिक ने इतनी देर में अपना चूल्हा तेज़ करके फटाफट कच्चे-पक्के गर्म पकौड़े भी लाकर मेज़ पर रख दिए थे |

जल्दी ही पेट ने अपनी तृप्ति की सूचना दे दी और काफ़िला झाबुआ के कलेक्टर के ऑफ़िस के आगे ठीक पाँच बजने में कुछ मिनिट पर जा रुका | बाहर अपना परिचय-पत्र दिखाकर मि. कामले इशिता के साथ कलेक्टर साहब के ऑफ़िस में पहुँच गए |

कलेक्टर साहब उनकी ही प्रतीक्षा कर रहे थे, उन दोनों के अंदर पहुँचते ही उन्होंने कहा ;

"आइए मि.कामले, मैं आपकी ही वेट कर रहा था, आज काम जल्दी ख़त्म हो गया था --"

कामले वहाँ जाते रहते थे इसलिए उनका कलेक्टर साहब से पूर्व परिचय था | इशिता का परिचय करवाया गया, कलेक्टर सूरी एक सुलझे हुए सरल इंसान लगे इशिता को |

"बस.दो ही लोगों को अलीराजपुर जाना है ?" कलेक्टर साहब ने मि, कामले से पूछा था |

" नहीं साहब, हमारे साथ फोटोग्राफर सुबीर, शूटिंग-क्रू के चार मेंबर्स और वो--जॉर्ज परिवार का लड़का रैम भी जाएगा जिसको आप जानते हैं ---"

"उन सबको बुलवा लीजिए न, सबसे मुलाकात हो जाएगी ---"

सबके परिचय के बाद कलेक्टर साहब ने चाय बनवाई और दूसरी तरफ़ सबके नाम से अपने क्लर्क से एक आज्ञा-पत्र टाइप करवाकर उसपर अपने हस्ताक्षर कर दिए | इस पत्र के बिना जेल में मुलाकात लेनी संभव नहीं थी |

अब तक बहुत थकान हो चुकी थी |इशिता का मन इस समय रैम के घर डिनर के लिए जाने का बिलकुल भी नहीं था | वह सो जाना चाहती थी, कल रात भी उसकी नींद पूरी नहीं हुई थी लेकिन रैम की माँ उनके पहुँचने से पहले ही वहाँ बैठी थीं | वह जानती थी कि वहाँ कामले का अभी थकान उतारने का कार्यक्रम चलेगा, उसको बिना बात ही थकान हो जाएगी |

"प्लीज़, मुझे माफ़ करिए | मुझे बिलकुल भूख नहीं है, आराम करना चाहती हूँ ---"

"मैडम ! आपके लिए इन लोगों ने इतनी तैयारियाँ की हैं --आप चलिए तो सही, आप खाना खाकर रैम के साथ जल्दी आ जाइएगा ---"

'हे भगवान ! न जाने क्या तैयारियाँ की हैं' मन में वह भुनभुना रही थी लेकिन ज़बरदस्ती मुस्कुराना पड़ रहा था |

कामले ने बंसी से कहा कि वह इशिता व कामले को रैम के घर छोड़ दे जबकि सामने सड़क पार करते ही रैम का घर था |

काफ़ी अच्छा-ख़ासा घर था रैम का |नीचे मरियम की आदमकद मूर्ति लगी हुई थी, दो कमरे भी दिखाई दे रहे थे लेकिन वो बंद थे | साइड में एक जीना था, रैम की माँ भी आ चुकी थी और इशिता से आगे जाकर जीने में फटाफट चढ़ गई थी | जब तक इशिता और कामले ऊपर पहुँचे तब तक वह अपने पति व दूसरे बेटे सैम के साथ एक बुके सहित सीढ़ियों के ऊपरी छोर पर खड़ी थी |

"आइए, मैडम ---वैलकम --" उन्होंने सीढ़ियाँ ख़त्म होते ही उसे पहले बुके पकड़ाते हुए कमरे में आने का इज़हार किया | पति-पत्नी ने उसे कुछ ऐसे ट्रीट किया मानो वह कोई वी.आई.पी थी |

'बस --एक रैड कार्पेट की कमी है 'उसने मन में सोचा |

ऊपर तीन कमरे थे, खासे बड़े ! सामने बरामदा था --खूब लंबा-चौड़ा जिसमें बैंड के सारे साजो-सामान दिखाई दे रहे थे | रैम इशिता को अपने 'म्युज़िक-बैंड' के बारे में बता चुका था | इशिता का मन अधिक बात करने का नहीं था, वह चुपचाप बैठी घर देखती रही | कामले रैम के पिता के साथ दूसरे कमरे में यह कहते हुए चले गए थे ;

"एक्सक्यूज़ अस मैम --मैं ज़रा ----" उन्होंने अंदर जाने का इशारा करते हुए इशिता से कहा ;

"आपके साथ रैम चला जाएगा, मैं थोड़ी देर में आऊँगा ---मैडम, यू वोंट माइंड ---"

" जी बिलकुल नहीं, कैरी ऑन मि. कामले,  -----"

जिस कमरे में उसे बैठाया गया था, वह एक तरह से डाइनिंग-कम ड्राइंग रूम ही था | उसके लिए फटाफट सुंदर क्रॉकरी में खाना लगा दिया गया| प्लेटें व्यंजनों की कई वैराइटीज़ से भरी थीं |

"मैं अकेली ?" इशिता ने पूछा |

"नहीं मैडम, मैं आपके साथ बैठती हूँ न | सैम तुम सर्व करो --- तुम भी डिनर ले लो रैम, तुमको मैडम के साथ जाने का है ---"

अचानक सामने से सैम निकलकर आ गया था और उसने बड़ी तहज़ीब से खाना सर्व करना शुरू किया | दोनों भाई बड़े अनुशासित और माँ के कहेनुसार चलने वाले थे |

अगले दिन सुबह जल्दी ही निकलने की बात हुई थी लेकिन मि. कामले से मिलने सुबह कुछ लोग आने वाले थे और मि. कामले बला के चिपकू ---वह खाते हुए यही सब सोच रही थी |

"मैडम! खाना अच्छा नहीं है क्या ?" अचानक मिसेज़ जॉर्ज ने पूछा |

"अरे! नहीं बहुत अच्छा है, आपको पता है न मैं कितनी थकी हुई हूँ  ---बस.इसीलिए ज़्यादा नहीं खा पा रही ---फिर सुबह निकलना भी है, रैम हमारे साथ जा रहा है न ?"इशिता को कुछ तो बोलना था |

"हाँ जी, मुझको सर ने बोला ----"

खाना खाकर वह उठ खड़ी हुई | धन्यवाद देकर वह रैम के साथ अपने रुकने की जगह पर आ गई |