छुट-पुट अफसाने - 18 Veena Vij द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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छुट-पुट अफसाने - 18

एपिसोड---18

‌   पिछली सदी का छठा दशक समाप्त होने से पूर्व ही मेरी झोली में ढेरों रंग बिखेर गया।1969 में NCERT की ओर से मुझे " पी एच डी" करने का बुलावा आया ₹ 300/-स्कालरशिप के साथ। (विश्वविद्यालीय स्वर्ण पदक विजेताओं को यह सम्मान दिया जाता था तब । )

उस जमाने में यह अच्छी खासी रकम होती थी, फिर मुझे आगे पढ़ते रहने की प्रबल इच्छा भी थी। सो, मैं दिल्ली जाने के लिए झट तैयार हो गई। लेकिन, कैसे...

कहते हैं न कि 'जहां चाह वहां राह' मिल ही जाती है।। हुआ यूं कि अचानक, दिल्ली से किसी खास शादी का न्यौता आ गया और मम्मी को दिल्ली जाना जरूरी हो गया । लो जी, मिल गया मुझे साथ । हम मंज़िल की तलाश में चल पड़े शहर मकसूदां को । वहां पहुंच कर हाल ये हुआ कि निकले थे छब्बे बनने, चौबे बनके रह गए। यानि कि वहां 1970 के उत्तरार्द्ध में हमारी ही शादी तय हो गई और हम घर वापिस अकेले कभी जा ही नहीं पाए। उलटे, घर से सब लोग पंजाब आए शादी में शामिल होने।

मैं जब शादी के सात महीने बाद पति संग कटनी गई, तो मेरे पास ढेरों अफसाने थे सबको सुनाने के लिए। असल में मध्यप्रदेश और पंजाब की संस्कृति, रीति-रिवाज, सोच- विचार, बोल-चाल, खान-पान, सामाजिक आचार-व्यवहार सभी में एक बेसिक भिन्नता है। संकुचित मानसिकता है वहां, तो असीम खुलापन है यहां । वहां गुरबत है तो रईसी शान-ओ-शौकत से रहते हैं लोग यहां। (पंजाबी तो वहां भी अमीर हैं।) ख़ैर, गंवई भाषा का प्रयोग वहां बचपन से सुन-सुन कर उसमें मिठास लगती थी, यहां शहरी हिन्दी या पंजाबी माहौल । सो अन्तर तो सब तरह का था ।ज

सोने पर सुहागा- पति का बिजनेस कश्मीर में था, सो बातों की तो पूछो ही न ! एक नया ही संसार था मेरे सामने।एक जवान लड़की के जितने ख़्वाब होते हैं, सारे पूरे करवाए रविजी ने। और तो और Glamour world से भी जुड़े थे वे। एक्टर राजेन्द्र कुमार और साधना की शूटिंग चल रही थी फिल्म" आप आएं बहार आई" की, रवि जी ने फोन किया, "कहां हैं आप ?"

बोले, "चले आओ, हम फलां जगह हैं।" मुझे बहुत एक्साइटमेंट हो रही थी, उनसे मिलने की। हम पहुंचे तो गाने की शूटिंग चल रही थी। एक ही लाईन, बार -बार हो रही थी । लगा, इन्हें इतनी-सी बात समझ क्यों नहीं आ रही ! बहुत बोरिंग लगी शूटिंग । लेकिन रवि जी के साथ उनका दोस्ताना, मुझे भी अपना- अपना सा लगा। ढेरों फोटोस खिंची ।

रात को सिल्की तहमत बांधे वे हमारे आर.के स्टूडियो पर बैठे थे। दिन भर की शूटिंग की फिल्म्स रात को हमारे स्टूडियो के डार्क रूम में वाश होती थीं, तो सारे हीरो -हीरोईन लोग अपना get -up देखने को लालायित रहते थे।वे डिनर के बाद हमारे आर.के स्टूडियो पर देर रात तक महफिल सजाये बैठते थे । यही वहां का चलन था। रवि सभी का यार था चाहे वो धर्मेंद्र, जितेंद्र, फिरोज़ खान, ँ

सुनील दत्त, शशी कपूर, शम्मी कपूर, संजीव कुमार या रणजीत हों । हां, दिलीप कुमार गनी साहब के होटल "नटराज " में ठहरते थे, वहीं बुला लेते थे। कभी चाय पर तो कभी काहवा पीने। अजीत भी वहीं ठहरते थे, ये लोग मार्किट में नहीं आते थे।

राजकपूर जी के साथ कुछ अधिक ही प्रेम था रवि जी का। वो तो श्रीनगर एअरपोर्ट से सीधे आर.के स्टूडियो पर पहुंच कर टैक्सी रोकते थे रवि के लिए। रवि को कार में साथ बैठाकर ही होटल जाते थे।"मेरा नाम जोकर" बना कर 1970 में वे रीलैक्स होने कश्मीर आ गए थे। बस रवि को सुबह उठते ही बुलवा भेजना। आजा, नाश्ता इकट्ठे करेंगे। फिर सारा दिन घूमने निकल जाना साथ ही। सांझ ढले रवि जी वापिस आते तो हम दोनों को बुलवा लेना ।कभी अचानक स्वयं आ जाते थे हमारे घर । हाथ में जाम लिए कहते, 

"भाभी, इसे कहो न मेरे जाम को जूठा ही करदे । मेरी तो सुनता नहीं ये।" (रवि जी शाकाहारी और टी- टोटलर हैं) और वहीं जमकर बैठ जाते थे । कभी नीचे से आवाज़ लगाते थे, "भाभी, रवि कहां है, भेज दो नीचे।आप भी आ जाओ। और वहीं नीचे सीढ़ियों पर बैठ जाते थे ।बोलते थे "आपको बताऊं, लोग अपनी बीवी, बहन और बेटी तक मेरे पास भेज देते हैं कि इन्हें फिल्म में काम दे दो। और एक ये रवि है जिसे मैं बरसों से बुला रहा हूं, ये मानता ही नहीं ।" वे रवि जी से 1961से जुड़े थे। और अन्त तक आते रहे । इसी प्रकार कामेडी कलाकार ओमप्रकाश जी से भी बहुत जुड़ाव था हमारा। वो अफसाने अगली बार.......

 

वीणा विज'उदित'

28/2/2020

मन अतीत की ओर मुड़ता है तो ढेरों बातें याद आती हैंऔर लगता है उन्हें सब के साथ बांट लिया जाए। सन 1974 की बात है "रोटी " फिल्म की शूटिंग होने लगी थी। फिल्म- यूनिट पहलगाम पहुंच गया था। बड़े स्टार्स पहलगाम होटल में ठहरे थे और जो छोटा स्टाफ था, वह माउंट व्यू होटल में ठहरा था।

पहला दिन था सांझ ढले अचानक देखा तो एक्टर ओम प्रकाश जी दुकान की तरफ आ रहे हैं और पूछ रहे हैं कि रवि कहां है? शोर मच गया था --ओम प्रकाश, ओम प्रकाश। उनके पीछे पीछे भीड़ बढ़ी आ रही थी। वे सीधे दुकान के भीतर आए और रवि जी को गले से लगा लिया । मैं भी वहीं बैठी थी। रवि जी ने परिचय करवाया मुझसे तो बोले, " अच्छा बहु रानी है! "यह सुनते ही मैंने उनके पैर छुए। वे पुनः बोलें, " यह मेरा छोटा भाई है। इसने बताया कि नहीं ?" बहुत भला लगा उनकी यह बात सुनकर।

फिर तो ढेरों बातें हुईं कि किस फिल्म के लिए आए हैं और कौन-कौन आया है। एक महीना ठहरने का प्रोग्राम है यूनिट का, उन्होंने बताया । अब तो ki शामें उनकी यहीं कटती थीं। हां, कभी-कभी रात के सीन भी होते थे, तब वह शूटिंग में बिजी होते थे। बेहद रौनक रही उन दिनों।

एक शाम वह मुझे अपने साथ होटल में ले गए कि आओ हम सब बैठ रहे हैं खूब रौनक लगेगी और वाकई वहां पर पूरी महफिल सजी थी । निरूपा राय, मनमोहन, हंगल समेत हम सबने गीत, भजन, चुटकुले आदि सुना कर एक-दूसरे का मन बहलाया। साथ में स्नैक्स और चाय का प्रोग्राम भी चलता रहा। ओम प्रकाश जी ने तो शेरो शायरी भी खूब सुनाई। थोड़ी देर बाद कुछ शोर सुनाई दिया तो पता चला कि शर्मिला टैगोर के बेटे सैफ और गुलजार जी की बेटी मेघना की लड़ाई हो गई है। दोनों 9 -10 साल की उम्र के थे। वो दोनों स्वयं तो शूटिंग लोकेशन पर थे, लेकिन बच्चे होटल में थे। सैफ ने एक वेटर को भी थप्पड़ मार दिया था । वह बीच बचाव कर रहा था तो। मेघना भी रो रही थी। हम सबको लगा कि यह लड़का बहुत ही बदतमीज है। बिगड़ी औलाद है। फिर उसका केयर टेकर उसे कमरे में ले गया था।

उन दिनों काफी फिल्मों की शूटिंग्स चल रही थीं ।अगले दिन हम प्लेटो ( ऊंचे पहाड़ों की तलहटी में घास के मैदान) पर घूमने गए तो देखा कि वहां शर्मिला टैगोर के सीन की शूटिंग चल रही है, पीछे कुर्सी पर script की files लेकर गुलजार जी बैठे हुए हैं। अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि एक शॉट देने के बाद शर्मिला आकर गुलजार की गोदी में बैठ जाती थीं और वे उसे हटाते थे। बेहूदा लग रही थी उनकी ये हरकत। यही दो चार बार हुआ तो हम लोग वहां से हट गए । लगा, इनको पब्लिक की शर्म भी नहीं है। न राखी थीं वहां, न ही पटौदी। हमें अच्छा नहीं लग रहा था यह सब। ख़ैर, 

हम कुछ दूरी पर एक दूसरी लोकेशन पर सुचित्रा सेन और संजीव कुमार के पास चले गए जो हमारे दोनों बच्चों के साथ बिजी थे। संजीव कुमार रोहित को प्यार से गोद में उठाकर खड़े थे। वे वहां "आंधी "फिल्म की शूटिंग के लिए आए हुए थे। अगले दिन हम उनके साथ मार्तन्ड temple गए, जहां दीवारों पर उर्दू में आयतें लिखी हुई हैं। सुचित्रा सेन का व्यक्तित्व आकर्षित करता है। मेरी तो वे पसंदीदा कलाकार हैं।

"दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन".... यह गीत वहीं फिल्माया गया था।

अगले दिन होटल वुड स्टॉक से संदेशा आया कि आप आ जाइए कार्ड्स खेलेंगे । जब वहां गए तो देखा की वहां तो शम्मी कपूर जी और उनकी पत्नी नीला जी भी आई हुई हैं। ताश की टेबल सजी हुई है और वहां निरुपा राय जी भी बैठी हैं, fight master के साथ । उसके बाद हम सब ने रम्मी खेली, चाय का दौर भी चला । नीला जी स्वयं ताश नहीं खेलती हैं, शम्मी के साथ बैठती हैं सिर ढांक कर। वे काफी सुंदर और रॉयल लगती हैं देखने में।

सो, ऐसी कई रौनकें वहां लगती थीं ।

बाकि, सुनाती हूं अगली बार.....

वीणा विज'उदित'

6/3/20