क्या कहूं...भाग - ४ Sonal Singh Suryavanshi द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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क्या कहूं...भाग - ४

स्मृति का घर भोपाल में था। वह घर पहुंचकर आराम करती हैं। उसमें भी उसे सिर्फ विवान याद आ रहा था। बीते कुछ वर्षो में उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ था उसके बावजूद उसने बहुत हद तक खुद को रोक लिया था या यूं कहें कि खुद को समझा लिया था। परंतु आज वो अपने आप को विवान के बारे में सोचने से नहीं रोक पा रही थी। यूं तो वो अक्सर विवान को सोचा करती थी। उसे अपने करीब महसूस करती थी पर आज वो याद करती हैं उस पहले दिन को जब उसकी मुलाकात विवान से हुई थी।

बात सात साल पहले की है। स्मृति ने बारहवीं कक्षा पास किया था और वह डिग्री काॅलेज में प्रवेश लेती है। वह स्कूल से पहली बार काॅलेज जाती है। ये दिन खुद में ही एक अलग एहसास होता है। स्मृति स्वभाव से थोड़ी शर्मीली वह अंजान लोगों से कम बात करने वाली थी परंतु जो उसके दोस्त बन जाते थे सिर्फ उन्हें ही पता होता था कि वह कितना कम बोलती है। स्मृति छात्रावास में रहती थी। काॅलेज में जाते हुए उसे करीब एक महीना हो गया था। वह अपने दोस्तों से फेसबुक के बारे में सुनती हैं और अकाउंट बना लेती है। एक लड़की को अकाउंट बनाने के बाद फ्रेंड रिक्वेस्ट की कमी नहीं होती। बस यही स्मृति के साथ भी हुआ। इतने सारे रिक्वेस्ट आए हुए थे जिसे वो जानती भी नहीं थी।उसके लिए एक्सेप्ट कर पाना मुश्किल था। वह बिना आईडी देखें ही सभी के रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर रही थी। उसी में से एक रिक्वेस्ट होता है विवान मेहरा का।

जो स्मृति पहले लोगों को समझाया करती थी कि चैटिंग करने की क्या जरूरत है? जिससे आप कभी मिले नही, ना ही कभी देखा उससे बात करने में क्या मजा है ? बात करना ही है तो अपने परिवार के सदस्यों से करो। ना जाने ऐसे ही बहुत उपदेश वह देते रहती थी। आज उसी लड़की को चैटिंग करने में इस कदर मजा आने लगा था कि वह समय का भी ख्याल नहीं करती थी। वह सबके मैसेज चेक करती है उसी में एक मैसेज विवान मेहरा का भी होता है। उसने ढेर सारे चुटकुले भेजे हुए थे। स्मृति भी मजाकिया थी तो उसे चुटकुले बहुत पसंद आते हैं। वह रोज फेसबुक पर आकर विवान के चुटकुले पढ़ा करती थी। धीरे धीरे स्मृति उससे बात करने को उत्सुक होती है और वह उसके आईडी में अबाउट देखती है। उसके खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उसने देखा कि विवान उसी के काॅलेज में इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष का छात्र हैं। अगले ही दिन वह उसे ढूंढने कैंपस जाती है। यहीं से शुरू होती है एक प्रेम कहानी जिसका वर्णन कर पाना मुश्किल है। मैं तो केवल उनकी कहानी सुना सकती हुं।

जब कभी सोचती हुं
आज प्रेम वर्णन करूं
शब्द कम पड़ जाते हैं।

तो क्या प्रेम नि:शब्द है
बिल्कुल नहीं, वो शब्द है
वह विश्व में ही नहीं वरन्
ब्रह्मांड में भी झंकृत होता है

दूरी में भी लगता है वो पास है
वह नित्य अतुलनीय एहसास है


- सोनल सिंह सूर्यवंशी