मुरझाया फूल Mukesh Saxena द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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मुरझाया फूल

मुरझाया फूल

आज यदि कोई रजनी के चेहरे को देखे तो सहज ही कह सकता था कि वह सूख कर काँटा बन गई है। जिस प्रकार कोई फूल प्रातः की बेला में खिलता है और संध्या के होते ही मुरझा जाता है, रजनी भी फूल की भाँति मुरझा गई थी। आज उसके चेहरे पर न तो हँसी ही थी और न ही कोई विनय। परन्तु आज से पहले यदि कोई रजनी को देखता तो यही कहता कि यह वह रजनी नहीं है। आज रजनी की सारी चंचलता गायब हो चुकी थी। उसका चेहरा पत्थर के समान निश्चेष्ट हो गया था। उसके दिल के सारे अरमानों के सपने काँच के टुकड़ों के समान चकनाचूर हो गए थे। यह सपने उसने आज से चार वर्ष पूर्व दीपक के साथ सँजोए थे जब वह बी.ए. प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी इसी क्लास का दीपक भी छात्र था। प्रारम्भ में तो रजनी और दीपक एक दूसरे के लिए अनजान ही थे। रजनी एक अमीर बाप की इकलौती बेटी थी परन्तु वह बहुत ही साधारण वेशभूषा में रहा करती थी। उसे देखकर कोई भी यह नहीं कह सकता था कि वह एक अमीर बाप की बेटी होगी।

दीपक भी अपने आप में एक अजीब सा लड़का था। न किसी से बोलना, न हँसना। वह हमेशा पढाई पर अधिक ध्यान देता था। मानों पढ़ना ही उसका मुख्य उद्देश्य था। वह एक गरीब व्यक्ति था। वह बहुत ही साधारण वस्त्रों में रहा करता था। इसके साथ ही वह एक हृष्ट-पुष्ट, गोरे चेहरे का व्यक्ति था। उसके बालों को सँवारने का ढंग अपने आप में निराला था जिससे उसका चेहरा बड़ा ही फवता था। परन्तु हमेशा उसके चेहरे से भोलापन झलकता था। इन सभी खूबियों के कारण उसके चेहरे में आकर्षकता आ गई थी।

जब पहली बार रजनी ने दीपक को देखा तो उसे दीपक का यह रूप बड़ा ही पसंद आया। उसके मन में दीपक से बात करने की उत्सुकता पैदा हो गई। परन्तु उसे दीपक के सामने जाने का साहस नहीं हो पाता था। पता नहीं क्यों, जब कभी भी दीपक उसके सामने आ जाता तो उसके पूरे शरीर में सनसनाहट दौड़ जाती। रजनी को ऐसा महसूस होने लगता कि जैसे वह बरबस ही दीपक की ओर खिंची जा रही हो। वह अपने मन में सोचने लगती कि कहीं उसे दीपक से प्यार तो नहीं हो रहा है। काफी दिनों के बाद एक दिन उसे दीपक से बात करने का मौक़ा मिल ही गया। उस दिन उनका दूसरा पीरियड खाली था क्योंकि इतिहास के प्रोफेसर नहीं आये थे। धीरे-धीरे करके सभी लड़के लड़कियाँ बाहर जाने लगे। अंत में सिर्फ रजनी और दीपक ही क्लास में रह गए। तब रजनी ने दीपक से बात करने का बहाना ढूंढ लिया। किसी प्रकार साहस करके वह दीपक के पास गई। दीपक नीचे निगाह किये हुए अपनी सीट पर बैठा था, परन्तु उसे रजनी के आने का एहसास भी था। और बोली, "मेरा नाम रजनी है। मैं इसी क्लास की छात्रा हूँ।" परन्तु दीपक ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, "मैं जानता हूँ।" उसके इस उत्तर से रजनी निरुत्तर सी हो गई। परन्तु फिर भी उसने साहस करके कहा, "क्या आप मुझे अपने इतिहास के नोट्स एक दिन के लिए दे सकते हैं?" दीपक ने अपने इतिहास के नोट्स रजनी को दे दिए और इस दिन के बाद धीरे-धीरे उनकी मुलाक़ातें बढ़ती गई। दोनों ने अपनी अपनी स्तिथि से एक दूसरे को अवगत करवा दिया। परन्तु स्तिथि जानने के बाद भी वह दोनों एक दूसरे के नज़दीक आते गए। इतने अधिक कि वह अपने इस पवित्र प्यार के समुन्दर में गोते लगाने लगे। दोनों ने अपने इस प्यार के प्रति काफी सपने सँजोए लेकिन उन्हें क्या पता था कि एक दिन उनके सारे सपने चकनाचूर हो जाएंगे।

जैसे-जैसे परीक्षा की तिथि नज़दीक आती गई उन दोनों का मिलना कम होता गया। दोनों ही अपनी-अपनी पढाई में व्यस्त हो गए। दोनों के ही पेपर अच्छे हुए। आज उनका परीक्षा का परिणाम घोषित होने वाला था। प्रातः ही रजनी ने सबसे पहले दोनों का परिणाम देख लिया। दीपक ने टॉप किया था। उसका फ़ोटो अखबार में छपा था। परन्तु रजनी भी प्रथम श्रेणी में पास हुई थी। क्योंकि उन्होंने बी.ए. प्रथम वर्ष अच्छे अंकों से पास किया था, रजनी ने दीपक को टॉप करने पर बधाई दी। आज वह दोनों बड़े प्रसन्न थे। वह सारा दिन घूमते रहे। दोनों ने साथ साथ पिक्चर देखी। अब उनके सपने सच होने के दिन आ रहे थे। तभी एक दिन दीपक का वायुसेना में चयन हेतु पत्र आया। उसे वायुसेना में पॉयलट की नौकरी मिल गई थी। उसे दो वर्ष की ट्रेनिंग पर भेजा जा रहा था। जब दूसरे दिन दीपक ने रजनी को यह खुशखबरी सुनाई तो रजनी काफी उदास हो गई। दीपक ने उसे बहुत समझाया तब वह मानी। दीपक पॉयलट की ट्रेनिंग लेता रहा परन्तु उनका पत्रों का आदान प्रदान बराबर जारी रहा। वह दोनों एक दूसरे को नहीं भुला पाए थे। रजनी के हर पत्र में यही लिखा रहता था कि ट्रेनिंग कब ख़त्म हो रही है।

आज दीपक की ट्रेनिंग को पूरे दो वर्ष हो गए थे। आज वह अपनी ट्रेनिंग समाप्त करके लौट रहा था। अब वह पूरा पॉयलट बन चुका था। रजनी दीपक से मिलने के लिए बहुत बेचैन थी। जब दीपक घर आया तो रजनी उससे लिपट गई। दोनों ने अपने गिले-शिक़वे मिटाए, परन्तु उन्हें क्या मालूम था कि उनकी यह ख़ुशी पलभर की थी।

दूसरे ही दिन दीपक को ड्यूटी पर वापस आने के आदेश मिल गए क्योंकि भारत पर पाकिस्तान ने आक्रमण कर दिया था। जाने से पहले, जब दीपक रजनी से मिलने गया तो रजनी उससे लिपट कर बहुत रोई परन्तु दीपक उसे सांत्वना देकर ड्यूटी पर चला गया। उसके जाने के बाद रजनी प्रतिदिन रेडियो पर खबरे सुना करती थी। उसे दीपक की बहुत चिंता थी। तभी एक दिन रेडियो पर प्रसारित किया गया कि पाकिस्तानी आक्रमण में भारतीय वायुसेना के पॉयलट दीपक सक्सैना अपने देश की रक्षा करते हुए शहीद हो गए।

इस समाचार का रजनी के दिल पर बड़ा सदमा बैठा। वह बहुत ही गुमसुम तथा दुःखी रहने लगी। कुछ ही दिनों में वह एक मुरझाए हुए फूल के समान लगने लगी।....

द्वारा

मुकेश सक्सैना 'अमित'

(पुरानी विजय नगर कॉलोनी,

आगरा, उत्तर प्रदेश – 282004)

30/जनवरी/1982 को लिखी गई एक कहानी