अध्याय 4
नौकरी के प्रयास
सर्विस के प्रयास
मोनू अनेक जगह नौकरी के लिए आवेदन दे रहा था लेकिन उसके थर्ड डिवीज़न के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिल रही थी I
उसके पापा ने सोचा यदि मोनू को कोई टेक्निकल की ट्रेनिंग दिला दी जाए तो शायद उसे आसानी से जॉब मिल जाए I उन्होंने उसे एक प्रसिद्ध कंप्यूटर हार्डवेयर ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में भर्ती करवा दिया I
पापा बहुत संतुष्ट थे क्योकि उन दिनों हार्डवेयर जानकार की बहुत डिमांड थी I
कुछ दिनों बाद घर के कंप्यूटर में मिस्टेक आ गई I
पापा ने मोनू से कहा, “ मोनू देख तो अपना कंप्यूटर काम नहीं कर रहा है I इसे सुधार दे I”
इस पर मोनू ने कंप्यूटर सुधारने की बहुत कोशिस की किन्तु वह उसे ठीक नहीं कर पाया I
तब पापा ने झल्लाते हुए कहा, “ मोनू तू स्कूल में क्या खाक कंप्यूटर सुधारना सीख रहा है ?”
इस पर मोनू ने कहा, “ पापा, जब सर प्रेक्टिकल करवाते है तो दुसरे लड़के मुझे न तो प्रैक्टिकल करने देते है न देखने देते हैं I”
“तूने सर से इस बात की शिकायत क्यों नहीं की?”
“मैंने अनेक बार सर से शिकायत की किन्तु वे कोई कार्यवाही नहीं करते है I”
दूसरे दिन शर्माजी मोनू के स्कूल पहुंचे I
उन्होने सर से कहा, “ श्रीमान ! मोनू को प्रैक्टिकल हाथ से नहीं कराया जा रहा है I
दूसरे लड़के इसे न तो प्रैक्टिकल देखने देते है, न प्रैक्टिकल करने देते है I “
सर ने मोनू से कहा, “तुमने इस समस्या को मुझे क्यों नहीं बताया ?”
मोनू ने कहा, “ सर ! मैंने दो तीन बार आपको बताया था I आपने छात्रो को नरमी से समझा दिया था किन्तु उन्होंने मुझे एक भी प्रैक्टिकल नहीं करने दिया “
इस पर अध्यापक शर्माजी से बोले, “ श्रीमान ! आप बेफिक्र रहें, मै खुद देखूंगा कि नरेन्द्र को अपने हाथों से प्रैक्टिकल करना मिल रहा है I जैसे यह आपका बेटा, वैसे ही मोनू मेरा भी बेटा है I “
शर्माजी आश्वस्त होकर चले आए किन्तु समस्या वैसी ही बनी रही I अध्यापक महोदय को अपना वादा याद नहीं रहा I
फलस्वरूप मोनू ने कुछ दिनों बाद ट्रेनिंग में जाना बंद कर दिया I
प्रताड़ना
मोहल्ले के शैतान लड़के मोनू को खूब परेशान करते थे I
ऐक शैतान लड़का टोलू उसकी फ़िराक में रहता था I
एक दिन उसने जैसे ही मोनू को देखा, उसने मोनू की साइकिल पकड़ ली I
इससे मोनू नीचे गिर पड़ा I टोलू ने उसका गला पकड़ लिया और कहने लगा,
“ऐ पागल! अपने जेब के सारे पैसे निकाल I “
मोनू ने अपने जेब के सारे रुपये उसे दिखाते हुए कहा , “मुझे घर का किराने का सामान लाना है I”
टोलू ने उसके सारे रुपये झपट लिए और कहा, “ चल निकल ले नहीं तो दूंगा एक मिला के I”
मोनू घर लौट कर आ गया I
उसकी मम्मी ने पूछा, “ बेटा ! सामान कहाँ है ?”
मोनू ने कहा, “ मम्मी रुपये रास्ते में गिर गए I “
वह डर रहा था कि सच बात बताने पर घर पर उसे डांट पड़ेगी I
किसी अन्य दिन जब टोलू उससे रुपये मांगता और मोनू के पास रुपये नहीं होते तो टोलू उसे दो तीन तमाचे जड़ देता I
वह घर से रुपये चुराकर टोलू को देने लगा I
टोलू उससे रुपये भी लेता और साथ ही उसे पीटने भी लगा I
परेशान होकर एक दिन मोनू ने अपने पापा से टोलू की शिकायत कर दी I
उसके पापा क्रोधित होकर टोलू के घर गए और उसे व उसके घर वालों को डांटते हुए कहने लगे,
“मै पुलिस में इस टोलू की शिकायत करने जा रहा हूँ I टोलू डाकू है I यह मोनू के बेवजह पीटता है और उसके रुपये छीन लेता है I”
इस पर टोलू के पापा ने उसे जोरों से पीटा और डांटा I
उन्होंने अपने बेटे के लिए खुद माफ़ी मांगी व टोलू से भी माफ़ी मंगवाई I
तब जाकर मोनू को मोहल्ले के एक सबसे दुर्दांत लड़के से निजात मिली I
समर्पण, एक समर्पित संस्था
मोनू के पापा ने मानसिक रोगियों के इलाज व देखभाल के लिए एक बड़ी ही श्रेष्ठ संस्था “समर्पण “
का नाम सुना I वह संस्था पूर्णतया मानसिक रोगियों के उपचार, देखभाल,उनकी सहायता, उन्हें सामान्य बनाने के लिए समर्पित थी I इस संस्था के सञ्चालन के लिए कुछ युवक युवतियां पूर्णतया समर्पण भाव से कार्यरत थे I उनमे से कुछ तो बहुत उच्च शिक्षित थे जिन्होंने अपने शानदार केरियर की संभावना को मानसिक रोगियों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया था I वे धन, पद, प्रतिष्ठा से ऊपर उठकर मानवता की सेवा के लिए कार्य कर रहे थे I
उस संस्था में मानसिक रोगियों के व्यवहार को सुधारने व उनके शरीर व मन की प्रगति करने का प्रयास किया जाता था I वहां मानसिक रोगियों को मनोरंजक खेल खिलाये जाते, उनके दिमाग की कौशलता बढ़ने के लिए तरह तरह के प्रयोग किये जाते I बड़े दुःख की बात यह थी कि ऐसी समर्पित समाज सेवी संस्थाओं को चलाने के लिए उन्हें धन जुटाने के लिए भारी प्रयास करना पड़ते थे I
फिर भी वे अपना सेवा का कार्य पूरे जोश से जारी रखे हुए थे I
इस लघु पुस्तिका के द्वारा हम समर्पण के समान मानसिक रोगियों को समर्पित सेवाभावी संस्थाओं की ह्रदय से प्रशंषा करते हुए समाज व शासन से पूरी मदद करने की मार्मिक अपील करते हैं I
भयानक पागल
पागलपन का प्रारम्भ :
एक दिन कौशल्या की बहू मालती उसे बुरी तरह डांट रही थी ।
कौशल्या वहाँ से दुखि होकर चली गई ।
जब उसकी बेटी ने मालती से पूछा, “ तुम बेवजह मेरी माँ को क्यो डांट रही थी ?”
इस पर मालती फुफकारते हुए कहने लगी,
“ अरे क्या बताऊँ बाई सा, ये बुढ़िया आधी रात को घर मे आई और मेरे व मेरे पति के बीच
मे आकार सो गई । “
जब बेटी ने कौशल्या से पूछा तो उसने रोते हुए4 कहा, “ मालती मुझे खाना नहीं देती और गलियाँ देती रहती है ।“
उसकी बेटी ने उसे खाना दिया । बेटी को माँ के इस व्यवहार पर विश्वास नहीं हुआ ।“
किन्तु कौशल्या धीरे धीरे पागलपन की ओर बढ़ रही थी ।
कौशल्या श्यामा की मां थी । वह अपने अंतिम समय में पागल होगई थी ।
वह आते जाते राहगीर के सामने नग्न हो जाया करती I
वह निर्वस्त्र होकर सड़कों पर भागती ।
कौशल्या कहीं भी शौच करने बैठ जाती व आने जाने वाले लोगों पर मल मूत्र फेंकने लगती । वह अनेक दिनों तक घर से बिना बताऐ अंजन जगह चली जाती ।
फिर चार पांच दिन बाद अचानक घर लौट आती I
लौटने पर वह अपने बाहर रहने के दौरान हुऐ खतरनाक किस्सों को सुनाती रहती ।
वह चटकारे ले लेकर व अनेक तरह के हाव भाव करते हुए बताती कि वह कहाँ कहाँ रही व क्या क्या हुआ I उसे जंजीरों से बांधकर रखना पड़ता था ।
आखिर एक दिन उसे पागलखाने में भर्ती करना पड़ा । वहीं उसकी मृत्यु होगई ।
शर्माजी ने मोनू को अकाउंट सिखाने वाली इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेने भेजा I
उसका कॉमर्स विषय था I उसे वहां लेटेस्ट एकाउंटिंग सॉफ्टवेर टैली की ट्रेनिंग लेना थी I
मोनू ने पूरी भरी फीस भरी ।
उसके पापा बड़े उत्सहित थे । टैलि अकाउंटिंग जानने वालों की उन डीनो बहुत मांग थी ।
किन्तु दुर्भाग्य ! कोर्स समाप्ति के बाद भी नरेंद्र को एकाउंटिंग सॉफ्टवेर पर काम करना नहीं आया I
पागल लड़की
गुड्डी मानसिक विक्षिप्त थी I वह बहुत गरीब थी I उसके पिता किसी प्राइवैट व्यक्ति के यहाँ ड्रायवर थे I वे सुहाह से शाम तक बाहर रहते थे I एक छोटा भाई था जो बहुत शरारती था Iतताके कम मे व्यस्त रहती थी I
गुड्डी आने जाने वालों को देखकर तरह तरह से आवाजें निकालती व नकलें उतारती रहती थी I
शाम होते ही वह घर से निकल पड़ती I वह उसके घर के पास एक बगीचे मे खेलने व लोगों को देखने जा पहुँचती I वहाँ का माली एक बदमाश था I
वह इशारों से गुड्डी को अपने कमरे मे बुलाता आई वह गुड्डी को खाने की कोई चीज दिखाकर अपने पास बुलाता I माली उसके साथ व्यभिचार करता I
कुछ दिनो बाद गुड्डी गर्भिणी हो गई I घर वालों को जब मालूम पड़ा तो उसके पिता उसे निर्दयी के समान बुरी तरह पीटते I गुड्डी बुरी तरह चीखती चिल्लाती I वह घर के बाहर भागने का प्रयास करती I
कुछ दिनो बाद वह घर से गायब हो गई I उसका शव किसी जंगल मे क्षत विक्षत हालत मे मिला I उसके पिता मन ही मन राहत की सास ले रहे थे I पुलिस मालूम नहीं कर पाई गुड्डी के साथ क्या हुआ I
कंप्यूटर ट्रेनिंग
अपने पुत्र के मारे शर्माजी बहुत परेशान थे I
एक दिन वे किसी सकरी गली से जा रहे थे I
उन्होंने वहां एक कंप्यूटर ट्रेनिंग की दुकान देखी I
दुकान पर दो तीन कंप्यूटर खुले हुए रखे थे I
उन्होंने सोचा यही वास्तव में ऐसी स्कूल है,जहाँ मशीने सुधारने की प्रायोगिक ट्रेनिंग दी जाती होगी I
उन्होंने वहां शिक्षक से बात की, “ हमने अपने बेटे को अनेक जगह कंप्यूटर सुधारने भेजा किन्तु किसी ने उसे कुछ नहीं सिखाया I “
उन्होंने कहा, “ आप बेफिक्र रहे हम यहाँ आपके बेटे को बढ़िया कंप्यूटर सुधारने की ट्रेनिंग देंगे I
वह ग्यारंटी से अपने पैरों पर खड़ा हो जाएगा I “
मोनू उस इंस्टिट्यूट में ट्रेनिंग लेने जाने लगा I
बहुत दिनों से वह नए स्कूल में जा रहा था I
ऐक दिन पापा ने उससे पूछा, “ तेरी ट्रेनिंग कैसी चल रही है बेटा ?”
मोनू ने कहा, “ पापा सर हमें प्रेक्टिकल नहीं करवाते हैं, सिर्फ थ्योरी पढ़ते है I”
इस पर दूसरे दिन शर्माजी स्कूल में पहुंचे I
उन्होंने सर से कहा, “ आप मोनू को सिर्फ थ्योरी पढ़ा रहे हो, आपके वादे के मुताबिक उसे प्रैक्टिकल नहीं करवा रहे हो I
सर ने क्रोधित होते हुए कहा, “ श्रीमान, मेरे कंप्यूटर इतने महंगे है, यदि छात्रों ने उन्हें ख़राब कर दिया तो मुझे भारी नुकसान हो जाएगा I पहले बच्चे थ्योरी पढलें तो प्रैक्टिकल अंतिम माह में करा देंगे I आप निश्चिन्त रहे I”
दो माह हो गए नरेन्द्र ट्रेनिंग पर जाता रहा किन्तु फिर वही समस्या, उसे कुछ सीखने को नहीं मिला I
उसके पापा के पैसे मिट्टी में गए I
पागलपन की हद !
गोलू अपने पिता की अकेली ओलाद था I
बचपन से ही उसका दिमाग कुछ ढीला था I
युवावस्था में उसका पागलपन और बढ़ गया I
वह अपने माता पिता से बुरी तरह बिना कारण लड़ता रहता था I
वह बेवजह जोर जोर से चिल्लाता रहता था I
जब उसकी मम्मी उसे चुप करने की कोशिश करती तो वह बेकाबू होकर और जोर से चिल्लाता हुआ सड़क पर आ जाता I उसे जितना रोकने का प्रयास किया जाता, वह उतना ही उग्र हो जाता I
कभी कभी वह एकदम नार्मल व्यक्ति की तरह व्यवहार करता I किन्तु वह कब उग्र हो जाता, इसका कोई ठिकाना नहीं रहता I
वह तरह तरह की आवाजें निकालता I ऐसा लगता मानो कहीं बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गई हो और सब लोग एक दूसरे से झगड़ रहे हों I वह अनेक प्रकार की आवाजें निकालता जैसे कुछ लोग झगड़ रहे हैं, कुछ पिटते हुए रहम की भीख मांग रहे हैं तो कुछ बीच बचाव कर रहे हों I
बेचारे माता पिता ने उसका बहुत इलाज कराया, गंडे ताबीज झड फूंक सब किए किन्तु उसके रोग में कोई सुधार नहीं हुआ I
आखिर उसे एक मानसिक रोग वाली संस्था में भर्ती करना पड़ा I किन्तु माता पिता का दिल अपने इकलौते पुत्र के लिए तडपता रहता I वे बार बार उसे अपने घर ले आते I
सीजोफ्रेनिया
शर्माजी के एक मित्र थे मोहनलाल I
वे बड़े सरकारी पद से रिटायर हुए थे I
वे तीव्र डिप्रेशन से सालों से ग्रस्त थे I
उनकी तीन बेटियां अविवाहित थी I
उन्हें देखकर कोई नहीं कह सकता था कि वे मानसिक रोग से ग्रस्त हैं I
वे सभी को बिलकुल नार्मल प्रतीत होते थे I
एक दिन वे शर्माजी से कहने लगे, “ शर्माजी ! मै अनेक वर्षों से मानसिक रोग से बीमार हूँ I “
शर्माजी ने कहा, “ आप तो अच्छे भले स्वस्थ प्रतीत होते हैं I आपको देखकर कोई नहीं कह सकता कि
आप मानसिक रोगी हैं I “
“ क्या बताऊँ शर्माजी! कई बार मेरी ऐसी इच्छा होती है कि मै रेल की पटरी पर ट्रेन के सामने कूद जाऊ I जीने में कोई सुख नहीं है I“
उनकी बीमारी के दो फेज थे I ऐक प्लस तो दूसरा नेगेटिव फेज होता I
पॉजिटिव फेज में वे ऐक तानाशाह के समान हो जाते I उनकी बात का कोई विरोध नहीं कर सकता था I वे हर बात पर लड़ने भिड़ने पर उतारू हो जाते, गालियां बकने लगते, जो सामने आता उससे बेवजह झगडा करने लगते I
वे अपने समधी शर्माजी से कहते, “ शर्माजी, तैयार हो जाओ हम लोग वर्ल्ड टूर पर चल रहे हैं I “
शर्माजी ने कहा, “ इसके लिए तो बहुत धन की आवश्यकता होगी I”
वे कहते, “ फ़िक्र न करो, मेरा मकान एक करोड़ का हो गया है, हम उसे बेच देंगे I”
“ और आप कहाँ रहोगे “, शर्मा ने पुछा I
“ वर्ल्ड टूर के बाद मकान फिर खरीद लेंगे “
किन्तु न तो उनका मकान बिका, न ही वे वर्ल्ड टूर पर गए I
उल्टा उन्होंने जोश में आकर एक फ्लैट का बयाना एक लाख रूपया किसी को पेमेंट कर दिया
शेष रुपये मकान बिकने पर आने थे I किन्तु न तो मकान बिका और न वे वर्ल्ड तौर पर जा पाए । उनका बयाना भी डूब गया I
जब वे ऋण फेज में होते तो उन्हें कुछ अच्छा नहीं लगता I
वे मुर्दे के समान निराश अपने कमरे में अकेले सोए रहते और आत्महत्या करने के लिए सोचते रहते I
एक दिन शर्माजी ने एक कंप्यूटर ट्रेनिंग के विषय में अख़बार में पढ़ा I
उसमे दावा किया गया था कि उस ट्रेनिंग करने के बाद छात्र को देश ही नहीं विदेश में भी ऊँची नौकरी मिल सकती है I
शर्माजी उत्सुकतावश उसके ऑफिस में गए I वहां अनेक कंप्यूटर पड़े हुए थे I
ऑफिस आलिशान तरीके से सजा हुआ था I
उस ट्रेनिंग की फीस बहुत ज्यादा थी I
शर्माजी ने मेनेजर से फीस कम करने का बहुत अनुरोध किया किन्तु वे बोले,
“ शर्माजी ! आप पैसो को न देखे I आप के बेटे का भविष्य बन जाएगा I
शर्माजी ने पूरी फीस एडवांस में भरी किन्तु हाय रे दुर्भाग्य! यहाँ भी नरेन्द्र को कोई फायदा नहीं हुआ I
वहाँ प्रायः फेकल्टी के अध्यापक अनुपस्थित रहते और नरेंद्र व आँय छ।त्रों को घंटो फिजूल अध्यापक का इंतजार करते हुए बैठे रहना पड़ता ।
शर्माजी का सारा धन डूब गया I
इस कपटी दुनिया में पग पग पर धोखे है I
भारी पागल
विष्णु एक पागल युवक था I उसके पिता शहर के जाने माने रईस थे I
उन्होंने विष्णु का बहुत इलाज कराया किन्तु सब व्यर्थ सिद्ध हुआ I
अपने मित्रों की सलाह पर उसके पिता ने विष्णु का विवाह एक निर्धन पंडितजी की सुशील कन्या से कर दी गई I
कन्या के पिता इतने अमीर घराने में अपनी पुत्री का विवाह करके फूले नहीं समा रहे थे I
किन्तु शीघ्र ही लड़की के घर वालों को विष्णु के पागल होने की बात मालूम पड गई I
विवाह होने के बाद कुछ नहीं किया जा सकता था I
उन दिनों लोग तलाक के विषय में सोच भी नहीं सकते थे I
विवाह के बाद ही विष्णु के माता व पिता की म्रत्यु हो गई I
विष्णु के रिश्तेदार उसकी प्रॉपर्टी पर अपना हक़ ज़माने की कोशिश करने लगे I
उन्होंने शीघ्र ही उसकी प्रॉपर्टी, मकान व दुकान आदि सभी पर अपना आधिपत्य जमा लिया I
विष्णु के साले भी बड़े दादा थे I विष्णु की पत्नि सुशीला ने सारी स्थिति अपने भाइयों को बताई I
सालों ने डंडे के जोर से सारी प्रॉपर्टी को रिश्तेदारों से मुक्त करा लिया I
इसके बदले बहिन ने अपने भाइयों को बहुत सारा धन देकर मालामाल कर दिया I
सुशीला अपने पीहर लौट आई I किन्तु उसका पागल पति भी उसके साथ आ गया I
विष्णु घर में अजीब हरकतें करता रहता था I
वह अपने तीन मंजिले मकान में बड़ी फुर्ती से ऊपर नीचे चढ़ता उतरता रहता I
वह अपने रास्ते में आने वाली हर सजीव व निर्जीव वस्तु से इशारे करके उसकी खैरियत पूछता रहता I
कुए में दिखाई देने वाला उसका हमशकल उसका बड़ा गहरा मित्र था I
वह उस हमसाये से बहुत देर तक न जाने क्या क्या बातें करता रहता I
यदि कोई शरारती युवक उसे रोकने का प्रयास करता तो वह शोर मचाता,
“ देखो भैया! ये लड़का मान नहीं रहा है, यह लड़का मुझे तंग कर रहा है I “
वह तब तक जोर जोर से शोर मचाता जब तक कि उसे छोड़ नहीं दिया जाता I
कुछ समय बाद उसकी पत्नि सुशीला को पढ़ाने एक जवान शिक्षक आने लगे I
सुशीला कुछ देर तक तो पढने का नाटक करती I
फिर वह चारों ओर सावधानी से देखकर कमरे के दरवाजे बंद कर लेती I
उधर विष्णु दरवाजे की दरारों से झांककर यह जानने का भरपूर प्रयास करता कि कमरे के अन्दर मास्टरजी द्वारा कौन सा पाठ पढाया जा रहा है I
अपने प्रयास में निराश होने के बाद वह मास्टरजी व अपनी पत्नि को बाहर से अपने इशारों से शुभकामना देते हुए आगे बढ़ चलता I
कुछ समय के बाद सुशीला को सुन्दर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई I
घर में खुशियाँ मनाई गई I
कुछ लोग कानाफूसी करते थे कि वह बच्चा मास्टरजी द्वारा अपनी शिष्या को आशीर्वाद स्वरुप भेंट दिय गया था I
इस घटना के तीन माह बाद विष्णु अपने घर से गायब हो गया I
घर में खूब रोना धोना मचा I पुलिस में रिपोर्ट की गई I
विष्णु को खोजने का खूब प्रयास किऐ गये I
किन्तु विष्णु फिर कभी नहीं मिला I लोग आपस में कानाफूसी करते थे कि सुशीला के भाइयों ने विष्णु को किसी ऐसे घने जंगल में छोड़ दिया जहाँ से वह कभी वापस नहीं आ सके I
निष्ठुर दुनिया
मोनू किसी छोटी मोटी नौकरी के लिए भटक रहा था किन्तु उसके थर्ड क्लास होने का कारण उसे कोई काम देने को तैयार नहीं था I अनेक जगह उससे अनुभव का सर्टिफिकेट माँगा जाता था I
उसके पास ऐसा कोई सर्टिफिकेट नहीं था I
वह फ्री में काम करने को तैयार था किन्तु फिर भी उसे कोई काम नहीं मिल रहा था I
वह अनेक जगह भटक भटक कर परेशान हो रहा था I
एक दिन वह एक अकाउंटेंट के यहाँ पहुंचा I
उसने कहा, “ क्या मुझे आपके यहाँ काम करने का मौका मिल सकता है ?”
“ हाँ जरुर, लेकिन मै तनखा नहीं दूंगा ‘, तुम्हे ऑफिस के सारे काम करना होंगे “, उसने कहा I
मोनू ने वहां काम शुरू कर दिया I उसे वहां जाने के लिए खुद की सायकल से दस किलोमीटर जाने के लिए निकलना पड़ता था I उसे वहां सुबह नो बजे से रात नो बजे तक काम करना पड़ता था I
वहां कुछ लड़के सी॰ ऐ॰ की ट्रेनिंग लेने आते थे I वे सब द्वितीय श्रेणी व प्रथम श्रेणी के छात्र थे I
वह अकाउंटेंट उन छात्रों को बड़े अच्छे तरीके से काम सिखाते थे किन्तु वे मोनू से दुर्व्यवहार करते थे I
उसे बिना वजह डांटते हुए बात करते थे I वे मोनू को कुछ भी नहीं सिखाते थे I
उसे वहाँ बारह घंटे ऑफिस के चपरासी का काम करना होता था I
सब लोंगों के लिए जब चाय नाश्ता आता तो वे अकाउंटेंट उसे चाय नाश्ते तक के लिए नहीं पूछते थे I
फलस्वरूप पंद्रह दिन बाद मोनू ने वहां जाना बंद कर दिया I
इस दुनिया के लोग कितने निष्ठुर हैं !
दुनिया में गरीबों की मजबूरों की कोई सहायता नहीं करता I
मजबूर गरीब लोगों को दुःख देने में बेरहम दुनिया के लोगों को बड़ा मजा आता है I
आत्महत्या
राजन ऐक बड़े सरकारी ऑफिसर थे I
उनका एकमात्र पुत्र गणेश मानसिक रोगी था I
जैसे ही उसके पिता काम पर जाते वह अपनी माता को बुरी तरह पीटने लगता था I
उसकी माँ के फोन करने पर राजन दौड़ कर आते I उनके आते ही गणेश नार्मल हो जाता I
उनके जाते ही वह फिर अपनी माता को पीटने लगता I
फलस्वरूप उसके पिता उसकी माता को किसी पडौसी के यहाँ छोड़ने पर मजबूर होने लगे I
इस सदमे से पिता की म्रत्यु हो गई I
गणेश इंजीनियरिंग की परीक्षा पास था I उसे शीघ्र एक बड़ी नौकरी मिल गई I
पिता की म्रत्यु के बाद वह माता के प्रति थोडा नरम हो गया था I
एक दिन उसकी माता उसके लिए नाश्ता बना रही थी कि अचानक गणेश उठा और उस बिल्डिंग की छटी मंजिल से बिना किसी वजह के कूद पड़ा I
गिरते ही उसके प्राण पखेरू उड़ गए I उसकी माँ उसके शव के समीप फूट फूट कर रो रही थी I
कठोर दिल
एक दिन मोनू ने अपनी मम्मी से कहा,
“ माँ मुझे एक बड़ी कंपनी में काम मिल गया है I
उसे शहर की एक बड़ी मोटर कंपनी में काम मिल गया था I
वह अकाउंट का नहीं किन्तु फाइल व्यवस्थित रखने का साधारण काम था I
साथ ही उसे छोटे मोटे बिल बनाने थे I
वहां का अकाउंटेंट बड़ा सख्त व कठोर व्यवहार करने वाला व्यक्ति था I उसे नमूना समझ कर
उसके सहकर्मी उसका मजाक उड़ाते थे I वे उससे दुर्व्यवहार करते थे I
उसका बॉस उसे बात बात पर डांटते थे I
एक दिन बॉस ने उसे आवक जावक रजिस्टर लाने को कहा I
मोनू ने उस रजिस्टर को बहुत ढूंढा किन्तु उसे रज़िस्टर कही नहीं मिला I
अकाउंटेंट उस पर जोर जोर से चिल्ला रहा था, “ इस पागल को किसने काम पर रख लिया ?
इसे एक काम भी ढंग से करना नहीं आता है I”
थोड़ी देर में एक दूसरा कर्मचारी जावक रजिस्टर लेकर आया, “ यह लीजिये साहब “,
कहकर उसने अकाउंटेंट को रजिस्टर सौंप दिया I
“ तुम्हे यह रजिस्टर कहाँ मिला ?”
“यह मुझे बाथरूम के सिंक पर रखा हुआ मिला I “
उसी कर्मचारी ने मोनू को तंग करने के लिए उस रजिस्टर को वहां छुपा दिया था I
दूसरे दिन मोनू को सर्विस से निकाल दिया गया I
कदम कदम पर धोखा
एक दिन शर्माजी ने अख़बार में बड़ी जोरदार खबर पढ़ी I
एक नेट खजाना नामक कोई चंडीगढ़ की इन्फो कंपनी ने देश की बेरोजगारी समस्या के हल के लिए बेरोजगार युवकों के लिए घर बैठे कंप्यूटर पर काम करने का ऑफर दिया I कर्मचारी को कुछ मेल एक एड्रैस
से दूसरे एड्रैस पर भेजना होते थे । वह कंपनी फ़ॉरेन से काम लेती थी ।
मेम्बर को कम्पनी में काम करने हेतु २००००/- पेशगी जमा करने थे I इस कार्य के बिचोलियों को बड़ा आकर्षक कमीशन दिया जाता था I
पूरे देश में हजारों बेरोजगार लड़के लोन पर कंप्यूटर खरीदकर व कम्पनी की फ़ीस भरकर कंपनी के काम करने लगे I
शर्माजी को यह काम मोनू के लिए बहुत जंचा I
उन्होंने भारी रकम जमा करके कंपनी का काम करने में मोनू को लगा दिया I
किन्तु तभी एक भारी समस्या आ खड़ी हुई I
इस काम को करने के वक्त कंप्यूटर में बार बार वायरस आ जाता था और वह डेड हो जाता था I
उन्हें अनेक किलोमीटर कंप्यूटर को ठीक करवाने ले जाना पड़ता था I उस कार्य में रोज उनके सैकड़ो रुपये खर्च हो रहे थे I
कंपनी में शिकायत करने पर कोई जबाब तक नहीं देता था I
बिचोलियों से संपर्क करने पर वे अपनी मज़बूरी बताते थे I
अनेक दिनों बाद मालूम पड़ा कि वह एक फ्रॉड कंपनी थी I
उसके मेनेजर गरीब लोगों का रूपया लेकर विदेश भाग गए थे I
अनेक गरीब युवकों ने कम्प्युटर खरीदने व फीस जमा करने के लिए भारी ब्याज़ पर लोन लिया था जिसे
न चुकाने पर वे तबाह हो गए ।
पुलिस में रिपोर्ट करने व कोर्ट में मुक़दमा चलने से सिर्फ परेशानी के सिवा कुछ नहीं मिलता था I
सब जगह बेईमानो की चांदी ही चांदी है I मेरा देश महान I किन्तु कोई देश वहां के सिस्टम व लोगों की ईमानदारी से बनता है न कि भूतकाल के महापुरुषों के गुणगान करने से I आज क्या हालत है वह महत्वपूर्ण है न कि आपका स्वर्णिम भूतकाल जो कि कदापि फिर से जिन्दा नहीं किया जा सकता I
मोनू जगह जगह सर्विस के लिए भटक रहा था I
उसे कहीं सर्विस नहीं मिल रही थी I वह फ्री में सर्विस करने की तैयार था किन्तु फिर भी कोई उसे कोई काम देने को तैयार नहीं था I
फिर एक दिन अचानक उसने अपनी माता से कहा, “ माँ, मुझे एक बड़ी कंपनी में सर्विस मिल गई है I “
माँ ने खुश होते हुए कहा, “ भगवान ने मेरी प्रार्थना सुन ली I मुझे मालूम था एक दिन तेरी मेहनत रंग लाएगी I हमारे दिन फिरेंगे I मै हनुमानजी को सवा सेर पेढ़े चढ़ाउंगी I”
मोनू रोज सुबह सुबह खुश होकर अपने काम पर जाता I
बॉस भी अच्छे व्यक्ति थे I वे उसके काम में मदद भी कर दिया करते थे I
किन्तु फिर एक दिन बॉस ने अचानक मोनू से कहा, “ मोनू तुन्हें कल से काम पर आने की जरुरत नहीं I “
मोनू के सर पर जैसे वज्रपात हो गया I उसे समझ में नहीं आ रहा था कि उसे नौकरी से अचानक बिना कारण बताये क्यों निकाला जा रहा था I उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया I उसके आँखों से आँसू गिरने लगे ।
थोड़ी देर बाद उस ऑफिस में एक सुन्दर नवयुवती का प्रवेश हुआ I
बॉस उसे नरेन्द्र का काम समझा रहे थे I वे उससे हंसी ठिठोली कर रहे थे I
यह दुनिया कितनी बनावटी और निष्ठुर है I यहाँ अपने थोड़े से सुख के लिए लोग किसी दूसरे असहाय व्यक्ति का सब कुछ छीन लिया करते हैं I
मोनू जॉब की खोज मे फिर सड़क की खाक छानने को मजबूर था I
मोनू को कही जॉब नहीं मिल रहा था I वह जॉब ढूंढते हुए परेशान हो चुका था I
अचानक फिर एक दिन उसने अपनी माँ से कहा,
“ माँ ! मुझे एक नौकरी मिल गई है I उसका ऑफिस भी घर के पास था I
वह रोज सुबह तैयार होकर ऑफिस जाने लगा I वह देर रात को घर लौटता था I
उसे वहां मजदूरी करने की नौकरी मिली थी I उसे भारी बोझ उठाना पड़ता था I
उसके सहकर्मी उससे भद्दी भद्दी मजाक करते थे I वे अपना बोझा भी मोनू को उठाने के लिए दे दिया करते थे I
एक दिन उसके पापा ने पूछा, “ बेटा तू किस तरह का काम कर रहा है ? तू हमेशा थका हुआ दिखाई देता है I “
इस पर मोनू ने कहा, “ पापा मुझे बड़ी बड़ी भारी गठाने एक जगह से दूसरी जगह ले जाना पड़ती है I”
पापा ने कहा, “ मोनू तू अभी से उस काम पर मत जाना I तू कॉमर्स ग्रेजुएट है I तुझे बोझा उठाने के लिए थोड़ी ग्रेजुएट करवाया है I अपना शेयर बाजार का घर का धंधा है I थोडा नफा नुकसान होता रहता है I आज से तू मेरे साथ शेयर बाज़ार का काम करना I “
मोनू ने अपनी अंतिम नौकरी को उस दिन अलविदा कह दिया I
खुद का व्यवसाय
मोनू के पापा उसके विवाह के लिए बड़े चिन्तित थे I
वे सोचते थे उनके बाद मोनू का क्या होगा I
उसका ध्यान कौन रखेगा ?
उन्होंने मोनू के लिए अख़बार में इश्तिहार निकलवाया I
किन्तु यहाँ भी वही दिक्कत आ खड़ी हुई I
जिस तरह से उसे नौकरी नहीं मिल रही थी, अब उसे छोकरी भी नहीं मिल रही थी I
मोनू अपने पापा के असिस्टेंट के रूप में शेयर बाज़ार का काम कर रहा था I
सारा कामकाज उसके पापा देखते थे I वह उनके लिए थोड़े बहुत काम कर दिया करता था I
जैसे ब्रोकर के यहाँ से कागजात, लेजर व बिल लाना आदि I
इसके साथ ही उसे ब्रोकर को चेक देना, उससे चेक लाना, होल्डिंग लाना, बैंक की पासबुक में एंट्री करवाना आदि कार्य करना होते थे I
शर्माजी ने उसका नाम सभी प्रकार के आयोजित होने वाले सामूहिक परिचय सम्मेलनों में भी उसका नाम लिखवा दिया था I