एपिसोड---22
दूसरी ओर रवि जी की बुआ जी का परिवार और उनके ज्येष्ठ दामाद श्री गोपाल देव कपूर जी( जिनके नाम से सांईदास स्कूल के साथ वाले मोहल्ले का नाम गोपाल नगर है)भी स्वतंत्र भारत में, जेल में काफ़ी लम्बे अरसे तक बंद रहे। वहीं उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ, वे R S S में थे।
बुआ जी की दूसरी बेटी श्री मती विमला कोहली भी जनसंघ की लीडर एवम् कुशल प्रवक्ता थीं। उनके पति श्री सत्यदेव कोहली जी बाद में "गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय " हरिद्वार के चांसलर थे। विभाजन के पश्चात् ये सारा परिवार भी जालंधर आ गया था। विमला बहनजी अपने समय में जालंधर की मानी हुई हस्ती थीं। चंदीगढ़ के अस्तित्व में आने के पश्चात सन् 1957 में ये सब भी चंदीगढ़ में बस गए थे। चूं कि अब सभी रिश्ते नाते के लोग चंदीगढ़ में विस्थापित थे, सो हम उनसे मिलने जा रहे थे ।
रास्ते में नवांशहर क्रॉस करते एक हलवाई की दुकान थी जो कढ़ाई में बर्फी बना रहा था हमने कार वहीं रोकी और ताजी बर्फी साथ लेकर वहां से निकले।भविष्य में भी जब कभी चंडीगढ़ जाना होता तो हम वह बर्फी लेना कभी नहीं भूलते थे।
चंडीगढ़ बहुत ही साफ सुथरा शहर है। हम सीधे चाचा जी के घर सेक्टर 16 ही गए। यह शहर सेक्टरों में बंटा हुआ है। नीचे विज स्टूडियो और ऊपर उनका आवास। वहां चाचा जी के दो बेटे और चार बेटियां, सभी बहुतआत्मीयता से मिले, अपनापन लगा। सांझ ढलने से पूर्व ही वे हमें सैक्टर 35 में रोज गार्डन घुमाने ले गए। बसंती मलय बहने से गुलाब के फूल डालियों पर झूम रहे थे और उनकी ढेरों रंग-बिरंगी देसी और विलायती किस्में थीं, जो मन लुभा रही थीं। गुलाब की सुगंध से वातावरण सुगंधित था। वहींअद्भुत काले गुलाब पहली बार दृष्टव्य हुए, जिन्हें देखकर मैं अचंभित थी।आजकल तो नीले गुलाबी भी होते हैं फ्लोरिस्ट के पास। यह किस्से तो आधी सदी पुराने हैं।
दूसरे दिन नाश्ता करने के पश्चात केवल चाचा जी हम दोनों को लेकर Assembly Building या विधान सभा दिखाने ले गए। जिसके विषय में हम civics or Pol . Science में पढ़ा करते थे।यह स्वतंत्र भारत में बनी नई बिल्डिंग थी विधान सभा की, जिसे देखकर गर्व हो रहा था।
उसके बाद हम सैक्टर 21में बुआ जी के घर उन्हें मिलने गए। उनके बड़े बेटे उनके साथ थे।और उन्होंने बताया कि उनका छोटा बेटा और बहू न्यूयार्क में हैं। तब ऐसी बातें सुनकर लगा, उनका कद बढ़ गया है हमारी नज़र में। (मालूम न था, आने वाले वक्त में हम स्वयं ज़्यादातर अमेरिका में रहने लग जाएंगे ।)खैर वक्त, वक्त की बात है।
अगले दिन पंजौर गार्डन जाने का प्रोग्राम बनाया गया।मध्य मार्ग जो साफ-सुथरी, सीधी सड़क है और जिसके दोनों ओर बड़े-बड़े छायादार वृक्ष हैं, वहां से गुजर कर अजीब सी शांति लगी। पहले हम आधा घंटा चलने के पश्चात् थोड़ी देर चण्डी मंदिर रुके फिर आगे पंजौर की ओर बढ़े। बेहद खूबसूरत ऊंचाइयों से आगे बढ़ते हुए नीचे की ओर एक कतार में बढ़ते हुए पानी के फव्वारे। मुझे मैसूर के वृन्दावन गार्डन की याद आ गई, जहां मैं सन् 1968 में गई थी । बच्चों को साथ लेकर हम बहुत बाद में पुन: वहां गए थे। लेकिन अभी इसकी चर्चा नहीं करेंगे। वहां शिवालिक पहाड़ियों की गोद में बसी सुरम्य घाटी में पंजौर गार्डन में सारा दिन पिकनिक करके हम सब सांझ ढले प्रसन्न वदन लौट आए।अगले दिवस रॉक गार्डन जाने का प्रोग्राम बना कर।
सूर्य की किरणें अभी चेहरे को सीधी नहीं छू रहीं थीं, जब हम Rock-Garden पहुंचे । नेक चंद एक सड़क इंस्पेक्टर थे, जिन्होंने सड़क किनारे या घर से फेंके टूटे-फूटे सामान को जोड़कर कुछ नई किस्म और नवीन शक्ल की मूर्तियां बनाईं और उससे एक गार्डन बनाया। बाद में नेक चंद की creativity देखकर प्रशासन ने उनकी मदद करी और इसे tourist-place बना दिया गया। यदि आपने चंदीगढ़ कभी नहीं देखा है, तो सैर करने जाएं। और वहां RockGarden देखने अवश्य जाएं । मैं तो उस कारीगरी को देखकर over excited और साथ ही हैरान भी उसी हद तक थी ।
उस शाम हम विमला बहनजी के घर गए। उनके व्यक्तित्व से मैं प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी। स्पष्टवादी और स्वदेश प्रेम से वे ओत-प्रोत लगीं । उस परिवार में आर्य- समाजी विचार प्रबल थे।मुझे अपनी मम्मी याद आ रहीं थीं, इन सब में ।
अगली दोपहर रवि जी मुझे "सुखना लेक "ले गए घुमाने। लेक के इस पार बाउंड्री बनी है और चौड़ी -चौड़ी ढेरों सीढ़ियां नीचे उतर कर पानी में पैर डाल सकते हैं। हमने वहां जमकर फोटोग्राफी की। तब वहां प्रवासी पक्षियों का झुंड आया हुआ था । कहते हैं वह साइबेरिया से आते हैं हर वर्ष। वे देखने में बहुत सुंदर थे। लेकिन उनके बारे में सुनकर विश्वास ही नहीं हुआ कि इतनी दूर से वे प्रतिवर्ष इसी जगह पर आते हैं।और सर्दियां शुरू होने से पहले ही वे वापस चले जाते हैं। क्या कमाल की कुदरत है ना यह भी।
इस प्रकार पंजाब दर्शन का यह अध्याय चंदीगढ़ घूमकर पूरा किया हमने।
वीणा विज'उदित'