सलाखों से झाँकते चेहरे - 3 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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सलाखों से झाँकते चेहरे - 3

3--

कुछ देर में ही नीरव सन्नाटा छा गया | यह छोटा सा बँगला सड़क पर ही था | इशिता के कमरे की एक खिड़की सड़क पर खुलती थी लेकिन कमरे के बाहर छोटा लेकिन सुंदर सा बगीचा था जो रैम की मेहनत दिखा रहा था | यह उसने यहाँ प्रवेश करते ही देख लिया था लेकिन उस समय बेहद थकान थी और वह सीधे कमरे में आना चाहती थी लेकिन कमरे में सीधे आ कहाँ पाई थी?

बाहर के कमरे में ही उस दीवार ने उसे रोककर असहज कर दिया था |

मि. कामले भी कमाल के आदमी हैं ! इतने अच्छे और संवेदनशील हैं लेकिन किस समय क्या कह बैठें, कुछ पता ही नहीं चलता | सुबह जब उसे लेने घर गए थे तब उसके पति से हँसकर ऎसी बात कर आए थे कि बस ----!

इशिता के पति सत्येन वर्मा को मालूम था कि उनकी पत्नी एक आदिवासी प्रदेश पर काम कर रही है |कामले तो न जाने कितनी बार इस प्रदेश में आकर गए थे |वह पहली बार यहाँ आई थी |

सुबह-सवेरे जब मि.कामले उसे पिक करने उसके घर गए थे तब चाय पीते हुए बड़े मज़े से गाना गाकर आए थे ;

" देखिए सर, हम इशिता जी को ऎसी जगह लेकर जा रहे हैं जहाँ अभी भी तीर-कमान का प्रयोग किया जाता है ---"

फिर कामले ने हाल ही में हुई घटना का ज़िक्र कर दिया | कोई दो-एक वर्ष पहले झाबुआ में एक नया अस्पताल बना था | जिसमें नए डॉक्टरों व नर्सों की भर्ती की गईं थीं |आदिवासी युवा इन नर्सों के आगे-पीछे घूमते नज़र आने लगे थे | कुछ नर्सें अहमदाबाद, भोपाल, इंदौर से भी आईं थीं | इन्हीं में से किसी सुंदर नर्स पर एक आदिवासी का दिल आ गया, वह अस्पताल के चक्कर काटता रहता | भला नर्स उसे क्या भाव देती ?वह बौखला गया था |

नर्सों के लिए अस्पताल के ऊपर क्वार्टर बनाकर उन्हें दे दिए गए थे | नर्स पर फ़िदा होने वाला वह आदिवासी लड़का उसकी बालकनी के सामने के बाज़ार में सड़क पर चक्कर काटता रहता | एक दिन जब नर्स अपने क्वार्टर की बालकनी में खड़ी अपने धुले हुए बाल सुखा रही थी, एक तीर सनसनाता हुआ उसकी गर्दन को काटता निकल गया |और नर्स बेचारी वहीं पर ही ---

"अब आप ले जा रहे हैं तो ज़िम्मेदारी भी आपकी ही है | भई ! इकलौती पत्नी हैं, सँभालकर ले आइएगा | " सत्येन ने हँसकर कामले से कहा |

"अरे ! कहाँ की बात लेकर बैठ गए हैं मि. कामले आप भी, जब तक वापिस नहीं आऊँगी इनको बिना बात ही चिंता लगी रहेगी ---वैसे मुझे कोई मारने वाला नहीं है ---"

"जी, आप तो झाँसी की रानी हैं ---" सत्येन उसे कभी भी चिढ़ा देते थे |ड्राइवर बंसी भी तो वहीं लॉन में बैठा सबके साथ चाय पी रहा था और सुबीर भी जो केवल मंद-मंद मुस्कुरा भर रहा था |

"फ़ोन की सुविधा भी तो नहीं है जो हम ही यहाँ से बात कर लें, श्री तो ज़रूर उदास हो जाएगी|"

इशिता की बिटिया छोटी सी थी, मात्र चार साल की | वैसे वह अपनी दादी के पास आराम से रह लेती थी लेकिन बच्ची ही तो थी | जब इशिता ने श्री से कहा था कि मम्मा कुछ दिनों के लिए बाहर चली जाए ? आप परेशान तो नहीं होंगी ?

" वो तो मैं अब बड़ी हो गई हूँ न मम्मा --पर मैं आपके साथ क्यों नहीं जा सकती ?"

"फिर आपके स्कूल का क्या होगा ? "

"हाँ, यह बात तो है ---लेकिन आप जल्दी आ जाना ---" श्री माँ के गले का हर बन गई थी |

"बिलकुल बेटा। मैं जल्दी आ जाऊँगी ---"

गाड़ी में बैठते हुए कामले ने सत्येन से कहा था ;

"आप बिलकुल चिंता न करें मि.वर्मा, मैं आपको मैडम से रोज़ बात करवाऊँगा और बेबी से भी ---क्यों बेबी ? "

"ठीक है, पक्का प्रॉमिज़ --कामले अंकल ---?" उसने अपनी नन्ही उँगलियों से अपनी गर्दन के नीचे का भाग स्पर्श किया था |

"पक्का प्रॉमिज़ ----" कामले ने भी श्री के जैसे ही एक्शन करके उसे आश्वस्त किया और सब हँस पड़े थे |

यह वो ज़माना था जब मोबाईल फोन्स के बारे में कोई नहीं जानता था |केवल एक डिब्बा हुआ करता था, वह भी बहुत कम घरों में | इशिता के घर में यह लैंड-लाइन थी लेकिन झाबुआ में यह व्यवस्था कैसे होगी, वह नहीं जानती थी |

यहाँ पहुँचकर शहर में घुसते ही कामले जी ने एक रेस्टोरेंट से इशिता को सत्येन व श्री से बात करवा दी थी और खुद भी अपने घर बात कर ली थी |

उस रात इशिता को बिलकुल भी नींद नहीं आई | सिटिंग रूम की दीवार पर टँगे तीर-कमान उसका पीछा करते रहे | एक अनजान, अनदेखा खूबसूरत युवा स्त्री की गर्दन से रक्त लगातार टपक रहा था और एक युवा अनजान आदिवासी का चेहरा सलाखों के पीछे से झाँकता रहा जिसे नर्स को मारने के जुर्म में जेल हो चुकी थी |

एक झटका नींद आती और उसे महसूस होता कि शायद वह स्वयं ही वह नर्स है जिसका आदिवासी प्रेमी ने खून कर दिया था, उसकी गर्दन रक्त से लथपथ होती रही|कहीं दूर से कुत्तों के सस्वर भौंकने की, रोने की आवाज़ ने भी उसके दिल की धड़कन बेतरतीबी में बढ़ा दी थीं |उनींदी अवस्था में उसके मन में रात भर अपनी बिटिया श्री का भोला चेहरा घूमता रहा |