बैंगन - 10 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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बैंगन - 10

रात को घर आने के बाद सोते- सोते काफ़ी देर हो गई। घूम फ़िर कर सबका मूड अच्छा हो गया था। खूब बातें भी हुईं। बच्चों ने भी अपने विदेशी स्कूल के किस्से सुनाए।
जब मैं सोने के लिए कमरे में आया तो सिर हल्का सा भारी हो रहा था। मेरे मन से उस उलझन का बोझ तो थोड़ा हल्का हो गया था जो घर में किसी के मुझ पर विश्वास नहीं करने से मुझ पर हावी थी पर उस अपमान की कसक बाक़ी थी जो सभी के सामने झूठा सिद्ध हो जाने से उपजी।
मैं कमरे का दरवाज़ा थोड़ा सा भिड़ा कर के लेट गया। मैं मन ही मन ये सोचने लगा था कि अब यहां ज़्यादा ठहरूंगा नहीं और हो सका तो कल ही किसी गाड़ी से वापस निकल जाऊंगा। और इस सारे घटनाक्रम की अच्छी तरह जांच करने के लिए पूरी तैयारी के साथ एक दो दिन में दोबारा यहां आऊंगा। अब तहकीकात करने के लिए मैं अपनी कल्पना से ही कोई और कारगर तरीका तलाश कर रहा था।
मुझे याद नहीं कि मुझे कितनी देर में नींद आई।
सुबह आंख खुलते ही मुझे दरवाज़े के भीतर से चाय की ट्रे आती हुई दिखाई दी तो मैं चौंक कर उठ बैठा।
मेरा चौंकना साधारण सा नहीं था बल्कि बहुत ही अनोखा था, क्योंकि चाय की ट्रे लेकर आने वाली भाभी या उनके यहां काम करने वाली वो दूसरी महिला नहीं थीं, बल्कि ख़ुद मेरी पत्नी चाय लेकर आई थी।
ये क्या? ये यहां कैसे? ये कब आई? और क्यों आई।
- ओह, तो ये बात थी। कल की घटनाओं से चिंतित होकर भाई ने मेरे घर फ़ोन कर दिया था। इतना ही नहीं, बल्कि मेरी पत्नी को ये बताया गया था कि मुझे न जाने क्या हो गया है और मैं न जाने कैसी कैसी अजीबो - गरीब हरकतें कर रहा हूं।
ये सब सुनकर मेरी पत्नी कहीं घबरा न जाए, इसलिए भाई ने कल दोपहर को ही अपने ड्राइवर को कार लेकर उसे यहां लाने के लिए भेज दिया था। ड्राइवर सुबह सुबह मेरी पत्नी को यहां लेकर भी पहुंच गया था। और अब श्रीमती जी चाय की ट्रे लेकर मेरी सेवा में हाज़िर हुई थीं।
हद हो गई। भाई का भी जवाब नहीं। ख़ुद अपना अपराध छिपाने के लिए उल्टे मेरी तबीयत खराब हो जाने का ही बहाना बना दिया? करने दो इनको अपनी होशियारी। मैं भी हार नहीं मानूंगा। आख़िर इनका भांडा फोड़ कर के ही रहूंगा कि ये विदेश से कोई घोटाला करके भागे हैं, पुलिस इनके पीछे है और ये तरह - तरह के बहानों और चालों से उससे बचते फ़िर रहे हैं। मेरी आंखों देखी बातों को झुठला रहे हैं और अब तो इन्होंने मेरी पत्नी तक को अपनी तरफ़ मिला लिया है। दोनों जेठानी देवरानी और बच्चे, सब मिल कर मुझे ही बीमार मानने पर तुले हैं।
मैंने सब्र से काम लेते हुए पत्नी से केवल इतना पूछा - अरे यहां आने से पहले कम से कम एक बार मुझसे बात तो कर ली होती।
- कमाल करते हैं आप भी? इतने घबराए हुए भाई साहब ने मुझे फ़ोन किया, ड्राइवर लेने तक पहुंच गया, मैं क्या भाई साहब की बात पर अविश्वास करके ये कहती कि पहले मेरी आपसे बात करवाएं? वहां अम्मा जी और बच्चे भी सब घबरा गए थे, आने की ज़िद करने लगे, मुश्किल से तो सबको छोड़ कर आई हूं। बच्चों को लाती तो अम्मा अकेली रह जाती।
मैं बिना कुछ बोले झटपट उठ कर वाशरूम गया और जल्दी से मुंह धोकर बाहर निकला कि चाय ठंडी न हो जाय।