न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 5 Pranava Bharti द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 5

5--

"क्यों, यहाँ कैसे?"फ़ैक्ट्री के गेट पर खड़े दरबान (गार्ड) के सामने ही रमेश अकड़कर बोला | 

"हम इंटरव्यू के लिए आए हैं, उस सामने वाली लाइन में खड़े होने जा रहे हैं ---"राकेश ने धीरे से उत्तर दिया | 

"भागो यहाँ से, यहाँ तुम जैसे लोगों का इंटरव्यू नहीं होता ---"

"हमें बुलाया है सेठ जी ने ---तुमसे हमें कोई काम नहीं है ---"

"मैं तो तुम लोगों को घास भी न डालूँ ---" कहकर उसने दोनों को एक हिकारत भरी नज़र से देखा | 

गेट के अंदर लोगों की लाइन लगी हुई थी, उन्हें वहीं जाना था | आधा घंटा पहले आकर वे अपने नाम की पर्ची जिस पर उनकी शिक्षा के बारे में भी लिखा था गार्ड के द्वारा अंदर भिजवा चुके थे | तब तक रमेश आया नहीं था | गार्ड से पूछकर वो पास ही कोने पर बनी छोटी सी दुकान में चाय -नाश्ता करने चले गए थे | अमन की माँ ने नमक की पूरियाँ बनाकर दे दी थीं | सुबह-सवेरे बिना कुछ खाए ही दोनों दोस्त निकल गए थे | गार्ड ने बताया था कि अभी इंटरव्यू के लिए लगभग आधा-पौने घंटा लगने वाला था | 

"पर, मैंने कहा न, तुमसे नहीं मिलेंगे बड़े ---" रमेश और भी अकड़ा | 

"पर, छोटे साब --इनकी पर्चियाँ तो अंदर सेठ साहब के पास हैं | वो कभी भी बुला लेंगे | "गार्ड ने कहा तो रमेश ने उसको घूरकर देखा | 

"तुम लोगों का नंबर तो कब का आ गया, कहाँ चले गए थे ?ये तुम्हारे ही नाम हैं न ये --?" रामकिशोर अंदर से आ गए थे, वे फ़ैक्ट्री की देखभाल करते थे | इस समय वह सेठ जी के पास के कमरे में बैठे मज़दूरों की भर्ती में व्यस्त थे, उन्हें ही उठकर आना पड़ा था | उसने पर्ची पर से उनके नाम पढ़कर पूछा "फिर गार्ड से पूछा ;

"दीनू, तुमने देखा नहीं, दो बार बड़े साहब ने सामने से तुम्हें इशारा किया था ---"

"नहीं साब.मैं इनसे बात कर रहा था ----"उसने माफ़ी माँगते लहज़े में धीरे से कहा | 

"पर, हमें लाइन में नहीं खड़ा होना है क्या सर ?"अमन ने उस अधेड़ आदमी से बड़ी विनम्रता से पूछा | 

"नहीं, वो लाइन मज़दूरों की है --उन लोगों को मैं भर्ती कर रहा हूँ | तुम लोग पढ़े -लिखे हो, तुम्हें सेठ जी से मिलना है ----" उसने रमेश की ओर एक गहरी दृष्टि डालते हुए उन्हें अपने पीछे आने का इशारा किया | 

रमेश ने अपनी मुट्ठियाँ कस लीं जैसे अभी उन्हें मुक्के ही मुक्के मारकर ख़त्म कर देगा | 

कहना तो गार्ड बहुत कुछ चाहता था, रमेश सबको ही परेशान करके रखता था | सबसे पंगे लेता, सब पर हुक्म चलाता | इस बात को सभी जानते थे स्वयं बड़े सेठ जी भी लेकिन कुछ चीज़ें अपने हाथ में नहीं होतीं | बड़े सेठ दामोदर लाला जी भी अपने भाई की हरकतों से परेशान थे लेकिन अपनी मरती हुई माँ को उसे सँभालने का जो वचन दिया था, उसे कैसे तोड़ देते ? रमेश की हरकतें सेठ जी को भी बर्दाश्त नहीं होती थीं | 

"रमेश ! तुम्हारे लिए ही यह सब कर रहा हूँ, तुम जानते हो| पढ़ने में तो तुम्हारा मन लगा नहीं, अब यहाँ सँभालो, यह सब किसके लिए ?"दामोदर सेठ बहुधा दुखी हो उठते लेकिन रमेश के कान पर जूँ न रेंगती | ऊपर से उसने ऐसे गुंडे पाल लिए थे जो उसकी जी-हज़ूरी करते और उसका पैसा उड़वाने के नए-नए रास्ते सुझाते | 

" आप क्यों चिंता करते हैं, पैसा सब करवा देता है --मेरी चिंता मत किया करिए---बस फ़ैक्ट्री को दौड़ाइए मेरे बड़े भैया --" वह बड़े भाई को बेशर्मी से टका सा जवाब देकर निकल जाता | 

अभी वह रामकिशोर जी के पीछे जाते हुए दोनों लड़कों को देखकर कुछ ऎसी दृष्टि से घूर रहा था जैसे कहा रहा हो 'बच्चू ! देख लूँगा --आखिर आना तो तुम्हें मेरे नौकर बनकर ही है | "