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न... किसी से कम नहीं ट्रेंडी - 9 - अंतिम भाग

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सुगंधा के सामने मेज़ पर उसकी वर्षों की तपस्या थी | पापा व परिवार को देखकर उसका मन भर गया था | कैसे चिपट गईं थीं उसकी दोनों बहनें उससे और माँ और पापा की आँखों में पूरे समय नमी तैरती रही थी | 

इतनी थकान के बावजूद उस रात सुगंधा को नींद नहीं आई | साधारण से परिवार में जन्म लेकर अमन शर्मा तथा राकेश अपनी ईमानदारी से एक सगग्र-मिल के मालिक बने थे जिसे वो दोनों बखूबी संभाल रहे थे | अब रमेश भी उन दोनों से हर सलाह लेता | उसको मिलाकर मिल के तीन पार्टनर थे | 

तीनों अपने परिवार में सुखी थे | राकेश अपने पारिवारिक कर्तव्यों को बखूबी निबाह रहा था | राकेश के दो बेटे थे और रमेश के एक बेटा, एक बेटी ! वह भी अपनी पत्नी व परिवार के साथ सुखी व संतुष्ट था | सबके बच्चे बड़े हो रहे थे | अमन की दो बेटियाँ राकेश व रमेश के बच्चों से बड़ी थीं फिर छोटी प्रार्थना थी | 

अमन की तीनों बेटियाँ बुद्धिमान तो थीं हीं, कलाप्रिय भी थीं | सुगंधा सबसे बड़ी, उसका कला की ओर सबसे अधिक झुकाव था | अपने पिता के साथ जाकर उसने राष्ट्रीय -कला-संस्थान, दिल्ली का फ़ॉर्म भरा था और आश्चर्य था कि वह पहली बार में ही वहाँ के सब कठिन टेस्टों से निकल गई थी | 

राष्ट्रीय कला-संस्थान का तीन वर्ष का कोर्स करके उसको वहीं जॉब के लिए रोक लिया गया था और अब उसीकी 'अंतर्राष्ट्रीय -कला -संस्थान' में उसका तबादला हो गया था | दोनों बिल्डिंगें जुड़ी हुई थीं जहाँ उसे कई नई योजनाओं पर काम करने का आनंद लेना था और सर्टिफ़िकेट कोर्सेज़ के विद्यार्थियों को पढ़ाना था | 

इस संस्थान में आने से पहले ही उसने सोच लिया था कि वह यहाँ क्लास लेते समय साड़ी पहनेगी | पिछली बार जब देवबंद गई थी तब माँ की कई सुंदर पर सादी कॉटन-साड़ियाँ लेकर आई थी | साड़ी पहनना उसे बड़ा ग्रेसफुल लगता | यहाँ कोई ड्रेस-कोड नहीं था लेकिन अधिकतर सब पैंट्स पहनते थे | केवल एक लायब्रेरियन जो काफी उम्र की महिला थीं साड़ी पहनतीं | वे उम्र में सुगंधा से काफ़ी बड़ी थीं, उसे माँ सा प्यार देतीं और उसके साड़ी प्रेम से बहुत खुश रहतीं | 

उस दिन सुगंधा साड़ी पहनकर क्लास लेने आई थी और बड़े हुलसकर मिसेज़ गांधी के पास लायब्रेरी में उन्हें अपनी साड़ी दिखाने गई थी| वह क्लास लेने के लिए लायब्रेरी की सीढ़ियों से नीचे उतर रही थी कि मिस ट्रेंडी अपनी चेली के साथ लायब्रेरी में जाने के लिए ऊपर चढ़ती उससे टकरा गई | 

" आय --हाय --नमस्ते जी ---" ट्रेंडी ने उसकी ओर हाथ जोड़कर नाटक किया | 

" नमस्ते मिस ट्रेंडी ----" सुगंधा ने बड़े सहज रूप में उसका उत्तर दिया और नीचे उतर गई | 

पीछे से उसे ट्रेंडी और उसकी चमची जैनी के खिलखिलाने की आवाज़ आई | उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपनी क्लास की ओर चली गई | 

पहले दिन से ही न जाने क्यों ट्रेंडी उसकी मज़ाक उड़ाने में अपनी वाहवाही समझ रही थी| सुगंधा ने ऐसे बनावटी लोगों को अपने उस संस्थान में बहुत देखा था लेकिन उसे लगा था कि यह बात छात्रों के बीच में ही होती हैं | यहाँ आकर जब उसने फ़ैकल्टी को इस प्रकार की छोटी हरकत करते देखा तो उसे बड़ा खराब लगा | 

आप क्या पहनते हैं, इससे कुछ फ़र्क नहीं पड़ता लेकिन आप क्या सोचते व करते हैं इससे बहुत फ़र्क पड़ता है | मिसेज़ गांधी ने उसे यहाँ आते ही सबके बारे में बता दिया था और यह भी कि उसे सावधान रहने की आवश्यकता है | 

ट्रेंडी उसकी मज़ाक बनाने में कभी पीछे न रहती, जहाँ तक होता वह उसकी खिंचाई करने का कोई मौका न छोड़ती | साड़ी पर तो न जाने कितने कमेंट्स देती रहती | फैकल्टीज़ व स्टूडेंट्स उसे कम ही पसंद करते थे | न जाने उसको कैसे इस संस्थान में किसने फैक्ल्टी के रूप में चुना था ? मिसेज़ गांधी से पता चला कि प्रवीर से पहले वहाँ जो डायरेक्टर थे, उनके किसी रेफ़्रेन्स से ट्रेंडी को रखा गया था | 

इस संस्थान में छात्र/छत्राओं और फ़ैकल्टीज़ को बिना योग्यता के प्रवेश मिलना लगभग असंभव था | किन्तु हर जगह पर कोई न कोई ऐसे लोग होते ही हैं जो संस्थान को बदनाम करते हैं | प्रवीर को भी ट्रेंडी बिलकुल पसंद नहीं थी | क्लास लेने के स्थान पर वह कहीं न कहीं नज़र आती | सुना था कि वह कोलकता के रवींद्र -आर्ट-स्कूल से पास-आउट होकर यहाँ पर एक शिक्षिका के रूप में आई थी | 

कई बार प्रवीर ने उसे बुलाकर उससे बात की थी लेकिन वह कोई न कोई बहाना बनाकर कहती --

"प्रवीर ! आप मेरे स्टूडेंट्स से पूछ सकते हैं ---" न जाने उसने अपने छात्रों को कैसे डरा रखा था कि कोई उसके ख़िलाफ़ मुँह न खोलता | 

उन दिनों फैकल्टीज़ को कुछ नए प्रोजेक्ट्स दिए गए थे, जिन पर स्टूडेंट्स से काम करवाना था | सुगंधा रात भर जागकर अपना पेपर-वर्क पूरा करती | लेकिन जब पूरा होने पर वह प्रेज़ेंटेशन के लिए ले जाने को तैयार होती, उसके पेपर्स ताले लगी अलमारी से ग़ायब हो जाते | प्रेज़ेंटेशन के समय उसकी बड़ी किरकिरी होती | 

प्रेज़ेंटेशन में उस विभाग की पूरी फ़ैकल्टी तो होती ही, बाहर के वे लोग भी उपस्थित होते जिनके प्रोजेक्ट्स पर काम किया जाता था | 

दो-तीन बार ऐसा होने पर मिसेज़ गांधी ने अपना शक ट्रेंडी पर ज़ाहिर किया जो न जाने क्यों सुगंधा से पहले ही दिन से चिढ़ती थी लेकिन कोई प्रमाण नहीं था अत: व्यर्थ का संदेह किया जाने का कोई औचित्य नहीं था | 

यह इंग्लैंड वाला प्रोजेक्ट कई फैकल्टीज़ को दिया गया था | सुगंधा ने इस पर दिन-रात एक कर दिए लेकिन जब वह अपनी फ़ाइल लेकर प्रेज़ेंटेशन के लिए गई उसमें उसके पेपर्स की जगह दूसरे पेपर्स थे | ट्रेंडी उसका तैयार किया गया प्रेज़ेंटेशन दिखा रही थी, उसकी आँखों से मक्कारी फूटी पड़ रही थी | सुगंधा को चक्कर आ गया | प्रवीर सब समझ रहे थे | 

ट्रेंडी को बिना किसी प्रमाण के कुछ कहा भी नहीं जा सकता था | डायरेक्टर प्रवीर ने सबको अपने-अपने प्रेज़ेंटेशंस सब्मिट करने के लिए कहा | ट्रेंडी बड़ी ख़ुश थी, उस दिन उसके प्रेज़ेंटेशन को 'बेस्ट' जो माना गया था | ये प्रेज़ेंटेशन्स इंग्लैंड भेजे जाने थे | 

बहुत जल्दी इंग्लैण्ड के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स से वहाँ उसी प्रोजेक्ट पर काम करने का निमंत्रण आ गया लेकिन वह ट्रेंडी के लिए नहीं सुगंधा के लिए था | ट्रेंडी के पैरों के नीचे से ज़मीन निकल गई | उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि जब उसका प्रोजेक्ट बैस्ट था तब उसकी जगह सुगंधा को क्यों बुलाया गया था ?

और सुगंधा ने तीन माह में एक बड़ी जीत हासिल की थी | बहुत जल्दी में उसका वहाँ जाना हुआ और एक बड़ी फ़तह का सेहरा उसके सिर पर था | 

संस्थान के कार्यक्रम के अगले दिन डायरेक्टर ने एक मीटिंग बुलाई जिसमें संस्थान के सभी विभागों की सारी फैकल्टीज़ थीं | ट्रेंडी अपनी चमची के साथ हाज़िर थी | वह कच्चा खा जाने वाली निगाह से सुगंधा को घूर रही थी | 

" फ्रेंड्ज़ ! हमारे लिए यह बड़े फ़ख्र की बात है कि हम आगे के कई प्रोजेक्ट्स इंग्लैंड के स्कूल ऑफ़ आर्ट्स के साथ मिलकर करेंगे और प्रोजेक्ट हैड होंगी डॉ. सुगंधा शर्मा ! "

"प्रवीर ---व्हाट इज़ दिस ? मेरे प्रॉजेक्ट को इसे कैसे दिया गया, व्हाय दिस अनजस्टिस ?" ट्रेंडी चीख़ी | 

"आपके लिए भी एक सरप्राइज़ है मिस तेजेंदर कौर ---" प्रवीर ने उसे गहरी नज़र से देखा | 

ट्रेंडी को समझ में नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा था ? उसके सामने सुगंधा के चोरी किए हुए सारे प्रोजेक्ट्स के पेपर्स थे जो उसने कई बार सुगंधा की अलमारी में से चुराए थे | उसका मुँह फक पड़ गया | 

"ग़लत काम का ग़लत नतीज़ा ही होता है.नाम बदलने से कुछ नहीं होता ---"प्रवीर ने कुछ गुस्से से कहा | 

" मैंने आज ही आपके सब पेपर्स मंगवाकर देखे----"

"नियम के अनुसार तो आपको पुलिस में देना चाहिए, मैंने सब प्रूफ्स इक्क्ठे करवा लिए हैं ---"कुछ रुककर प्रवीर ने कहा ;

"आय एम सॉरी --बट यू हैव नो चॉयस ----"

"यू आर फ़ायर्ड ---"प्रवीर के साथ पूरी 'इन्वेस्टिगेशन टीम' थी | 

"अब आप यह सोचिए कि आप दुश्मनी किससे निकालना चाहती थीं ? सुगंधा से ? संस्थान से या फिर अपने आप से ?"

 

लेखिका

डॉ.प्रणव भारती

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