क्या कहूं...भाग - ३ Sonal Singh Suryavanshi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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क्या कहूं...भाग - ३

स्मृति पुरस्कार लेती है और कुछ बोलने का आग्रह करती है। उसे माइक दिया जाता है। "मेरी उम्र केवल २५ वर्ष है। इतनी कम उम्र में हेड डिपार्टमेंट बनना किस्मत की बात नहीं है। आज से आठ साल पहले तक मैं बिल्कुल बेपरवाह लड़की थी। जिसे अपनी भविष्य की कोई फ़िक्र ही नहीं थी। लापरवाही हर कदम पर थी। फिर मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई जिसने मुझे बदलकर रख दिया। आज मेरे हाथ में जो अवार्ड है इसका असली हकदार वहीं है। उसका सपना था कि एक दिन मेरे हाथ में ये अवार्ड हो। और मैंने उससे वादा किया था चाहे जिंदगी जिस मोड़ पर हमें लाएगी मैं तुम्हारा नाम बोलुंगी। उसका नाम है "विवान मेहरा" यह सुनकर विवान एक लम्बी गहरी सांस लेता है। उसके आंखों से आसूं लगातार बह रहे थे जिससे उसकी दृष्टि धूमिल हो जा रही थी और वह स्मृति को देख नहीं पा रहा था। आज उसे एक सुकुन महसूस हो रहा था। अब तूफ़ान भी थम चुका था। दिल भी शांत हो गया था। स्मृति आगे कहती हैं वो जहां कहीं भी हो भगवान से यही प्रार्थना है उसे मेरी कामयाबी महसूस हो। स्मृति भी थोड़ी भावुक हो गईं थीं। वह धन्यवाद कहकर धीरे से अपने आंखों के आंसू पोछकर स्टेज से नीचे उतरने लगती है। विवान दूर बैठा था पर उसके आंसुओं को देख लेता है। काफी लोगों की भीड़ होती है इसलिए स्मृति भी विवान को नहीं देख पाती। फिर पहले दिन का समारोह भी खत्म हो जाता है। सभी सभागार से जाने लगते हैं पर विवान अब भी चुपचाप वहीं बैठा था। कुछ देर बाद वो अपने कमरे में चला जाता है। देर रात तक वो सिर्फ स्मृति के ही ख्याल में खोया रहता है। पुरानी खट्टी मीठी यादों को याद करके उसके चेहरे पर हंसी आ जाती थी तो कभी वह उदास हो जाता था। यही सब सोचकर उसकी आंख लगती है और वह सो जाता है। अगली सुबह विवान खुश होकर सभागार में आता है। आज उसे पुरस्कार मिलने वाला था पर ये खुशी स्मृति को देखने की थी। फिर समारोह शुरू होता है और उसकी बारी भी आ जाती है। वह पुरस्कार लेने जाता है। उसका नाम सुनकर स्मृति भी उत्सुक हो गई थी। उसकी नजर सामने पड़ती है। वह बहुत खुश थी आंखों में थोड़े खुशी के आंसु भी थे। विवान जैसे ही सामने देखता है उसकी नजर स्मृति पर पड़ती है वो पहले पंक्ति में ही बैठी हुई थी। एक पल के लिए दोनों की नजरें मिलती है। परंतु विवान तुरंत उसे अनदेखा करके पुरस्कार लेकर वापस अपने स्थान पर चला जाता है। विवान के ऐसे बर्ताव से स्मृति दुखी हो जाती है। फिर उसे वो आखिरी दिन याद आता है जो बातें उसके और विवान के बीच में हुई थी। तब भी स्मृति ने कभी सोचा नहीं था कि विवान उसे अनदेखा करेगा। धीरे धीरे अन्य लोगों को भी पुरस्कृत करके समारोह खत्म हो जाता है। विवान अपने घर को रवाना हो जाता है। स्मृति दूसरे राज्य से आई थी वो भी वापस चली जाती है।