वो ज़िंदा है मुझमें Broken_Feather द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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वो ज़िंदा है मुझमें



"तुम मेरा साथ तो दोगे ना, मेरे साथ ऐसे ही रहोगे न हमेशा"

मुझे चौंका दिया इन शब्दों ने,जो काफ़ी दूर से आ रही आवाज के थे जिसमें एक नवयुवती अपने साथ बैठे नवयुवक से ये कह रही थी।
मेरा ध्यान उनकी ओर हुआ ही था कि मैं पहुँच गया अपने अतीत में।
जहाँ मैं आया था उस से झगड़ कर रात भर और वो सारी बातों को सुलझाना चाह रही थी ताकि मैं उदास न रहूँ और अपने लक्ष्य की ओर ध्यान दूँ क्योंकि यही एक है जो हम दोनों को साथ में रख सकता था।
हमेशा की तरह उसका वो एक सिंपल सा टॉप और जीन्स ख़ास कर वो हरा रंग वाला जिसमें मैंने कहा था कि इसमें तुम्हें देखता हूँ तो ख़ुद को सोचता हूँ कि तुम मुझे कैसे मिल गयी।

वो आयी और दूर से देख कर मुस्कुराई वही उसकी प्यारी सी मुस्कान जो उसके गालों पर छोटे छोटे दो डिम्पल बना देती थी जो बढ़ा देते उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा।

प्रिया- क्यूँ उतर गया गुस्सा या अब भी नाराज़ हो मुझसे??

(मैं सिर्फ़ उसे देखे जा रहा था और सोच रहा था कि क्या कभी इस से ज्यादा देर तक नाराज रहा भी जा सकता है)
मैं- तुम ऐसे तैयार होकर आती ही हो कि मैं नाराज होकर भी नहीं रह पाता।

प्रिया- हीहीही, मैं कहाँ करती हूँ ऐसा
(मन ही मन में एक विजयी मुस्कान बिखेरते हुए)

फिर वहीं हम दोनों बैठ गए हाथ में हाथ लेकर। और कई घण्टे ऐसे ही बिताए जैसे ये पल हमें फिर से मिलेंगे ही नहीं।

और फ़िर उसकी जाते हुए कही वो बात और उस पर दिया मेरा जवाब जो झुंझला कर रख देता है मुझे आज भी।

प्रिया- तुम मेरे साथ हमेशा रहोगे न,ऐसे बीच में छोड़ कर तो नहीं जाओगे न।
(आँखों में अजीब सा डर लिए हुए पूछा)

मैं- ऐसे क्यों सोचती हो यार तुम, मैं हूँ न तुम्हारे साथ हमेशा। जानती हो तुम मैं तुमसे उम्र मैं भी बड़ा हूँ अगर मरने की भी बात आये न तो मैं ही पहले मर जाऊँगा और तुम बाद में। (हँसतें हुए बोला)

प्रिया- ऐसा है कुछ भी न बोलो चलेगा पर ऐसी बकवास बातें न करो।
क्या पता तुमसे पहले मुझे भगवान बुला ले तो।
(गुस्से में तमतमाते हुए)

फ़िर तो उसे मनाने में एक घण्टे गुजारिश करनी पड़ी और वादा भी किया कि मैं ऐसी बातें नहीं करूंगा अब।


अब यही सोचता हूँ कि मैंने ऐसे क्यों जवाब दिया था उस वक़्त और क्यों ऐसे सोचा मैंने।
उसे मुझसे दूर गए आज करीब 4 साल बीत गए हैं और मैं ज़िंदा हूँ पर अंदर से मरा हुआ जो कहीं न कहीं मानता हूँ कि उसके जाने की वजह मैं हूँ।
आता हूँ अब भी यहीं उसी जगह पर जहां हम दोनों साथ
होते थे हमेशा और शायद वो भी आती हो यहीं पर अब भी मेरी ही तरह....

उधर दूर वो नवयुवती अपने प्रेमी के कंधे पर सर रखे बात कर रही हैं और मैं ख़ुद को उन दोनों में महसूस कर रहा हूँ।

(कभी ख़त्म न होने वाली कहानी का समापन)