शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 27 Kumar Rahman द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

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शोलागढ़ @ 34 किलोमीटर - 27

बॉडी डबल


हाशना को जैसे सुबह होने का ही इंतजार था। वह सुबह छह बजे ही सोहराब की कोठी पर पहुंच गई। सोहराब लॉन में बैठा अखबार पढ़ रहा था। हाशना बिना बताए ही चली आई थी। अलबत्ता बाहर गार्ड ने सोहराब से जरूर बात की थी।

सोहराब ने बड़ी खुशदिली से उसका इस्तकबाल किया। रस्मी बातचीत के बाद उसने हाशना से पूछा, “जी बताइए... कैसे तकलीफ की?”

“बाबा आप से मिलना चाहते हैं। मैं कई बार आपकी कोठी के चक्कर काट चुकी हूं, लेकिन आप कहीं बाहर गए हुए थे। अगर आप इजाजत दें तो मैं आज शाम को बाबा को यहीं ले आऊं?”

“बाबा को मुझसे क्या काम आन पड़ा?” सोहराब ने पूछा।

“उसी पेंटिंग के सिलसिले में।” हाशना ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

“...लेकिन वह पेंटिंग तो विक्रम के खान के पास है। उसने देने से मना कर दिया है। इस मामले में भला मैं उनकी क्या मदद कर सकता हूं!” सोहराब ने जवाब दिया।

“मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं।” हाशना ने परेशानी भरे लहजे में कहा, “विक्रम पेंटिंग देने को राजी नहीं है और यह बात मैं बाबा को बता नहीं सकती कि वह पेंटिंग मैंने विक्रम को दे दी है। बाबा के लिए यह बात नाकाबिले बर्दाश्त होगी कि उनकी इतनी पर्सनल चीज को मैंने न सिर्फ देखा है, बल्कि उसे किसी को दे भी दिया है।”

“मिस हाशना! मैं माफी चाहता हूं... मैं इस मामले में आपकी कोई मदद नहीं कर सकूंगा। दरअसल यह आपका बहुत ही निजी मामला है। मैं पर्सनल लेवल पर भी इस मामले में आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊंगा।” सोहराब ने साफ लहजे में हाशना को मना कर दिया।

सोहराब की इस बात से हाशना के चेहरे पर उदासी छा गई। वह फौरन ही जाने के लिए उठ खड़ी हुई। इंस्पेक्टर सोहराब ने उसे रोकते हुए कहा, “रुकिए कॉफी पीकर जाइएगा।”

“इंस्पेक्टर सर! मैं बहुत परेशान हूं। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं क्या करूं। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि आप एक बार बाबा से मिल लें और उन्हें ढांढस बंधा दें।” हाशना ने बैठते हुए कहा। सोहराब के रोकने से उसे उम्मीद की किरण नजर आई थी और उसने बात को दोबारा शुरू करने की कोशिश की थी।

“इससे क्या फायदा होगा?” सोहराब ने पूछा।

“मुझे कुछ वक्त मिल जाएगा और मैं विक्रम से पेंटिंग हासिल कर लूंगी।” हाशना ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया।

“आप कैसे हासिल करेंगी। वह पेंटिंग देने को तैयार ही कब है।” सोहराब ने हाशना की तरफ गहरी नजरों से देखते हुए कहा, “...लेकिन आप पेंटिंग हासिल करने के लिए कोई गैरकानूनी रास्ता इख्तियार नहीं करेंगी।”

सोहराब की इस बात पर हाशना ने कोई जवाब नहीं दिया और वह जाने के लिए उठ खड़ी हुई। तभी उसे लॉन की तरफ श्रेया आते हुए नजर आई। श्रेया को यहां देखकर हाशना चौंक गई। वह कभी श्रेया की तरफ देख रही थी और कभी सोहराब की तरफ। इसके बाद वह तेज कदमों से चलते हुए अपनी कार की तरफ बढ़ गई। सोहराब उसे जाते हुए देखता रहा। इस बार उसने हाशना को कॉफी के लिए नहीं रोका।

हाशना के जाने के बाद सोहराब गहरी सोच में डूब गया। उसकी तंद्रा तभी टूटी जब श्रेया उसके सामने आ कर बैठ गई।

“बहुत सुबह उठ गईं!” सोहराब ने पूछा।

“जी हां, मैं सुबह पांच बजे ही उठ जाती हूं। सुबह एक घंटा योगा करती हूं।” श्रेया ने जवाब दिया।

“अब आपका पैर कैसा है?” सोहराब ने पूछा।

“काफी हद तक ठीक हो गया है। काफी कमाल का लोशन है।”

“जी हां, लगाने के कुछ देर बाद ही वह हीलिंग शुरू कर देता है।”

“मैं अब अपने घर जाना चाहती हूं।” श्रेया ने कहा।

“मेरे ख्याल से आपको कुछ दिन यहीं रहना चाहिए। आपकी जान को खतरा है।” सोहराब ने उसे समझाते हुए कहा।

“दरअसल मेरे बहुत सारे काम पेंडिंग पड़े हैं, इसलिए मुझे जाना ही होगा। बाकी मैं अलर्ट रहूंगी अब।” श्रेया ने जवाब दिया।

“ठीक है आप नाश्ता कर लीजिए। सलीम आपको आपके घर तक पहुंचा देगा।” सोहराब ने कहा और वह सलीम का फोन नंबर मिलाने लगा।

कुछ देर बाद दूसरी तरफ से सार्जेंट सलीम की नींद में डूबी हुई आवाज सुनाई दी।

“सुबह कब का हो चुकी है। फ्रेश होकर तुरंत ही लॉन पर ही आ जाइए।” सोहराब ने फोन पर सार्जेंट सलीम से कहा।

फोन काटने के बाद सोहराब ने सिगार केस से सिगार निकाला और उसका कोना तोड़ते हुए श्रेया से पूछा, “आपको क्या लगता है, अगर शेयाली की फिल्म रिलीज होगी तो क्या वह चलेगी?”

“अगर जल्दी रिलीज कर दी जाए तो फायदा मिल सकता है। अभी शेयाली मैम का गायब होना सुर्खियों में है।” श्रेया ने कुछ सोचते हुए कहा, “आप लोग शेयाली मैम को जंगल से कब तक तलाश लेंगे?”

“शेयाली अब कभी वापस नहीं आएगी...।” अपनी बात को बीच में रोक कर सोहराब ने गहरी नजरों से श्रेया को देखा। उसकी इस बात से श्रेया को झटका सा लगा और वह सोहराब की तरफ ध्यान से देखने लगी, लेकिन उसकी आंखों की ताब न लाकर नजरें नीचे कर लीं।

सोहराब ने उसके चेहरे पर नजरें जमाए हुए ही बात पूरी कर दी, “शेयाली मर चुकी है।”

इस वाक्य ने जैसे श्रेया को हिला दिया हो। वह बेचैनी से सोहराब की तरफ देखने लगी। उसने अटकते हुए पूछा, “ललेकिन... सार्जेंट सलीम... शेयाली मैम से... जंगल में... मिल चुके हैं। आप लोग... उन्हें तलाश... क्यों नहीं करते हैं।”

“सलीम जंगल में जिससे मिला है... वह शेयाली की बॉडी डबल यानी डुप्लिकेट है। उसे जानबूझ कर सलीम के सामने लाया गया था।”

“डुप्लीकेट....!! मतलब...!!!”

“कोई है जो हमें भ्रमित करना चाहता है... ताकि हम इस केस को बंद कर दें।”

“कौन है वह!!!” श्रेया ने बेचैनी से पूछा।

“वह जो भी हो जल्द ही हमारी गिरफ्त में होगा।” सोहराब ने काफी मजबूत लहजे में कहा।

सोहराब ने महसूस किया कि इस बातचीत के बाद श्रेया का चेहरा पीला पड़ गया था। सोहराब खामोशी से बैठा सिगार पीता रहा।

कुछ देर में सार्जेंट सलीम भी आ गया। श्रेया को इस हाल में देखकर उसे ताज्जुब हुआ। सार्जेंट सलीम को देख कर श्रेया ने कहा, “प्लीज आप मुझे घर तक छोड़ देंगे?”

“नाश्ता तो कर लीजिए।” सोहराब ने बीच में टोकते हुए कहा।

झाना नाश्ता ले आया और टेबल पर सजाने लगा। बहुत कहने पर श्रेया ने हलका सा नाश्ता किया। सोहराब ने सिर्फ कॉफी पी।

नाश्ता कर चुकने के बाद सार्जेंट सलीम और श्रेया मिनी पर सवार हो गए। कार गेट की तरफ बढ़ गई। मिनी के गेट से बाहर निकलने के कुछ देर बाद ही ब्लैक कलर की एक कार से उसका पीछा शुरू हो गया था।

“क्या हुआ बेबी... इतना गुमसुम क्यों हो?” सलीम ने श्रेया से पूछा।

“तबयत ठीक नहीं है।” श्रेया ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।

“कुछ दिन यहां रुकना चाहिए था... तुम्हें यहां अच्छा लगता।” सलीम ने कहा।

उसकी इस बात का श्रेया ने कोई जवाब नहीं दिया। सलीम ने उसकी तरफ घूम कर देखा। श्रेया ने आंखें बंद कर ली थीं। सलीम को उसका व्यवहार थोड़ा अजीब लगा। पिछली रात को भी उसने सोने के लिए जाते वक्त सलीम को विश नहीं किया था। यह बात याद आते ही सलीम का मूड थोड़ा बिगड़ गया और वह खामोशी से कार चलाता रहा।


पीछा


श्रेया और सलीम के जाते ही सोहराब भी उठ खड़ा हुआ और कोट की जेब से घनी मूंछें निकाल कर होंठों के ऊपर चिपका लीं। फेल्ट हैट को माथे पर थोड़ा झुकाने के बाद वह तेज कदमों से बाहर की तरफ चल दिया। गेट से बाहर निकल कर वह पैदल ही कुछ दूर चलता रहा, उसके बाद उसने एक प्राइवेट टैक्सी कर ली। टैक्सी ड्राइवर को उसने पता बता दिया। टैक्सी तेजी से आगे बढ़ गई। कुछ देर बाद ही उसने सार्जेंट सलीम की मिनी को पा लिया। सोहराब ने ड्राइवर से मिनी का पीछा करने के लिए कहा।

कुछ आगे जाने के बाद ही सोहराब समझ गया कि सलीम की कार का पीछा किया जा रहा है। उसे खतरे का एहसास हो गया था। श्रेया पर फिर हमला हो सकता था। उसने ड्राइवर से पीछा कर रही काले रंग की कार को ओवरटेक करने के लिए कहा। ड्राइवर काफी होशियार था। उसने तुंरत ही कार की स्पीड़ बढ़ा दी और कुछ मिनटों में वह काले रंग की कार से आगे पहुंच गया। अब सोहराब की टैक्सी मिनी और पीछा कर रही कार के बीच में चल रही थी।

पीछा कर रही कार ने कई बार टैक्सी को ओवर टेक करने की कोशिश की, लेकिन टैक्सी ड्राइवर ने उसे मौका नहीं दिया। सोहराब के कहने पर ड्राइवर ने सलीम की मिनी से टैक्सी इस कदर सटा दी थी कि पीछे वाली काली कार अगर ओवरटेक करती भी तो दोनों ही गाड़ियों को ओवरटेक करना पड़ता।

सोहराब टैक्सी को रोके बिना ही पीछे से आगे की सीट पर सरक आया। उसने कोट की जेब में रखी रिवाल्वर की मूठ पर अपनी पकड़ बना ली थी। वह काफी सतर्क होकर बैठ गया। किसी भी स्थिति से निपटने के लिए वह बिल्कुल तैयार हो गया था।

दाहिने तरफ के बैक मिरर में सोहराब लगातार पीछे वाली कार की गतिविधियों पर नजर रखे हुए था।

कुछ आगे जाने के बाद उसने मोबाइल फोन निकाल कर कोतवाली इंचार्ज मनीष के नंबर डायल किए और श्रेया के फ्लैट का पता बताते हुए तीन सादा वर्दी पुलिस मय हथियार 24 घंटे तैनात करने के लिए कहा। उसने यह भी ताकीद कर दी कि अगर श्रेया कहीं जाती है तो दो सिपाही उसका पीछा करेंगे और एक फ्लैट की निगरानी में रहेगा। फोन डिस्कनेक्ट करने के बाद उसने उसे कोट की जेब में रख लिया।


बेरुखी


कुछ आगे जाने के बाद सलीम की कार बाईं तरफ मुड़ गई। सोहराब की टैक्सी भी उधर ही घूम गई, जबकि पीछा कर रही कार सीधे चली गई। रोड पर कुछ आगे जाने के बाद सलीम ने कार एक फ्लैट के सामने रोक दी। सलीम कार को सड़क के किनारे पार्क करने के बाद मिनी से उतर आया। उसने श्रेया की तरफ का गेट खोल दिया। श्रेया नीचे उतर कर फ्लैट की तरफ बढ़ गई। सलीम भी उसके साथ था। दोनों लिफ्ट से सातवीं मंजिल पर पहुंच गए। श्रेया ने एक फ्लैट के सामने पहुंचकर डोर बेल बजाई। कुछ देर बाद एक जवान लड़की ने दरवाजा खोला। उसने श्रेया को देखते ही पूछा, “अरे तुम कहां थीं इतने दिनों से....? मैंने तुम्हें कितनी सारी कॉल की हैं।”

“अंदर तो चलो बताती हूं।” श्रेया ने कहा। उसने पलट कर सार्जेंट सलीम से हाथ मिलाते हुए कहा, “शुक्रिया सार्जेंट।” उसके बाद वह अंदर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया।

उसकी इस बेरुखी से सलीम बुरी तरह गुस्से से भर गया। वह तमतमाए चेहरे के साथ पलट पड़ा। गुस्से में वह लिफ्ट की जगह सीढ़ियों से ही उतरता चला गया। दो मंजिल नीचे पहुंचने के बाद ही उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह लिफ्ट की तरफ बढ़ गया। जब वह नीचे पहुंचा तो अपनी कार के पास उसने एक घनी मूंछों वाले को खड़े पाया।

“क्या है?” सार्जेंट सलीम ने दहाड़ते हुए पूछा।

“लिफ्ट चाहिए बरखुर्दार!” घनी मूंछों वाले ने कहा।

उस की आवाज सुनकर वह चौंक पड़ा। उसने खिसियाए हुए अंदाज में कहा, “आप यहां क्या कर रहे हैं?”

“आपका पीछा।” सोहराब ने कहा। उसने ड्राइविंग सीट संभाल ली और सलीम उसके बगल वाली सीट पर बैठ गया।

कार धीमी रफ्तार से आगे बढ़ गई। कुछ दूर जाने के बाद सोहराब कार सड़क के किनारे लगाकर खड़ा हो गया। उसने मूंछें निकाल कर जेब में डाल लीं और बैक मिरर एडजस्ट करके पीछे के हालात का जायजा लेने लगा।

कुछ देर बाद ही उसे एक के बाद दूसरी और फिर तीसरी बाइक आती हुई नजर आईं। वह मुतमइन नजर आने लगा और उसने मिनी को तेजी से आगे बढ़ा दिया।


*** * ***


क्या शेयाली की मौत के पीछे श्रेया का हाथ है?
क्या शेयाली की बॉडी डबल पकड़ी जा सकी?
क्या सोहराब ने पेंटिंग दिलाने के लिए हाशना की मदद की?

इन सवालों के जवाब पाने के लिए पढ़िए जासूसी उपन्यास ‘शोलागढ़ @ 34 किलोमीटरका अगला भाग...